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शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

अधिकारियों की फैक्ट्री वाला माधवपट्टी गाँव

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का माधवपट्टी गांव अपनी विशिष्ट पहचान के कारण पूरे देश में जाना जाता है। केवल 75 घरों वाले इस छोटे से गांव ने अब तक 51 से अधिक आईएएस, आईपीएस, और पीसीएस अधिकारी दिए हैं। इस उपलब्धि ने इसे "अफसरों की फैक्ट्री" का खिताब दिलाया है। यहाँ की शिक्षा और सफलता की परंपरा ने इसे एक मिसाल बना दिया है।

गाँव के लोगों से पढ़ते बच्चे 
माधवपट्टी का प्रशासनिक सफर 1952 में शुरू हुआ, जब इंदु प्रकाश सिंह ने आईएएस परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया। उनकी इस उपलब्धि ने पूरे गांव के युवाओं को प्रेरित किया। उनके चार भाई भी आईएएस बने, जिससे यह परंपरा और मजबूत हुई। गाँव की महिलाएं भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहीं। 1980 के दशक में आशा सिंह, ऊषा सिंह, और इंदु सिंह जैसी महिलाओं ने प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश कर गाँव का नाम और रोशन किया।

गाँव की सफलता का एक प्रमुख कारण यहाँ का शिक्षा के प्रति समर्पण है। माता-पिता बच्चों को बचपन से ही शिक्षा के महत्व को समझाते हैं। यहाँ का वातावरण ऐसा है कि हर बच्चा अधिकारी बनने का सपना देखता है और उसे पूरा करने के लिए मेहनत करता है। शिक्षिका शशि सिंह बताती हैं, "यहाँ की पाठशालाओं में बच्चों को बचपन से ही प्रतिस्पर्धा और परिश्रम के लिए तैयार किया जाता है।" गाँव में शिक्षा का माहौल इतना प्रबल है कि इसे माँ सरस्वती का वरदान कहा जाता है।

माधवपट्टी के युवाओं को प्रेरित करने में सामाजिक दबाव और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का भी बड़ा योगदान है। यहाँ हर बच्चा अपने साथियों से बेहतर करने की कोशिश करता है। इस सकारात्मक दबाव ने गाँव में एक ऐसी संस्कृति विकसित की है, जहाँ हर परिवार शिक्षा को प्राथमिकता देता है।

गाँव की यह परंपरा केवल प्रशासनिक सेवाओं तक सीमित नहीं है। यहाँ के युवाओं ने विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इसरो के वैज्ञानिक डॉ. ज्ञानू मिश्रा और वर्ल्ड बैंक में कार्यरत जन्मेजय सिंह जैसे लोग इसका प्रमाण हैं। गुजरात के सूचना निदेशक रह चुके देवेंद्र नाथ सिंह भी इसी गाँव से हैं। इस तरह, माधवपट्टी ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

गाँव की 1,174 की आबादी में लगभग 737 लोग शिक्षित हैं। यहाँ के 421 पुरुष और 315 महिलाएं शिक्षा प्राप्त कर चुकी हैं। गाँव के बुजुर्गों का मानना है कि इस सफलता का श्रेय बच्चों की मेहनत, परिवार का समर्थन और गाँव की सकारात्मक शिक्षा संस्कृति को जाता है। राम नारायण मौर्य कहते हैं, "यहाँ बच्चों में प्रतिस्पर्धा का एक स्वस्थ माहौल है। हर कोई दूसरे से बेहतर करना चाहता है, और यह उन्हें कड़ी मेहनत के लिए प्रेरित करता है।"

माधवपट्टी की सफलता उन ग्रामीण इलाकों के लिए प्रेरणा है जो शिक्षा और मेहनत से अपने भविष्य को संवारना चाहते हैं। यह गाँव न केवल जौनपुर, बल्कि पूरे देश में शिक्षा और परिश्रम का प्रतीक बन गया है। यहाँ की परंपरा यह संदेश देती है कि सकारात्मक सोच, सामूहिक प्रयास और शिक्षा के प्रति समर्पण से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

आप इस आलेख को सुनने के लिए नीचे के ऑडियो बॉक्स को क्लिक करें...! 

