फिल्म देखता रोहित |
रोहित एक 12 वर्षीय जिज्ञासु और होनहार बालक था। उसके माता-पिता दोनों ही कामकाजी थे, जिसके कारण वह बचपन से ही घर पर अकेला रहा करता था। अकेलेपन के कारण उसे खाली समय भी बहुत मिलता था। पहले तो वह अपने खिलौनों से खेलता था, पर धीरे-धीरे वह उनसे ऊबने लगा। एक दिन, रोहित टीवी पर मजबूरन एक फिल्म देख रहा था। वह फिल्म उसे इतनी पसंद आई कि उसने अगले दिन भी वही फिल्म देखी। धीरे-धीरे फिल्मों का शौक उसके अंदर पनपने लगा।
रोहित के मन में फिल्मों से अटूट लगाव होता गया। जब भी उसे समय मिलता, वह कोई न कोई नई-पुरानी फिल्म देखने लगता। फिल्मों के माध्यम से रोहित ने विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और देशों के बारे में सीखा। उसने देखा कि कैसे लोग विभिन्न परिस्थितियों में भी हार नहीं मानते और अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास करते हैं। रोहित का मानना था कि फिल्में उसे आत्मविश्वास, साहस और निडरता सिखाती हैं। पहले उसे जिन चीजों से डर लगता था - अंधेरा, ऊंचाई, हार, चोट लगना, मृत्यु आदि; फिल्मों ने उसे इन डरों के आगे की दुनिया से परिचित कराया। रोहित सीखा कि कैसे फिल्मों के नायक डर का सामना करते हैं, चुनौतियों को स्वीकार करते हैं, और अंत में विजय प्राप्त करते हैं।
अब, वह पहले से अधिक समझदार और आत्मविश्वास से भरा हुआ महसूस करने लगा। वह अब डर के आगे नहीं झुकता था, बल्कि चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहता था। रोहित ने अन्य बच्चों को भी अच्छी फिल्में देखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। उसने सोशल मीडिया पर "फिल्म प्रेमी बच्चों का क्लब" नामक एक समूह बनाया, जहाँ लोग अपनी देखी हुई फिल्मों का अनुभव और सीख साझा करते थे।
समूह में रोहित की सक्रियता और प्रेरणादायक कहानियों ने बच्चों को खूब प्रभावित किया। वे भी रोहित की तरह आत्मविश्वास से भरे हुए महसूस करने लगे। रोहित ने बच्चों को सिखाया कि अवकाश के क्षणों का सही उपयोग कैसे किया जाता है। रोहित के लिए, फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं थीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका थीं। एक दिन, रोहित के क्लब के एक सदस्य, रिया ने बताया कि उसे सार्वजनिक मंच पर बोलने से डर लगता है। रोहित ने उसे प्रेरित किया और उसे एक प्रेरक फिल्म दिखाई, जिसमें एक लड़की अपनी इसी कमजोरी पर विजय प्राप्त करती है। रिया फिल्म देखकर बहुत प्रभावित हुई और अगले दिन उसने स्कूल में एक कार्यक्रम में आत्मविश्वास से भाषण दिया। रोहित का क्लब बहुत लोकप्रिय हो गया। धीरे-धीरे क्लब में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी।
इस घटना ने रोहित को बहुत खुशी दी। उसे एहसास हुआ कि फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जीवन बदलने का भी साधन हो सकती हैं। रोहित ने अपना क्लब चलाना जारी रखा और बच्चों को प्रेरित करने के लिए नई-नई प्रेरणादायक फिल्मों के बारे में जानकारी साझा करता रहा।
तो यह थी कहानी रोहित की जो हमें सिखाती है कि अवकाश के क्षणों का सही उपयोग कैसे किया जाता है। रोहित ने अपने खाली समय का उपयोग एक स्वस्थ मनोरंजन के लिए किया था जिसने उसके जीवन की दिशा ही बादल दी। उसने अपने अनुभवों का प्रयोग न केवल खुद को बेहतर बनाने के लिए बल्कि दूसरों को प्रेरित करने के लिए भी किया। अंत में संदेश इतना ही कि 'फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं, जीवन जीने का तरीका भी सिखाती हैं।'
आप भी इसी तरह के कोई न कोई शौक अवश्य रखते होंगे। अपने शौक को अपना जुनून बनाइए। जिससे आप न केवल अपनी बल्कि दूसरों की जीवन को भी महकाइए! उम्मीद है आपको लेख पसंद आया होगा। यदि अच्छा लगा हो तो अपनी राय नीचे कॉमेंट करना ना भूलें।