प्रिय दैनंदिनी,
सोमवार, 8 अप्रैल, 2025
समय - 10:30 रात्रि
“माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे?
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।”
संत कबीर की इन पंक्तियों में छिपा व्यंग्य और सलाह, जीवन के उस गूढ़ सत्य को इंगित करतीं हैं जिसे हम आज तक अनदेखा करते आये हैं — 'मिट्टी'। "वही मिट्टी, जिसमें हमने जन्म लिया, जो हमारा जीवन भर पोषण करती रहेगी, और जिसकी शीतल और शांत गोद में हम जीवन पश्चात् चिर्-निद्रा का विश्राम पाएँगे।"
हे दैनंदिनी! तुम्हें पता हैं, बच्चों के मन में जीवनदायिनी मिट्टी के महत्व को अनुभव कराने हेतु हमारे विद्यालय में ‘माटी महोत्सव’ का आयोजन किया गया। यह केवल एक उत्सव नहीं था, यह एक यात्रा थी — सभ्यता की जड़ों तक लौटने की, हाथों से सृजन करने की, और हृदय से मिट्टी से जुड़ने की। जिसका उद्देश्य था – मिट्टी, कृषि, मानव सभ्यता की शुरुआत और प्रकृति से संबंध को समझना।
प्रातः जब बच्चे विद्यालय पहुँचे, तो सारा विद्यालय परिसर सृजन की उमंग, उत्साह और जिज्ञासा के वातावरण से सराबोर था। चहुँ ओर मिट्टी से बनी कलाकृतियों – जैसे दीये, घड़े, मूर्तियाँ, फूलदान और कई सजावटी वस्तुएँ – सभी विद्यार्थियों के आकर्षण और प्रोत्साहन हेतु रखीं गई थीं। शिक्षकों ने बच्चों को उनके कोमल हाथों से मिट्टी को गूंथने, आकार देने, सुखाने आदि के न केवल रचनात्मक गुर सिखाएँ बल्कि श्रम, धैर्य और सादगी की भी अनुभूति कराई।
कार्यक्रम की सबसे सुंदर प्रस्तुति थी – ‘मानव सभ्यता की यात्रा’। इस सुंदर प्रदर्शनी में झाँकियों के माध्यम से यह दिखाया गया कि किस प्रकार गुफाओं में जीवन यापन करने वाला मानव, धीरे-धीरे आग की खोज करता है, मिट्टी के बर्तन बनाता है, और कृषि की शुरूवात करता है। मिट्टी ने ही उसे ‘बसना’ सिखाया – यही वह क्षण था जब मानव भटकने से थमता है, और हमारे ‘गाँव’ का जन्म होता है। इस प्रदर्शनी में पाषाण काल से कृषि युग तक की यात्रा दिखाई गई। बच्चों की आँखों में चमक थी — उन्होंने इतिहास को किताबों में नहीं, जीवंत रूप में चलते-फिरते देखा। उन्होंने यह भी सीखा कि यदि मिट्टी न होती, तो सभ्यता की नींव ही न होती।
एक कार्यशाला में बच्चों को मिट्टी की किस्मों, मिट्टी में उपयोगी औजार जैसे खुरपी, कुदाल, हल, फावड़ा आदि के मॉडल बनाकर सिखाया गया। बच्चों ने अपने हाथों से क्यारियों में मिट्टी तैयार की, बीज बोए और ‘मिट्टी से जुड़ाव’ को महसूस किया। एक बच्चे ने तो मिट्टी में लोटते हुए पास खड़े हमारे शिक्षक से कहा - "सर, यह मिट्टी बहुत ठंडी और सोंधी खुशबू वाली है। लगता है जैसे माँ की गोद में सिर रख दिया हो।”
शिक्षकों द्वारा प्रस्तुत लोककथाएँ, लोकगीत, और मिट्टी से जुड़ी कहानियाँ बच्चों के मन को भिगो गईं। उन्होंने ‘मिट्टी का घरौंदा’, ‘गाँव की गोद में’, ‘धरती माँ की पुकार’ जैसी कई लोककथाएँ और कविताएँ सुनाईं। बच्चों ने मिट्टी पर सूक्ति और कविताएँ लिखीं, गीत गाए और अपनी सृजनशीलता को प्रस्तुत किया।
बच्चों ने मिट्टी पर आधारित कविताएँ भी सुनीं – कुछ ने लिखी भी! एक बच्ची ने कविता में लिखा:
“माँ के जैसी माटी है, थपथपाकर हमें आकार देती है।
हम गिरें, बिखरें या टूटें, माटी हमें फिर से गढ़ देती है।”
कार्यक्रम के अंत में जब बच्चों से पूछा गया कि उन्हें क्या सीख मिली, तो उत्तर केवल ज्ञान तक सीमित नहीं थे। बच्चों ने अपने भाव भरे उत्तर में कहा —
