बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

इलेक्ट्रिक गाड़ियों में है भविष्य के यातायात का सुख...

अमिताभ सरन
अमेरिकी संस्था नासा के पूर्व इंजीनियर अमिताभ सरन ने एक ऐसा सपना देखा जो न सिर्फ पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने की दिशा में है, बल्कि भारत को इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र में एक महाशक्ति बनाने का भी है। उन्होंने भारत लौटकर 'अल्टिग्रीन' नाम से एक इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी की नींव रखी, जो उबड़-खाबड़ भारतीय सड़कों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए कमर्शियल इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण करती है।

यह कंपनी भारतीय बाजार की जरूरतों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए ऐसे वाहन बना रही है जो सिर्फ पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि व्यवसायिक उपयोग के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहे हैं। अल्टिग्रीन का नवीनतम प्रोडक्ट 'अल्टिग्रीन neEV' भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में एक क्रांतिकारी कदम है। यह वाहन एक बार चार्ज होने पर 150 किमी तक का सफर तय कर सकता है, जो व्यावसायिक परिवहन में भारी सामान ढोने के लिए पर्याप्त है। भारतीय सड़कों की विषम परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया है, ताकि यह हर प्रकार के मार्ग और मौसम में सहजता से संचालित हो सके। यह न सिर्फ संचालन में किफायती है, बल्कि पर्यावरण को भी शून्य उत्सर्जन से बचाने में सहायक है, जो इसे व्यवसायिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।

इसके साथ ही, अल्टिग्रीन ने एक और क्रांतिकारी पहल की है जिसे 'फिट एंड फॉरगेट' किट के नाम से जाना जाता है। इस किट की मदद से पुरानी गाड़ियों को हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन में परिवर्तित किया जा सकता है। यह किट उन लोगों के लिए बहुत ही लाभकारी है जो अपनी पुरानी गाड़ियों को छोड़ना नहीं चाहते लेकिन पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाना चाहते हैं। इस प्रकार, अमिताभ सरन की यह पहल पुराने और नए दोनों प्रकार के वाहनों के लिए इलेक्ट्रिक भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रही है।

अमिताभ सरन का सपना है कि भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में एक सुपरपावर बने। वे मानते हैं कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बड़ा बाजार है और यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो देश इस क्षेत्र में अग्रणी बन सकता है। उनका यह लक्ष्य न केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्व रखता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की दिशा में अग्रसर हो रहा है। अल्टिग्रीन जैसे नवाचार भारत को इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं, जो न केवल स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देंगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की छवि को मजबूत करेंगे।

इस तरह की तकनीकी और सोच से, अमिताभ सरन और उनकी कंपनी 'अल्टिग्रीन' न केवल भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य बदल रहे हैं, बल्कि दुनिया भर में स्थायी परिवहन की दिशा में एक मजबूत उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं। यह न केवल एक स्वप्नदृष्टा का सपना है, बल्कि यह एक ऐसे भविष्य की दिशा में एक ठोस कदम है जहां पर्यावरण और विकास साथ-साथ चलते हैं।

सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

लक्ष्मी चायवाला, बनारसी जायके की अनोखी मिसाल

साभार - गूगल चित्र 
संस्कृति और परंपरा के प्रदेश, उत्तर प्रदेश के वाराणसी की तंग गलियों में बसे 'लक्ष्मी चायवाले' आज एक ऐसी पहचान बन चुके हैं जिसे लगभग 70 साल से भी अधिक समय से लोग अपने दिल से संजोए हुए हैं। वैसे तो बनारस जिसे आज वाराणसी भी कहा जाता है, यह भारत के प्राचीनतम शहरों में से एक है। गंगा के पावन तट पर बसा यह शहर अपनी गलियों, घाटों, साधु-संन्यासियों, साड़ी, पान, चाट और लस्सी के साथ मोक्षधाम के लिए प्रसिद्ध रहा है।  

लक्ष्मी चायवाले की चाय की चुस्की के लिए लोग यहां सुबह-सुबह 4बजे से से ही खींचे चले आते हैं। इस चाय की दुकान की खास बात यह है कि इसके मसालेदार चाय की महक दूर-दूर तक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। चाय में अदरक, इलायची और पारंपरिक मसालों का ऐसा अनूठा संगम है कि एक बार पीने के बाद इसका स्वाद जुबां से नहीं हटता। साथ ही, दूध की गाढ़ी मलाई जो इस चाय के लिए लगातार गर्म किया जाता रहता है उसके ऊपर बनती है, इसे और भी खास बना देती है। यही कारण है कि हर उम्र के लोग यहां आकर चाय का लुत्फ उठाते हैं।

लक्ष्मी चायवाले की दुकान बनारस के पुराने हिस्से में स्थित है, जहां गली के दोनों ओर छोटे-छोटे घर और दुकानें सजी रहती हैं। पर इन तंग गलियों और संकरे रास्तों के बावजूद लोग यहां पहुंचने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जैसे ही आप इस गली में कदम रखते हैं, एक खास खुशबू आपकी नाक में प्रवेश करती है जो लक्ष्मी चाय की है। लोग कहते हैं कि यहां की चाय में बनारसी अंदाज का एक अलग ही जादू है। यही वजह है कि हर दिन यहां सुबह से ही ग्राहकों की भीड़ लग जाती है। 

