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बुधवार, 13 नवंबर 2024

उठती संस्कृति, गिरते मूल्य..!

शहरी आकर्षण में पलायन
        वर्तमान समय में शहरी संस्कृति बड़ी तेजी से विकसित हो रही है। बेहतर जीवन की लालसा में ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। बढ़ते शहरीकरण का प्रभाव हमारे समाज, संस्कृति, और संस्कारों पर भी परिलक्षित हो रहा है। विशेषकर, परिवारिक संरचना तेज़ी से बदल रही है। समाज में पहले जहाँ संयुक्त परिवारों की भूमिका महती थी, वहीं आज एकल परिवारों का वर्चस्व बढ़ा है। इस परिवेश में, सभी की स्थिति में बदलाव देखने को मिल रहा है। नतीजन, शहरों में भी लोग आज कहीं अधिक एकाकीपन, उपेक्षा और मानसिक तनाव के शिकार हैं।

शहरी संस्कृति में उभरते नव संस्कार -  
        संस्कार, किसी भी समाज की नींव होते हैं, जिनसे सामाजिक संतुलन और मानवता कायम रहती है। परंतु शहरी जीवन की आपाधापी और आधुनिकता की दौड़ में, पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों का ह्रास हो रहा है। बच्चों को संस्कारों और परंपराओं की शिक्षा देने के लिए जिस समय और ध्यान की आवश्यकता होती है, वो अक्सर व्यस्तता के कारण नहीं मिल पाता। माता-पिता कामकाजी होते हैं और बच्चों की परवरिश में अक्सर आधुनिक सुविधाओं और शिक्षा के प्रति अधिक ध्यान देते हैं, जबकि मूल्य और संस्कार अनदेखी का शिकार हो रहे हैं। डिजिटल दुनिया में बच्चों की व्यस्तता ने भी पारिवारिक समय और संस्कारों की शिक्षा को पीछे छोड़ दिया है।

        संयुक्त परिवारों में, बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी जैसे बुजुर्गों से संस्कारों का सजीव उदाहरण मिलता था। लेकिन एकल परिवारों में यह पहलू सीमित हो गया है। संयुक्त परिवारों की कमी से बच्चों का उनके बुजुर्गों के साथ संपर्क कम हो गया है, जो कि संस्कारों के अभाव का एक प्रमुख कारण है। शहरीकरण के साथ ही एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ा है। लोग अपने करियर और निजी जीवन में अधिक स्वतंत्रता चाहते हैं। आज का युवा वर्ग स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है और घर के कामों में बुजुर्गों की मदद की जगह खुद सब कुछ संभालना पसंद करता है। ऐसे में, वे खुद को अपने बुजुर्ग माता-पिता से अलग रहने में ही सुखद और सुविधाजनक महसूस करते हैं। एकल परिवार में बच्चों का पालन-पोषण तो होता है, परंतु वे दादा-दादी से मिले अनुभवों और समझदारी से वंचित रह जाते हैं।

        वहीं, एकल परिवारों में बच्चों की परवरिश करने वाले माता-पिता पर अत्यधिक दबाव भी होता है। अकेलेपन में बुजुर्गों का सहारा न होने के कारण, माता-पिता को बच्चों की देखभाल, करियर और घर की जिम्मेदारियों को अकेले संभालना पड़ता है। इन सबके बीच, वे स्वयं अपने बच्चों को पर्याप्त समय और संस्कार देने में असमर्थ हो जाते हैं। संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों का विशेष स्थान होता था। वे बच्चों के लिए सलाहकार और परिवार के लिए अनुभव का खज़ाना होते थे। परंतु एकल परिवारों के बढ़ते चलन ने उनके जीवन में अलगाव और उपेक्षा की भावना भर दी है। अकेलेपन के कारण वे कई मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करने लगे हैं। समाज में वृद्धाश्रमों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, जो एक संकेत है कि कई परिवार अपने बुजुर्गों की देखभाल करने में असमर्थ हैं या तैयार नहीं हैं।

        बुजुर्गों का स्वास्थ्य, विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य, आज बड़ी चुनौती बन गया है। अकेलापन, उपेक्षा, और दूसरों पर निर्भरता की भावना उन्हें अवसाद और अन्य मानसिक समस्याओं की ओर ले जाती है। इसके साथ ही, बुजुर्गों के पास अधिक समय होता है, परंतु उनके साथ बिताने के लिए युवा पीढ़ी के पास समय की कमी होती है। यह असंतुलन बुजुर्गों को परिवार में अलग-थलग महसूस कराता है।

        शहरी जीवन की आपाधापी और व्यक्तिगत स्वार्थों को संतुलित कर के बुजुर्गों को फिर से सम्मान और सुरक्षा देने का प्रयास किया जा सकता है। सबसे पहले, यह ज़रूरी है कि परिवारों में बच्चों को संस्कारों और बुजुर्गों के प्रति आदर की भावना सिखाई जाए। माता-पिता को भी बच्चों के साथ बुजुर्गों का समय साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि बच्चे दादा-दादी या नाना-नानी से जीवन के अनुभवों और संस्कारों का लाभ उठा सकें।

        सरकार और सामाजिक संस्थाओं को भी बुजुर्गों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयास करने चाहिए। वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ाने की बजाय, बुजुर्गों के लिए "Day care canters" जैसी योजनाएँ लागू की जा सकती हैं, जहाँ वे अपने जैसे लोगों के साथ ख़ुशी-ख़ुशी समय बिता सकें और अपने साथियों के साथ कुछ वक्त बिताकर अकेलापन दूर कर सकें।

        अंततः, समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे और अपने बुजुर्गों के प्रति समर्पण की भावना रखे, तभी हम एक संतुलित और संस्कारी समाज की कल्पना कर सकते हैं। एक ऐसा समाज जहाँ बुजुर्ग अपने अनुभवों से समाज को संवार सकें, बच्चों को संस्कार मिल सकें और सभी मिलकर एक पारिवारिक संतुलन बना सकें।

        आग्रह है कि, इस लेख को पढ़ने के बाद यदि आपको कुछ पसंद / नापसंद आया तो हमें अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें, इससे हमें अपने आपमें सुधार आ अवसर मिलता है। धन्यवाद।                        
        

रविवार, 10 नवंबर 2024

हँसने वाला अनोखा पेड़ (Unique laughing Tree)

हँसने वाला अनोखा पेड़  
उत्तराखंड के नैनीताल जिला का 'कालाढूंगी जंगल' अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक ऐसा पेड़ पाया जाता है, जो अपनी अनोखी विशेषता के कारण "हँसने वाला पेड़" कहलाता है। इस पेड़ को हल्का-सा स्पर्श करने, सहलाने अथवा गुदगुदी करने पर इसकी शाखाएं हिलने लगती हैं, मानो यह हँस रहा हो। यह विचित्र गुण इसे अन्य पेड़ों से अलग और विशिष्ट बनाता है। इस पेड़ का वानस्पतिक नाम “रेंडिया डूमिटोरम” है, लेकिन स्थानीय लोग इसे 'हँसने वाला पेड़' के नाम से जानते हैं।

हँसने वाले पेड़ को गुदगुदाते पर्यटक (विडियो)
"हँसने वाले पेड़" की यह विशेषता स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। इसकी शाखाओं में हल्का स्पर्श करते ही यह किसी संवेदनशील जीव की तरह प्रतिक्रिया देने लगता है। जैसे ही कोई इसकी शाखाओं को गुदगुदाता है, यह हिलने लगता है, मानो कोई इसे छूकर हँसा रहा हो। इस पेड़ की यह विशेषता वैज्ञानिकों और वनस्पति शास्त्रियों के लिए भी रहस्यमयी है। वैज्ञानिक इस पेड़ की संवेदनशीलता का अध्ययन कर रहे हैं ताकि इसकी अनोखी प्रतिक्रिया के पीछे के कारणों का पता लगाया जा सके।

इस पेड़ की शाखाओं में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं, जो स्पर्श (गुदगुदी) के प्रति संवेदनशील होती हैं। ऐसा माना जा सकता है कि पेड़ के ऊतकों में कुछ रासायनिक तत्व होते हैं जो इसे बाहरी स्पर्श के प्रति संवेदनशील बनाते हैं। साथ ही, यह भी संभावना है कि इसका हिलना पेड़ के अंदर मौजूद जल की मात्रा, तापमान या तनाव में होने वाले बदलावों के कारण हो सकता है। पेड़ के इस अनोखे गुण को लेकर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं, और भविष्य में इसके बारे में और भी जानकारी मिलने की उम्मीद है।

"हँसने वाला पेड़" केवल एक प्राकृतिक अचंभा नहीं है, बल्कि जैव विविधता में भी इसका खास योगदान है। क्षेत्रीय लोग इसे 'माजूफल' या 'मंजूफल' से पुकारते हैं, जो वास्तव में संस्कृत भाषा के 'मञ्जरी' शब्द से आया है। यह एक छोटा या मध्यम आकार का पेड़ है। इसकी पत्तियाँ चमकदार हरी और अंडाकार होती हैं। इसके फल गोल और पीले रंग के होते हैं। इसके बीजों का रंग काला होता है। इसके फल और छाल को कई बीमारियों जैसे कि बुखार, दस्त, और त्वचा रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। इसके फूल और फल कई छोटे जीवों और पक्षियों के लिए भोजन का स्रोत हैं, जिससे इसके आस-पास का पर्यावरण संतुलित और स्वस्थ बना रहता है। यह पेड़ आसपास के वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को सहयोग प्रदान करता है, जो पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में सहायक है।

