जगन्नाथ शंकर सेठ का नाम भारतीय इतिहास में एक ऐसे युगप्रवर्तक के रूप में दर्ज है जिन्होंने समाज सुधार और उद्योग के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किए। उनका जन्म 10 फरवरी 1803 को महाराष्ट्र के एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में हुआ था, जहाँ बचपन से ही उन्होंने व्यापारिक कौशल और समाज सेवा के आदर्श सीखे। लेकिन उनका जीवन साधारण व्यापारिक गतिविधियों में सीमित नहीं रहा; उन्होंने अपने प्रयासों से समाज की जड़ता और अन्याय के विरुद्ध व्यापक जागरूकता फैलाई।
सेठ का जीवन संघर्ष और सेवा का अद्भुत संगम था। जातिगत भेदभाव, बाल विवाह, और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ उन्होंने निडर होकर आवाज उठाई। उनके साहस और निष्ठा ने उन्हें समाज में "समाज का दीपक" बना दिया, जो हर अंधकार को मिटाने के लिए प्रज्वलित रहा। व्यापार में आर्थिक सफलता प्राप्त करने के बाद भी उनका मुख्य ध्येय समाज की उन्नति ही रहा। सेठ की इसी सेवा भावना और दूरदृष्टि ने उन्हें अपने समय के समाज सुधारकों और बुद्धिजीवियों के बीच एक विशिष्ट स्थान दिलाया।
भारतीय रेल सेवा का स्वप्न भी उनके इसी दृष्टिकोण का हिस्सा था। ब्रिटिश शासनकाल में, रेल सेवा एक अनसुना और अव्यवहारिक विचार था, लेकिन सेठ ने इसे भारत में लाने की ठानी। 1843 में उन्होंने गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया को भारत में रेल नेटवर्क शुरू करने का प्रस्ताव दिया। शुरुआती अस्वीकार और उपेक्षा के बावजूद, सेठ ने धैर्य और तर्क के साथ सरकार को इसके लाभ समझाए। "लोहा काटे लोहे को" के दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने हर बाधा का सामना किया, और अंततः उनकी अडिग इच्छाशक्ति ब्रिटिश अधिकारियों को इसे स्वीकृति देने के लिए प्रेरित करने में सफल हुई। उनका विश्वास था कि रेल सेवा भारत के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़कर न केवल आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगी, बल्कि राष्ट्रीय एकता को भी सुदृढ़ करेगी।
रेल के क्षेत्र में उनके योगदान के अलावा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में भी सेठ का योगदान अभूतपूर्व था। 1822 में उन्होंने "बॉम्बे नेटिव एजुकेशन सोसाइटी" की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने आगे चलकर मुंबई विश्वविद्यालय का रूप लिया। सेठ का मानना था कि शिक्षा ही उन्नति का असली मार्ग है। उन्होंने अपनी संपत्ति का उपयोग करते हुए शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने का प्रयास किया। उनका योगदान नारी सशक्तिकरण के प्रति भी उल्लेखनीय था, और उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई।
जगन्नाथ शंकर सेठ का जीवन उन सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है जो समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करने का संकल्प रखते हैं। उनकी दूरदृष्टि, समर्पण और समाज सेवा के प्रति उनका अटूट विश्वास आज भी हमारे लिए मिसाल है। उन्होंने अपनी सफलता को केवल व्यक्तिगत नहीं रहने दिया, बल्कि उसे समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया। वह सच्चे अर्थों में "मन के मीत और कर्म के धनी" थे। भारतीय रेल की आधारशिला और सामाजिक सुधारों में उनका योगदान युगों तक स्मरणीय रहेगा।