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सोमवार, 24 मार्च 2025

❇️ गन्ने की मिठास और भारत की पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक

🌿 जितने मीठे गन्ने का आप स्वाद ले रहे हैं, हमारे भारतीय गन्ने पहले ऐसे न थे! 🍬

भारत की पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक
कल्पना कीजिए कि आप एक मीठी चाय की चुस्की ले रहे हैं या गुड़ से बनी कोई स्वादिष्ट मिठाई खा रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीय गन्ना इतना मीठा क्यों है? क्या यह हमेशा से ऐसा था? नहीं! यह संभव हुआ एक ऐसी महिला वैज्ञानिक की मेहनत से, जो पौधों की भाषा समझती थीं और जिन्होंने भारत की चीनी को ज्यादा मीठा बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यह कहानी है डॉ. ई.के. जानकी अम्मल की, जो भारत की पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक थीं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि विज्ञान सिर्फ प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं होता, बल्कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को भी बदल सकता है। डॉ. जानकी अम्मल का जन्म 4 नवंबर 1897 को केरल के थलास्सेरी में हुआ था। उनके पिता शिक्षा प्रेमी थे और यही कारण था कि बचपन से ही जानकी अम्मल में पढ़ाई के प्रति विशेष रुचि थी। उन्होंने चेन्नई के क्वीन मेरी कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से वनस्पति विज्ञान की पढ़ाई की। उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें अमेरिका के पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय तक पहुँचा दिया, जहाँ उन्होंने 1931 में डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की।

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय किसान विदेशी गन्ने की प्रजातियों पर निर्भर थे, क्योंकि उनमें अधिक मिठास थी। इससे भारतीय कृषि कमजोर हो रही थी। लेकिन जानकी अम्मल ने ‘सैक्रम बर्बेरी’ नामक भारतीय गन्ने की प्रजाति पर शोध किया और इसे अधिक मीठा बनाने में सफलता प्राप्त की। उनकी इस खोज ने भारत को चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया और आज हम जिस मीठे गन्ने से गुड़, खांड, और चीनी बनाते हैं, उसमें कहीं न कहीं डॉ. जानकी अम्मल की मेहनत शामिल है।

गन्ने के अलावा उन्होंने नींबू, बैंगन, काली मिर्च और चावल जैसी फसलों की आनुवंशिक संरचना पर भी अध्ययन किया। वे रॉयल हॉर्टिकल्चर सोसाइटी, लंदन में काम करने वाली पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक बनीं। लेकिन विदेश में सम्मान और उच्च पद मिलने के बावजूद, वे अपने देश की सेवा करना चाहती थीं। 1951 में, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विशेष आमंत्रण पर वे भारत लौट आईं और भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद (CSIR) से जुड़कर वनस्पति विज्ञान को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

डॉ. जानकी अम्मल न केवल कृषि वैज्ञानिक थीं, बल्कि वे पर्यावरण संरक्षण की अग्रदूत भी थीं। उन्होंने जब देखा कि केरल में जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। वे मानती थीं कि विज्ञान का उद्देश्य केवल नई खोज करना नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना भी है। उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने 1957 में ‘पद्मश्री’ सम्मान प्रदान किया। उनके सम्मान में ‘जानकी अम्मल नेशनल अवार्ड’ भी स्थापित किया गया, जो पर्यावरण और जैवविविधता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को दिया जाता है।

डॉ. जानकी अम्मल का जीवन हमें यह सिखाता है कि कड़ी मेहनत और जिज्ञासा से कोई भी ऊँचाई हासिल की जा सकती है। आज जब विज्ञान और पर्यावरण संरक्षण की चर्चा होती है, तब उनका नाम प्रेरणा के रूप में उभरता है। अगर आप भी विज्ञान में रुचि रखते हैं और प्रकृति के रहस्यों को समझना चाहते हैं, तो जानकी अम्मल की तरह नई चीजों की खोज करने और अपने देश के लिए कुछ बड़ा करने का सपना देख सकते हैं!

