गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

टाटा सोम्बा घर : अद्वितीय सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर 🌱

पर्यावरण अनुकूल घर: टाटा सोम्बा घर
टाटा सोम्बा घर (इनका भारत की टाटा कंपनी से कोई लेना-देना नहीं हैं।) पश्चिम अफ्रीका के टोगो और बेनिन में स्थित सोम्बा जनजाति की पारंपरिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। दरअसल यहाँ किले को "टाटा" कहते हैं; और "सोम्बा" उस जनजाति का नाम है जो इन अद्भुत संरचनाओं का निर्माण करते हैं। इस प्रकार 'टाटा सोम्बा' का अर्थ हुआ - "सोम्बा जनजाति का किलेनुमा घर"। इन घरों को उनकी किले जैसी विशेष संरचना के कारण ही 'टाटा सोम्बा घर' कहा जाता है। ये न केवल वास्तुकला की दृष्टि से अद्वितीय हैं, बल्कि इनका सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय महत्व भी है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने उत्तरी टोगो और बेनिन में इन्हें विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है, जो इनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को रेखांकित करता है।

घरों की आतंरिक संरचना 

टाटा सोम्बा घरों की संरचना विशेष रूप से सुरक्षा, पर्यावरणीय अनुकूलता और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इन घरों में तीन प्रमुख तल होते हैं। भूतल का उपयोग पशुओं को रखने के लिए किया जाता है, मध्य तल अनाज और खाद्य-सामग्री के भंडारण के लिए समर्पित होता है, और ऊपरी तल परिवार के रहने का स्थान होता है। इनका आकार आमतौर पर बेलनाकार या आयताकार होता है, और छोटे दरवाजे-खिड़कियाँ सुरक्षा के साथ-साथ तापमान को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं।

इन घरों की समतल छत का बहुआयामी उपयोग होता है। यह छत अनाज सुखाने, रात में सोने, और सामाजिक आयोजनों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है। यह न केवल घर के उपयोगिता को बढ़ाता है, बल्कि समुदाय के जीवन में भी अहम भूमिका निभाता है।

टाटा सोम्बा घरों का निर्माण प्राकृतिक और स्थानीय संसाधनों से किया जाता है। मिट्टी, लकड़ी, गाय का गोबर, घास और प्राकृतिक रंगों का उपयोग इनकी निर्माण सामग्री में शामिल है। मोटी दीवारें गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्माहट प्रदान करती हैं। इन दीवारों को विशेष मिट्टी और गाय के गोबर के मिश्रण से जल-प्रतिरोधी बनाया जाता है, जिससे ये दीवारें लंबे समय तक टिकाऊ रहती हैं। स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री और पारंपरिक निर्माण तकनीक इन घरों को पर्यावरण के अनुकूल बनाते हैं। इनकी निर्माण प्रक्रिया से न केवल कार्बन उत्सर्जन कम होता है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन को भी बनाए रखती है।

टाटा सोम्बा घर केवल आवासीय स्थान नहीं हैं, बल्कि यह सोम्बा जनजाति की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के प्रतीक भी हैं। इन घरों की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से बने सांस्कृतिक प्रतीक और चित्र उकेरे जाते हैं, जो जनजातीय जीवन, प्रकृति और धार्मिक विश्वासों को दर्शाते हैं। घर के भीतर और आसपास के विशेष स्थान धार्मिक अनुष्ठानों के लिए आरक्षित होते हैं। इन घरों का निर्माण स्वयं एक सामुदायिक अनुष्ठान होता है जिसमें पूरे समुदाय की भागीदारी होती है। यह न केवल वास्तुकला का हिस्सा है, बल्कि समुदायिक एकता और सहयोग का भी प्रतीक है।

टाटा सोम्बा घरों का निर्माण पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखकर किया गया है। मोटी दीवारें और फ्लैट छत प्राकृतिक इन्सुलेशन प्रदान करती हैं, जिससे कृत्रिम साधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती। इन घरों के आसपास वर्षा जल संचयन की तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जो जल संरक्षण में सहायक है। स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक तकनीकों का उपयोग पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करता है। इन घरों का डिजाइन और निर्माण आधुनिक स्थायी वास्तुकला के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

आज के समय में टाटा सोम्बा घरों की प्रासंगिकता कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण के प्रयास इन घरों को संरक्षित करने में सहायक हैं। इनके वास्तुशिल्प सिद्धांतों को शहरी आवास में शामिल करने की कोशिशें की जा रही हैं। कार्यशालाओं और प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से पारंपरिक निर्माण तकनीकों को संरक्षित और प्रचारित किया जा रहा है। इन प्रयासों से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है, बल्कि पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित किया जा सकता है।