- “अब हमें समझ आया कि मिट्टी को रौंदना आसान है, पर उसका ऋण चुकाना असंभव।”
- “अब दीपावली पर हम केवल मिट्टी के दीये ही जलाएँगे।”
- “हमें पर्यावरण से जुड़ना है, प्लास्टिक को छोड़ना है।”
- “सर, अब मैं रोज़ धरती माँ को प्रणाम करूंगा।”
यह महोत्सव बच्चों के लिए केवल रचनात्मक कार्य नहीं, एक भावनात्मक अनुभव बन गया – जिसने उन्हें सिखाया कि मिट्टी में ही संस्कृति की जड़ें और भविष्य की नींव दोनों छिपी हैं। ‘माटी महोत्सव’ ने यह सिद्ध कर दिया कि शैक्षणिक अनुभव केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं होते। जब बच्चे मिट्टी से खेलते हैं, उसे छूते हैं, उसमें सृजन करते हैं — तब वे जीवन को महसूस करते हैं। वे जानते हैं कि माटी केवल धरती नहीं, संस्कृति है, परंपरा है, और सबसे ऊपर – माँ है।
आज विद्यालय में सिर्फ एक उत्सव नहीं हुआ, हमने सीखा कि जब हम माटी से जुड़ते हैं, तब ही हम अपने प्रकृति, पर्यावरण, परंपरा और संस्कृति के प्रति ज़िम्मेदार बनते हैं। आज हममें एक बीज बोया गया है – संवेदनशीलता का, प्रकृति प्रेम का, और अपनी जड़ों से जुड़ने का।
मिट्टी से जुड़ना, जड़ों से जुड़ना है – और जड़ें हमें स्थायित्व देती हैं।
– सिद्धांत कुमार
📘 डायरी लेखन अभ्यास
आपने अपने विद्यालय में आयोजित एक विशेष उत्सव ‘माटी महोत्सव’ में भाग लिया। इस उत्सव ने आपको मिट्टी, प्रकृति, संस्कृति और परंपरा से जुड़ने का अनोखा अवसर दिया।
प्रश्न: इस अनुभव को अपनी डायरी में संक्षेप में वर्णन करें।
📒 दैनंदिनी (डायरी) को संबोधन
सर्वप्रथम विधा चुनाव के पश्चात - "प्रिय दैनंदिनी / डायरी")अवश्य लिखें। (जैसे – आप English में Dear Diary लिखते हैं।)
📅 तारीख और दिन का उल्लेख करें
संबोधन के बाद दिन - (सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि अथवा रविवार), तिथि / दिनांक:सोमवार, 8 अप्रैल 2025, उसके नीचे समय - 10:20 रात्रि
🙋♀️ प्रथम पुरुष का प्रयोग करें
डायरी में "मैं", "मेरी", "मुझे" जैसे प्रथम पुरुषसर्वनाम शब्दों का प्रयोग करें क्योंकि डायरी आपकी निजी अभिव्यक्ति है।
🕊️ लेखन शैली - भावनात्मक और आत्ममंथनात्मक होनी चाहिए।
अपने अनुभव, भावनाएँ और आत्मविश्लेषण खुले दिल से लिखें।
💭 सच्चाई और ईमानदारी
डायरी में जो भी लिखें, वह सच्चा हो; बनावटी भाषा से बचें। किसी की कही हुई बात अथवा अनुभव उसके शब्दों में लिखिए।
✍️ घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण दें
घटनाओं को उसी क्रम में लिखें जैसे वे घटित हुईं – इससे लेखन में स्पष्टता आती है।
🧠 विचार और अनुभव को जोड़ें
केवल घटनाएँ ही नहीं, उनसे जुड़ी भावनाएँ, आशंकाएँ और प्रतिक्रियाएँ भी साझा करें।
✨ भाषा सरल और आत्मीय हो
ऐसे लिखें जैसे आप अपने करीबी मित्र से बात कर रहे हों – बिना दिखावे के।
🔁 पुनरावलोकन करें
पुरानी प्रविष्टियाँ पढ़ना आपको आत्ममंथन और सुधार की ओर ले जाता है।
🖼️ चित्रात्मक वर्णन का प्रयोग करें
घटनाओं को इस तरह लिखें कि पाठक दृश्य की कल्पना कर सके।
🔐 निजता बनाए रखें
डायरी व्यक्तिगत लेखन है, इसमें गोपनीयता और संवेदनशीलता का ध्यान रखें। अंत में आप अपना नाम / हस्ताक्षर कर इसे व्यक्तिगत बना सकते हैं।
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