गुरुवार, 14 नवंबर 2024

जगन्नाथ शंकर सेठ: भारतीय रेल के अग्रदूत व जनक

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जगन्नाथ शंकर सेठ का नाम भारतीय इतिहास में एक ऐसे युगप्रवर्तक के रूप में दर्ज है जिन्होंने समाज सुधार और उद्योग के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किए। उनका जन्म 10 फरवरी 1803 को महाराष्ट्र के एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में हुआ था, जहाँ बचपन से ही उन्होंने व्यापारिक कौशल और समाज सेवा के आदर्श सीखे। लेकिन उनका जीवन साधारण व्यापारिक गतिविधियों में सीमित नहीं रहा; उन्होंने अपने प्रयासों से समाज की जड़ता और अन्याय के विरुद्ध व्यापक जागरूकता फैलाई।

सेठ का जीवन संघर्ष और सेवा का अद्भुत संगम था। जातिगत भेदभाव, बाल विवाह, और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ उन्होंने निडर होकर आवाज उठाई। उनके साहस और निष्ठा ने उन्हें समाज में "समाज का दीपक" बना दिया, जो हर अंधकार को मिटाने के लिए प्रज्वलित रहा। व्यापार में आर्थिक सफलता प्राप्त करने के बाद भी उनका मुख्य ध्येय समाज की उन्नति ही रहा। सेठ की इसी सेवा भावना और दूरदृष्टि ने उन्हें अपने समय के समाज सुधारकों और बुद्धिजीवियों के बीच एक विशिष्ट स्थान दिलाया।

भारतीय रेल सेवा का स्वप्न भी उनके इसी दृष्टिकोण का हिस्सा था। ब्रिटिश शासनकाल में, रेल सेवा एक अनसुना और अव्यवहारिक विचार था, लेकिन सेठ ने इसे भारत में लाने की ठानी। 1843 में उन्होंने गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया को भारत में रेल नेटवर्क शुरू करने का प्रस्ताव दिया। शुरुआती अस्वीकार और उपेक्षा के बावजूद, सेठ ने धैर्य और तर्क के साथ सरकार को इसके लाभ समझाए। "लोहा काटे लोहे को" के दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने हर बाधा का सामना किया, और अंततः उनकी अडिग इच्छाशक्ति ब्रिटिश अधिकारियों को इसे स्वीकृति देने के लिए प्रेरित करने में सफल हुई। उनका विश्वास था कि रेल सेवा भारत के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़कर न केवल आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगी, बल्कि राष्ट्रीय एकता को भी सुदृढ़ करेगी।

रेल के क्षेत्र में उनके योगदान के अलावा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में भी सेठ का योगदान अभूतपूर्व था। 1822 में उन्होंने "बॉम्बे नेटिव एजुकेशन सोसाइटी" की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने आगे चलकर मुंबई विश्वविद्यालय का रूप लिया। सेठ का मानना था कि शिक्षा ही उन्नति का असली मार्ग है। उन्होंने अपनी संपत्ति का उपयोग करते हुए शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने का प्रयास किया। उनका योगदान नारी सशक्तिकरण के प्रति भी उल्लेखनीय था, और उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई।

जगन्नाथ शंकर सेठ का जीवन उन सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है जो समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करने का संकल्प रखते हैं। उनकी दूरदृष्टि, समर्पण और समाज सेवा के प्रति उनका अटूट विश्वास आज भी हमारे लिए मिसाल है। उन्होंने अपनी सफलता को केवल व्यक्तिगत नहीं रहने दिया, बल्कि उसे समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया। वह सच्चे अर्थों में "मन के मीत और कर्म के धनी" थे। भारतीय रेल की आधारशिला और सामाजिक सुधारों में उनका योगदान युगों तक स्मरणीय रहेगा।