टाटा सोम्बा घरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शहरीकरण और आधुनिक निर्माण विधियों के कारण इनकी उपेक्षा हो रही है। नई पीढ़ी पारंपरिक निर्माण की महत्ता को कम आंकती है। इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाएं और पर्यावरणीय बदलाव इन घरों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं। संरक्षण के लिए स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। यूनेस्को और अन्य संस्थानों द्वारा जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। स्थानीय कारीगरों और समुदाय की भागीदारी से इन घरों को संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

टाटा सोम्बा घर और भारतीय मिट्टी के घरों में कई समानताएं और भिन्नताएं हैं। दोनों में प्राकृतिक सामग्री का उपयोग होता है और दोनों का सांस्कृतिक महत्व है। हालांकि, टाटा सोम्बा घर बहुमंजिला किले जैसे होते हैं, जबकि भारतीय मिट्टी के घर अक्सर एक मंजिला होते हैं। टाटा सोम्बा घर अपनी अनूठी वास्तुकला, सांस्कृतिक महत्व और पर्यावरणीय प्रासंगिकता के कारण विश्व स्तर पर अद्वितीय हैं। जैसा कि इंजिनियर देवेंद्र पुरी गोस्वामी बताते हैं कि, "प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान का सही उपयोग ही टिकाऊ भविष्य का आधार है।" ये घर हमें सामुदायिक एकता, स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं। टाटा सोम्बा घर केवल अतीत की धरोहर नहीं हैं, बल्कि यह भविष्य के लिए एक मार्गदर्शन भी हैं। इनसे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि आधुनिकता के साथ-साथ अपनी जड़ों को संजोकर रखना कितना आवश्यक है।

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बुधवार, 18 दिसंबर 2024

प्रवासी भारतीयों की अमेरिका में बढ़ती साझेदारी

अमेरिका में भारतीय
भारत देश जिसे पश्चिमी लोग सपेरों, गँवारों और झाड़-फूँक में आस्था रखने वालों का देश कहते थे। आज यहीं के युवा पश्चिमी देशों में अपनी बुद्धि का लोहा मनवाने को तैयार है।संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में भारतीय मूल के लोगों का प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है। शिक्षा, व्यापार, चिकित्सा, तकनीकी और राजनीति में उनकी उपलब्धियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय समुदाय ने अमेरिका में न केवल अपनी साख़ बनाई है, बल्कि वहाँ सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया है। 

यह जानकर आश्चर्य होगा कि अमेरिका में लगभग 40% होटलों के मालिक भारतीय मूल के हैं, जिनमें से 70% का सरनेम "पटेल" है। गुजराती समुदाय 1970 के दशक में अमेरिका प्रवास किए और होटल उद्योग में कदम रखा। इन लोगों ने छोटे मोटल से शुरुआत की और आज बड़े-बड़े होटल चेन के मालिक बन गए हैं। कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. दीपक चोपड़ा, जो आप्रवासी समुदायों पर शोध करते हैं, कहते हैं, "गुजराती समुदाय ने अपनी एकता और व्यावसायिक सूझबूझ से जो सफलता हासिल की है, वह अन्य प्रवासी समुदायों के लिए एक प्रेरणा है। ‘पटेल मोटल कार्टेल’ का अस्तित्व केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि यह उनके सामूहिक प्रयासों और अनुशासन का प्रतीक है।"

चिराग पटेल, जो अमेरिका में 100 से अधिक होटलों के मालिक हैं, कहते हैं, "हमने अपनी जड़ों से जुड़कर, परिवार के मूल्यों और मेहनत के बल पर होटल उद्योग में सफलता पाई है। हमारा उद्देश्य न केवल व्यवसाय करना है, बल्कि समुदाय को सशक्त बनाना भी है।" अमेरिका में पंजाबी समुदाय का भी एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट योगदान है। होटल उद्योग में भले ही गुजराती समुदाय का वर्चस्व है, लेकिन पंजाबी समुदाय ने कृषि, परिवहन, व्यवसाय, और राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है। कैलिफोर्निया के कृषि उद्योग और ट्रांसपोर्ट सेक्टर में उनकी मेहनत ने पहचान बनाई। जहाँ सिख गुरुद्वारों ने सेवा और भाईचारे को बढ़ावा दिया, जबकि पंजाबी संगीत और संस्कृति ने अमेरिकी समाज को समृद्ध किया है। उनका वर्चस्व प्रेरणादायक है। बराक ओबामा, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति, ने एक बार कहा था, "सिख समुदाय की सेवा और भाईचारे की भावना ने अमेरिकी समाज को बेहतर बनाया है।"

