|
लाल चन्दन की लकड़ी |
लाल चंदन की लकड़ी में औषधीय गुण होते हैं, जो पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में उपयोगी साबित हुए हैं। इसके अलावा, यह लक्जरी फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र, और धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोगी है। चीन के आखिरी शाही किंग वंश के दौरान, रक्त चंदन के महत्व को विशेष रूप से मान्यता दी गई थी। आज भी पूर्वी एशियाई देशों में इसकी अत्यधिक मांग है, जहां इसे सौंदर्य और उपयोगिता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
लाल चंदन का पेड़ बेहद धीरे-धीरे बढ़ता है और इसे पूरी तरह परिपक्व होने में 50 से 60 वर्ष लगते हैं। इस धीमे विकास के कारण यह न केवल दुर्लभ है, बल्कि अत्यंत महंगा भी है। वर्तमान में, एक किलो लाल चंदन की कीमत ₹90,000 से ₹1,50,000 तक हो सकती है। इस कारण यह लकड़ी तस्करों के बीच अत्यधिक मांग में रहती है। लाल चंदन की अवैध तस्करी एक गंभीर मुद्दा है। इसका निर्यात भारतीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित है और इसे 'कंसर्वेशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज' (CITES) में शामिल किया गया है। फिर भी, तस्कर इसे फल, सब्जी, दूध, ग्रेनाइट स्लैब्स, सौंदर्य प्रसाधनों, या अन्य तरीकों से छिपाकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहुंचाने का प्रयास करते हैं। हालांकि, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) और अन्य सरकारी एजेंसियां इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रही हैं।
रक्त चंदन न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का भी हिस्सा है। इसकी अत्यधिक मांग और अवैध कटाई के कारण यह पेड़ संकट में है। इसीलिए इसे संरक्षित करने के लिए सख्त कानून और जनजागरूकता की जरूरत है। भारत में चंदन सिर्फ एक लकड़ी नहीं, बल्कि हमारी प्राचीन परंपराओं, धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इसकी सुरक्षा और संरक्षण न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी बचाने में सहायक है। लाल चंदन प्रकृति का अनमोल उपहार है, जिसे बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। चाहे इसके औषधीय गुण हों, सांस्कृतिक महत्व हो, या इसकी आर्थिक उपयोगिता, यह पेड़ हमारे पर्यावरण और समाज के लिए बेहद मूल्यवान है। अवैध तस्करी और अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस दुर्लभ धरोहर का आनंद ले सकें।