सोमवार, 11 नवंबर 2024

साक्षात्कार: विजयश्री गुप्ता से प्रेरक मुलाकात

विजयश्री गुप्ता 
परिचय - मैं दीपाली, जो कि एक IBDP अध्ययनरत युवा छात्रा हूँ। मैंने 76 वर्षीया गोल्ला विजयश्री गुप्ता के बारे में काफी सुन रखा था। उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूँ। हाल ही में जब मैं एक खेल स्पर्धा में भाग लेने हैदराबाद गई तो सौभग्य से मेरी मुलाक़ात श्रीमती विजयश्री गुप्ता से हुई वह वहाँ मुख्य अतिथि बतौर आयी थीं। एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं, उन्होंने 76 साल की उम्र में भी अपने जुनून को बरकरार रखते हुए फिटनेस और स्विमिंग के क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। 40 की उम्र में तैराकी सीखने से लेकर, 100 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पदक जीतने तक की उनकी यात्रा अत्यंत प्रेरक है। उनसे बातचीत का वर्णन साक्षात्कार स्वरूप निम्नलिखित है।

साक्षात्कार

दीपाली: नमस्ते विजयश्री जी, मुझे बहुत खुशी है कि आज मैं आपके साथ बात कर रही हूँ। आपने अपनी उम्र के बावजूद इतनी ऊर्जा और फिटनेस को बनाए रखा है। क्या आप मुझे बता सकती हैं कि आपकी इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?

विजयश्री का सतत अभ्यास  
विजयश्री गुप्ता: नमस्ते दीपाली! मेरी यह यात्रा काफी रोचक रही है। मैंने 40 की उम्र में स्विमिंग सीखना शुरू किया। उस समय मैं अपनी सबसे छोटी बेटी के साथ समय बिताने के लिए तैरना सीख रही थी। हालांकि, यह शौक धीरे-धीरे मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।

दीपाली: 40 की उम्र में स्विमिंग सीखने का फैसला कैसे लिया? आमतौर पर लोग इस उम्र में कुछ नया सीखने के बारे में नहीं सोचते।

विजयश्री गुप्ता: सही कहा आपने, अक्सर जिम्मेदारियों के चलते महिलाएँ स्वयं को भूल जाती हैं। मद्रास यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद मेरी शादी  हो गई थी, और तीन बच्चों की देखभाल में व्यस्त हो गई। 1999 में, मैंने सोचा कि अब मुझे अपने लिए भी कुछ करना चाहिए। तभी मैंने स्विमिंग सीखना शुरू किया, शुरुआत में यह टाइम पास जैसा लगा, लेकिन धीरे-धीरे यह मेरा पैशन बन गया।

दीपाली: यह प्रेरणादायक है! फिर आपने स्विमिंग को प्रोफ़ेशनल स्तर पर ले जाने का फैसला कब किया?

विजयश्री गुप्ता: जब मेरा शौक बढ़ता गया तो मेरे परिवार ने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। मैंने 45-50 आयु वर्ग में राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। 2007 में न्यू जर्सी सीनियर ओलंपिक चैम्पियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीतने के बाद मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया, और मैंने अपनी फिटनेस और तकनीक पर और अधिक मेहनत की।

दीपाली: वाह, इतने सारे पदक जीतना एक बड़ी उपलब्धि है। आपको अब तक के अपने अनुभवों में सबसे यादगार पल कौन सा लगता है?

विजयश्री गुप्ता: हर पदक की अपनी कहानी है, पर न्यू जर्सी में तीन स्वर्ण पदक जीतना मेरे लिए खास था। वहां मुझे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान मिली। इसके बाद तो मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब तक 100 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पदक जीत चुकी हूं।

दीपाली: यह जानकर बहुत अच्छा लगा। आप न केवल एक तैराक हैं बल्कि एक उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। क्या आप अपने अन्य कार्यों के बारे में भी कुछ बताएंगी?

विजयश्री गुप्ता: हाँ , मैं रेडियो पर भी कई कार्यक्रमों की मेजबानी कर चुकी हूँ। विजयवाड़ा में ऑल इंडिया रेडियो पर ‘युवा वाणी’ और ‘वनिता वाणी’ जैसे कार्यक्रमों का संचालन किया, जो मेरे लिए बेहद संतोषजनक अनुभव रहा। इसके अलावा, सामाजिक कार्यों में मेरी गहरी रुचि है। 

दीपाली: आपकी बातों से लगता है कि आपके लिए उम्र सिर्फ एक संख्या है। इस उम्र में भी आप इतनी सक्रिय कैसे रहती हैं?