अमेरिका में भारतीय प्रतिभाएँ 
भारतीय मूल के लोग शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र में भी अग्रणी हैं। अमेरिका में लगभग 17% डॉक्टर भारतीय मूल के हैं। डॉ. संजय गुप्ता, जो सीएनएन के प्रमुख चिकित्सा संवाददाता हैं, कहते हैं, "भारतीय डॉक्टरों की मेहनत और समर्पण ने अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत बनाया है। यह समुदाय गुणवत्ता और सेवा में विश्वास करता है।"

भारतीय मूल के लोगों ने स्टार्टअप्स, रिटेल, रियल एस्टेट, और वित्तीय सेवाओं में भी अपनी छाप छोड़ी है। उदाहरणार्थ - गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई व  माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला जैसे दिग्गजों ने भारतीय मूल के होते हुए भी वैश्विक कंपनियों में नेतृत्व क्षमता का अद्वितीय प्रदर्शन किया है। तकनीकी क्षेत्र में, भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने सिलिकॉन वैली में अपनी उल्लेखनीय छाप छोडी है। वेंकट रामनारायणन, जो सिलिकॉन वैली के प्रमुख निवेशक हैं, कहते हैं, "भारतीय मूल के लोग नवाचार में सबसे आगे हैं। उनकी शिक्षा और सांस्कृतिक मूल्यों ने उन्हें तकनीकी क्षेत्र में सफल बनाया है।"

अमेरिकी कांग्रेस सदस्य राजा कृष्णमूर्ति का कहना है, "भारतीय मूल के लोगों ने न केवल व्यापारिक सफलता पाई है, बल्कि अमेरिकी समाज को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद की है। उनके काम और नैतिकता ने उन्हें अमेरिकी सपने का प्रतीक बना दिया है।" भारतीय मूल के लोग अब अमेरिकी राजनीति में भी अपनी जगह बना रहे हैं। कमला हैरिस, जो भारतीय मूल की पहली उपराष्ट्रपति हैं, का चुनाव इस बात का प्रतीक है कि भारतीय समुदाय ने अमेरिका में अपनी राजनीतिक पहचान बना ली है। बराक ओबामा, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति, ने कहा था, "भारतीय समुदाय ने अमेरिकी समाज में जिस तरह का योगदान दिया है, वह अनुकरणीय है। वे न केवल मेहनती हैं, बल्कि समाज को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।"

अमेरिका में भारतीयों ने मनाई छठ पूजा
भारतीय जहाँ भी गए अपने साथ अपनी भाषा, भोजन और संस्कृति का भी संवहन किया है
। हमारे पूजा-पाठ, शादी-सस्कार, व्रत-त्योहार जैसे - होली, दिवाली, छठ और करवा-चौथ आदि सब अमेरिका में बड़े पैमाने पर मनाए जाते हैं। भारतीय खानपान, योग, गुजराती डंडिया और पंजाबी गिद्दा, भांगड़ा, बॉलीवुड गीत-संगीत ने भी अमेरिकी संस्कृति को समृद्ध किया है। यहाँ देशी मनोरजन के लिए आर.बी.सी रेडियो, रेडियो हमसफर, देसी जंक्शन, रेडियो सलाम नमस्ते जैसे कई हिंदी रेडियो चैनेल हैं तथा मशहूर अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा, जो बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों में सक्रिय हैं, कहती हैं, "भारतीय संस्कृति का अमेरिकी समाज में स्वागत यह दिखाता है कि विविधता को कैसे अपनाया जा सकता है।"

अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों ने अपनी मेहनत, ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर के माध्यम से हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहे हैं। गुजराती समुदाय का होटल उद्योग में वर्चस्व, पंजाबी समुदाय का कृषि और परिवहन में योगदान, और भारतीय पेशेवरों का तकनीकी, चिकित्सा और राजनीति में प्रभाव, यह सब भारतीयों के महती योगदान का प्रमाण है। भारतीय संस्कृति, परंपरा और संगीत, जैसे होली, दिवाली, भांगड़ा, योग और बॉलीवुड, ने अमेरिकी समाज को समृद्ध किया है। भारतीय मूल के युवा अपनी मेहनत, समर्पण और सामूहिक प्रयासों के साथ भविष्य में भारतीय समुदाय को और भी ऊंचाइयों तक ले जाने में सक्षम होंगे। भारतीय संस्कृति और परंपराओं के साथ-साथ युवा पीढ़ी का यह निरंतर योगदान अमेरिका में भारतीय समुदाय को और भी सशक्त करेगा। व्यापार, शिक्षा, चिकित्सा, और राजनीति में उनका योगदान अमेरिका के विकास की कहानी का अभिन्न हिस्सा है। यह दिखाता है कि भारतीय मूल के लोग किसी भी समाज में किस तरह से प्रभावशाली और उपयोगी हो सकते हैं।

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डिजिटल युग में हिंदी उत्कर्ष

डिजिटल मीडिया और हिंदी विकास
अब तक हिंदी को लोग हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़े में उसके विकास और विलुप्त होने की संभावनाओं का रोना रोया करते थे। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिंदी के छात्रों की घटती संख्या पर रोष किया जाता था। इंटरनेट और डिजिटल मीडिया पर ताजा आंकड़े हिंदी के विकास की दशा और दिशा दोनों को बदलते दिखाई दे रहे हैं। बीते दशकों में डिजिटल माध्यमों और सोशल मीडिया के जरिए हिंदी भाषा ने अप्रत्याशित उन्नति की है। यह विकास केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी देखा जा सकता है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हिंदी को नवीन आयाम प्रदान किए हैं और इसे वैश्विक मंच पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदी का यह नूतन स्वरूप न केवल भाषा के प्रसार में सहायक सिद्ध हुआ है, बल्कि इसके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव को भी सुदृढ़ किया है।

डिजिटल युग में हिंदी का प्रवेश

1990 के दशक में इंटरनेट के आगमन के समय भारतीय भाषाओं के लिए डिजिटल स्पेस सीमित था। किंतु 21वीं सदी के दूसरे दशक में हिंदी में सामग्री की मांग ने तेजी पकड़ी। स्मार्टफोन और किफायती इंटरनेट ने इस क्रांति को अभूतपूर्व गति दी। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का 90% भाग स्थानीय भाषाओं में सामग्री को प्राथमिकता देता है, जिसमें हिंदी सर्वोच्च स्थान पर है। IAMAI और Nielsen की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदी में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 60 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जो इसे भारत की सबसे तीव्र गति से बढ़ती डिजिटल भाषा बनाती है।

सोशल मीडिया पर हिंदी की प्रासंगिकता

सोशल मीडिया ने हिंदी को एक नई पहचान दी है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक, और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म्स पर हिंदी में सामग्री प्रस्तुत करने वाले सृजनकर्ताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबर ने हिंदी में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को प्रस्तुत कर न केवल भारतीय दर्शकों का ध्यान खींचा है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी पहचान बनाई है। इसके अतिरिक्त, BBC- हिंदी और जर्मनी का DW हिंदी चैनल आदि इस बात के  प्रमाण है कि विदेशी मीडिया संस्थान भी हिंदी भाषा के माध्यम से अपनी पहुँच बढ़ा रहे हैं। इस प्रकार हिंदी ने वैश्विक संवाद में अपनी भूमिका को सशक्त की है।

ग्रामीण और अर्द्ध -शहरी क्षेत्रों में हिंदी की भूमिका

यू-ट्यूब पर बढ़ता हिंदी संसार 
इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हिंदी को केवल शहरी केंद्रों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में भी गहराई तक पहुँचाया है। इन क्षेत्रों की महिलाएँ और युवा अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए हिंदी का उपयोग कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, कई महिलाएँ यूट्यूब पर हिंदी में योग, संगीत, पाक कला, हस्तकला और सिलाई जैसे कौशल सिखाकर प्रसिद्धि के आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर रही हैं। वहीं, चिकित्सक से लेकर किसान तक अपने अनुभवों और आधुनिक तकनीकों को हिंदी में साझा कर अन्य जन-जन  को जागरूक कर रहे हैं।

वैश्विक स्तर पर हिंदी का प्रभाव

हिंदी में OTT चैनलों की बढ़ती लोकप्रियता  

आज हिंदी देश की सीमा लांघकर वैश्विक गाँव के गलियारों में पहुँच रही है। हिंदी कला, साहित्य, संगीत, सिनेमा, तकनीकी आदि की डिजिटल सामग्री ने इसे वैश्विक मंच पर एक प्रमुख भाषा बना दिया है। संयुक्त राष्ट्र ने 2018 में; हिंदी दिवस; मनाकर इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रदान की। इसके अतिरिक्त, नेटफ्लिक् और अमेज़न प्राइम आदि ओटीटी प्लेटफार्म्स हिंदी में उच्च गुणवत्ता की सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति का वैश्विक स्तर पर प्रचार हो रहा है।

क्या हिंदी समाप्त हो रही है?

