शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

जिद पढ़ने और पढ़ाने की..!

राजस्थान और बिहार प्रदेश अपनी भौगोलिक परस्थितियों और सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां के कुछ साहसी शिक्षक ऐसे भी हैं जो दुर्गम इलाकों में रहते हुए भी शिक्षा का दीप जलाए रखने के लिए हर रोज कठिन रास्तों से गुजरते हैं। इन शिक्षकों की समर्पण की यात्रा सड़कों की कमी, उफनती नदियों और कई अन्य चुनौतियों के बावजूद निरंतर चलती रहती है। वे जानते हैं कि शिक्षा ही वह साधन है जो इन क्षेत्रों के बच्चों के भविष्य को संवार सकता है, और इसलिए वे सभी बाधाओं को पार करने के लिए कृतसंकल्प हैं।
 साभार - दैनिक भाष्कर

राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों के लगभग 70 शिक्षक प्रतिदिन नाव से अनास नदी पार कर स्कूल जाते हैं। इनमें से कई शिक्षक अपनी बाइक भी नाव पर लेकर जाते हैं ताकि नदी के उस पार पहुँचने के बाद वे दुर्गम और दूरदराज के गाँवों में स्थित स्कूलों तक पहुंच सकें। इन शिक्षकों में महिला शिक्षक भी शामिल हैं, जो अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए इस कठिन यात्रा को रोजाना अंजाम देती हैं। यह नदी 50 से 100 फीट गहरी है और गर्मी के मौसम में यह यात्रा और भी जोखिमभरी हो जाती है, फिर भी इन शिक्षकों का हौसला कम नहीं होता।

बिहार के औराई जिले में स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है। यहाँ 127 गाँवों के शिक्षकों को बागमती नदी को पार कर अपने स्कूलों तक पहुंचना पड़ता है। विशेषकर बारिश के मौसम में यह नदी काफी खतरनाक हो जाती है, लेकिन शिक्षक अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटते। इन ग्रामीण इलाकों में सड़कें नहीं होने के कारण नाव ही एकमात्र साधन है, जिससे वे बच्चों तक पहुँच सकते हैं और उन्हें शिक्षित कर सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि इन शिक्षकों का समर्पण सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि वे अपने काम के माध्यम से समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। इन दुर्गम इलाकों के बच्चों को शिक्षित करना न केवल उनका कर्तव्य है, बल्कि यह उनके लिए एक मिशन भी है, जिसे वे हर हाल में पूरा करना चाहते हैं।
शिक्षकों का यह संघर्ष और समर्पण हमारे समाज के लिए एक प्रेरणा है। उनके द्वारा की जा रही मेहनत को देखते हुए सरकार और समाज को भी उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए। संसाधनों की कमी को दूर करने के साथ-साथ, इन शिक्षकों के प्रयासों को मान्यता और सम्मान भी मिलना चाहिए, ताकि वे और अधिक प्रेरित हो सकें।
इन शिक्षकों का कार्य केवल बच्चों को पढ़ाना नहीं, बल्कि उनके भविष्य को आकार देना है। ये शिक्षक शिक्षा की शक्ति का प्रतीक हैं, और उनका यह संघर्ष शिक्षा के प्रति उनके अटूट विश्वास और दृढ़ निश्चय को दर्शाता है।

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