विजयश्री गुप्ता: मैं 76 साल की हूँ और अभी भी हर दिन कम से कम एक किलोमीटर तैरती हूँ। यह सब मेरे नियमित अभ्यास और सकारात्मक सोच का परिणाम है। मेरा मानना ​​है कि हमें उम्र की परवाह किए बिना अपने मुश्किल लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रयास करना चाहिए। मैं अभी भी उसी उत्साह के साथ प्रतियोगिताओं में जाती हूँ और लगातार अभ्यास की वजह से स्वस्थ और युवा दिखती हूँ। मेरा मानना है कि, महिलाएँ यदि ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं। उम्र कभी बाधा नहीं बनती, बल्कि इसे सिर्फ मानसिकता में बदलाव की जरूरत है।

दीपाली: अंत में, युवा महिलाओं के लिए आपका क्या संदेश है?

विजयश्री गुप्ता:  मैं सभी महिलाओं को यही संदेश देना चाहूंगी कि वे अपनी उम्र और जिम्मेदारियों को अपने सपनों के आड़े न आने दें। खुद पर भरोसा रखें, खुद को समय दें, और अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूरी लगन से प्रयास करें। आप किसी भी उम्र में कुछ भी हासिल कर सकती हैं। साथ ही मैं उनके अभिभावकों को भी कहना चाहूंगी कि 'वे अपनी बेटियों को पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित न रखें, बल्कि उनकी रुचियों का समर्थन करें।' 

दीपाली: विजयश्री जी, आपके विचार और आपकी यात्रा सच में प्रेरणादायक है।

उदाहरण 2 
हाल ही में आपके विद्यालय में प्रसिद्ध उद्योगपति 'पीटर जैक्सन' अतिथि स्वरूप आए थे। वहां आपकी मुलाकात उनसे हुई। आपसे हुई उनकी बातचीत को साक्षात्कार के रूप में (IBDP हेतु) 450 शब्दों में लिखिए। 
आदर्श उत्तर 
प्रश्न 1: सर, कृपया हमें अपने बारे में बताएं।  
उत्तर: मैं पीटर जैक्सन हूं, "इनोवेटिव टेक सॉल्यूशंस" का संस्थापक और सीईओ। मैंने एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लिया। बचपन से ही मैं तकनीकी नवाचारों और समस्याओं को हल करने के तरीकों में रुचि रखता था। मेरा मानना है कि हर समस्या अपने साथ एक नया समाधान लेकर आती है।  
प्रश्न 2: आपने अपने करियर की शुरुआत कैसे की?  
उत्तर: शुरुआत में मैंने अपने गैरेज में एक छोटा प्रोजेक्ट शुरू किया। मुझे तकनीकी उपकरणों की कमी और वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा। लेकिन मैंने हर दिन अपने काम में कुछ नया जोड़ने की कोशिश की। मेरी पहली बड़ी सफलता तब मिली जब मैंने एक सॉफ़्टवेयर डेवेलप किया जिसने छोटे व्यवसायों के लिए बड़े बदलाव किए।  

प्रश्न 3: अपने व्यवसाय को सफल बनाने के लिए आपने कौन-से कदम उठाए?
उत्तर: मैंने सबसे पहले अपने ग्राहकों की जरूरतों को समझा और उनके अनुसार समाधान तैयार किए। इसके अलावा, मैंने एक मजबूत टीम का निर्माण किया, जहां हर व्यक्ति की प्रतिभा का उपयोग हो। हमने तकनीकी अनुसंधान और उत्पाद की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया। ग्राहकों की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखकर लगातार सुधार करना हमारी सफलता का बड़ा कारण बना।  

