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मंगलवार, 28 नवंबर 2023

अपशिष्ट प्रबंधन: एक चुनौती या अवसर?

अपशिष्ट का उत्पादन एक गंभीर समस्या है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है। सामान्य बोलचाल में इसे 'कचरा' के नाम से जानते हैं। अपशिष्ट का अर्थ है, किसी भी पदार्थ का प्राथमिक उपयोग करने के बाद जो बच जाता है, वह 'अपशिष्ट' कहलाता है। हमारे आस-पास जो कुछ भी अनुपयोगी है वह 'अपशिष्ट' है। कचरा ठोस, तरल या गैसीय अवस्था में हो सकता है। सरकारी आंकड़ों की माने तो भारत में हर साल करीब 6 करोड़ 20 लाख टन और हर दिन एक लाख 70 हज़ार टन कचरा पैदा होता है। आम तौर पर स्थानीय एजेंसियां कचरे से निपटने के लिए उन्हें शहरों के आप-पास के ढलावों में भर दिया जाता है। कचरे से निपटने के लिए हमें उसके पुनर्चक्रण की आवश्यकता होती है। 'पुनर्चक्रण' अपशिष्ट को नए उत्पादों में बदलने की प्रक्रिया है। हम अब तक केवल 25% कचरे को ही रिसाइकल कर पा रहे हैं। यह अपशिष्ट के उत्पादन को कम करने और संसाधनों का संरक्षण करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है

अपशिष्ट की समस्या आधुनिक जीवन शैली, बढ़ते शहरी करण एवं औद्योगीकरण से जनित समस्या हैं। ऐसा नहीं है कि प्राचीन काल के हमारे समाज में अपशिष्ट नहीं होता था। किन्तु होने वाला कचरा पुनर्चक्रण के अनुकूल होता था। लोग प्रकृति कि गोद में रहते, प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करते और होने वाला कचरा पुनः प्रकृति में अपघटित हो जाता था। अतः उस समय लोग सुखी थे। आज की स्थिति इसके विपरीत है, कहने के लिए हम विकास कर रहे हैं। लेकिन देखा जाय तो अपशिष्ट प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूपों से हमारे स्वास्थ्य एवं कल्याण को कई तरह से प्रभावित कर रहा है। चाहे वो आम जीवन में प्लास्टिक का उपयोग हो या कृषि में रासायनिक खाद व कीटनाशकों के इस्तेमाल से होने वाली समस्या। आज हम अपनी प्रगति अपने स्वयं के स्वास्थ्य और आने वाली पीढ़ी के भविष्य के साथ खिलवाड़ की कीमत पर कर रहे हैं।  

'अपशिष्ट प्रबंधन' आज के समय में बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। हम सभी मिलकर अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियों को दूर कर सकते हैं और अपशिष्ट प्रबंधन के अवसरों का लाभ उठा सकते हैं। अपशिष्ट के कई स्रोत हैं, जिसमें घरेलू, वाणिज्यिक, औद्योगिक और कृषि शामिल है। अपशिष्ट का उचित प्रबंधन न होने से न केवल हमारी धरती बल्कि आकाश में वायु प्रदूषण और समुद्र की गहराइयों तक जल प्रदूषण की समस्या सिर उठा रही है। अपशिष्ट हमारे पारस्थितिक तंत्र को ही नहीं खराब करता है बल्कि यह समाज पर आर्थिक बोझ भी डालता है। अतः समय रहते यदि इसका उचित प्रबंधन न किया गया तो निकट भविष्य में इसके और भी गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। 

प्लास्टिक अलग करती सफाईकर्मी
संयुक्त राष्ट्र संघ की सिफारिश को माने तो हमें कचरों के ढ़ेर से निपटने के लिए 'शून्य अपशिष्ट' की नीति अपनाने की आवश्यकता है। अर्थात् कचरा फैलाना बंद करना चाहिए। लेकिन यह कितना व्यावहारिक है? हम आप अच्छी तरह जानते हैं। अतः कचरे से निबटने 'अपशिष्ट प्रबंधन' ही एकमात्र और अंतिम उपाय है। इसके लिए हमें अपशिष्ट संग्रहण, उसकी छंटाई और पुनर्चक्रण के लिए एक बुनियादी ढाँचा बनाने की आवश्यकता होती है। यह एक बहुत ही मंहगी और जटिल प्रक्रिया है। इसकी शुरुवात हमें अपने घर /ऑफिस से करनी होगी। हम अपने कचरे को इकट्ठा करते समय ही कचरे के अलग-अलग प्रकार में छांटकर संग्रह करें। जैसे - सूखा कचरा, गीला कचरा, जैविक कचरा, बायो-मेडिकल कचरा, ई-(इलेक्ट्रॉनिक) कचरा,  पुनर्चक्रण योग्य कचरा, हरा कचरा और खतरनाक कचरा आदि। प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग और लंबे समय से प्लास्टिक के निपटान समाधानों की उपेक्षा के कारण न केवल भारत बल्कि कई अन्य देशों को भी प्लास्टिक से बढ़ते पर्यावरणीय नुकसान के कारण इसे सीमित करने के लिए कानून अपनाने पड़े हैं।

आज के आधुनिक जीवन शैली में जहाँ हम दिन प्रतिदिन प्रगति की ओर अग्रसर हैं। वहीं अपने पीछे रोजाना ढ़ेर सारे प्लास्टिक और इलेक्ट्रोनिक कचरे को फैला रहे हैं। जिसके प्रबंधन में चुनौती के साथ साथ नए अवसर भी तलासे जा रहे हैं। जहाँ प्लास्टिक कचरे का पुरर्चकरण कर नए प्लास्टिक उत्पाद, पर्यायी ईंधन और सड़क निर्माण के क्षेत्र में काम हो रहा है। वहीं जनता में साफ-सफाई व कचरा प्रबंधन के प्रति जागरूकता अभियान कार्यक्रम अपनाए जा रहे हैं। इसी राह पर चलकर भारत का प्राचीन शहर इंदौर अपने आप में अपनी साफ-सफाई और चमचमाती सड़कों के लिए दुनिया भर में नाम कर रहा है। हमें भी बस एक पहल करने की आवश्यकता है। जल्द ही हम इस क्षेत्र में भी अवश्य जीत हासिल करेंगे।  

अन्य स्रोत सामग्री -
  1. विकिपीडिया 
  2. अपशिष्ट प्रबंधन-दृष्टि आईएएस
  3. शून्य अपशिष्ट - यूएनओ


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