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गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

'मेरे गाँव का मेला, तुम्हारे शहर का मॉल'

        भारत, एक ऐसा देश है जो अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का तो यहाँ तक कहना था कि 'असली भारत गाँवों में बसता है।' यहाँ के हर गाँव और शहर का अपना महत्व है, और वे अपने तरीके से समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए हैं। आज इस ब्लॉग के माध्यम से हम बात करने जा रहे हैं देश के उभरते बाजार वाद 'मॉल संस्कृति' बनाम अपनी पहचान खोने को मजबूर 'गांवों के मेलों' की। जहाँ आज गांवों में शहरी संस्कृति की घुसपैठ जारी है, वहीं गाँव अपनी संस्कृति के अस्तित्व को बचाए शहरी 'फ़न एंड फेयर' में अपने शर्माए, सकुचाए और मुँह छिपाए दुबके किसी कोने में अपनी पूराने कपड़ों की गुदड़ी, लकड़ी के खिलौने, लोहे के औज़ार, हथकरघा के नमूनों अथवा मिट्टी के घड़े अथवा दिए लिए अवश्य देखने को मिल जाया करते हैं। या यूं कहें कि बिना इनकी उपस्थिति के इन मेलों की रौनक अधूरी ही रहती है। हालांकि गाँवों और शहरों में अपने अलग-अलग मेलों की परंपरा है, वे आजकल अपनी अनोखी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बन गए हैं।  भारतीय समाज के ये दो विपरीत पहलू देश की बहुमुखी प्रकृति को दर्शाते हैं, जिनमें से प्रत्येक यहां के लोगों के जीवन में एक अनूठी भूमिका निभाता है। यह लेख भारतीय ग्रामीण मेलों और शहर के मॉलों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं की पड़ताल करता है, उनके अंतर और समानताओं पर प्रकाश डालता है। इस लेख में, हम दो ध्रुवों में कुछ सामंजस्य जोड़ने का प्रयास करेंगे: "मेरे गाँव का मेला और तुम्हारे शहर का मॉल'। 

मेले का हिंडोले और झूले 

गाँव का मेला: ग्रामीण मेले भारतीय समाज के लिए सर्वोत्कृष्ट नमूना हैं, जो समुदाय और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देते हैं। इनका आयोजन केवल खरीदारी नहीं बल्कि ये जीवंत सामाजिक समारोह' हैं जहाँ जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग जुटते हैं। यहाँ ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी का भेद नहीं रहता है; परिवार, रिश्तेदार और दोस्त सभी उत्सव का आनंद लेने, अपनी-अपनी कहानियाँ साझा करने और स्थायी यादें बनाने के लिए एक साथ आते हैं। यह एक ऐसा समय है जब लोग अपनी जड़ों से फिर से जुड़ते हैं, सामाजिक बंधनों को मजबूत करते हैं और सांस्कृतिक परंपराओं को युवा पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।

        यह मेला ग्रामवासियों की संस्कृति और जीवनशैली का महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक ऐसा अवसर है जहाँ हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को आत्मसात कर पाते हैं। ये मेले किसी न किसी त्योहारों के अवसर पर ही लगते हैं, लेकिन दशहरे और ईद के मेले की बात कुछ और है। दशहरे के मेले का मुख्य आकर्षण रावण दहन होता है तो ईद में हम नए कपड़े पहनने के लिए लालायित रहते हैं। अकसर मेले आने तक हमारे कृषि कार्य खत्म हो चुके होते हैं। फ़सलों के तैयार हो जाने से घरों में खुशियाँ लौट आती हैं। 

मेले के कई दिन पहले से ही हम मेले में जाने की तैयारी में लगे होते हैं। किसे क्या खरीदना है उसकी योजना बनाते हैं। खाने-पीने की चीजों के लिए लंबी बहस हो जाती है। बच्चों को घर के बड़े-बूढ़े मेला देखने जाने के लिए अपने-अपने हिस्से का पैसा देते हैं। वे भी अपनी ख़रीदारी की खुशी का आनंद लेते हैं। मेला गाँव से कुछ दूर पर किसी बड़े मैदान में लगता है। जहाँ आस-पास के कई गांवों के लोग इकट्ठा होते हैं। कई बार तो हमारे रिश्तेदार जैसे बुआ और मौसी आदि से मुलाक़ात भी इन मेले में हो जाती है। फिर सार परिवार मिलकर मेले का आनंद लेता है। हम अपने मनपसंद खिलौने, माँ-पिताजी घरेलू व खेती के औज़ार खरीदते हैं। हमारे लिए नए कपड़े भी खरीदे जाते हैं। मेले में कई तमाशे और जादू के खेल भी आते हैं। बड़े-बड़े झूले व कई बार घोड़े-हाथी की सवारी भी आती है। दंगल तथा 'मौत के कुएँ का खेल' मुख्य आकर्षण होते हैं। 