कालाढूंगी जंगल में यह पेड़ पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक विशेष केंद्र बन गया है। दूर-दूर से लोग इस पेड़ को देखने आते हैं और इसके अनोखे गुण को महसूस करने आते हैं। स्थानीय लोगों ने भी इस पेड़ को अपनी कहानियों और लोककथाओं का हिस्सा बना लिया है। उनके अनुसार, इस पेड़ की हँसी किसी अदृश्य शक्ति का संकेत है। कुछ लोग इसे प्रकृति का चमत्कार मानते हैं, तो कुछ इसे अलौकिक मानते हैं। नैनीताल के कालाढूंगी जंगल का यह हँसने वाला पेड़ वास्तव में प्रकृति की एक अनोखी देन है। इसकी विशेषता लोगों में जिज्ञासा और कौतूहल का विषय बनी हुई है, और यह पेड़ न केवल पर्यावरणीय संतुलन में योगदान देता है, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा देता है। इसके प्रति वैज्ञानिकों का शोध और अध्ययन भविष्य में इसके और भी अनोखे पहलुओं को उजागर कर सकता है।
शब्दावली अधिग्रहण - निम्नलिखित शब्दों पर कर्सर ले जाकर उनका अर्थ जानें।

प्राकृतिक सुंदरता, जैव विविधता, अनोखी विशेषता, स्पर्श, गुदगुदी, शाखाएँ, विशिष्ट, वानस्पतिक, चर्चा का विषय, संवेदनशील, जीव, स्थानीय, निवासियों, पर्यटकों, प्रतिक्रिया, वैज्ञानिकों, वनस्पति शास्त्रियों, रहस्यमयी, अध्ययन, कोशिकाएँ, ऊतकों, रासायनिक तत्व, मौजूद, मात्रा, तापमान, तनाव, अनोखे गुण, शोध, भविष्य, अचंभा, योगदान, वास्तव, मध्यम, चमकदार, अंडाकार, बीजों, छाल, बीमारियों, बुखार, दस्त, त्वचा रोगों, इलाज, इस्तेमाल, जीवों, पक्षियों, भोजन, स्रोत, पर्यावरण संतुलित, सहयोग, प्रदान, सहायक, आकर्षण, विशेष केंद्र, लोककथाओं, अदृश्य शक्ति, संकेत, चमत्कार, अलौकिक, जिज्ञासा, कौतूहल, पर्यटन, पहलुओं, उजागर.

शनिवार, 2 नवंबर 2024

पाती गंगा माँ की ...!

मेरे प्यारे बच्चों, 

मैं गंगा हूँ, जिसे भारतवासी 'माँ' कहकर पुकारते हैं। हिमालय की शांत गोद से निकलकर, मैं इस धरती पर जीवन का संचार करती आई हूँ। सदियों से मैं इस देश की आत्मा और संकृति का आधार रही हूँ। मैं अपने अमृततुल्य जल से देश की धरती को सींचती आई हूँ। यहाँ के खेतों में लहलहाती फसलें और फसलों पर झूमती बालियाँ मेरे जल का गुणगान करती थीं। मेरे आँचल पर बसे गाँव, कस्बों और शहरों की रौनक मुझसे रही है। एक समय था जब लोग मेरे जल को अमृत समझते थे। भारतवासियों का कोई व्रत, त्यौहार, पर्व-संस्कार आदि 'गंगाजल' के बिना अधूरा रहा करता था। पर आजकल स्थिति बदल गए हैं। मेरे जल को गंदा किया जा रहा है। मेरे तटों पर कूड़ा फैलाया जा रहा है। कई उद्योगों का मलीन पानी भी मुझमें बहाया जा रहा है। मेरे जल में रहने वाले जीव-जंतु भी खत्म हो रहे हैं।

पवित्र गंगा नदी 

मैं देखी हूँ कि लोग कैसे मेरे तटों पर आकर मुझमें स्नान करते हैं और फिर उसी पानी को गंदा करते हैं। मैं देखती हूँ कि कैसे लोग मेरे जल में कपड़े धोते हैं, बर्तन साफ करते हैं और यहां तक कि शौच भी करते हैं। मैं देखती हूँ कि कैसे लोग मेरे जल में मूर्तियाँ विसर्जित करते हैं। मुझे बहुत दुख होता है जब मैं देखती हूँ कि लोग मेरे महत्त्व को भूल रहे हैं। वे मुझे सिर्फ मुझे एक नदी नहीं, बल्कि एक जिवंत देवी मानते थे। लेकिन आजकल वे मुझे सिर्फ एक गंदे नाले के रूप में समझने लगे हैं।

आपको पता है मुझमें बढ़ते हुए इस प्रदूषण के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है आपका घरेलू कचरा। घरों से निकलने वाला कचरा सीधे गंगा में बहा दिया जाता है। उद्योगों का गंदा पानी भी गंगा को प्रदूषित करता है। कृषि रसायन जैसे कीटनाशक और उर्वरक भी गंगा के पानी को दूषित करते हैं। धार्मिक-अनुष्ठानों के दौरान मूर्तियाँ और अन्य सामग्री गंगा में विसर्जित की जाती है जो भी एक बड़ा कारण है। बढ़ता प्रदूषण यहाँ के पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। इससे मनुष्यों के अलावा पशु-पक्षियों और जलीय जीवों का जीवन संकट में है, मत्स्य पालन का काम प्रभावित हो रहा है और मेरे पानी पीने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा, जल-प्रदूषण आसपास के लोगों के आजीविका के साधन पर्यटन को भी प्रभावित कर रहा है।

अपनी गंगा को बचाने के लिए कई आवश्यक कदम उठाने होंगे। सबसे पहले आपको लोगों को गंगा प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करना होगा। कचरे को अलग-अलग करके उसका निस्तारण करना होगा। उद्योगों को अपने अपशिष्ट का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण करना होगा। खेतों में कम से कम रसायनों का इस्तेमाल करना होगा। धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल करना होगा। सरकार को भी गंगा को बचाने के लिए सख्त कानून बनाना होगा।

मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मुझे बचाने में मेरी मदद करें। आप अपने घर से निकलने वाला कचरा कूड़ेदान में डालें। आप मेरे जल को प्रदूषित करने से बचें। आप मेरे तटों को साफ रखें। आप दूसरों को भी मेरे संरक्षण के लिए जागरूक करें। यदि आपने ऐसा किया तो मैं फिर से उतनी ही स्वच्छ और निर्मल हो जाऊंगी जैसी पहले थी। मैं फिर से लोगों को जीवनदान दूंगी। मैं फिर से धरती की शोभा बढ़ाऊंगी।

आप सभी से मेरी यही विनती है कि आप मुझे बचाएं। मैं आपकी माँ हूँ, आपकी बहन हूँ, आपकी दोस्त हूँ। आप मुझे बचाकर अपना कर्तव्य निभाएं।

आपकी अपनी नदी 

-  गंगा 

सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

कंबाला महोत्सव : कृषक सांस्कृतिक उत्सव का संगम

कंबाला भैंसों की एक साहसिक दौड़ प्रतियोगिता है जो तटीय कर्नाटक जिलों में लोकप्रिय है। 'कंबाला' को हिंदी में 'भैंसों की दौड़ या भैंसेगाड़ी की दौड़' कह सकते हैं। इसमें कीचड़ भरे मैदान में भैंस दौड़ती हैं। कंबाला ग्रामीणों के लिए एक शानदार खेल और मनोरंजन कार्यक्रम है और पर्यटकों और फोटोग्राफरों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। यह दौड़ कीचड़ से भरे दो समानांतर ट्रैक पर होने वाली रोमांचक दौड़ होती है। इस कार्यक्रम के दौरान राज्य की राजधानी में 'संपूर्ण तटीय कर्नाटक संस्कृति’ की झलक देखने को मिलती है। यह दौड़ कर्नाटक की 700 वर्षों से अधिक पुरानी सांस्कृतिक धरोहर है। कंबाला कार्यक्रम धान की कटाई के बाद शुरू होते हैं, जो आमतौर पर अक्टूबर के महीने में होता है। नवंबर से मार्च के बीच तुलुनाडु (कर्नाटक के दक्षिणी जिलों में जो तुलु भाषी क्षेत्र हैं) के विभिन्न हिस्सों में कंबाला कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तटीय कर्नाटक के 45 से अधिक विभिन्न गाँव हर साल कंबाला दौड़ मनाते हैं। कुछ लोकप्रिय स्थलों में फ़्रेम मैंगलोर, मूडुबिदिरे, पुत्तूर, कक्केपाडावु, कुलुरु, सुरथकल, उप्पिनंगडी, दोस्त आदि प्रमुख हैं। इस आयोजन में प्रतिवर्ष 2 से 3 लाख आगंतुक आते हैं।

कंबाला महोत्सव में भैंसों की दौड़ (छवि स्रोत-भारतीय पर्यटन मंत्रालय) 

इस क्षेत्र में भैंसों के मालिक और किसान अपनी भैंसों का बहुत ख्याल रखते हैं और उनमें से सबसे अच्छी भैंसों को कंबाला में दौड़ के लिए अच्छी तरह से खिला-पिलाकर सेवा करते हैं; उन्हें सजाने के लिए उनके शरीर और सींगों पर तेल लगाते हैं। उनके पालन-पोषण का विशेष ख्याल रखते हैं। भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि कंबाला भैंसों को नुकसान न पहुँचाया जाए, उन्हें किसी प्रकार से प्रताड़ित न किया जाए या उनके साथ बुरा व्यवहार न किया जाए। 

