गर्व का क्षण! गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित होने वाला भारत का पहला रेलवे स्टेशन बन गया है। ☀️🚉
रेल यात्राएँ हमेशा से ही मुझे रोमांचित करती रही हैं। भारतीय रेलवे के विशाल नेटवर्क में सफर करना न केवल भौगोलिक विविधताओं से परिचय कराता है, बल्कि देश की बदलती तस्वीर भी दिखाता है। इस बार मेरी मंज़िल थी गुवाहाटी, लेकिन यह यात्रा महज़ एक गंतव्य तक पहुँचने भर की नहीं थी—यह अनुभव था भारत के हरित भविष्य की झलक पाने का।
सूरज की किरणों से सजी पहली सुबह
ट्रेन जैसे ही गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के पास पहुँची, मेरी नजरें स्टेशन की छत पर लगे सौर पैनलों पर जा टिकीं। प्लेटफ़ॉर्म पर कदम रखते ही यह अहसास हुआ कि मैं किसी साधारण रेलवे स्टेशन पर नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक पहल के केंद्र में खड़ा हूँ। यह भारत का पहला रेलवे स्टेशन था, जो पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित हो रहा था!
स्टेशन परिसर में घुसते ही मैंने चारों तरफ़ सफ़ाई, सुव्यवस्था और एक नई ऊर्जा महसूस की। सूचना पट्टिकाएँ, टिकट काउंटर, वेटिंग हॉल—सब कुछ रोशन था, लेकिन न कहीं डीजल जनरेटर की आवाज़ थी, न ही बिजली कटौती की चिंता। यह हरित ऊर्जा का वास्तविक चमत्कार था!
700 किलोवाट से सजी हरित क्रांति
स्टेशन प्रबंधक से बातचीत के दौरान मुझे पता चला कि 2017 में उत्तर-पूर्वी सीमांत रेलवे ने यहाँ 700 किलोवाट क्षमता के सौर पैनल स्थापित किए थे। ये पैनल प्रतिवर्ष लगभग 2350 मेगावाट-घंटा बिजली उत्पन्न करते हैं—इतनी ऊर्जा जो स्टेशन की पूरी जरूरतों को पूरा कर सकती है!
मुझे सबसे ज्यादा गर्व तब महसूस हुआ जब मैंने जाना कि यह पहल सिर्फ बिजली बचाने के लिए नहीं थी, बल्कि इससे हर साल 2000 टन कार्बन उत्सर्जन भी कम हो रहा था। यानी, हर दिन गुवाहाटी स्टेशन पर्यावरण की रक्षा में अपना योगदान दे रहा था।
क्या यह सिर्फ एक शुरुआत है?
मैंने प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े यात्रियों से बात की। कोई जल्दी में था, कोई अपने परिवार के साथ सफर कर रहा था, लेकिन सबके चेहरे पर एक अजीब-सी संतुष्टि झलक रही थी। एक बुज़ुर्ग यात्री बोले, "बचपन से रेलवे को देख रहा हूँ, लेकिन अब ये सिर्फ यात्रियों को नहीं, बल्कि प्रकृति को भी सहारा दे रहा है।"
इस पहल की सफलता ने देश के अन्य प्रमुख स्टेशनों को भी प्रेरित किया। दिल्ली, जयपुर, हावड़ा और सिकंदराबाद जैसे स्टेशनों ने भी इसी राह पर कदम बढ़ा दिए हैं। और यह तो बस शुरुआत है—भारतीय रेलवे ने 2030 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
एक यात्री का संदेश
इस यात्रा ने मेरी सोच बदल दी। मैंने महसूस किया कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सबकी है। अगर एक रेलवे स्टेशन पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चल सकता है, तो क्या हम अपने घरों, दफ्तरों और उद्योगों को अधिक ऊर्जा-कुशल नहीं बना सकते?
गुवाहाटी स्टेशन से निकलते समय मैंने एक आखिरी बार उन चमकते हुए सौर पैनलों की ओर देखा और सोचा—"यह केवल ऊर्जा बचाने की योजना नहीं, बल्कि भविष्य की ओर बढ़ते कदमों की शुरुआत है।"
अब बारी हमारी है। क्या हम भी अपने हिस्से की रोशनी इस हरित क्रांति में जोड़ सकते हैं?
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