चाय के साथ यहां मिलने वाले टोस्ट की भी अपनी अलग पहचान है। ये टोस्ट दूध की मलाई के साथ परोसे जाते हैं और इनकी कुरकुरी बनावट चाय के साथ खाने का मजा दोगुना कर देती है। बनारस के लोगों के लिए यह केवल नाश्ता नहीं, बल्कि एक परंपरा है, जो सालों से चली आ रही है। लक्ष्मी चायवाले के यहाँ आने वाले लोग अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि यह चाय पीकर ऐसा लगता है मानो एक नई ताजगी और ऊर्जा मिल रही हो। 
यहां हर रोज़ सुबह छोटे बच्चे से लेकर बूढ़े तक, महिलाएं और पुरुष, सभी लक्ष्मी चायवाले की दुकान पर पहुंचते हैं। बच्चों के लिए यह चाय मीठी और मजेदार होती है, जबकि बूढ़े लोगों के लिए यह एक पुरानी यादों की तरह होती है। यहां के निवासी कहते हैं कि लक्ष्मी चायवाले की चाय उनके जीवन का हिस्सा बन गई है। चाहे मौसम गर्म हो या सर्द, चाय की यह दुकान कभी खाली नहीं रहती।
क्ष्मी चायवाले का 70 साल पुराना यह सफर किसी चमत्कार से कम नहीं है। लोगों का इस चाय दुकान के प्रति जो प्रेम और जुड़ाव है, वह इसे वाराणसी के दिल में एक खास जगह बनाता है। यह न केवल एक चाय की दुकान है, बल्कि बनारस की आत्मा का हिस्सा है, जो सुबह की शुरुआत को खास और यादगार बना देती है।

शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

जिद पढ़ने और पढ़ाने की..!

राजस्थान और बिहार प्रदेश अपनी भौगोलिक परस्थितियों और सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां के कुछ साहसी शिक्षक ऐसे भी हैं जो दुर्गम इलाकों में रहते हुए भी शिक्षा का दीप जलाए रखने के लिए हर रोज कठिन रास्तों से गुजरते हैं। इन शिक्षकों की समर्पण की यात्रा सड़कों की कमी, उफनती नदियों और कई अन्य चुनौतियों के बावजूद निरंतर चलती रहती है। वे जानते हैं कि शिक्षा ही वह साधन है जो इन क्षेत्रों के बच्चों के भविष्य को संवार सकता है, और इसलिए वे सभी बाधाओं को पार करने के लिए कृतसंकल्प हैं।
 साभार - दैनिक भाष्कर

राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों के लगभग 70 शिक्षक प्रतिदिन नाव से अनास नदी पार कर स्कूल जाते हैं। इनमें से कई शिक्षक अपनी बाइक भी नाव पर लेकर जाते हैं ताकि नदी के उस पार पहुँचने के बाद वे दुर्गम और दूरदराज के गाँवों में स्थित स्कूलों तक पहुंच सकें। इन शिक्षकों में महिला शिक्षक भी शामिल हैं, जो अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए इस कठिन यात्रा को रोजाना अंजाम देती हैं। यह नदी 50 से 100 फीट गहरी है और गर्मी के मौसम में यह यात्रा और भी जोखिमभरी हो जाती है, फिर भी इन शिक्षकों का हौसला कम नहीं होता।

बिहार के औराई जिले में स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है। यहाँ 127 गाँवों के शिक्षकों को बागमती नदी को पार कर अपने स्कूलों तक पहुंचना पड़ता है। विशेषकर बारिश के मौसम में यह नदी काफी खतरनाक हो जाती है, लेकिन शिक्षक अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटते। इन ग्रामीण इलाकों में सड़कें नहीं होने के कारण नाव ही एकमात्र साधन है, जिससे वे बच्चों तक पहुँच सकते हैं और उन्हें शिक्षित कर सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि इन शिक्षकों का समर्पण सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि वे अपने काम के माध्यम से समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। इन दुर्गम इलाकों के बच्चों को शिक्षित करना न केवल उनका कर्तव्य है, बल्कि यह उनके लिए एक मिशन भी है, जिसे वे हर हाल में पूरा करना चाहते हैं।
शिक्षकों का यह संघर्ष और समर्पण हमारे समाज के लिए एक प्रेरणा है। उनके द्वारा की जा रही मेहनत को देखते हुए सरकार और समाज को भी उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए। संसाधनों की कमी को दूर करने के साथ-साथ, इन शिक्षकों के प्रयासों को मान्यता और सम्मान भी मिलना चाहिए, ताकि वे और अधिक प्रेरित हो सकें।
इन शिक्षकों का कार्य केवल बच्चों को पढ़ाना नहीं, बल्कि उनके भविष्य को आकार देना है। ये शिक्षक शिक्षा की शक्ति का प्रतीक हैं, और उनका यह संघर्ष शिक्षा के प्रति उनके अटूट विश्वास और दृढ़ निश्चय को दर्शाता है।

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