साभार - नवभारत टाइम्स
कंबाला दौड़ में भैंसों को नियंत्रित करने वाले व्यक्ति को धावक (जॉकी) कहते हैं। धावक वह व्यक्ति होता है जो भैंसों के साथ दौड़ता है। इन भैंसों को दौड़ के समय नियंत्रित करना कोई आसान कार्य नहीं है, इसे केवल एथलेटिक युवा ही भैंस जैसे विशाल जानवर को संभालने का जज़्बा रखते हैं। धावकों भैंसों को दौड़ाते समय लकड़ी के तख्ते पर खड़े होते हैं जिसे 'हलेज' के नाम से जाना जाता है, यह दोनों भैंसों को एक साथ बाँधें रखने वाले सेटअप से जुड़ा होता है जिसे 'नेगिलू' कहा जाता है। नेगिलू के लिए हलेज आधार होता है। दोनों एक दूसरे से जुड़े होते हैं।  कंबाला धावक भैंसों को चाबुक या रस्सियों से नियंत्रित करता है। दौड़ के दौरान धावक जितना संभव हो सके भैंसों को दौड़ाकर कीचड़ युक्त पानी उड़ाता चलता है, जिससे दर्शकों को दौड़ देखने में मनोरंजन और आनंद की अनुभूति होती है। 

कंबाला स्थल सैकड़ों भैंसों और उनकी देखभाल करने वाली टीमों का घर होता है, ठीक उसी तरह जैसे गाड़ियों की दौड़ में रेसिंग कार और उनके चालक दल होते हैं। भैंसों की दो टीमें अपने धावक के साथ दो समानांतर रेस गलियारों में फिनिश लाइन की ओर दौड़ती हैं। यह दौड़ पूरे दिन चलती है और विजेता अगले राउंड के लिए सागल होते रहते हैं। सबसे पहले फिनिश लाइन पर पहुंचने के अलावा, ऊपर दिए गए लक्ष्य तक पानी उड़ाने के लिए भी पुरस्कार दिए जाते हैं जिसे 'कोलू' के नाम से जाना जाता है। कंबाला भैंस दौड़ प्रतियोगिता के दौरान भैंसों को आमतौर पर जोड़े में ही दौड़ाया जाता है, जिन्हें हल और रस्सियों से एक साथ बाँधा जाता है। कंबाला दौड़ की लंबाई लगभग 150 मीटर की होती है। जिसे अच्छी भैंसें 12 सेकंड से भी कम समय में यह दौड़ पूरी कर पाती हैं। 

यदि आप भी कंबाला का कार्यक्रम देखने के शौकीन हैं तो स्थानीय मीडिया और कुछ निजी वेबसाइटों पर से इसकी जानकारी पढ़ सकते हैं। अगर आपको सर्दियों और गर्मियों के महीनों में कर्नाटक के तटीय शहरों जैसे मंगलुरु, उडुपी, मूडाबिदिरे में जाने का अवसर मिले, तो आप अपने स्थानीय मेज़बान अथवा होटल के कर्मचारी से निकटतम या अगले कंबाला कार्यक्रम के बारे में अवश्य पूछें इससे आपको अपने नजदीकी कंबाला दौड़ तक पहुँचने में मदद मिलेगी, जहाँ आप दौड़ का आनंद ले सकेंगे। अधिकतर कंबाला कार्यक्रम मुफ़्त होते हैं और कई घंटों अथवा रात भर चलते हैं। 

मंगलवार, 21 नवंबर 2023

छठ पर्व की छटा निराली - स्वास्थ्य और संस्कृति का संगम

छठ महापर्व पर सूर्य को अर्घ्य देती महिला  
उत्तर भारत के बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ के पर्व को विशेष महत्व दिया जाता है। यह पर्व इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन लोग किसी मंदिर में जाकर पूजा-पाठ नहीं करते, बल्कि प्रकृति की गोद में आराधना करते हैं। दरअसल छठ के पर्व में सूर्य देव को बहुत महत्व दिया जाता है। इसकी शुरुआत सुबह सूर्य देव के जलाभिषेक से होती है और समापन भी इसी तरह से होता है। हमारे ग्रंथों में भी सूर्य को सुबह जल चढ़ाने को विशेष बताया गया है। लेकिन ये सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कुछ विज्ञान भी है। धूप से मिलने वाले विटामिन-D के बारे में तो हम जानते हैं लेकिन क्या धूप के और भी फायदे हैं? आज का विज्ञान सूर्य की रौशनी और हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में क्या कहता है, आइए इस ब्लॉग में समझने की प्रयास   करते हैं

विटामिन-डी
विटामिन-डी को 'सनशाइन विटामिन' भी कहा जाता है। क्योंकि ये धूप से मिलता है और कुछ चुनिंदा विटामिन में से है, जिन्हें हमारा शरीर खुद बना सकता है। लेकिन एक विडंबना ये भी है कि फ्री में बनने वाले इस विटामिन की भी हमारे देश के लोगों में कमी है। टाटा 1mg के एक सर्वे में देखा गया कि 76% भारतीय विटामिन-डी की कमी से ग्रस्त हैं। दिन के आधे घंटे में बन जाने वाला ये विटामिन भी आज हम लोगों में कम है। शायद इसी लिए हमारे पूर्वज सूर्य को इतनी अहमियत देते थे। सूर्य की पूजा के पीछे चाहे जो कारण रहे हों। लेकिन आज विज्ञान भी ये मानता है कि सूरज कि रोशनी हमारे लिए कितनी जरूरी है।
कैल्शियम हमारी हड्डियों के लिए कितना जरूरी है। कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और कमजोर हड्डियों में फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। हल्की सी चोट और हड्डी चटकी, लेकिन इससे बचने में धूप हमारी मदद कर सकती है। दरअसल, धूप से बनने वाला विटामिन-डी कैल्शियम को सोखने में अहम भूमिका निभाता है। और उन्हें मजबूत बनाता है। कितना भी कैल्शियम खा लें, बिना विटामिन-डी के उसे अब्सॉर्ब करना मुश्किल हो जाता है।

बैक्टीरिया हमारे चारों तरफ हैं। इनमें से ज्यादातर तो हमें कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन कुछ हमें बहुत बीमार बना सकते हैं। फिक्र मत कीजिए अपने घर की खिड़की खोल के जरा धूप अंदर आने दीजिए और इन बीमार करने वाले बैक्टीरिया को मार भगाइए। धूप बैक्टीरिया भी खत्म करती है। यूनिवर्सिटी ऑफ ओरेगॉन में इस बारे एक रिसर्च हुई, जिसमें देखा गया कि एक अंधेरे कमरे में बैक्टीरिया 12% थे। लेकिन जब उस कमरे में धूप आने दी गई तो बैक्टीरिया की आबादी घटकर 6% हो गई।

धूप हड्डियों और विटामिन-डी को तो दुरुस्त रखती ही है। ये ब्लड प्रेशर भी घटाती है। ये जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ हैम्पटन में हुई एक रिसर्च में सामने आई। रिसर्च में पता चला कि धूप में रहने से नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) गैस हमारी स्किन के जरिए ब्लड वेसेल्स में पहुंच जाती है। ब्लड वेसेल्स को सिकुड़ने से रोक कर ब्लड प्रेशर कम करने में मदद करती है। हाई ब्लड प्रेशर से हार्ट डिजीज और किडनी डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में धूप ब्लड प्रेशर काबू में रख कर, इन बीमारियों का खतरा भी कम कर सकती है।

आपने कभी ध्यान दिया है कि कुछ लोग बिना घड़ी देखे सही समय पर जग जाते हैं। इसके पीछे भी एक विज्ञान है। वह है हमारे शरीर की जैविक-घड़ी। दरअसल, हम आँखों से देखकर तो दिन-रात का अंदाजा लगाते हैं। हमारे शरीर में कोशिकाएं भी दिन और रात के बारे में जानकारी रखती हैं और उसी हिसाब से काम करती हैं।लेकिन आजकल रात में फोन की स्क्रीन और तेज लाइटों से हम अपने दिमाग को कंफ्यूज कर देते हैं। और हमारा स्लीप साइकिल बिगड़ जाता है। फिक्र मत कीजिए धूप इसे सही करने में भी हमारी मदद कर सकती है।नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपी एक रिसर्च में देखा गया कि सुबह की रोशनी में रहने से दिमाग में मेलाटोनिन नाम का एक केमिकल निकलता है, जो हमारी नींद सुधारने में मदद करता है।

हमारे ग्रंथों में भी सुबह सूर्य की आराधना को खास अहमियत दी गई है और बताया गया है कि सुबह में सूर्य नमस्कार कई बीमारियों को दूर रखता है।अमेरिकन नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन मैगजीन में छपी एक स्टडी के मुताबिक विटामिन-डी की कमी का एंग्जायटी और मूड से सीधा कनेक्शन है। ‘काम योर माइन्ड विथ फूड‘ की लेखिका, न्यूट्रिशनिस्ट और साइकिएट्रिस्ट डॉ. उमा नायडू बताती हैं कि इस दिशा में हुए कई शोध ये इशारा करते हैं कि विटामिन-डी डिप्रेशन और एंग्जायटी के खिलाफ भी असरदार है। विटामिन-डी दिमाग में न्यूरो-स्टेरॉइड नाम के केमिकल की तरह काम करता है और एंग्जायटी से लड़ने में मदद करता है।कुछ लोगों को मौसम बदलने के साथ भी डिप्रेशन होता है। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे ‘सीजनल इफेक्टिव डिसॉर्डर’ कहते हैं। लोग इसके शिकार सर्दियों में ज्यादा होते हैं, इसलिए इसे विंटर डिप्रेशन भी कहा जाता है।

अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपी एक रिसर्च में ये भी देखा गया कि दिन में पर्याप्त रौशनी और धूप वाली जगह में रहकर इस तरह के डिप्रेशन से बचा जा सकता है। मतलब धूप सिर्फ ‘कोई मिल गया’ फिल्म के जादू के लिए नहीं जरूरी, ये हमारे लिए भी बड़ी फायदेमंद है। तो देर किस बात की खिड़की खोलिए और थोड़ा जगमगाती धूप अंदर आने दीजिए।