मंगलवार, 26 नवंबर 2024

भाषण - "सपनों को सच करने का हौसला" – मैत्री पटेल

प्रिय दोस्तों,

मैं मैत्री पटेल, आज आपके समक्ष खड़े होकर गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ। मैं आपसे अपनी कहानी सुनाकर  अपने मन की बात साझा करने आई हूँ। यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं है, यह उन सपनों की कहानी है, जिन्हें पूरा करने के लिए मैंने और मेरे परिवार ने हर चुनौती का सामना किया।

मैत्री अपने माता-पिता के साथ
मैं गुजरात के सूरत के एक साधारण परिवार से हूँ। मेरे पिता किसान हैं और मेरी माँ नगर निगम में काम करती हैं। हमारे पास बहुत सीमित साधन थे, लेकिन मेरे सपने आसमान जितने बड़े थे। बचपन से ही मैं आसमान में उड़ने वाले विमानों को देखकर सोचती थी कि एक दिन मैं भी वही करूँगी। लेकिन सच कहूँ, तो उस समय यह सपना मुझे भी दूर और मुश्किल लगा करता था।

हमारे समाज में अक्सर हमें सिखाया जाता है कि बड़े सपने देखना अमीरों का काम है। लेकिन दोस्तों, यह सच नहीं है। सपने देखना हमारा अधिकार है। हाँ, उन्हें पूरा करना मेहनत और हौसले की मांग करता है।

जब मैंने पायलट बनने का फैसला किया, तो मेरे परिवार ने इसे पूरा करने के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया। मेरे पिता ने अपनी जमीन बेच दी। सोचिए, एक किसान के लिए यह कितना बड़ा फैसला होता है। लेकिन उन्होंने मुझ पर विश्वास किया। और दोस्तों, यही विश्वास मेरे लिए सबसे बड़ा सहारा बन गया।

मैंने अमेरिका में 18 महीने का पायलट कोर्स मात्र 11 महीनों में पूरा किया। इसके पीछे सिर्फ मेरी मेहनत नहीं थी, बल्कि मेरे परिवार का विश्वास और उनकी कुर्बानी थी। हर दिन मैं अपने माता-पिता के चेहरे और उनकी उम्मीदों को याद करती थी। यही याद मुझे कभी हारने नहीं देती थी।

आज, जब मैं 3500 फीट की ऊँचाई पर विमान उड़ाती हूँ, तो मुझे केवल एक बात समझ आती है—सपनों की ऊँचाई कोई सीमा नहीं जानती। हमें ही यह तय करना है कि हम अपने सपनों को कैसे पूरा करेंगे। दोस्तों, हमारी परिस्थितियाँ हमारे सपनों को रोक नहीं सकतीं, अगर हम उन्हें रोकने न दें।

मैं आप सबको यह कहना चाहती हूँ - "डरो मत, अपने सपनों को छोटा मत करो। अगर आप किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहते हो, तो पूरी कायनात आपको उसे हासिल करने में मदद करेगी। हाँ, रास्ता कठिन होगा। हाँ, आपको बार-बार असफलता का सामना करना पड़ेगा। लेकिन यही असफलताएँ आपको मजबूत बनाएंगी।"

मेरे हम उम्र साथियों! आप चाहे किसी गाँव से हों या किसी बड़े नगर से, सपनों को पूरा करने का हौसला सभी में होना चाहिए। आपको केवल खुद पर विश्वास करना होगा और हर दिन उस दिशा में एक और कदम बढ़ाना होगा।

मुझे यह भी समझ आया कि जब कोई आपके लिए त्याग करता है, तो उसकी मेहनत की कद्र करना आपका कर्तव्य बन जाता है। मेरे पिता ने मेरी शिक्षा के लिए अपनी जमीन बेच दी। उनके इस त्याग ने मुझे कभी हार नहीं मानने दी। जब आप अपने परिवार या अपने देश के लिए कुछ करते हैं, तो आपके सपनों का महत्व और बढ़ जाता है।

दोस्तों! मेरी कहानी आपके लिए एक प्रेरणा हो सकती है। लेकिन याद रखें, आपकी अपनी कहानी है। उसे ऐसा बनाइए कि लोग उसे सुनकर गर्व महसूस करें। अपने सपनों को उड़ान दीजिए, और अगर कभी रास्ता कठिन लगे, तो यह सोचना कि आप अकेले नहीं हैं। आपके हौसले के साथ पूरा ब्रह्मांड है।

मैं आपसे अपने इसी शब्दों से अपने इस वक्तव्य को विराम देती हूँ कि, "चलो, सपनों को सच करते हैं।"

आप सभी को शुभकामना, "धन्यवाद।"

मैत्री पटेल के हिंदी भााषण की ऑडियो सुनिए

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