मेले का दंगल 
यहाँ तरह-तरह के फल, मिठाइयाँ व पकवान खाये बिना जी ललचाता है। जिन्हें खाकर लोग आपस में खाने-पीने का आनंद लेते हैं। यह एक ऐसा समय होता है जब हम अपने गाँव की गरिमा और परंपराओं को महसूस करते हैं। मेरे गाँव का मेला क्षेत्रीय कला, संगीत, और परिधान का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यहाँ की महिलाओं के परिधान मैं विशेषकर सरी(लहँगा)-चूनर, मोजड़ी, और बंधनी के प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध हैं

मेरे गाँव का मेला एक सामाजिक समरसता का प्रतीक है, जहाँ हर कोई एक साथ आकर्षण और आदर्श को दर्शाता है। यहाँ पर लोग एक दूसरे के साथ खुशी-खुशी गाते हैं और नृत्य करते हैं, और आपके दिल में एक सजीव और आनंदपूर्ण भावना छोड़ जाते हैं। इन मेलों में कई आकर्षण भी होते हैं, जैसे: जात्रा, सर्कस, हिंडोला, जादू शो, कठपुतली शो आदि। गाँव के मेलों में गुड़िया, बर्तन, फ़र्नीचर, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी के सामान, बांस से बनी टोकरियाँ और लोहे के कृषि औज़ार भी बेचे जाते हैं। ये मेले ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक केंद्र हुआ करते थे। इन मेलों में मनोरंजन, खरीदारी के साथ कई रिश्ते भी पनपते थे. पहले इन मेलों में कई लोगों की शादियाँ तय हुआ करती थीं, आपसी मन-मुटाव और गिले-शिकवे मिटा करते थे, कई दिल मिला करते थे। यहाँ सामुदायिक एकता का अनूठा संगम होता था।

ग्रामीण मेले ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। ये आयोजन अकसर स्थानीय कारीगरों और छोटे पैमाने के उद्यमियों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं। इन मेलों के दौरान हस्तशिल्प, पारंपरिक कपड़े और स्थानीय व्यंजनों को उत्सुक खरीदार मिलते हैं। ग्रामीण मेलों से होने वाली आय कुटीर उद्योगों और कृषि से जुड़े लोगों की आजीविका पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

ग्रामीण मेले भारत की सांस्कृतिक संस्कृति में गहराई से निहित हैं। वे अकसर धार्मिक त्योहारों और स्थानीय परंपराओं के साथ मेल खाते हैं, जो क्षेत्र की समृद्ध विरासत का जश्न मनाते हैं। इन मेलों में लोक नृत्य, पारंपरिक संगीत और ग्रामीण खेल शामिल होते हैं जो भारत की कलात्मक और सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करते हैं। वे स्वदेशी कला और शिल्प के जीवित संग्रहालय के रूप में काम करते हैं।

मॉल की भव्यता 
शहरी  मॉल संस्कृति: शहर के मॉल आधुनिकता की होड़ के साथ शहरी मिलन स्थल के रूप में काम करते हैं। ये व्यावसायिक केंद्र एक ही छत के नीचे मनोरंजन, भोजन और खरीदारी की सुविधा प्रदान करते हैं। मॉल लोगों को आराम करने और शहरी जीवन की हलचल से बचने के लिए स्थान प्रदान करते हैं। हालाँकि वे गाँव के मेलों की तरह सांस्कृतिक पहलुओं पर ज़ोर नहीं देते, लेकिन मॉल समकालीन सामाजिक केंद्र बन गए हैं जहाँ दोस्त कॉफी के लिए मिलते हैं, जोड़े मूवी देखते हैं और परिवार बाहर खाना खाते हैं।