प्रश्न 4: शुरुआती संघर्षों का सामना करते समय आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा क्या थी? 
उत्तर: मेरी प्रेरणा मेरे माता-पिता थे। उन्होंने मुझे सिखाया कि कठिनाइयों से भागना समाधान नहीं है। उनका यह कहना कि "असफलता केवल एक सीढ़ी है, सफलता तक पहुंचने की," मेरे जीवन का मूल मंत्र बन गया।  
प्रश्न 5: आपके जीवन का सबसे कठिन निर्णय कौन-सा था?
उत्तर: मेरे जीवन का सबसे कठिन निर्णय था जब मुझे अपनी नौकरी छोड़कर अपना स्टार्टअप शुरू करना पड़ा। यह बहुत जोखिम भरा था, लेकिन मैंने अपने सपनों पर भरोसा किया। यदि मैं यह कदम नहीं उठाता, तो शायद आज इस मुकाम पर नहीं होता।  
प्रश्न 6: नव उद्योगपतियों के लिए आपका क्या संदेश है? 
उत्तर: असफलताओं से डरें नहीं। धैर्य और लगन के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें। हर असफलता को सीखने का एक मौका मानें और अपने आसपास की समस्याओं को समाधान में बदलने की कोशिश करें।  
प्रश्न 7: आपकी सफलता का मूल मंत्र क्या है?  
उत्तर: मेरा मंत्र है— "मेहनत, ईमानदारी और कभी न रुकने वाला सीखने का जुनून।" इसके साथ-साथ, टीम के साथ सही तालमेल और ग्राहकों का विश्वास भी सफलता के अहम स्तंभ हैं।  
प्रश्न 8: आप भविष्य में क्या लक्ष्य लेकर चल रहे हैं?
उत्तर: मेरा उद्देश्य है तकनीक के माध्यम से समाज को सशक्त बनाना। मैं चाहता हूं कि हमारी कंपनी ऐसी परियोजनाओं पर काम करे जो पर्यावरण को बेहतर बनाए और दुनिया के हर कोने में तकनीकी सुविधा पहुंचे।  
निष्कर्ष:
इस साक्षात्कार से हमने सीखा कि "असफलताओं और कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कैसे आगे बढ़ा जा सकता है।" पीटर जैक्सन का जीवन प्रेरणा देता है कि यदि मेहनत और ईमानदारी से काम किया जाए, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।

छात्रों के  निर्देश - 

प्रिय छात्रों, यदि आप भी इस प्रकार के प्रभावी साक्षात्कार लेखन करना चाहते हैं तो आपकी सहायता के लिए नीचे कुछ प्रश्न दिए जा रहे हैं, जिनके आधार पर उत्तर लिखकर आप अपनी कल्पनाशीलता और लेखन क्षमता का विकास करा सकते हैं। साक्षात्कार अभ्यास के लिए आप सभी को प्रोत्साहित करने हेतु निम्नलिखित प्रश्न सुझाए जा रहे हैं - 

  1. आपने यह क्षेत्र क्यों चुना, और आपकी प्रेरणा क्या रही?
  2. आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है, और उसे हासिल करने के लिए आपने क्या प्रयास किए?
  3. आपने अपने करियर में सबसे बड़ी चुनौती का सामना कब किया, और उसे कैसे पार किया?
  4. अगर आपको पीछे मुड़कर देखने का मौका मिले, तो क्या कोई ऐसा निर्णय है जिसे आप बदलना चाहेंगे?
  5. सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण क्या हैं, जो हर किसी में होने चाहिए?\
  6. आपकी दिनचर्या कैसी होती है, और कैसे आप अपने काम और जीवन में संतुलन बनाए रखते हैं?
  7. इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं को आप क्या सुझाव देंगे?
  8. आपकी नज़र में, असफलता से कैसे निपटना चाहिए?
  9. आपके अनुसार, समाज में बदलाव लाने के लिए युवा पीढ़ी की क्या भूमिका होनी चाहिए?
  10. आपके जीवन का कोई ऐसा अनुभव साझा करें जिसने आपको गहराई से प्रभावित किया हो।
  11. आपकी सफलता में परिवार और दोस्तों का क्या योगदान रहा?
  12. आपको कौन सी किताब या व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रेरित करता है?
  13. आपने समय प्रबंधन कैसे सीखा, और इसके क्या फायदे होते हैं?
  14. भविष्य में आपकी क्या योजनाएं हैं, और आप इन्हें कैसे पूरा करेंगे?
  15. आपकी सबसे पसंदीदा आदत क्या है, जो आपको हर दिन प्रेरित करती है?
इन प्रश्नों के माध्यम से आपको किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व, अनुभव और विचारों को समझने का मौका मिलेगा, जिससे आप साक्षात्कार में गहराई से संवाद करना सीख सकेंगे। शुभकामना।

