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शनिवार, 4 मार्च 2023

नवाचार से बदलती जीवन शैली

नवाचार (Innovation) : पठन अभ्यास हेतु 

                                                                                                                                    स्रोत - एबीपी न्यूज 

नवाचार (नव+आचार) का अर्थ किसी उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा में थोडा या बहुत बडा परिवर्तन लाने से है। नवाचार के अन्तर्गत कुछ नया और उपयोगी तरीका अपनाया जाता है, जैसे- नयी विधि, नयी तकनीक, नयी कार्य-पद्धति, नयी सेवा, नया उत्पाद आदि। नवाचार को अर्थतंत्र का सारथी माना जाता है। किसी भी समाज और अर्थव्यवस्था के विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नवाचार एक नयी विचारधारा, प्रणाली, तकनीक, वस्तु या कार्यक्रम को कहते हैं जो किसी क्षेत्र में पहली बार आयोजित होता है या पूर्व से मौजूद तकनीक को संशोधित या नए रूप में उपयोग किया जाता है। यह एक नया सोचने का तरीका होता है जो एक नए या विभिन्न दृष्टिकोण से एक विषय को देखने की क्षमता प्रदान करता है। नवाचार के माध्यम से, लोग नए उत्पादों, सेवाओं या तकनीकों को बनाने या संशोधित करने में सक्षम होते हैं जो अधिक उपयोगी और अधिक प्रभावी हो सकते हैं। जैसे - 

  • स्मार्टफोन: स्मार्टफोन एक वहन है जो नवाचार का एक शानदार उदाहरण है। इसने संचार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अनेक नए उत्पादों को जन्म दिया है।
  • सोशल मीडिया: सोशल मीडिया एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म होता है जो उपयोगकर्ताओं को अन्य उपयोगकर्ताओं से संचार करने और साझा करने की अनुमति देता है। यह उन वेबसाइटों और एप्लिकेशनों के रूप में उपलब्ध होता है जो उपयोगकर्ताओं को अन्य उपयोगकर्ताओं से जोड़ते हैं जिन्हें वे जानते हैं या नहीं जानते हैं। इसके उदाहरण में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, यूट्यूब, स्नैपचैट, टिकटॉक और व्हाट्सएप शामिल हैं। 
  • आईपॉड: आईपॉड नवाचार का बेहतरीन उदाहरण है। इसे एक नवीन संचार के उपकरण के रूप में उत्पन्न किया गया था, जो बाद में संगीत सुनने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
  • वेब सर्च इंजन: गूगल सर्च इंजिन नवाचार का बेहतरीन उदाहरण है। यह इंटरनेट पर सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले सर्च इंजनों में से एक है।
  • ई-कॉमर्स वेबसाइट: आजकल ई-कॉमर्स वेबसाइट नवाचार बतौर प्रयोग होने वाला पोर्टल है जोसबसे अधिक व्यापकता और सुविधा उपयोगकर्ताओं के लिए प्रदान करता है।
  • रोबोट: एक आधुनिक रोबोटिक उपकरण है जो ज्ञान, विवेक, और कुशलता के साथ कार्य करने में सक्षम होता है। यह आमतौर पर इंसान के कुछ काम को स्वतंत्र रूप से करने में सक्षम होता है, जैसे कि उत्पादन, विनिर्माण, चिकित्सा, सेवा संगठन आदि में बहुत सारे काम करता है। 
  • ड्रोन: यह एक रोबोटिक उपकरण है जो वायुमंडल में उड़ता है और दूरस्थ स्थानों से वीडियो, तस्वीरें, डेटा और अन्य विवरणों को संग्रहित करता है। यह उपकरण एक रिमोट कंट्रोल के माध्यम से या स्वचालित रूप से काम करता है।
  • आर्टिफिसियल इंटेलिजेंट (ए.आइ.):: इसे 'एकांत बुद्धि' अथवा 'आभासी बुद्धि' कहते हैं जो कंप्यूटर विज्ञान, मशीन लर्निंग और अन्य इंटेलिजेंट तकनीकों का एक शाखा है। एआई उन कंप्यूटर प्रोग्रामों के लिए होता है जो इंसानों के जैसे कुछ काम करने में सक्षम होते हैं, जैसे कि विचार करना, सीखना, निर्णय लेना, समस्याओं को हल करना, आभासी बुद्धि, और भाषा का अनुवाद करना। जैसे - चैटजीपीटी (माइक्रोसॉफ़्ट) व बार्ड एआई (गूगल) आदि।  