साभार - दैनिक भाष्कर

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

सूचना (नोटिस) लेखन : सार्वजनिक जागरूकता का सशक्त माध्यम

"एक लेखन कौशल है जिसका उद्देश्य लोगों को अद्यतन जानकारी देना होता है।सूचना कम शब्दों में औपचारिक शैली में लिखी गई संक्षिप्त जानकारी होती है। किसी विशेष जानकारी को सार्वजनिक करना 'सूचना लेखन' कहलाता है।"

 अथवा 

"दिनांक और स्थान के साथ भविष्य में होने वाले कार्यक्रमों आदि के विषय में दी गई लिखित जानकारी 'सूचना' कहलाती है।"

आधुनिक दुनिया में सूचना लेखन एक महत्वपूर्ण और प्रभावी कौशल है जो जानकारी पहुँचाने के काम आता है। आज के डिजिटल युग में, सूचना लेखन वेबसाइटों, ब्लॉगों, सोशल मीडिया पोस्टों और इलेक्ट्रॉनिक संदेशों के माध्यम से अपार प्रभाव डालता है। इस लेखन विधि है का उपयोग विभिन्न विषयों और आवश्यकताओं के अनुसार व्यक्तिगत अथवा सामूहिक सूचना देने के लिए होता है। सूचना लेखन व्यक्तिगत के अलावा व्यावसायिक, अकादमिक और सरकारी परिसरों में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सही और प्रभावी संदेश प्रस्तुत करने का सटीक माध्यम है।

 उदाहरणार्थ - अपने नाम परिवर्तन की सूचना, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों, व्यापारिक संस्थानों, शैक्षिक संस्थानों, सार्वजनिक स्थानों, सार्वजनिक कार्यक्रमों, सांस्कृतिक अवसरों पर की जाने वाली सूचनाएँ आदि।

सूचना लेखन में सरलता, सुसंगत और संक्षिप्त भाषा का उपयोग किया जाता है ताकि पाठक आसानी से सूचना को समझ सकें। सूचना लेखन का महत्वपूर्ण लक्ष्य यह होता है कि आपके पाठकों को अपनी सूचना को ठीक से समझाएं ताकि उन्हें अच्छी तरह से जानकारी प्राप्त हो सके और वे अगले कदम की योजना बना सकें।

सूचना लेखन के लिए कुछ महत्वपूर्ण तत्व शामिल होते हैं, जैसे कि विषय को स्पष्ट करना, महत्वपूर्ण तथ्यों को व्यवस्थित करना, अनुक्रमणिका या शीर्षक का उपयोग करना, संक्षेप और सरल भाषा का उपयोग करना, और आवश्यकता अनुसार ग्राफिक्स, चित्र, या टेबल का उपयोग करना।

साभार- www.hindi0549.com


यहाँ कुछ  उदाहरण दिए जा रहे हैं  - 
सूचना लेखन: विद्यालय के वार्षिक खेल दिवस के बारे में सूचना
विद्यालय का नाम: सेंट्रल पब्लिक स्कूल, दिल्ली
प्रिय विद्यार्थियों,
हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि हमारे विद्यालय का वार्षिक खेल दिवस 25 जून 2024 को विद्यालय के मुख्य खेल मैदान में आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर विभिन्न खेलों और गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें भाग लेने के लिए आप सभी को आमंत्रित किया जाता है।
खेल दिवस का कार्यक्रम निम्नलिखित है:
सुबह 9:00 बजे: उद्घाटन समारोह
सुबह 9:30 बजे: दौड़ प्रतियोगिता (100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर)
सुबह 11:00 बजे: लंबी कूद और ऊँची कूद प्रतियोगिताएं
दोपहर 12:30 बजे: भोजनावकाश
दोपहर 1:30 बजे: कबड्डी और खो-खो प्रतियोगिताएं
शाम 4:00 बजे: समापन समारोह और पुरस्कार वितरण
सभी विद्यार्थियों से अनुरोध है कि वे समय पर उपस्थित हों और अपने-अपने खेल वर्दी में आएं। जो विद्यार्थी विभिन्न खेलों में भाग लेना चाहते हैं, वे अपने कक्षा अध्यापक से संपर्क करके पंजीकरण करवा सकते हैं। पंजीकरण की अंतिम तिथि 20 जून 2024 है।
ध्यान दें कि सभी प्रतिभागियों को समय पर मैदान में उपस्थित होना आवश्यक है और अनुशासन बनाए रखना है।
आइए, इस दिन को एक यादगार और सफल आयोजन बनाएं!
धन्यवाद 
खेल विभाग

उदाहरण 2) आप अपने विद्यालय के खेल परिषद् के सचित (सेक्रेटरी) हैं। आपके विद्यालय में खेल दिवस अपरिहार्य कारणों के वजह से रद्द करना पड़ रहा है। इसकी सूचना लिखिए। शब्द सीमा 200 शब्द है। 

जनता स्थानीय  विद्यालय, दिल्ली

सूचना 
दिनांक : xx जून, 2024

प्रिय विद्यार्थियों,
यह अत्यंत खेद के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि हमारे विद्यालय का वार्षिक खेल दिवस, जो कि 25 जून 2024 को आयोजित होने वाला था, अपरिहार्य कारणों से रद्द कर दिया गया है। इस निर्णय को लेना हमारे लिए भी कठिन था, परंतु आपकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक हो गया है।
खेल दिवस का आयोजन हमारी विद्यालय की महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है और हम जानते हैं कि आप सभी को इसका बेसब्री से इंतजार था। हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं और आश्वासन देते हैं कि जैसे ही परिस्थितियाँ सामान्य होंगी, हम इस कार्यक्रम को पुनः आयोजित करने का प्रयास करेंगे।
जो विद्यार्थी खेल दिवस के लिए पंजीकृत हो चुके थे, उनके पंजीकरण स्वतः ही अगले आयोजन के लिए मान्य रहेंगे। इसके अतिरिक्त, किसी भी प्रश्न या जानकारी के लिए आप अपने कक्षा अध्यापक या खेल परिषद के सदस्य से संपर्क कर सकते हैं।
आपके सहयोग और समझदारी के लिए धन्यवाद। हमें विश्वास है कि आप इस निर्णय को समझेंगे और भविष्य में होने वाले अन्य आयोजनों के लिए भी उतनी ही उत्साह के साथ भाग लेंगे।
धन्यवाद,
सचिव, खेल परिषद्
सेंट्रल पब्लिक स्कूल, दिल्ली

अभ्यास 1.   

आप अपने को विद्यालय के छात्र परिषद का सचिव मानते हुए निम्नलिखित सूचना लेखन कीजिए। 

"रक्तदान, महादान"  
आपके परिसर में 'रक्तदान शिविर' का आयोजन किया जाना है। इस कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं के स्वस्थ माता-पिता अथवा संबंधी स्वेच्छा से रक्तदान कर सकते हैं। छात्रों को रक्तदान पर जागरूक किया जाएगा। सभी से अधिक मात्रा में सहभाग लेने और कार्यक्रम को सफल बनाने का आग्रह करते हुए एक सूचना लिखिए। 

आपका लेखन 200 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए।

आप अपने लेखन में निम्नलिखित बिन्दुओं को अवश्य शामिल करें। 

  1. रक्त की जांच और रक्तदान प्रमाण-पत्र जांच मुफ्त।
  2. रक्तदान एक त्वरित, सरल और  सुरक्षित  प्रक्रिया है।
  3. 'रक्तदान महादान, बचाए जरूरतमंद लोगों की जान।' 

रविवार, 8 अक्तूबर 2023

तिल के बीजों में है ताकत पहाड़ सी

तिल का तेल 
किसी ने ठीक ही कहा है कि, "तिल के तेल में इतनी ताकत होती है कि यह पत्थर को भी चीर देता है।" आजमाने के आप चाहे तो किसी पर्वत का कोई कठोर पत्थर लेकर उसमें कटोरी के जैसा एक खड्डा बना लीजिए, उसमें पानी, दूध, घी अथवा तेजाब या संसार में कोई और ही कैमिकल, ऐसिड जैसे तरल पदार्थ डाल दीजिए, अन्य पदार्थ पत्थर में वैसा की वैसा ही रहेगा, कहीं नहीं जायेगा। यदि उस कटोरीनुमा पत्थर को 'तिल के तेल' से भर दें। तो आप दो दिन बाद देखेंगे कि, 'तिल का तेल' पत्थर को पार करता हुआ पत्थर के नीचे आ भी गया है। यह होती है 'तिल' की ताकत, इसीलिए आयुर्वेद में इसे मालिश करने के लिए सर्वोत्तम माना गया है। यह तेल त्वचा, और माँस को पार करता हुआ, हमारी हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है।

आप को यह भी जानकार आश्चर्य होगा कि आज हम जिस 'तेल' शब्‍द का रोज़मर्रा के जीवन में प्रयोग करते हैं दरअसल उसकी उत्‍पत्ति भी 'तिल' से हुई है। संस्कृत भाषा में तेल के लिए 'तैल' शब्द का प्रयोग मिलता है। 'तैल' शब्द की व्युत्पत्ति 'तिल' शब्द से ही हुई है। तैल का अर्थ है कि 'वह जो तिल से निकलता हो। अर्थात 'तेल' का असल अर्थ ही है 'तिल का तेल'। यह शरीर के लिए औषधि का काम करता है। इसका प्रयोग सदियों से भारतवर्ष में होता रहा है। प्रत्येक मांगलिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ तिल के तेल के दीपक प्रज्ज्वलित करके करने की प्राचीन परंपरा रही है। आज भी चाहे आपको कोई भी रोग हो तिल का तेल इस्तेमाल करने से हमारे शरीर में उस व्याधि से लड़ने की क्षमता यह विकसित करना आरंभ कर देता है। यह गुण इस पृथ्वी के अन्य किसी खाद्य पदार्थ में विरले ही पाया जाता।