यह धारणा कि हिंदी समाप्त हो रही है, पूर्णतः निराधार है। हिंदी डिजिटल युग में तीव्र गति से विकसित हो रही है। सोशल मीडिया, फिल्मों, शिक्षा और डिजिटल माध्यमों के कारण इसका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, इसे और सशक्त बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण और नई पीढ़ी में रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है। हिंदी आज भी सशक्त, प्रासंगिक और समृद्ध भाषा है।

नई शिक्षा नीति 2024 का हिंदी पर प्रभाव

नई शिक्षा नीति 2024 हिंदी के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकती है। यह नीति मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को प्राथमिकता देती है। इससे हिंदी में पढ़ने, लिखने और सीखने का दायरा विस्तृत होगा। बहुभाषिक दृष्टिकोण हिंदी को वैश्विक संदर्भ में प्रासंगिक बनाएगा और इसके व्यावसायिक तथा शैक्षणिक उपयोग को प्रोत्साहन देगा। 

भविष्य की संभावनाएँ

हिंदी का यह डिजिटल उत्कर्ष सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है। किंतु इस क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण, प्रामाणिक और विविधतापूर्ण सामग्री का निर्माण करना आवश्यक है। भाषा के साथ-साथ इसे व्यावसायिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में और अधिक सशक्त बनाना समय की माँग है। 2025 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक हो सकती है, जिसमें से अधिकांश उपयोगकर्ता क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री का उपभोग करेंगे। यह हिंदी के लिए एक स्वर्णिम अवसर प्रस्तुत करता है।

निष्कर्ष

डिजिटल युग में हिंदी ने अपनी सुदृढ़ उपस्थिति दर्ज कराई है। यह न केवल भाषा के विकास की कहानी है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का माध्यम भी है। ध्रुव राठी जैसे डिजिटल सृजनकर्ता और DW हिंदी चैनल जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रयास इस दिशा में प्रेरणादायक हैं।

महात्मा गांधी के शब्दों को स्मरण करते हुए कहा जा सकता है कि हिंदी ने अब वैश्विक स्तर पर अपनी आवाज़ बुलंद कर दी है। आज की हिंदी, डिजिटल युग की हिंदी है - "एक ऐसी भाषा जो सीमाओं को लाँघकर हर व्यक्ति के हृदय तक पहुँच रही है।"

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डिजिटल युग में हिंदी भाषा का उत्कर्ष

साक्षात्कारकर्ता: योगेश शर्मा

अतिथि: श्री अरविंद बारी, वरिष्ठ हिंदी शिक्षक और हिंदी सेवी

योगेश शर्मा: नमस्कार, अरविंद जी। 'इंडीकोच' में आपका स्वागत है।

अतिथि: नमस्कार, योगेश जी। आपकी स्टूडियो में मुझे बुलाने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद।

योगेश शर्मा: महोदय, आज हम आपके साथ 'डिजिटल युग में हिंदी भाषा के विकास और उसकी वैश्विक पहचान' विषय पर चर्चा करेंगे। तो सबसे पहले, आप हमें यह बताएँ, कि क्या आपको भी लगता है कि हिंदी भाषा डिजिटल माध्यमों के द्वारा तेज़ी से फैल रही है?

अतिथि: यह कहना बिल्कुल सही है कि हिंदी डिजिटल माध्यमों से दिन दूना रात चौगुने गति से फैल रही है। इंटरनेट और सामाजिक मीडिया ने हिंदी को न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी एक सशक्त मंच प्रदान किया है। विशेषकर पिछले कुछ वर्षों में, इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। रिपोर्ट्स के आंकड़ों को माने तो, 2024 तक हिंदी में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 75 करोड़ से अधिक हो चुकी है; और 2025 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक होने की संभावना है; जिसमें से अधिकांश उपयोगकर्ता क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री का उपयोग करेंगे। यह हिंदी के लिए एक स्वर्णिम अवसर प्रस्तुत करता है।यह दर्शाता है कि हिंदी भाषा अब डिजिटल युग में अपनी मजबूती से पैठ बना रही है।

योगेश शर्मा: यह वाकई बहुत उत्साहजनक है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी हिंदी का प्रभाव बढ़ा है। क्या आप इस बारे में कुछ और विस्तार से बता सकते हैं?