  • ब्लॉकचेन: एक डिजिटल लेजर होता है जो कि डेटा रिकॉर्ड करने की एक तकनीक होती है। यह तकनीक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को डेटा को भेजने के लिए सक्षम बनाती है। यह लेजर ब्लॉक कहलाता है और हर ब्लॉक में डेटा एक तरीके से सुरक्षित होता है जिसे उन्हें नहीं बदला जा सकता। बैंकिंग, शैक्षणिक प्रमाण-पत्र, जमीन-जायदाद का लेखा-जोखा आदि रखने की सर्वाधिक सुरक्षित व्यवस्था। 
  • ई-करेंसी: एक्सचेंज पर व्यापार करने योग्य आभासी डिजिटल मुद्राओं को ई-करेंसी (E-Currency) कहा जाता है। जैसे - बिटकोइन, इथेरियम, ट्रोन, ई-रुपी, ई-दिरहम आदि। 


आभासी संसार में बिखरता समाज  

(सूचना क्रांति और तकनीकी विकास ने एक कृत्रिम दुनिया (Virtual world) खड़ी कर दी है।)
    आभासी दुनिया से आमतौर पर हम ऑनलाइन दुनिया को समझते हैं, जहां लोग इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर संचार करते हैं और अपने विचारों, अनुभवों, और ज्ञान को साझा करते हैं। इस आभासी दुनिया में समाज भी मौजूद होता है जो इंटरनेट के माध्यम से संचार करता है। लोग सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म पर ग्रुप, कम्युनिटी, फोरम और अन्य सामुदायिक स्थानों में शामिल होते हैं जहां वे अपने इंटरेस्ट से संबंधित लोगों से बातचीत करते हैं।
      आभासी दुनिया में समाज की विशेषताएं वास्तविक दुनिया से भिन्न होती हैं। यहां समाज बहुत विस्तृत होता है और लोग अपनी आवाज़ को सुनवाने के लिए आमंत्रित होते हैं। लोग विभिन्न धर्म, राजनीति, संस्कृति और भाषाओं से जुड़े समाजों में शामिल होते हैं जो आमतौर पर वास्तविक दुनिया में संभव नहीं होते हैं। आज की आभासी दुनिया क्या वास्तव में समाज और परिवार के अंत की तैयारी है? क्या लोग परिवार, विवाह, रिश्तेदारी जैसी अनौपचारिक संस्थाओं से इतना त्रस्त हो चुके हैं कि उनका इन संस्थाओं पर से विश्वास उठ गया है, या फिर ये सामाजिक संस्थाएं जिन भूमिकाओं का निर्वहन करने के लिए निर्मित की गई थीं, उनका सही से निर्वहन कर पाने में असमर्थ हो गई हैं?

        सूचना क्रांति और तकनीकी विकास ने एक कृत्रिम दुनिया खड़ी कर दी है। एक ऐसी दुनिया जहां कुछ भी वास्तविक नहीं है, सब कुछ आभासी। कृत्रिम समाज, कृत्रिम मनुष्य, कृत्रिम रिश्ते, कृत्रिम भावनाएं, कृत्रिम बुद्धि, कृत्रिम सुंदरता और यहां तक कि कृत्रिम जीवन, कृत्रिम सांसें और ऐसी ही हंसी भी। इसका ही नतीजा है कि आभासी वस्तुओं के साथ रहते हुए मनुष्य वास्तविक जीवन से दूर होता जा रहा है। आभासी दुनिया में हर चीज अस्थायी है, यहां तक कि सामाजिक और निकट संबंध भी अस्थायी और बनावटी होते जा रहे हैं। जब तक उपयोगी हैं इन संबंधों का इस्तेमाल करो, जब जरूरत न रह जाए, इन्हें खत्म कर दो।

      दरअसल आज जीवन कंप्यूटर के एक क्लिक की तरह आसान हो गया है। एक क्लिक पर मनचाही चीजें आपके पास पहुंच जाती हैं। कह सकते हैं कि नई से नई प्रौद्योगिकी यानी कंप्यूटर, स्मार्टफोन आदि आधुनिक दुनिया के ऐसे जिन हैं जो इच्छा जाहिर करते ही अपने आका का हुक्म पूरा करने को तैयार रहते हैं। अंतर केवल इतना है कि पहले का जिन सिर्फ दादी-नानी की कहानियों में ही होता था, जबकि आज का आधुनिक जिन वास्तविक दुनिया का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। समाज विज्ञानी हेबरमास ने कहा भी है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हुई अप्रत्याशित प्रगति के कारण तार्किकता का महत्त्व दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है।

