🌿 जितने मीठे गन्ने का आप स्वाद ले रहे हैं, हमारे भारतीय गन्ने पहले ऐसे न थे! 🍬
भारत की पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक |
यह कहानी है डॉ. ई.के. जानकी अम्मल की, जो भारत की पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक थीं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि विज्ञान सिर्फ प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं होता, बल्कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को भी बदल सकता है। डॉ. जानकी अम्मल का जन्म 4 नवंबर 1897 को केरल के थलास्सेरी में हुआ था। उनके पिता शिक्षा प्रेमी थे और यही कारण था कि बचपन से ही जानकी अम्मल में पढ़ाई के प्रति विशेष रुचि थी। उन्होंने चेन्नई के क्वीन मेरी कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से वनस्पति विज्ञान की पढ़ाई की। उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें अमेरिका के पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय तक पहुँचा दिया, जहाँ उन्होंने 1931 में डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की।
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय किसान विदेशी गन्ने की प्रजातियों पर निर्भर थे, क्योंकि उनमें अधिक मिठास थी। इससे भारतीय कृषि कमजोर हो रही थी। लेकिन जानकी अम्मल ने ‘सैक्रम बर्बेरी’ नामक भारतीय गन्ने की प्रजाति पर शोध किया और इसे अधिक मीठा बनाने में सफलता प्राप्त की। उनकी इस खोज ने भारत को चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया और आज हम जिस मीठे गन्ने से गुड़, खांड, और चीनी बनाते हैं, उसमें कहीं न कहीं डॉ. जानकी अम्मल की मेहनत शामिल है।
गन्ने के अलावा उन्होंने नींबू, बैंगन, काली मिर्च और चावल जैसी फसलों की आनुवंशिक संरचना पर भी अध्ययन किया। वे रॉयल हॉर्टिकल्चर सोसाइटी, लंदन में काम करने वाली पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक बनीं। लेकिन विदेश में सम्मान और उच्च पद मिलने के बावजूद, वे अपने देश की सेवा करना चाहती थीं। 1951 में, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विशेष आमंत्रण पर वे भारत लौट आईं और भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद (CSIR) से जुड़कर वनस्पति विज्ञान को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
डॉ. जानकी अम्मल न केवल कृषि वैज्ञानिक थीं, बल्कि वे पर्यावरण संरक्षण की अग्रदूत भी थीं। उन्होंने जब देखा कि केरल में जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। वे मानती थीं कि विज्ञान का उद्देश्य केवल नई खोज करना नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना भी है। उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने 1957 में ‘पद्मश्री’ सम्मान प्रदान किया। उनके सम्मान में ‘जानकी अम्मल नेशनल अवार्ड’ भी स्थापित किया गया, जो पर्यावरण और जैवविविधता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को दिया जाता है।
डॉ. जानकी अम्मल का जीवन हमें यह सिखाता है कि कड़ी मेहनत और जिज्ञासा से कोई भी ऊँचाई हासिल की जा सकती है। आज जब विज्ञान और पर्यावरण संरक्षण की चर्चा होती है, तब उनका नाम प्रेरणा के रूप में उभरता है। अगर आप भी विज्ञान में रुचि रखते हैं और प्रकृति के रहस्यों को समझना चाहते हैं, तो जानकी अम्मल की तरह नई चीजों की खोज करने और अपने देश के लिए कुछ बड़ा करने का सपना देख सकते हैं!