प्राचीन भारत में वस्त्र केवल पहनावे का साधन नहीं थे, बल्कि उनका गहरा वैज्ञानिक, नैतिक और आध्यात्मिक महत्व भी था। भारतीयों ने सदियों पहले ही यह समझ लिया था कि कपास से बने सूती वस्त्र सबसे अधिक स्वास्थ्यवर्धक, आरामदायक और पर्यावरण-अनुकूल होते हैं।
ऊन और रेशम निकालने के हिंसक विधि |
भारत सदियों से वस्त्र निर्माण और वस्त्र विज्ञान में अग्रणी रहा है। यहाँ के लोगों ने न केवल विभिन्न प्रकार के वस्त्रों का विकास किया, बल्कि उनके निर्माण की नैतिकता, स्वास्थ्य और आराम के दृष्टिकोण से भी गहन अध्ययन किया। भारतीय परंपरा में सूती वस्त्रों को सर्वोच्च स्थान दिया गया, जबकि रेशम और ऊन जैसे वस्त्रों को कई स्थान पर निषेध किया गया, विशेषकर धार्मिक और नैतिक कारणों से।
क्या आप जानते हैं जिस रेशम को ऐश्वर्य और राजसी ठाट-बाट का प्रतीक माना जाता है, इसकी निर्माण प्रक्रिया अत्यंत क्रूर और हिंसक होती है। दरअसल पारंपरिक रूप से रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम के कीड़ों को उनके कोकून (गूंथे हुए रेशे) से जीवित निकालकर उबाल दिया जाता है। इससे हजारों कीटों की निर्मम हत्या होती है, जिससे यह प्रक्रिया नैतिक दृष्टि से अनुचित ठहरती है। यद्यपि कुछ स्थानों पर अहिंसक रेशम (तसर, एरी, और मुगा) तैयार किया जाता है, फिर भी यह सीमित मात्रा में उपलब्ध है और महँगा होता है।
इसी प्रकार ऊनी वस्त्रों का निर्माण के लिए भेड़ों से ऊन प्राप्त किया जाता है। यद्यपि ऊन प्राप्त करने की प्रक्रिया आमतौर पर जानलेवा तो नहीं होती, लेकिन व्यावसायिक रूप से बड़े पैमाने पर भेड़ों की कटाई-छँटाई में अमानवीयता देखी गई है। पशुओं की जबरन ऊन उतारने से वे ने केवल कष्ट भोगते हैं और अपितु कई बार बीमार भी पड़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त ऊनी वस्त्र नमी को रोकते हैं, जिससे उनमें बैक्टीरिया और फफूँद पनप सकते हैं।
पारंपरिक भारतीय वेश में स्त्री-पुरुष |
भारतीय धार्मिक ग्रंथों में अहिंसा (अहिंसा परमो धर्मः) को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। कपास से बने सूती वस्त्रों का निर्माण किसी भी प्रकार की हिंसा से मुक्त होता है, जिससे यह नैतिक रूप से भी श्रेष्ठ ठहरते हैं। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि सूती और खादी वस्त्र पहनते थे, क्योंकि ये प्राकृतिक और सात्विक होते थे। कपास से बने वस्त्र जैव-नाशवान (Biodegradable) होते हैं और पर्यावरण पर इनका नकारात्मक प्रभाव नगण्य होता है। इसके विपरीत, ऊनी और रेशमी वस्त्रों के उत्पादन में जल और संसाधनों की अत्यधिक खपत होती है, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होता है।
सूती वस्त्र बनता बुनकर |
आज जब पूरी दुनिया सतत विकास (Sustainable Development) की ओर बढ़ रही है, तब भारतीयों का यह ज्ञान और भी प्रासंगिक हो गया है। भारतीय संस्कृति में सदियों पहले अपनाए गए अहिंसक, प्राकृतिक और स्वास्थ्यकर वस्त्र विज्ञान को पुनः अपनाने की आवश्यकता है। यही कारण है कि सूती और खादी वस्त्र न केवल भारतीय परंपरा के गौरव हैं, बल्कि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सर्वोत्तम हैं।
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