अतिथि: बिल्कुल। सोशल मीडिया ने हिंदी को एक नया आयाम दिया है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर जैसे ऑन लाइन मंचो पर हिंदी में कंटेंट तैयार करने वाले सृजनकर्ताओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। उदाहरण के तौर पर, ध्रुव राठी आदि जैसे यूट्यूबर ने हिंदी में राजनीति, समाज और शिक्षा के मुद्दों पर चर्चा की है, जिससे न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक दर्शक और श्रोता भी इनसे जुड़ गए हैं। इसके अलावा, जर्मनी का DW हिंदी चैनल भी इस बात का प्रमाण है कि हिंदी ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई है।

योगेश शर्मा: यह सच है कि हिंदी अब न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो रही है। क्या आपको लगता है कि हिंदी का विकास ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो रहा है?

अतिथि: बिल्कुल, हिंदी का प्रभाव अब शहरी इलाकों तक ही सीमित नहीं है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में भी हिंदी को सशक्त किया है। आजकल हम देख सकते हैं कि गांवों में भी महिलाएँ और युवा हिंदी में अपनी कला, ज्ञान और कौशल को साझा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, कई महिलाएँ यूट्यूब पर हिंदी में खाना बनाने की विधियाँ, सिलाई, और अन्य घरेलू कार्य सिखा रही हैं। इसी तरह, किसान भी अपने अनुभव और नई तकनीकों को हिंदी में साझा करके दूसरों को लाभ पहुँचा रहे हैं।

योगेश शर्मा: यह वास्तव में हिंदी की सशक्तता का प्रतीक है। लेकिन कुछ लोग यह मानते हैं कि हिंदी समाप्त हो रही है, क्या आपको ऐसा लगता है?

अतिथि: यह धारणा बिल्कुल गलत है। हिंदी न केवल समाप्त नहीं हो रही, बल्कि डिजिटल युग में यह तेजी से फैल रही है। सोशल मीडिया, फिल्मों, शिक्षा, और इंटरनेट के माध्यम से हिंदी का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। हाँ, यह सही है कि हिंदी को और अधिक सशक्त बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण और नई पीढ़ी में रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है, लेकिन हिंदी आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक और सशक्त बनी हुई है।

योगेश शर्मा: नई शिक्षा नीति 2024 के बारे में आपका क्या कहना है? क्या इससे हिंदी के विकास को बढ़ावा मिलेगा?

अतिथि: नई शिक्षा नीति 2024 निश्चित रूप से हिंदी के विकास को प्रोत्साहित करेगी। इस नीति में मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है, जो हिंदी के लिए बहुत लाभकारी साबित होगा। इससे हिंदी में पढ़ने, लिखने और सीखने का दायरा और विस्तृत होगा। बहुभाषिक दृष्टिकोण से हिंदी को वैश्विक संदर्भ में और अधिक प्रासंगिकता मिलेगी और इसके व्यावसायिक तथा शैक्षणिक उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।

योगेश शर्मा: यह बहुत ही सकारात्मक पहल है। भविष्य में हिंदी के लिए क्या संभावनाएँ नजर आती हैं?

अतिथि: भविष्य में हिंदी का विकास और भी तेजी से होगा। 2025 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक हो सकती है, जिसमें अधिकांश उपयोगकर्ता क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री का उपभोग करेंगे। हिंदी के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है। साथ ही, अगर हम गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण करें और इसे शैक्षणिक व व्यावसायिक क्षेत्रों में और सशक्त बनाएं, तो हिंदी की स्थिति और भी मजबूत हो सकती है।

योगेश शर्मा: अरविंद जी, आपकी बातों से यह स्पष्ट होता है कि हिंदी का भविष्य बहुत उज्जवल है। इस साक्षात्कार के लिए आपका धन्यवाद।

अतिथि: धन्यवाद, योगेश जी। हिंदी के विकास और उसके डिजिटल युग में समृद्धि पर बात करना हमेशा प्रेरणादायक रहेगा। आशा है, हम सभी मिलकर हिंदी को और आगे बढ़ाने में इसी तरह योगदान देते रहेंगे।


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