बुधवार, 21 सितंबर 2022

वनों की अंधाधुंध कटाई से बढ़ते ग्लोबल वर्मिग का खतरा

ग्लोबल वार्मिंग के कारण हमें मौसम का असमान चक्र देखने को मिलता है, जो मानव जाति के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। हम हर वर्ष देश के विभिन्न हिस्सों में कभी भयंकर बाढ़, तो कभी सूखे की खबरें सुनते रहते हैं, जिसमें जन-धन की अथाह हानि होती है और यह सब ग्लोबल वार्मिंग के ही नतीजे हैं। इसके साथ ही पेड़-पौधों की अत्यधिक कटाई से वन-के-वन खत्म होते जा रहे हैं, जिसके कारण वहाँ रहने वाले जंगली जीव-जंतु या तो आवास के अभाव में विलुप्त होते जा रहे हैं या फिर वे मनुष्यों की बस्ती की ओर भागते हैं, जहाँ उनका सामना मनुष्यों से होता है जिसमें या तो वे खुद मारे जाते हैं या फिर इस भिड़ंत में मनुष्य घायल होते हैं।

प्राकृतिक आवासों के अभाव के कारण बहुत सारे ऐ
से जीव-जंतु हैं
, जो विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं। अपने बचपन में जिस गौरैया को मैं अपने आस-पास चहचहाते सुना करता था, आज वह मुझे गाहे-बगाहे ही दिखती है। यहाँ तक कि आमों को काटकर गिराने वाली गिलहरी भी अब मैं कम ही देख पाता हूं। यही हाल कांव-कांव करने वाले कौवे पक्षी का भी है। इन सब की घटती संख्या के पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कहीं-ना-कहीं पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई का भी योगदान है।

हमारे देश के कुछ लोग मूल रूप से जंगलों में अथवा उसके आस-पास निवास करते हैं, जिन्हें हम 'आदिवासी' भी कहते हैं। उनका जीवन पूर्णतः जंगलों पर ही आश्रित रहता है। यहाँ तक कि उनका भोजन, वस्त्र और आश्रय जैसी मूलभोत आवश्यकता भी जंगल के उत्पादों पर ही निर्भर होती हैं। इसके साथ ही वे वर्षों से जंगली औषधियों और पेड़-पौधों की रक्षा करते आए हैं। लेकिन मनुष्य की लालची प्रवृत्ति ने उनको भी विकास के नाम पर बेघर बना दिया है और उनके रहने के स्थान, जंगलों को काटा जाने लगा और जिसका परिणाम तथाकथित नक्सल जैसी समस्या के रूप में सामने आया है, जिससे आज भी हम जूझ रहे हैं।

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से उपरोक्त समस्याएँ तो आई ही हैं साथ ही इसके परिणाम स्वरूप भू-क्षरण और मरुस्थलीकरण भी काफी तेज़ी से बढ़ा है, जो अंततोगत्वा हमारे लिए किसी भी तरह से लाभदायक नहीं है। मनुष्य ने पेड़-पौधों की इस अंधाधुंध कटाई से अपने लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर ली है अगर पेड़-पौधों की कटाई का यही हाल रहा, तो आगे चलकर मानव जाति का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। हम हर साल पेड़ों की कटाई रोकने, पर्यावरण संरक्षण आदि को लेकर विभिन्न प्रकार के सम्मेलन करते हैं। लेकिन इन सभी सम्मेलनों का नतीजा शून्य ही रहा है। हर साल बड़े पैमाने पर होने वाले वृक्षारोपण हमें सिर्फ कागज़ों में ही दिखाई देते हैं। इसके साथ ही एक बार पौधा रोपते समय हम उसकी गिनती तो कर लेते हैं लेकिन उन पौधों में से कितने पौधे वृक्ष बने इसकी गिनती करना हम भूल जाते हैं।

 

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