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अमेरिका में भारतीय |
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अमेरिका में भारतीय प्रतिभाएँ |
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अमेरिका में भारतीयों ने मनाई छठ पूजा |
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यह पृष्ठ हिंदी शिक्षार्थियों, शिक्षकों और उत्साही जनों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री प्रदान करता है। यदि यह किसी की सफलता में योगदान दे सके, तो यही हमारे प्रयासों का पुरस्कार होगा। जय हिंद, जय हिंदी, जय शिक्षा!
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डिजिटल मीडिया और हिंदी विकास |
सोशल मीडिया ने हिंदी को एक नई पहचान दी है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक, और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म्स पर हिंदी में सामग्री प्रस्तुत करने वाले सृजनकर्ताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबर ने हिंदी में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को प्रस्तुत कर न केवल भारतीय दर्शकों का ध्यान खींचा है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी पहचान बनाई है। इसके अतिरिक्त, BBC- हिंदी और जर्मनी का DW हिंदी चैनल आदि इस बात के प्रमाण है कि विदेशी मीडिया संस्थान भी हिंदी भाषा के माध्यम से अपनी पहुँच बढ़ा रहे हैं। इस प्रकार हिंदी ने वैश्विक संवाद में अपनी भूमिका को सशक्त की है।
यू-ट्यूब पर बढ़ता हिंदी संसार |
हिंदी में OTT चैनलों की बढ़ती लोकप्रियता |
यह धारणा कि हिंदी समाप्त हो रही है, पूर्णतः निराधार है। हिंदी डिजिटल युग में तीव्र गति से विकसित हो रही है। सोशल मीडिया, फिल्मों, शिक्षा और डिजिटल माध्यमों के कारण इसका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, इसे और सशक्त बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण और नई पीढ़ी में रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है। हिंदी आज भी सशक्त, प्रासंगिक और समृद्ध भाषा है।
नई शिक्षा नीति 2024 हिंदी के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकती है। यह नीति मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को प्राथमिकता देती है। इससे हिंदी में पढ़ने, लिखने और सीखने का दायरा विस्तृत होगा। बहुभाषिक दृष्टिकोण हिंदी को वैश्विक संदर्भ में प्रासंगिक बनाएगा और इसके व्यावसायिक तथा शैक्षणिक उपयोग को प्रोत्साहन देगा।
डिजिटल युग में हिंदी ने अपनी सुदृढ़ उपस्थिति दर्ज कराई है। यह न केवल भाषा के विकास की कहानी है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का माध्यम भी है। ध्रुव राठी जैसे डिजिटल सृजनकर्ता और DW हिंदी चैनल जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रयास इस दिशा में प्रेरणादायक हैं।
महात्मा गांधी के शब्दों को स्मरण करते हुए कहा जा सकता है कि हिंदी ने अब वैश्विक स्तर पर अपनी आवाज़ बुलंद कर दी है। आज की हिंदी, डिजिटल युग की हिंदी है - "एक ऐसी भाषा जो सीमाओं को लाँघकर हर व्यक्ति के हृदय तक पहुँच रही है।"
डिजिटल युग में हिंदी भाषा का उत्कर्ष
साक्षात्कारकर्ता: योगेश शर्मा
अतिथि: श्री अरविंद बारी, वरिष्ठ हिंदी शिक्षक और हिंदी सेवी
योगेश शर्मा: नमस्कार, अरविंद जी। 'इंडीकोच' में आपका स्वागत है।
अतिथि: नमस्कार, योगेश जी। आपकी स्टूडियो में मुझे बुलाने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद।
योगेश शर्मा: महोदय, आज हम आपके साथ 'डिजिटल युग में हिंदी भाषा के विकास और उसकी वैश्विक पहचान' विषय पर चर्चा करेंगे। तो सबसे पहले, आप हमें यह बताएँ, कि क्या आपको भी लगता है कि हिंदी भाषा डिजिटल माध्यमों के द्वारा तेज़ी से फैल रही है?
अतिथि: यह कहना बिल्कुल सही है कि हिंदी डिजिटल माध्यमों से दिन दूना रात चौगुने गति से फैल रही है। इंटरनेट और सामाजिक मीडिया ने हिंदी को न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी एक सशक्त मंच प्रदान किया है। विशेषकर पिछले कुछ वर्षों में, इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। रिपोर्ट्स के आंकड़ों को माने तो, 2024 तक हिंदी में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 75 करोड़ से अधिक हो चुकी है; और 2025 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक होने की संभावना है; जिसमें से अधिकांश उपयोगकर्ता क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री का उपयोग करेंगे। यह हिंदी के लिए एक स्वर्णिम अवसर प्रस्तुत करता है।यह दर्शाता है कि हिंदी भाषा अब डिजिटल युग में अपनी मजबूती से पैठ बना रही है।
योगेश शर्मा: यह वाकई बहुत उत्साहजनक है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी हिंदी का प्रभाव बढ़ा है। क्या आप इस बारे में कुछ और विस्तार से बता सकते हैं?
