विनाश की ओर बढ़ता इंसान।"
वर्तमान युग में वैश्विक तापमानGlobal Warming: पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ना में निरंतर वृद्धि हमारे पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन चुकी है। ग्लोबल वार्मिंग न केवल पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रही है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के असामान्य चक्र को भी जन्म दे रही है। हर वर्ष, हम देश के विभिन्न हिस्सों में अत्यधिक बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे हैं, जिससे व्यापक स्तर पर जन-धन की हानि हो रही है। यह स्पष्ट संकेत है कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ चुका है और यदि इसे समय रहते नहीं सुधारा गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ भयावह परिस्थितियों का सामना करेंगी। अनेक प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं। कभी घर-आँगन में चहचहाने वाली गौरैया आज विरले ही दिखाई देती है। कौवे और गिलहरियाँ भी अब कम नजर आती हैं। वनों के नष्ट होने से ये जीव-जंतु मानव बस्तियों की ओर भाग रहे हैं, जहाँ वे या तो मारे जाते हैं या फिर मनुष्यों के लिए खतरा बन जाते हैं। यह मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को जन्म दे रहा है।
वनों का विनाश और जीव-जंतुओं का संकट
वनों की अंधाधुंध कटाई का प्रभाव केवल मानव जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन असंख्य जीव-जंतुओं के लिए भी घातक साबित हो रही है जो अपने प्राकृतिक आवासों से वंचित हो रहे हैं।
आदिवासी समुदायों पर प्रभाव
जंगलों के कटने से सबसे अधिक प्रभावित वे समुदाय हो रहे हैं जो सदियों से इन वनों पर आश्रित हैं। आदिवासी समाज न केवल वनों से अपनी आजीविका चलाते हैं, बल्कि वे इनकी रक्षा भी करते आए हैं। परंतु तथाकथित विकास के नाम पर उन्हें विस्थापित किया जा रहा है, जिससे उनकी परंपरागत जीवनशैली पर संकट गहराता जा रहा है। उनके प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास न केवल उनके जीवन को कठिन बना रहा है, बल्कि सामाजिक अशांति को भी जन्म दे रहा है, जिसका परिणाम हमें कई क्षेत्रों में नक्सलवाद जैसी समस्याओं के रूप में देखने को मिल रहा है।
पर्यावरणीय असंतुलन और मानव अस्तित्व पर संकट
वनों की कटाई ने केवल पारिस्थितिकी को क्षति पहुँचाई है, बल्कि भू-क्षरण और मरुस्थलीकरण को भी बढ़ावा दिया है। यह प्रक्रिया धरती की उर्वरता को नष्ट कर रही है, जिससे कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। जल संकट भी इसी का एक गंभीर परिणाम है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो भविष्य में मानव जाति के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो सकता है।
संरक्षण के प्रयास: समस्या और समाधान
हर साल विभिन्न मंचों पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर सम्मेलन होते हैं, लेकिन इनका प्रभाव सीमित ही नजर आता है। वृक्षारोपण कार्यक्रम कागजों तक ही सिमट कर रह जाते हैं। हम पेड़ तो लगाते हैं, परंतु उनके संरक्षण की ओर ध्यान नहीं देते। यह समय केवल नारे लगाने का नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाने का है।
हमारा दायित्व
ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए हमें व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर पहल करनी होगी। वृक्षारोपण के साथ-साथ जल संरक्षण, कार्बन उत्सर्जन में कमी और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना समय की माँग है। यदि हम प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें और सामूहिक रूप से कार्य करें, तो इस संकट से उबर सकते हैं।
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