बादाम का तेल 

'तिल का तेल' ऐसा नैसर्गिक पदार्थ है जिसे कोई भी थोड़े प्रयास से भारतीय बाजारों में आसानी से प्राप्त कर सकता है। इसके लिए आपको किसी ब्रांड अथवा कंपनी विशेष का ही तेल खरीदने की आवश्यकता ही नहीं होगी। प्रयास करें कि बिना मिलावट के शुद्ध तेल उपलब्ध हो सके। आप इसके औषधीय गुण से चौक सकते हैं। मात्र सौ ग्राम सफेद तिल में 1000 मिलीग्राम कैल्शियम उपलब्ध होता है। यदि बादाम में उपलब्ध कैल्सियम से हम तिल की तुलना करें तो पाएंगे कि तिल में लगभग चार गुना से भी अधिक कैल्शियम की मात्रा होती है। जबकि लौहतत्व की मात्र बादाम की तुलना में तिल के तेल में तीन गुना से भी अधिक होती है। तांबे के साथ ही मैग्निशियम, फॉस्फोरस, सेलनियम और जिंक की मात्राएँ भी इसमें अधिक ही होती है। तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।आमतौर पर तिल सफ़ेद, काला और लाल रंग के मिलते हैं। सफ़ेद तिल सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है।

काला, सफ़ेद और लाल तिल 

तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एसिड होता है जो बीमारियों को दूर रखता है। सिस्मोल में विटामिन ई जैसे गुण होते हैं जो कैंसर को रोकते हैं। तिल के तेल के अंदर आपको बिटामिन- ए, बी, सी, डी, और ई का सारा संसार मिल जाता है। तिल के तेल का उपयोग भारतीय खाद्य व्यवसाय तथा खाद्य बाजार में कायम में होता है। यह तेल ज्यादातर खाद्य बनाने में प्रयोग होता है, जैसे कि जलेबी, गज़क, लड़्डू, चिक्‍की, पट्टी और बाड़ी आदि।  इनके अलावा, यह तेल को भोजन में भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है, खासकर साग और सब्ज़ियों के साथ। इसमें लौह की मात्रा भरपूर होने से महिलाओं के लिए अनेमिया के इलाज़ में भी कारगर सिद्ध होता है।

तिल के तेल के फायदे - 

  1. स्वास्‍थ्‍य लाभ: तिल के तेल में फाइबर, प्रोटीन, विटामिन-ई, बी, और ए के साथ-साथ मिनरल्स जैसे कैल्शियम, मैग्‍नीशियम, फास्‍फोरस, पोटैसियम, कॉपर, जिंक, सेलेनियम, आदि होते हैं, जो कि बड़े फायदेमंद होते हैं।
  2. त्‍वचा के लिए फायदेमंद: तिल के तेल में प्राकृतिक तरीके से मौजूद विटामिन-ई की वजह से यह त्‍वचा को मुलायम बनाता है और बालों के लिए भी फायदेमंद होता है।
  3. हृदय रोग में फायदेमंद: तिल के तेल में पॉलीयूनसैचरेटेड फैट्स होते हैं, जो ह्रदय के लिए फायदेमंद होते हैं।
  4. वजन नियंत्रण: तिल के तेल में प्रोटीन और फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, जो वजन को नियंत्रित करने में मदद करती है।
  5. बढ़ती ऊर्जा: तिल के तेल का सेवन करने से बॉडी में ऊर्जा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे थकान और कमी कम होती है।
  6. आंखों के लिए फायदेमंद: तिल के तेल में विटामिन-ए होता है जो आंखों के लिए फायदेमंद होता है।
  7. तंतु की समस्‍या के लिए: तिल के तेल का सेवन करने से तंतु सुस्‍त होती है, जिससे समय तक यौन संबंध बनाए रखना संभव होता है।
  8. मस्‍तिष्‍क के लिए फायदेमंद: तिल के तेल के सेवन से मस्‍तिष्‍क की कार्यशीलता बढ़ती है और मस्‍तिष्‍क के रक्‍तसंचार को सुधारता है।
  9. डायबीटीज का इलाज़: तिल के तेल का सेवन करने से डायबीटीज के लिए फायदेमंद होता है। इसके सेवन से शरीर का रक्‍तचाप और रक्‍त शर्करा कंट्रोल में आता है।
  10. कैंसर की रोकथाम: तिल के तेल में विटामिन ई और अंटीऑक्‍सीडेंट होते हैं जो कैंसर के खिलाफ कार्य करते हैं।
तिल के तेल का इस्‍तेमाल कैसे करें?
  1. खाद्य व्यंजन: तिल के तेल का उपयोग बहुत सारे खाद्य व्‍यंजन बनाने में होता है, जैसे कि जलेबी, गज़क, बाड़ी, लड़्डू, चिक्‍की, और साग और सब्ज़ियों को बनाने में भी होता है।
  2. दूध या दही में: तिल के तेल को दूध या दही के साथ सलाद आदि में मिलाकर सेवन किया जा सकता है।
  3. रोज़ के खाने के साथ: आप तिल के तेल को रोज़ के खाने में इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे कि साग और सब्ज़ियों के साथ।
  4. मालिश में उपयोगी : मालिश  के रूप में तिल के तेल का सेवन किया जा सकता है, खासकर सर्दी के मौसम में। तिल के तेल से शारीरिक आराम और मानसिक सुख चैन के लिए एक अच्छे मालिश तेल के रूप में किया जा सकता है।

तिल के तेल के नुकसान

  • कॉलेस्‍ट्रॉल का वृद्धि: अगर आपका खून कॉलेस्‍ट्रॉल हाइ है, तो तिल के तेल का उपयोग कम करें, क्‍योंकि इसमें पॉलीयूनसैचरेटेड फैट्स होते हैं जो कॉलेस्‍ट्रॉल को बढ़ा सकते हैं।
  • अलर्ज़ी की समस्‍या: तिल के तेल से एलर्ज़ी की समस्‍या हो सकती है, जिसका स्‍वास्‍थ्‍य को नुकसान हो सकता है।
  • बच्‍चों के लिए खतरा: बच्‍चों के लिए तिल के तेल का सेवन विशेषत:रूप से सूजी और घी के साथ नहीं करें, क्‍योंकि इसमें फाइबर की अधिक मात्रा होती है, जो कि उनके शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक हो सकती है।
  • मधुमेह के रोगियों को इसके सेवन में सतर्क रहना चाहिए क्‍योंकि तिल के तेल का सेवन से उनका रक्‍तचाप और रक्‍त-शर्करा बढ़ने की संभवना होती है। गर्भवती महिलाओं को तिल के तेल का सेवन कम करना चाहिए, क्‍योंकि यह गर्भावस्‍था के दौरान कुछ नुकसान पहुंचा सकता है। इन बातों का ध्‍यान रखकर तिल के तेल का सेवन करें और इसके लाभ प्राप्‍त करें, लेकिन डॉक्‍टर की सलाह लेना न भूलें, खासकर अगर आपका किसी तरह का शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बंधी समस्‍या है।


अन्य स्रोत सामग्री : 


गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

हल्दी एक : गुण अनेक

कच्ची हल्दी
हल्दी भारतीय जायके और संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। यह एक गुणकारी वनस्पति है, जो भोजन का रंग और स्वाद बढ़ाने से लेकर हर मांगलिक कार्य में प्रथम प्रयुक्त सामग्री है। देखने में तो यह अदरक की प्रजाति का ५-६ फुट तक बढ़ने वाला पौधा है जिसकी जड़ की गाठों के रूप में हल्दी मिलती है। हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता रही है। औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा, लौंगा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योषितप्रिया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम, टर्मरिक नाम दिए गए हैं।
भारतीय परिवारों में हल्‍दी को एक सर्वसुलभ औषधि‍ के रूप में प्रयुक्त की जाती है। छोटी-मोटी चोट-मोच आदि के समय हल्दी को प्याज के साथ पकाकर लगाने का अनुभव सदियों से भारतीयों के पास रहा है। हमारी रसोई में भी बिना इसके दाल और सब्जी बदरंग ही लगती है। हमारे पारंपरिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रम बिना हल्दी के शुभ नहीं समझे जाते हैं। आज के आधुनिक युग में भी मांगलिक अवसरों, पूजा-पाठ, आमंत्रण एवं विवाह के पूर्व वर और वधू दोनों के शरीर पर हल्दी के उबटन अथवा तिलक करने की प्रथा जारी है। संभवतः यह सब इसके औषधीय गुण और त्वरित लाभ को देखकर ही किया जाता है।   
पिसी हल्दी (चूर्ण)

  • लैटि‍न नाम : करकुमा लौंगा (Curcuma longa)
  • अंग्रेजी नाम : टर्मरि‍क (Turmeric)
  • पारि‍वारि‍क नाम : जि‍न्‍जि‍बरऐसे (Zingiberaceae)

हालांकि लंबे समय से आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है, जहाँ इसे हरिद्रा के रूप में भी जाना जाता है, अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अनुसार, किसी भी बीमारी के इलाज के लिए हल्दी या उसके घटक, 'करक्यूमिन' का उपयोग करने की नैदानिक ​संस्तुति दी है। हल्दी को एक ऐन्टीसेप्टिक के रूप में सौंदर्य प्रसाधन सामग्रियों जैसे - साबुन, गोरेपन की  क्रीम,  त्वचा में प्रकृतिक निखार लाने, कील-मुहाँसे से बचने व दाग-धब्बे रहित त्वचा पाने के लिए हल्दी और चंदन के मिश्रण वाले उत्पादों की मांग रहती है।

हल्दी: भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण रंग और स्वास्थ्य का सूत्र"