अतिथि: बिल्कुल। सोशल मीडिया ने हिंदी को एक नया आयाम दिया है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर जैसे ऑन लाइन मंचो पर हिंदी में कंटेंट तैयार करने वाले सृजनकर्ताओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। उदाहरण के तौर पर, ध्रुव राठी आदि जैसे यूट्यूबर ने हिंदी में राजनीति, समाज और शिक्षा के मुद्दों पर चर्चा की है, जिससे न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक दर्शक और श्रोता भी इनसे जुड़ गए हैं। इसके अलावा, जर्मनी का DW हिंदी चैनल भी इस बात का प्रमाण है कि हिंदी ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई है।
योगेश शर्मा: यह सच है कि हिंदी अब न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो रही है। क्या आपको लगता है कि हिंदी का विकास ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो रहा है?
अतिथि: बिल्कुल, हिंदी का प्रभाव अब शहरी इलाकों तक ही सीमित नहीं है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में भी हिंदी को सशक्त किया है। आजकल हम देख सकते हैं कि गांवों में भी महिलाएँ और युवा हिंदी में अपनी कला, ज्ञान और कौशल को साझा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, कई महिलाएँ यूट्यूब पर हिंदी में खाना बनाने की विधियाँ, सिलाई, और अन्य घरेलू कार्य सिखा रही हैं। इसी तरह, किसान भी अपने अनुभव और नई तकनीकों को हिंदी में साझा करके दूसरों को लाभ पहुँचा रहे हैं।
योगेश शर्मा: यह वास्तव में हिंदी की सशक्तता का प्रतीक है। लेकिन कुछ लोग यह मानते हैं कि हिंदी समाप्त हो रही है, क्या आपको ऐसा लगता है?
अतिथि: यह धारणा बिल्कुल गलत है। हिंदी न केवल समाप्त नहीं हो रही, बल्कि डिजिटल युग में यह तेजी से फैल रही है। सोशल मीडिया, फिल्मों, शिक्षा, और इंटरनेट के माध्यम से हिंदी का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। हाँ, यह सही है कि हिंदी को और अधिक सशक्त बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण और नई पीढ़ी में रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है, लेकिन हिंदी आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक और सशक्त बनी हुई है।
योगेश शर्मा: नई शिक्षा नीति 2024 के बारे में आपका क्या कहना है? क्या इससे हिंदी के विकास को बढ़ावा मिलेगा?
अतिथि: नई शिक्षा नीति 2024 निश्चित रूप से हिंदी के विकास को प्रोत्साहित करेगी। इस नीति में मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है, जो हिंदी के लिए बहुत लाभकारी साबित होगा। इससे हिंदी में पढ़ने, लिखने और सीखने का दायरा और विस्तृत होगा। बहुभाषिक दृष्टिकोण से हिंदी को वैश्विक संदर्भ में और अधिक प्रासंगिकता मिलेगी और इसके व्यावसायिक तथा शैक्षणिक उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
योगेश शर्मा: यह बहुत ही सकारात्मक पहल है। भविष्य में हिंदी के लिए क्या संभावनाएँ नजर आती हैं?
अतिथि: भविष्य में हिंदी का विकास और भी तेजी से होगा। 2025 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक हो सकती है, जिसमें अधिकांश उपयोगकर्ता क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री का उपभोग करेंगे। हिंदी के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है। साथ ही, अगर हम गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण करें और इसे शैक्षणिक व व्यावसायिक क्षेत्रों में और सशक्त बनाएं, तो हिंदी की स्थिति और भी मजबूत हो सकती है।
योगेश शर्मा: अरविंद जी, आपकी बातों से यह स्पष्ट होता है कि हिंदी का भविष्य बहुत उज्जवल है। इस साक्षात्कार के लिए आपका धन्यवाद।
अतिथि: धन्यवाद, योगेश जी। हिंदी के विकास और उसके डिजिटल युग में समृद्धि पर बात करना हमेशा प्रेरणादायक रहेगा। आशा है, हम सभी मिलकर हिंदी को और आगे बढ़ाने में इसी तरह योगदान देते रहेंगे।
प्रेस नोट
बेंगलुरु, जिसे भारत का "सिलिकॉन वैली" कहा जाता है, अपनी तीव्र गति से बढ़ती यातायात समस्या के लिए भी जाना जाता है। शहर की इस चुनौती का समाधान जल्द ही फ्लाइंग टैक्सी सेवा के रूप में देखा जा रहा है। यह सेवा इंदिरानगर और केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बीच शुरू की जाएगी, जिससे यात्रा का समय 1.5 घंटे से घटकर मात्र 5 मिनट रह जाएगा।
हवाई टैक्सी टैक्सी सेवा, जो इलेक्ट्रिक वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (eVTOL) तकनीक पर आधारित होगी, पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है। यह परियोजना सरला एविएशन और बैंगलोर इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (BIAL) की साझेदारी से शुरू की जा रही है। सरला एविएशन ने इसे न केवल तेज और सुरक्षित बनाया है, बल्कि इसे किफायती बनाने का भी वादा किया है।