मध्यरात्रि में केरल के लूलू मॉल में भीड़ 

सिटी मॉल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों, रेस्तरां और सेवा प्रदाताओं को आवास देकर शहरी अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। वे रोजगार के अवसर पैदा करते हैं और खुदरा क्षेत्र को बढ़ावा देते हैं। मॉल शहर में आर्थिक विकास और निवेश को बढ़ावा देने, खर्च को भी प्रोत्साहित करते हैं। "मॉल संस्कृति" की अवधारणा ने उपभोक्तावाद में वृद्धि की है, जिससे यह आधुनिक भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख चालक बन गया है।

मॉल वैश्वीकृत उपभोक्ता संस्कृति से अधिक प्रभावित हैं। हालाँकि उनमें गाँव के मेलों के गहरे सांस्कृतिक महत्व का अभाव है, वे अकसर कला, फैशन और स्थानीय प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रमों और प्रदर्शनियों की मेजबानी करते हैं। कुछ मॉल अपने डिज़ाइन और वास्तुकला में सांस्कृतिक तत्वों को भी एकीकृत करते हैं, जो वैश्विक और स्थानीय प्रभावों का मिश्रण प्रदर्शित करते हैं।

भारतीय गाँव के मेले और शहर के मॉल भारतीय समाज के दो पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, प्रत्येक अपने तरीके से सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में योगदान देता है। गाँव के मेले परंपरा, समुदाय और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं, जबकि शहर के मॉल आधुनिकता, सुविधा और उपभोक्ता की पसंद का प्रतीक हैं। साथ में, वे भारत का एक मनोरम और गतिशील चित्र बनाते हैं, जहां परंपरा और आधुनिकता सद्भाव में सह-अस्तित्व में हैं।

अभ्यास कार्य 1) :"ग्रामीण मेला समुदाय के सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में योगदान देते हैं? इस विषय पर एक रिपोर्ट लेखन कीजिए। अपने लेखन में निम्नलिखित बिन्दुओं को अवश्य शामिल करें। आपका लेखन 200 शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए। 
  • मेले का नाम, स्थान और समय 
  • मेले के सांस्कृतिक खाद्य पदार्थ और लोक जीवन
  • मेले का आर्थिक महत्व 
विषय-वस्तु के लिए 8 अंक और भाषा के लिए 8 अंक देय। 

आदर्श उत्तर - भारतीय ग्रामीण मेलों का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व
भारतीय ग्रामीण मेले देश भर के समुदायों के सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में अद्वितीय स्थान रखते हैं। ऐसा ही एक उल्लेखनीय मेला "कुंभ मेला" है, जो हर 12 साल में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में आयोजित होता है। यह मेला भारत में ग्रामीण मेलों के सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
परिचय : 
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक, कुंभ मेला, इलाहाबाद में आयोजित किया जाता है, जिसे अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। यह हर 12 साल में होता है, जो पूरे भारत और दुनिया भर से लाखों तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
सांस्कृतिक भोजन और लोक जीवन:
कुम्भ मेला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है। तीर्थ यात्री स्थानीय विक्रेताओं द्वारा तैयार किए गए विभिन्न प्रकार के पारंपरिक भारतीय खाद्य पदार्थों का आनंद लेते हैं। यह मेला भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोक संगीत, नृत्य और शिल्प को प्रदर्शित करने, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और विरासत को संरक्षित करने का एक मंच भी है।
आर्थिक महत्व:
कुंभ मेले का आर्थिक महत्व बहुत अधिक हैं। इससे पर्यटन में वृद्धि होती है और स्थानीय व्यवसायों को काफी लाभ होता है। यह खाद्य विक्रेताओं से लेकर आवास प्रदाताओं तक अनगिनत व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, मेला व्यापार और वाणिज्य के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है, क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों से विक्रेता अपना माल बेचने आते हैं।
निष्कर्ष :
कुंभ मेला जैसे भारतीय ग्रामीण मेले इस बात का उदाहरण देते हैं कि कैसे ये आयोजन उनके समुदायों की सांस्कृतिक समृद्धि और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वे लोगों को एक साथ लाते हैं, विविध परंपराओं का जश्न मनाते हैं और इसमें शामिल सभी लोगों के लिए सुख और समृद्धि के अवसर प्रदान करते हैं।

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