हल्दी वाला दूध (उकाला) 

हल्दी (Turmeric) भारतीय साहित्य, संस्कृति, और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका महत्व शादी समारोह से लेकर रसोईघर तक कई पहलुओं में दिखता है। हल्दी के यह विभिन्न पहलु हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, और आयुर्वेदिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और हमारे दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में उपस्थित होते हैं।

भारतीय परंपरा में हल्दी का महत्व:

शादी और अन्य समारोहों में: हल्दी का प्रयोग भारतीय शादियों में एक महत्वपूर्ण रस्म के रूप में किया जाता है। इसका मकसद दुल्हन और दुल्हे को उनकी त्वचा को सुंदर बनाने के लिए कुर्क्यूमिन के गुणकारी प्रभाव का उपयोग करना होता है। हल्दी के इस उपयोग से न केवल त्वचा की चमक बढ़ती है, बल्कि यह एक परिवारीय समारोह के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

धार्मिक और पौराणिक महत्व: हल्दी की रस्म का महत्व धार्मिक और पौराणिक कथाओं में भी पाया जाता है। कुछ समुदायों में, हल्दी का इस्तेमाल एक पवित्र घटना के रूप में किया जाता है और यह शुभकामनाओं के लिए और सुरक्षा के लिए प्राचीन रूप में मान्यता प्राप्त है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा में: हल्दी को आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक प्रमुख औषधि माना जाता है। इसमें कुर्क्यूमिन के गुण होते हैं जो सूजन को कम करने, इंफ्लेमेशन को नियंत्रित करने, और अन्य बीमारियों का इलाज करने में मदद करते हैं। हल्दी एक ऐसी प्राकृतिक औषधि है जो हमें कई तरह की शारीरिक समस्याओं सहित त्वचा संबंधित समस्याओं से भी सुरक्षित रखती है। हल्दी का उपयोग त्वचा की देखभाल के लिए कोई आज से नहीं बल्कि सालों से किया जा रहा है। त्वचा की खूबसूरती बढ़ाने में हल्दी बहुत ही फायदेमंद होती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट, एंटी- इंफ्लेमेटरी गुण त्वचा की लालिमा को शांत करने, दाग-धब्बों को कम करने, त्वचा को चमकदार बनाने और एक्ने की समस्या से छुटकारा दिलाने में प्रभावशाली होती हैं।

रसोईघर में: हल्दी का उपयोग रसोईघर में भी होता है, और यह खाने में और मसालों में रंग और स्वाद में भी उपयोग होता है। हल्दी वाला चाय और अन्य व्यंजनों का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।

भारतीय समाज में हल्दी जन्म से लेकर आजीवन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और हमारे समाज, संस्कृति, और स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं के साथ इसका गहरा संबंध है। यह एक रंग के रूप में और स्वास्थ्य के सूत्र के रूप में हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और हमारे दैनिक जीवन को सजाने और सुंदर बनाने में मदद करता है।

संदर्भ ग्रंथ :- 


मंगलवार, 26 सितंबर 2023

पवित्र तुलसी: जीवन अमृत स्वरूपा, वनौषधियों की रानी

तुलसी का बिरवा हिंदूओं की आस्था और धर्म का प्रतीक माना जाता है। लोग इसे अपने घर के सामने, आँगन,  दरवाजे पर या बगीचे में लगाते हैं। भारतीय संस्कृति के चिर्-पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद के अतिरिक्त होमियोपैथी, ऐलोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है। तुलसी, जिसे जीवन के लिए अमृत और 'वनौषधियों की रानी' भी कहा जाता है। वास्तव में यह भारतीय मूल का एक झाड़ीनुमा पौधा होती है जो पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में महाद्वीप में पाई जाती है। 
भारतीय हिन्दू इसे "पवित्र तुलसी" कहते है क्योंकि यह तमाम मान्यताओं और मिथकों से घिरी हुई है। तुलसी के पौधे के अलावा इसकी पत्ती, फूल, बीज और जड़ आदि का अलग-अलग तरह से प्रयोग किया जाता है। इसका पौधा हिंदुओं द्वारा सर्वत्र पूजनीय है, और इसे स्वयं देवी का रूप माना जाता है। वास्तव में, यह घरों के अर्थत् में यह आंगन (केंद्र) में उगाई जाती है। इसके लिए विशेष चबूतरेनुमा गमला इस्तेमाल किया जाता है। जहाँ प्रतिदिन जल देकर और धूप, दीप, कपूर और पुष्प आदि अर्पण कर व्यवस्थित पूजा करने का विधान है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इसे घर में उचित स्थान पर लगाने से यह किसी भी तरह के हानिकारक प्रभाव से घर का बचाव और सुरक्षा करती है। इसकी जीवाणुरोधी शक्तियों के कारण, घर के आस-पास के क्षेत्र में तुलसी की उपस्थिति कीटाणुओं के प्रसार को रोकती है और वातावरण को साफ़ रखने में मदद करती है।


इस पौधे का प्रत्येक भाग की किसी न किसी तरह के आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है - इसकी जड़ें धार्मिक तीर्थों का प्रतीक हैं, इसकी टहनियाँ देवत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं, और इसका सबसे ऊपरी हिस्सा शास्त्रों की समझ को दर्शाता है। इसके पत्ते निश्चित रूप से सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों में से एक हैं - सर्दी, खाँसी, ठंडक अथवा गले की ख़राश व छाती में कफ़ की जकड़न आदि के लिए एक कारगर उपाय। हिंदू धर्म में, तुलसी को धूपबत्ती दिखाने और सिंदूर लगाकर एक देवी के रूप में भी पूजा जाता है। घरों में महिलाएँ सुबह-शाम इसकी पूजा करती हैं।

बीमारियों में रामबाण है तुलसी - 
तुलसी का औषधीय गुण जगजाहिर है। सबसे साधारण और लोकप्रिय प्रयोग चाय बनाकर पीना है। मुट्ठी भर साफ तुलसी की पत्तियों को पहले उबालना चाहिए और लगभग 10 मिनट तक धीमी आँच पर खदकाना चाहिए। यह प्रक्रिया पत्तियों से इसके सारे गुण निकाल लेती है। इसके स्वाद को बढ़ाने के लिए, इसमें शहद या नींबू मिला  देने से यह अधिक असरदार और स्वादिष्ट बन जाती है। यह मिश्रण केवल एक प्रतिरक्षा वर्धक की तरह काम नहीं करता बल्कि ये खांसी, जुकाम, त्वचा संबंधी विकार जैसे मुँहासे, मुँह के छाले और यहाँ तक कि रक्त-शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। तुलसी को रक्त शोधक माना जाता है। तुलसी के पत्तों के बारे में एक उल्टा पक्ष यह है कि उन्हें चबाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि उसमें पारा और लोहे की एक बड़ी मात्रा होती है, जो चबाने से निकलती है। पौधे का धार्मिक महत्व एक और कारक है जो लोगों को इसे चबाने से रोकता है। यह एक अमृत है जो दीर्घायु देता है, और इसकी अजेय औषधीय शक्तियाँ इसे चमत्कारी जड़ी-बूटी बनाती हैं जो अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण प्रदान करती है। हालांकि, भोजन की दुनिया में इसके उपयोग को केवल सजावट तक ही समेट दिया गया जिसे ज़्यादातर खाना खाने के बाद थाली में छोड़ा दिया जाता है। लेकिन यह एक निर्विवाद तथ्य है कि प्रकृति के सभी परोपकारों और आशीर्वादों के बीच, तुलसी के पौधे को पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली आरोग्यसाधकों में से एक माना जा सकता है!
साभार -  संस्कृति विभाग-भारत सरकार, अधिकृत वेबपेज


शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

आदर्श विद्यार्थी जीवन: नेतृत्व प्रदर्शन का प्रथम सोपान

हर किसी के जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि छात्रों में नेतृत्व कौशल का विकास करना भी होता है। आज का होनहार विद्यार्थी कल देश का भविष्य होगा। इसलिए, आदर्श विद्यार्थी जीवन नेतृत्व की शिक्षा के पहले और महत्वपूर्ण चरण के रूप में माना जाता है।

विद्यार्थी जीवन छात्रों के लिए नेतृत्व कौशलों को विकसित करने का पहला महत्वपूर्ण माध्यम होता है। यह जीवन का अवसर होता है जब छात्र अपने आप को व्यक्त करने, अन्यों को प्रेरित करने, और वैयक्तिक और सामाजिक स्तर पर नेतृत्व कौशल विकसित कर सकते हैं।