ध्यानार्थ - उपरोक्त साक्षात्कार पूर्णतः काल्पनिक है, जिसका उद्देश्य  विद्यार्थी व शिक्षकों हेतु सहायक सामग्री तक सीमित है। कुछ सूचनाएँ और तथ्य पाठ को रोचक बनाने के लिए ऑनलाइन मंचों से लिए गए हैं  इनका  किसी घटना, व्यक्ति अथवा स्थान से संबंध केवल संयोग मात्र है।

बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

इलेक्ट्रिक गाड़ियों में है भविष्य के यातायात का सुख...

अमिताभ सरन
अमेरिकी संस्था नासा के पूर्व इंजीनियर अमिताभ सरन ने एक ऐसा सपना देखा जो न सिर्फ पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने की दिशा में है, बल्कि भारत को इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र में एक महाशक्ति बनाने का भी है। उन्होंने भारत लौटकर 'अल्टिग्रीन' नाम से एक इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी की नींव रखी, जो उबड़-खाबड़ भारतीय सड़कों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए कमर्शियल इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण करती है।

यह कंपनी भारतीय बाजार की जरूरतों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए ऐसे वाहन बना रही है जो सिर्फ पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि व्यवसायिक उपयोग के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहे हैं। अल्टिग्रीन का नवीनतम प्रोडक्ट 'अल्टिग्रीन neEV' भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में एक क्रांतिकारी कदम है। यह वाहन एक बार चार्ज होने पर 150 किमी तक का सफर तय कर सकता है, जो व्यावसायिक परिवहन में भारी सामान ढोने के लिए पर्याप्त है। भारतीय सड़कों की विषम परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया है, ताकि यह हर प्रकार के मार्ग और मौसम में सहजता से संचालित हो सके। यह न सिर्फ संचालन में किफायती है, बल्कि पर्यावरण को भी शून्य उत्सर्जन से बचाने में सहायक है, जो इसे व्यवसायिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।

इसके साथ ही, अल्टिग्रीन ने एक और क्रांतिकारी पहल की है जिसे 'फिट एंड फॉरगेट' किट के नाम से जाना जाता है। इस किट की मदद से पुरानी गाड़ियों को हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन में परिवर्तित किया जा सकता है। यह किट उन लोगों के लिए बहुत ही लाभकारी है जो अपनी पुरानी गाड़ियों को छोड़ना नहीं चाहते लेकिन पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाना चाहते हैं। इस प्रकार, अमिताभ सरन की यह पहल पुराने और नए दोनों प्रकार के वाहनों के लिए इलेक्ट्रिक भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रही है।

अमिताभ सरन का सपना है कि भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में एक सुपरपावर बने। वे मानते हैं कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बड़ा बाजार है और यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो देश इस क्षेत्र में अग्रणी बन सकता है। उनका यह लक्ष्य न केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्व रखता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की दिशा में अग्रसर हो रहा है। अल्टिग्रीन जैसे नवाचार भारत को इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं, जो न केवल स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देंगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की छवि को मजबूत करेंगे।

इस तरह की तकनीकी और सोच से, अमिताभ सरन और उनकी कंपनी 'अल्टिग्रीन' न केवल भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य बदल रहे हैं, बल्कि दुनिया भर में स्थायी परिवहन की दिशा में एक मजबूत उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं। यह न केवल एक स्वप्नदृष्टा का सपना है, बल्कि यह एक ऐसे भविष्य की दिशा में एक ठोस कदम है जहां पर्यावरण और विकास साथ-साथ चलते हैं।

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