बुधवार, 19 मार्च 2025

📢आधुनिक शिक्षा प्रणाली और 64 कलाएँ: सर्वांगीण विकास की आवश्यकता

आधुनिक शिक्षा प्रणाली और 64 कलाएँ: सर्वांगीण विकास की आवश्यकताा

साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः। 
शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका अर्जन नहीं, बल्कि चरित्र, संवेदनशीलता, सृजनात्मकता और संपूर्ण व्यक्तित्व का परिष्कार करना है। प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में 64 कलाओं का अध्ययन आवश्यक माना जाता था, जिनमें संगीत, नृत्य, चित्रकला, वास्तुकला, संवाद कला, युद्धकला, योग और अन्य विविध विधाएँ सम्मिलित थीं। इन कलाओं के अभ्यास से विद्यार्थियों का मानसिक, बौद्धिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास सुनिश्चित होता था। परंतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली मुख्यतः गणित, विज्ञान और तकनीकी विषयों पर केंद्रित हो गई है, जिससे ललित कलाओं की उपेक्षा होने लगी है। इस स्थिति में यह विचारणीय प्रश्न उठता है कि क्या आधुनिक शिक्षा प्रणाली छात्रों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित कर पा रही है?

भारतीय मनीषियों और प्राचीन ग्रंथों में शिक्षा को केवल सूचनाओं के संचय तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि इसे जीवन जीने की कला के रूप में परिभाषित किया गया। महर्षि भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में उल्लिखित है— "संगीत, नृत्य और नाट्य के माध्यम से व्यक्ति आत्मिक आनंद की प्राप्ति करता है और समाज में सामंजस्य स्थापित होता है।" महाभारत में अर्जुन केवल युद्धकला में ही नहीं, अपितु संगीत एवं नृत्य में भी निपुण थे। आचार्य चाणक्य ने कहा था— "शस्त्र और शास्त्र दोनों का सम्यक् ज्ञान ही व्यक्ति को वास्तविक रूप से शिक्षित बनाता है।" उनके अनुसार, संगीत, कला और साहित्य व्यक्ति को संयम, धैर्य और दूरदर्शिता सिखाते हैं, जिससे वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रखता है।

रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी शिक्षा प्रणाली में कला और संगीत को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया। उनका कथन था -  "बिना कला के शिक्षा, आत्मा विहीन शरीर के समान है।" आज की शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा, अंक आधारित मूल्यांकन और कैरियर केंद्रित हो गई है। अधिकांश अभिभावक एवं समाज गणित, विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान जैसे विषयों को अधिक महत्त्व देते हैं, जबकि कला, संगीत और खेल को गौण समझा जाता है।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली मुख्यतः STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) आधारित हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप कलात्मक और मानवीय विषयों की उपेक्षा हो रही है। इससे सृजनात्मकता (Creativity) में ह्रास आ रहा है। अधिकांश माता-पिता का यह मानना है कि संगीत, चित्रकला और नृत्य जैसे विषयों से व्यावसायिक सफलता प्राप्त करना कठिन है, अतः वे बच्चों को इनसे दूर रखते हैं। कला को मात्र "शौक" के रूप में देखा जाता है, जबकि विज्ञान और गणित को "आवश्यकता" माना जाता है। विद्यालयों में संगीत एवं ललित कलाओं को वैकल्पिक विषयों के रूप में रखा जाता है, जिससे उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता। परीक्षा प्रणाली में भी सृजनात्मकता और मौलिक सोच को अपेक्षाकृत कम महत्त्व दिया जाता है।

महान वैज्ञानिक लियोनार्डो दा विंची ने कहा था— "कला और विज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।" स्टीव जॉब्स (Apple के संस्थापक) का भी मानना था कि डिज़ाइन और तकनीक के समन्वय से ही उत्कृष्ट उत्पाद निर्मित किए जा सकते हैं। एलन मस्क ने अपनी कंपनियों (Tesla, SpaceX) में कला और नवाचार को विज्ञान के साथ एकीकृत किया।

नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) में कला, संगीत एवं व्यावसायिक कौशल को शिक्षा प्रणाली में अनिवार्य करने की अनुशंसा की गई है। विद्यालयों में संगीत, नृत्य और चित्रकला को एक मुख्य विषय के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिए। कला मात्र मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सृजनात्मकता और मानसिक विकास का एक अनिवार्य अंग है। विद्यार्थियों को कला और विज्ञान दोनों का संतुलित अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

डिजिटल युग में ग्राफिक डिज़ाइन, एनीमेशन, फिल्म निर्माण, गेम डिज़ाइन जैसे क्षेत्र कला और तकनीक के संगम का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। शिक्षा प्रणाली में STEAM (Science, Technology, Engineering, Arts, Mathematics) को समाहित किया जाए, जिससे विद्यार्थी केवल गणित और विज्ञान तक सीमित न रहें, बल्कि उनका सर्वांगीण विकास हो। जब तक संगीत, कला, नृत्य एवं अन्य कलाओं को शिक्षा प्रणाली में उचित स्थान नहीं मिलेगा, तब तक सर्वांगीण विकास की संकल्पना अधूरी ही बनी रहेगी। यदि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में प्राचीन भारतीय शिक्षा के 64 कलाओं के तत्वों का पुनः समावेश किया जाए, तो एक संतुलित, संवेदनशील और रचनात्मक समाज की आधारशिला रखी जा सकती है।

जैसा कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था: "कला के बिना विज्ञान अधूरा है, क्योंकि कल्पना ही ज्ञान की जननी होती है।" अतः यह समय की माँग है कि कला और विज्ञान को समन्वित रूप में अपनाया जाए, जिससे विद्यार्थियों का बहुआयामी विकास संभव हो सके।

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