विद्यार्थी जीवन के नेतृत्व से सीख: गर्व नहीं, सहयोग

छात्र-परिषद का चुनाव 
एक नेता में आदर्श नेतृत्व क्षमता के विकास के बीज उसके विद्यार्थी जीवन काल में ही पड़ते हैं। जहाँ रहकर वह अपने सहपाठियों का नेता बनाता है। वह अपनी बात उनके समक्ष रखने के लायक बनाता है। विभिन्न खेलों में वह अपनी टीम का मुखिया (कप्तान) बनाता है। उसे अपनी कक्षा का मॉनिटर बनकर अपने सहपाठियों का प्रतिनिधित्व करने के गुण सीखता है। कई विद्यालयों में तो छात्र-परिषद अथवा छात्र-संसद के सदस्य बनाए जाते हैं। जिसमें उन्हें सफ़ाई, अनुशासन, खेलकूद, भाषा, गणित और विज्ञान आदि के विभाग, समूह अथवा सदन के मुखिया की ज़िम्मेदारी दी जाती है। जिसके लिए छात्र-छात्राएँ अपने-अपने अनुभवों और गुणों के बल पर उन पदों पर अन्य छात्रों के मतदान द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। जिसके फलस्वरूप वे अपने-अपने विभाग की जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं। इस प्रकार उसमें नेतृत्व कौशलों का विकास उनके विद्यालयीन जीवन में ही प्रारम्भ होने लगता है। जहाँ से वे अपने आदर्श और गुणों के बल पर अपने विभाग, दल (टीम) अथवा सदन को और बेहतर बनाने और आगे ले जाने का प्रयास करते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि विद्यार्थी जीवन ही एक अच्छे नेता बनने की एक महत्वपूर्ण कार्यशाला हो सकती है, यह सच है कि यहाँ तक कि हर छात्र जो नेतृत्व भूमिका निभाता है, वह आगे चलकर अपने -अपने क्षेत्र में आदर्श नेता बनने कि क्षमता रखता है। लेकिन इन्हीं में से कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करके अहंकार दिखाने लगते हैं। वे अन्य लोगों को परेशान करना अथवा उन्हें मजबूर करके उनका शोषण करना शुरू कर देते हैं। लेकिन इससे सीखने वाले छात्रों की बजाय, वे केवल गर्व सीखते हैं, और गलत तरीके से नेतृत्व की परिभाषा बना देते हैं। ऐसे छात्रों को केवल उनके लोभी मित्र ही पसंद कर सकते हैं। जो अपने स्वार्थ में उनकी बुरी आदतों के लिए उनकी सराहना करते हैं। एक अच्छे नेता के रूप में आपको अपने चाटुकारों से दूर रहकर सच्चे मित्रों को पहचानने का गुण आना चाहिए।  


मानव वादी नेता: आदर्श विद्यार्थी का पूर्ण रूप से वर्णन

मानव वादी नेता ही "आदर्श विद्यार्थी" का पूरक होता है। मानववादी नेता को समझने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि आदर्श विद्यार्थी कौन होता है और क्यों वह मानव वादी नेता के रूप में कैसे मान्यता प्राप्त करता है?

आदर्श विद्यार्थी की विशेषताएँ:

  • शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता: आदर्श विद्यार्थी शिक्षा के प्रति गहरा समर्पण और प्रतिबद्धता रखता है। वह अपनी शिक्षा को सर्वाधिक महत्व देता है और ज्ञान के माध्यम से समाज को बदलने का संकल्प रखता है।
  • सामाजिक और नैतिक मूल्यों का पालन: वह उच्च सामाजिक और नैतिक मूल्यों के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध पूर्वक अनुसरण करता है। उसके व्यवहार में ईमानदारी, साहस, सहयोग झलकता है।
  • सकारात्मक सेवा भाव: आदर्श विद्यार्थी समाज के उत्थान के लिए सकारात्मक योगदान करने के लिए प्रोत्साहित रहता है। वह समाज में सेवा के क्षेत्र में अपने समय और योग्यता का दान करता है।
  • नेतृत्व कौशल: वह नेतृत्व कौशलों को समझता है और अपनी प्राकृतिक नेतृत्व का उपयोग समुदाय के लाभ के लिए करता है। वह दूसरों को प्रेरित करने और मार्गदर्शन करने की क्षमता रखता है।
  • संवाद कौशल और जागरूकता: आदर्श विद्यार्थी समाज में जागरूकता पैदा करता है और विभिन्न मुद्दों पर जन-संवाद करने के लिए सक्षम होता है। वह समस्याओं के समाधान के लिए समाज के साथ सहयोग करता है।
  • स्वतंत्रता का मूल्यांकन: वह स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण मानता है और सोचने और विचार करने के लिए स्वतंत्रता का समर्थन करता है, जिससे वह नई विचार और समाधानों का खोज कर सकता है।
  • आदर्श साथी: वह अपने साथी छात्रों के प्रति समर्पित होता है और उनके उत्तरदायित्व का पूरा करता है। वह एक साथी के रूप में संबंध बनाने, सहयोग करने और उनकी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करता है।
  • समाज में प्रेरणा: आदर्श विद्यार्थी अपने व्यक्तिगत और शैली से समाज को प्रेरित करता है। उसकी उपलब्धियाँ और सफलता दूसरों को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है।
  • निःस्वार्थ सेवा: आदर्श विद्यार्थी अपने समाज के प्रति निःस्वार्थ और समर्पण भाव से सेवा करता है, वह बिना किसी पद अथवा उपाधि की लालसा के केवल कर्म के प्रति ईमानदार नेता होना चाहिए। वह सेवा का आनंद लेने वाला होना चाहिए। 'सेवापरमोधरमः' अर्थात् ' सेवा ही सर्वोच्च धर्म है।' यही मानकर समाज को बेहतर बनाने का संकल्प करना चाहिए।

आदर्श विद्यार्थी अपने सभी गुणों और कौशलों के साथ एक मानववादी नेता के रूप में समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह शिक्षा का प्रणेता होता है, सामाजिक सेवा करता है, और नेतृत्व कौशलों का प्रयोग करके समाज को सुधारने में मदद करता है। इस तरह के आदर्श विद्यार्थी हमारे समाज के नेतृत्व की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हैं और एक बेहतर और समर्थक समाज की दिशा में मानववादी नेताओं की तरह काम करते हैं।आदर्श विद्यार्थी जीवन छात्रों को नेतृत्व कौशल विकसित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है, लेकिन सच है कि आदर्श नेतृत्व के लिए केवल अच्छे छात्र होने से काम नहीं चलेगा। नेतृत्व विशेषज्ञता, विश्वास, और सेवा के प्रति निरंतर समर्पण से बनता है। 

अभ्यास कार्य - 

उत्तर -                                           विद्यार्थी नेता: शिक्षा का प्रणेता

मानव जीवन के सबसे महत्वपूर्ण और महत्वपूर्ण संघर्ष, जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सफर शिक्षा है। विद्यार्थी जीवन, इस शिक्षा के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में आता है, और यह वह सीढ़ी है जो नेतृत्व विकास की पहली क़दम हो सकती है। इस लेख में, हम विचार करेंगे कि क्या विद्यार्थी जीवन नेतृत्व का स्रोत है, या क्या यह केवल उड़ान बढ़ाने का काम करता है।

सबसे पहले, विद्यार्थी जीवन का महत्व जानने के लिए हमें समझना होगा कि यह कैसे एक व्यक्ति के विकास के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। यह एक अवसर होता है जब छात्र अपनी सोच और कौशल को नवाचन करते हैं, और वे अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, वे नेतृत्व कौशलों का अभ्यास करते हैं, जैसे कि संवाद, सहयोग, और टीम बिल्डिंग। इसलिए, विद्यार्थी जीवन नेतृत्व विकास के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है, जो आदर्श नेता की निर्माण में मदद कर सकती है।

विद्यार्थी जीवन छात्रों को केवल उड़ान बढ़ाने के लिए नहीं होता, बल्कि यह उन्हें सामाजिक सद्गुणों और मूल्यों का भी ज्ञान देता है। नेतृत्व विकास के दौरान, विद्यार्थी अपने समर्पण, उत्कृष्टता, और न्याय के मूल मूल्यों को सीखते हैं, जो एक आदर्श नेता के लिए आवश्यक होते हैं।

यह सच है कि आदर्श विद्यार्थी ही एक आदर्श नेता बन सकता है, क्योंकि विद्यार्थी जीवन नेतृत्व के महत्वपूर्ण अंशों को प्रकट करता है। छात्र अपनी विशेष प्रवृत्ति और मजबूत संकल्प के साथ समस्याओं का समाधान करने की क्षमता दिखाते हैं, जिससे वे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

हालांकि, हमें यह याद दिलाना चाहिए कि नेतृत्व का केवल एक प्रारंभिक चरण होता है। यह शिक्षा हमारे जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी आगे बढ़ती है, और हमें हमेशा सीखते रहने का अवसर प्रदान करती है। इसलिए, विद्यार्थी जीवन की नेतागिरी छात्रों को केवल उड़ान बढ़ाने के रूप में नहीं, बल्कि उनके व्यक्तिगत और नेतृत्व विकास के रूप में भी कार्य करती है।

संक्षेप में कहें तो, विद्यार्थी जीवन नेतृत्व विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है, जो आदर्श नेता की उत्पत्ति में मदद कर सकता है। यह छात्रों को न केवल उड़ान बढ़ाने में मदद करता है, बल्कि उन्हें समाज में उत्कृष्ट और नैतिक नेतृत्व की ओर अग्रसर करता है। इसलिए, हम कह सकते हैं कि "विद्यार्थी नेता: शिक्षा का प्रणेता"।

मंगलवार, 12 सितंबर 2023

हमारा स्वास्थ्य और वनौषधियाँ (Herbal medicines)

हमारे जीवन में स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण स्थान है, और वनौषधियाँ सदियों से इसका अंग रहीं हैं। वनौषधियों का उपयोग न केवल भारत की आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में बल्कि चीनी (चाइनिज), यूनानी और दक्षिण एशियाई चिकित्सा पद्धति आदि काल से मिलता है। यहाँ तक की आज की आधुनिक चिकित्सा पद्धति की दवाइयों में भी कई वनौषधियों का उपयोग देखने को मिलता है। आज भी वनस्पतियों से बनी औषधियाँ हमारे समाज और स्वास्थ्य इकाइयों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है।

वनौषधि (Herbal Medicine) किसे कहते हैं?
        'वनौषधि' शब्द वन+औषधि शब्दों के मेल से बना है। जिसमें 'वन' से तात्पर्य जंगल से हैं और 'औषधि' का अर्थ दवाइयों से हैं। अर्थात् जो दवाइयाँ जंगलों से प्राप्त होती हैं उन्हें "वनौषधि" के रूप में जाना जाता है। अतः वनौषधि को परिभाषित करने के लिए हम कह सकते हैं कि -  