      अब मनुष्य की तार्किकता उसे लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करती, अपितु केवल साधनों को एकत्र करने में सहायता करती है। इसी का परिणाम है कि मनुष्य द्वारा निर्मित आधुनिक तकनीक ने स्वयं मनुष्य को ही अपना गुलाम बना लिया है। दुर्भाग्य तो यह है कि आधुनिक मनुष्य स्वयं को पूर्व की तुलना में अधिक स्वतंत्र मानने लगा है, जबकि हकीकत यह है कि वह पहले से भी कहीं अधिक पराधीन होता जा रहा है।

      यहां कुछ समय पहले की एक घटना का जिक्र करना प्रासंगिक ही होगा। असम के एक नवविवाहित दंपति ने अपने विवाह समारोह के बाद एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस अनुबंध में दोनों ने कुछ शर्तें निर्धारित कीं, जैसे महीने में केवल एक पिज्जा खाना, हमेशा घर के खाने को हां कहना, प्रतिदिन साड़ी पहनना, देर रात पार्टी करने की सहमति परंतु केवल एक दूसरे के साथ, प्रतिदिन जिम जाना, रविवार की सुबह का नाश्ता पति द्वारा बनाया जाना, हर पंद्रह दिन में खरीदारी आदि।

      हैरत की बात है कि संबंधों में इतनी कृत्रिमता और अविश्वास कि लिखित में समझौता करने की आवश्यकता अनुभव होने लगे! कुछ समय पहले भी एक महानगर में इसी तरह की घटना हुई थी जिसमे विवाह समारोह में फेरे लेते समय वर-वधु ने ऐसे अनुबंध की बात की जिसके अनुसार वे छह महीने तक साथ रहेंगे और अगर उनमें नहीं बनी तो वे बिना किसी कानूनी कार्यवाही के पारस्परिक सहमति से अलग हो जाएंगे। एक समय था जब विवाह को संस्कार और पवित्र बंधन माना जाता था, आज वही विवाह नाम की संस्था आधुनिक समाज में हाशिए पर आ गई है। यह आभासी दुनिया की ही देन है।

      प्राकृतिक गतिविधियों के साथ छेड़छाड़ करना मानव जीवन के सामने किस तरह की चुनौतियां पैदा कर सकता है या आनुवंशिक परिवर्तनों वाले शिशु आने वाली पीढ़ियों को किस तरह प्रभावित कर सकते हैं, यह कहना कठिन है। इसलिए यह सवाल आखिरकार यह सोचने को विवश तो करता ही है कि यह कैसी दुनिया उभर कर आ रही है जहां विवाह के लिए एक पुतला, यौन इच्छाओं के लिए रोबोट और सिलिकान बच्चा लोगों की पसंद बनते जा रहे हैं। यानी एक ऐसी आभासी दुनिया जहां कुछ भी असली नहीं है। विवाह, पति-पत्नी के रिश्ते से लेकर बच्चे तक, सब कुछ नकली।

      आभासी दुनिया का एक और हैरान वाला उदाहरण है। इस वर्ष के प्रारंभ में तमिलनाडु के एक युवक-युवती के विवाह के लिए आभासी विश्व का निर्माण किया गया। इसमें वर के मृत पिता का एक आभासी किरदार बनाया गया जो वर-वधु को आशीर्वाद भी दे सकते हैं। साथ ही वर-वधु, उनके दोस्तों और रिश्तेदारों के भी आभासी अवतार (Avatars) बनाए गए। इस विवाह में शामिल होने के लिए वास्तविक दुनिया से आभासी दुनिया में जाना पड़ेगा। कितना हास्यास्पद है कि जीवित होते हुए भी मृत समाज (काल्पनिक दुनिया) में सम्मिलित होने का विकल्प चुनना भ्रम में जीना नहीं है, तो क्या है? इस तकनीकी दुनिया में मृत्यु को झुठलाने वाली तकनीक भी उभार ले चुकी है। कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि मनुष्य वास्तविक संबंधों की उपेक्षा करने और आभासी संबंधों की तलाश में वास्तविक जीवन जीना ही छोड़ने को आतुर है।