बेंगलुरु विश्व में सबसे अधिक ट्रैफिक भीड़भाड़ वाले शहरों में गिना जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, शहर में भीड़भाड़ के समय 10 किलोमीटर की दूरी तय करने में औसतन 30 मिनट लगते हैं। फ्लाइंग टैक्सी सेवा न केवल इस समस्या का समाधान करेगी, बल्कि इसे एक तेज और टिकाऊ यात्रा का विकल्प भी बनाएगी।
फ्लाइंग टैक्सी सेवा का उद्देश्य भारत के अन्य महानगरों, जैसे मुंबई, दिल्ली, और पुणे तक विस्तार करना है। हालांकि, सेवा की शुरूआत के लिए आवश्यक अनुमतियों और बुनियादी ढांचे को विकसित करने में अभी दो से तीन साल का समय लग सकता है। यह पहल न केवल यातायात को सुगम बनाएगी, बल्कि बेंगलुरु को स्मार्ट सिटी की दिशा में आगे बढ़ाने में भी मदद करेगी।
फ्लाइंग टैक्सी सेवा बेंगलुरु के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। यह परियोजना न केवल यात्रा का समय घटाएगी, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगी। इस तकनीकी नवाचार के साथ, भारत वैश्विक हवाई गतिशीलता में एक नई पहचान बना सकता है। हालांकि, यह देखना होगा कि इसे लागू करने में कौन-कौन सी चुनौतियाँ आती हैं और इसे कितनी सफलता मिलती है।
प्रेस वार्ता को अंग्रेजी में 'प्रेस कॉन्फ्रेंस' कहते हैं जो लाइव मीडिया के सामने आ करके बात रखी जाती है, इसमें पत्रकार और जन प्रतिनिधि जनता के लिए सवाल पूछते हैं। उत्तर देते समय सभी को संबोधन किया जाता है!
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प्रेस वार्ता को संबोधित करते अधिकारीगण |
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लाल चन्दन की लकड़ी |
लाल चंदन की लकड़ी में औषधीय गुण होते हैं, जो पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में उपयोगी साबित हुए हैं। इसके अलावा, यह लक्जरी फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र, और धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोगी है। चीन के आखिरी शाही किंग वंश के दौरान, रक्त चंदन के महत्व को विशेष रूप से मान्यता दी गई थी। आज भी पूर्वी एशियाई देशों में इसकी अत्यधिक मांग है, जहां इसे सौंदर्य और उपयोगिता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
लाल चंदन का पेड़ बेहद धीरे-धीरे बढ़ता है और इसे पूरी तरह परिपक्व होने में 50 से 60 वर्ष लगते हैं। इस धीमे विकास के कारण यह न केवल दुर्लभ है, बल्कि अत्यंत महंगा भी है। वर्तमान में, एक किलो लाल चंदन की कीमत ₹90,000 से ₹1,50,000 तक हो सकती है। इस कारण यह लकड़ी तस्करों के बीच अत्यधिक मांग में रहती है। लाल चंदन की अवैध तस्करी एक गंभीर मुद्दा है। इसका निर्यात भारतीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित है और इसे 'कंसर्वेशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज' (CITES) में शामिल किया गया है। फिर भी, तस्कर इसे फल, सब्जी, दूध, ग्रेनाइट स्लैब्स, सौंदर्य प्रसाधनों, या अन्य तरीकों से छिपाकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहुंचाने का प्रयास करते हैं। हालांकि, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) और अन्य सरकारी एजेंसियां इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रही हैं।
रक्त चंदन न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का भी हिस्सा है। इसकी अत्यधिक मांग और अवैध कटाई के कारण यह पेड़ संकट में है। इसीलिए इसे संरक्षित करने के लिए सख्त कानून और जनजागरूकता की जरूरत है। भारत में चंदन सिर्फ एक लकड़ी नहीं, बल्कि हमारी प्राचीन परंपराओं, धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इसकी सुरक्षा और संरक्षण न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी बचाने में सहायक है। लाल चंदन प्रकृति का अनमोल उपहार है, जिसे बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। चाहे इसके औषधीय गुण हों, सांस्कृतिक महत्व हो, या इसकी आर्थिक उपयोगिता, यह पेड़ हमारे पर्यावरण और समाज के लिए बेहद मूल्यवान है। अवैध तस्करी और अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस दुर्लभ धरोहर का आनंद ले सकें।
स्थान: कक्षा का कोना
चरित्र: रवि (कक्षा 10 का छात्र), श्रीमती मनसा मिश्रा (हिंदी शिक्षिका)
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कमल, केला और पलास के पत्तल पर भोजन |
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कुल्हड़ वाली चाय |
🌱माटी महोत्सव: माटी कहे कुम्हार से... (डायरी के पन्ने तक)✨ा प्रिय दैनंदिनी, सोमवार, 8 अप्रैल, 2025 ...