वनौषधियाँ चिकित्सा प्रणाली का अंग होती हैं, इन्हें औषधियों के रूप में विभिन्न रोगों के इलाज में प्रयोग किया जाता है। वनस्पतियों के अलग-अलग भागों जैसे कि फल, फूल, पत्तियाँ, बीज, तना, छाल एवं जड़ों आदि को अर्क अथवा चूर्ण आदि के रूप में औषधि स्वरूप उपयोग किया जाता है।

साधारण शब्दों में समझने का प्रयास करें तो हम कह सकते हैं कि हमारे आस-पड़ोस के वनों अथवा नजदीकी क्षेत्रों में पाए जाने वाले पेड़-पौधे जिन्हें किसी बीमारी को ठीक करने अथवा स्वास्थ्य लाभ के लिए किसी भी स्वरूप में उपयोग किया जाता है। उन्हें 'वनौषधि' कह सकते हैं। ये पौधों, लताओं, झाड़ियों, और वृक्षों से निकाली जाती हैं और उनके विभिन्न भागों को उपयोगिता के आधार पर चुनकर बनाई जाती हैं। वनौषधियों में गुणकारी रसायन होते हैं, जिन्हें चिकित्सा में उपयोग किया जाता है।

वनौषधियों का महत्व

  1. घरेलू चिकित्सा: हमारे घरों में दादी-नानी के नुस्खे के नाम से सदियों से नीम, तुलसी, बबूल, हींग, लहसुन, लौंग, जीरा, इलायची, सौंफ़, अदरक, हल्दी-प्याज आदि वनौषधियाँ का प्रयोग आम बीमारियाँ जैसे - सर्दी, खाँसी, जुकाम, बुखार, खुजली, पेट-दर्द, दाँत-दर्द, सिर-दर्द, सूजन, मोच, आदि के लिए किया जाता रहा है।  
  2. आयुर्वेदिक चिकित्सा: वनौषधियाँ आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आयुर्वेद में कई प्रकार की वनौषधियों का उपयोग जटिल एवं पुराने रोगों के इलाज में किया जाता है।
  3. आधुनिक चिकित्सा: इसमें भी वनौषधियों का खूब महत्व है। कई औषधियाँ वनस्पतियों से बनाई जाती हैं, जैसे कि विभिन्न प्रकार की ब्यूटी औषधियाँ, टेस्टोस्टेरोन की वृद्धि को बढ़ावा देने वाली औषधियाँ, और अन्य रोगों के इलाज के लिए उपयोग होती हैं।
  4. सौंदर्य प्रसाधन: वनौषधियाँ सौंदर्य और त्वचा के स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। कई प्रकार की हर्बल फेस पैक्स, लोशन्स, और क्रीम्स में वनौषधियों का उपयोग किया जाता है।
  5. पर्यावरण संरक्षण: वनौषधियाँ पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। जब हम वनस्पतियों का सही तरीके से उपयोग करते हैं, तो हम वनस्पतियों की सुरक्षा और उनके प्राकृतिक वास्तविकता को बनाए रखने में मदद करते हैं।

वनौषधि और जड़ी-बूटी में अंतर

आमतौर में जनभाषा में लोग वनौषधि के बदले में 'जड़ी-बूटी' शब्द का प्रयोग करते हैं। ये दोनों काफी करीबी शब्द है। उनमें जो अंतर है, उसे निम्नलिखित बिन्दुओं में समझने का प्रयास किया जा सकता है। 

 वनौषधियाँ

 जड़ी-बूटी 

  1. वनौषधियाँ (Herbal Medicines) वनस्पतियों से बनी चिकित्सा औषधियाँ होती हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। पौधों की पत्तियाँ, फूल, जड़ें, और अन्य भाग का प्रयोग किए जाते हैं। 
  2. आमतौर पर वनौषधियाँ चिकित्सा और आयुर्वेदिक प्रणालियों में उपयोग होती हैं, और इन्हें रोगों के उपचार के लिए सटीक माना जाता है।
  3. वनौषधियाँ आमतौर पर पौधों के अंशों को परिष्कृत व शोधित करके संदर्भ ग्रंथों के आधार पर  बनायी व उपयोग की जाती हैं।
  4. वनौषधियाँ आमतौर पर आयुर्वेदिक, होम्योपैथी, और चीनी चिकित्सा जैसी प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों के साथ जुड़ी होती हैं।
  5. वनौषधियों के बारे में अधिक वैज्ञानिक अध्ययन, शोध और प्रयोगशालाओं में  अध्ययन होते हैं।
  6. वनौषधियों के परिणाम व तथ्य कई संदर्भ ग्रन्थों और पुस्तकों में उपलब्ध हैं। 

  1. जड़ी-बूटियाँ (Botanicals): भी पौधों से बनी चिकित्सा औषधियाँ होती हैं, लेकिन इनमें आमतौर पर पौधों के जड़ों, लासा (रेजिन), और अन्य अंशों का उपयोग किया जाता है।
  2. जड़ी-बूटियाँ आमतौर पर आयुर्वेदिक औषधियों, हर्बल सुप्लीमेंट्स, प्राकृतिक खाद्य उत्पादों और सौंदर्य-प्रसाधनों में उपयोग होती हैं।
  3. जड़ी-बूटियाँ अक्सर पौधों के जड़ों और अन्य  भागों को सूखाकर या पाउडर बनाकर उपयोग करने के रूप में प्रस्तुत होती हैं।
  4. जड़ी-बूटियाँ आमतौर पर आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा में उपयोग होती हैं।
  5. जबकि, जड़ी-बूटियों के साथ कम वैज्ञानिक  अध्ययन के बजाय लोगों की सलाह अथवा व्यक्तिगत अनुभव शामिल होते हैं।
  6. जड़ी-बूटियों के परिणाम लिखित रूप से कम और जनश्रुत अथवा अनुभवजन्य अधिक होते हैं। भारतीय परिवारों में हर कोई कोई न कोई जड़ी-बूटी के बारे में जरूर जानता है। 

संवेदनशीलता और जागरूकता

हमें वनौषधियों के महत्व के प्रति संवेदनशील और जागरूक रहना चाहिए। वनस्पतियों की संरक्षण के लिए हमें वनस्पतियों के विविधता का ज्ञान रखना चाहिए, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को भी इनके लाभों का आनंद उठाने का मौका दे सकें। वनौषधियाँ हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इनका सही तरीके से उपयोग करना हमारे लिए लाभकारी हो सकता है। इसके साथ ही, हमें वनस्पतियों के प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण का भी ध्यान रखना चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी इनके लाभों का आनंद उठाने का मौका मिले।

महत्वपूर्ण वनौषधियाँ - 

यहां कुछ प्रमुख वनौषधियाँ का उल्लेख हैं जिन्हें विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों में उपयोग किया जाता है:

1. नीम (Neem): नीम का पेड़ भारतीय उपमहाद्वीप का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके बीज, पत्तियाँ, और छाल का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में त्वचा संबंधित समस्याओं के इलाज में किया जाता है। नीम के तेल का भी उपयोग खुजली, चर्म रोग, और इंफेक्शन के इलाज में किया जाता है।

2. तुलसी (Tulsi): तुलसी पौधा भारत में पवित्र माना जाता है और इसकी पत्तियाँ बुखार, सर्दी-जुकाम, थकान, और अन्य आम रोगों के इलाज में उपयोग होती हैं। तुलसी का तेल भी आरामदायक होता है और स्त्रियों के लिए प्राकृतिक चिकित्सा में उपयोग होता है।

3. हल्दी (Turmeric): हल्दी भारतीय रसोई का प्राचीन काल से पहचान रही है। आमतौर पर सभी खाद्य पदार्थों में विशेषकर सब्जियों में तो जरूर डाली जाती है। इसका प्रयोग न केवल खाने में स्वाद और रंग के लिए, बल्कि इसके औषधीय गुणों के लिए होता है। हल्दी में पाए जाने वाले कर्कुमिन (Curcumin) नामक यौगिक हल्दी का मुख्य गुणकारी तत्व होता है, जिससे शरीर की सूजन और जलन (Inflammation) को कम करने की क्षमता होती है। यह गुण अल्जाइमर्ज़ रोग, अर्थराइटिस, और अन्य इन्फ्लेमेटरी बीमारियों के इलाज में मदद कर सकता है। यह एक विषाणुरोधी और रोग-प्रतिकारक भी होती है। इसी कारण इसे क़ैसर पर प्रभावी माना गया है। यह हमारे पाचन-तंत्र को मजबूत करने और तनाव कम करके मानसिक स्वास्थ्य सुधारने में भी सहायक मानी जाती है।  

4. आलोवेरा (Aloe Vera): आलोवेरा का गूदा और ताजगी के साथ त्वचा की देखभाल में उपयोग होता है। यह त्वचा को शीतलन और सुंदरता प्रदान करने में मदद करता है और छाले, जलन, और कई त्वचा समस्याओं का इलाज करने में भी उपयोगी होता है।

5. अश्वगंधा (Ashwagandha): अश्वगंधा पौधा तंतुमक्रित में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इसकी जड़ें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं और इसका उपयोग तनाव कम करने, दिमाग को शांति प्रदान करने, और शारीरिक संतुलन को बनाए रखने के लिए किया जाता है।

यह सिर्फ कुछ प्रमुख वनौषधियाँ हैं, और वनौषधियों की बहुत अधिक प्रजातियाँ होती हैं, जिन्हें विभिन्न चिकित्सा समस्याओं के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। स्वास्थ्य सुधारने के लिए, आपको किसी विशेष समस्या के अनुसार एक चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए और उनके मार्गदर्शन में वनौषधियों का उपयोग करना चाहिए।

स्वास्थ्य  विषयक अन्य सहायक सामग्री - 
  1. आहार विचार - क्या खाएँ?
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