                                                                                                                                                    सौजन्य : यू-ट्यूब (DNA चैनल)

      सवाल है कि ऐसे में विवाह, परिवार, नातेदारी और समाज की परिभाषा क्या हो? समाजशास्त्रियों को इन परिभाषाओं को नए सिरे से गढ़ना होगा। आज की आभासी दुनिया क्या वास्तव में समाज और परिवार के अंत की तैयारी है? क्या लोग अनौपचारिक संस्थाओं (परिवार, विवाह, रिश्तेदारी) से इतना त्रस्त हो चुके हैं कि उनका इन संस्थाओं पर से विश्वास उठ गया है, या फिर ये सामाजिक संस्थाएं जिन भूमिकाओं का निर्वहन करने के लिए निर्मित की गई थीं, उनका सही से निर्वहन कर पाने में असमर्थ हो गई हैं? समाज विज्ञान के शोधार्थियों को इन मुद्दों पर शोध करने की आवश्यकता है, ताकि इनके पीछे छिपे कारण-परिणाम संबंधों को ज्ञात करके उनके समाधान के प्रयास किए जा सकें।

      यहां एक बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर कोई किसी कमी को पूरा करने के लिए इस तरह की प्रौद्योगिकी का प्रयोग करता है तो एक सीमा तक स्वीकारा भी जा सकता है जैसे कृत्रिम ह्रदय, कृत्रिम आंख, कृत्रिम हाथ-पैर इत्यादि। लेकिन वास्तविक समाज और वास्तविक संबंधों के होते हुए भी अगर व्यक्ति आभासी समाज और रिश्तों की ओर अग्रसर हो रहे हैं तो यह मानसिक दिवालियापन का ही संकेत है।
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                                                                                                                                                                                 सौजन्य : यू-ट्यू

      अभ्यास : 
      किसी एक नवाचार के बारे में अपने मित्र/सहेली से चर्चा करते हुए संवाद लेखन कीजिए। अपने उत्तर में आप निम्नलिखित बिन्दुओं को अवश्य शामिल करें। 
      1. नवाचार का नाम और उसकी उपयोगिता 
      2. उस नवाचार से होने वाले खतरे
      आपके संवाद मौलिक और ज्ञानप्रद होने चाहिए। इसकी शब्द सीमा 200 शब्दों से अधिक न हो।

      उत्तर - कल मैं अपने अपनी सहेली टीना से मिली उससे मिलकर हमने एक नवाचार पर चर्चा की। उसका संवाद निम्नलिखित है। 
      मीना - क्या तुम्हें पता है टीना आज कल विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नए-नए नवाचार उभर रहे हैं। 
      टीना - नही मुझे इतना अधिक  तो नहीं पता है। हाँ, कुछ मोबाइल एप के बारे में सुनी हूँ। 
      मीना - मेरा भाई इंजीनियर है। उसने मुझे "स्वरचित्र दर्पण" नामक एक नवाचार के बारे में बताया। 
      टीना - अच्छा, मुझे भी बताओ न, क्या है ये? 
      मीना - 'स्वचित्र दर्पण' एक नई तकनीक है जिससे शब्दों को चित्रों में बदला जा सकता है। 
      टीना - अरे वाह! वो कैसे? जल्दी बताओ न। 
      मीना - इस तकनीक का उपयोग कला और शिक्षा के क्षेत्र में किया जाता है। इससे बच्चों को समझने में आसानी होती है और उनकी रुचि भी बढ़ती है।
      टीना - अच्छा, क्या इससे कोई नुकसान भी है?  
      मीना - हाँ टीना, 'स्वरचित्र दर्पण' से होने वाले कुछ खतरे भी हैं। जैसे-जैसे लोग इस तकनीक का उपयोग करते जाएंगे, उनके संग्रहित जानकारी को हैक करने का खतरा बढ़ सकता है। 
      टीना - अरे! यह तो बहुत खतरनाक होगा। 
      मीना - इसके अलावा, इस तकनीक का उपयोग ज्ञानोपयोगी शब्दों और चित्रों को बनाने में किया जाना चाहिए, जो आमतौर पर सीखने या सीखने में काम आते हों।
      टीना - फिर तो इस नवाचार का उपयोग शिक्षा और विज्ञान और कला के क्षेत्र में हो सकता है लेकिन हमें इसके खतरों के बारे मे सचेत रहना चाहिए। 
      मीना - बिलकुल सही। 




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