साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः। शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका अर्जन नहीं, बल्कि चरित्र, संवेदनशीलता, सृजनात्मकता और संपूर्ण व्यक्तित्व का परिष्कार करना है। प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में 64 कलाओं का अध्ययन आवश्यक माना जाता था, जिनमें संगीत, नृत्य, चित्रकला, वास्तुकला, संवाद कला, युद्धकला, योग और अन्य विविध विधाएँ सम्मिलित थीं। इन कलाओं के अभ्यास से विद्यार्थियों का मानसिक, बौद्धिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास सुनिश्चित होता था। परंतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली मुख्यतः गणित, विज्ञान और तकनीकी विषयों पर केंद्रित हो गई है, जिससे ललित कलाओं की उपेक्षा होने लगी है। इस स्थिति में यह विचारणीय प्रश्न उठता है कि क्या आधुनिक शिक्षा प्रणाली छात्रों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित कर पा रही है?
रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी शिक्षा प्रणाली में कला और संगीत को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया। उनका कथन था - "बिना कला के शिक्षा, आत्मा विहीन शरीर के समान है।" आज की शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा, अंक आधारित मूल्यांकन और कैरियर केंद्रित हो गई है। अधिकांश अभिभावक एवं समाज गणित, विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान जैसे विषयों को अधिक महत्त्व देते हैं, जबकि कला, संगीत और खेल को गौण समझा जाता है।
महान वैज्ञानिक लियोनार्डो दा विंची ने कहा था— "कला और विज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।" स्टीव जॉब्स (Apple के संस्थापक) का भी मानना था कि डिज़ाइन और तकनीक के समन्वय से ही उत्कृष्ट उत्पाद निर्मित किए जा सकते हैं। एलन मस्क ने अपनी कंपनियों (Tesla, SpaceX) में कला और नवाचार को विज्ञान के साथ एकीकृत किया।
नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) में कला, संगीत एवं व्यावसायिक कौशल को शिक्षा प्रणाली में अनिवार्य करने की अनुशंसा की गई है। विद्यालयों में संगीत, नृत्य और चित्रकला को एक मुख्य विषय के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिए। कला मात्र मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सृजनात्मकता और मानसिक विकास का एक अनिवार्य अंग है। विद्यार्थियों को कला और विज्ञान दोनों का संतुलित अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
जैसा कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था: "कला के बिना विज्ञान अधूरा है, क्योंकि कल्पना ही ज्ञान की जननी होती है।" अतः यह समय की माँग है कि कला और विज्ञान को समन्वित रूप में अपनाया जाए, जिससे विद्यार्थियों का बहुआयामी विकास संभव हो सके।
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