मंगलवार, 21 नवंबर 2023

छठ पर्व की छटा निराली - स्वास्थ्य और संस्कृति का संगम

छठ महापर्व पर सूर्य को अर्घ्य देती महिला  
उत्तर भारत के बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ के पर्व को विशेष महत्व दिया जाता है। यह पर्व इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन लोग किसी मंदिर में जाकर पूजा-पाठ नहीं करते, बल्कि प्रकृति की गोद में आराधना करते हैं। दरअसल छठ के पर्व में सूर्य देव को बहुत महत्व दिया जाता है। इसकी शुरुआत सुबह सूर्य देव के जलाभिषेक से होती है और समापन भी इसी तरह से होता है। हमारे ग्रंथों में भी सूर्य को सुबह जल चढ़ाने को विशेष बताया गया है। लेकिन ये सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कुछ विज्ञान भी है। धूप से मिलने वाले विटामिन-D के बारे में तो हम जानते हैं लेकिन क्या धूप के और भी फायदे हैं? आज का विज्ञान सूर्य की रौशनी और हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में क्या कहता है, आइए इस ब्लॉग में समझने की प्रयास   करते हैं

विटामिन-डी
विटामिन-डी को 'सनशाइन विटामिन' भी कहा जाता है। क्योंकि ये धूप से मिलता है और कुछ चुनिंदा विटामिन में से है, जिन्हें हमारा शरीर खुद बना सकता है। लेकिन एक विडंबना ये भी है कि फ्री में बनने वाले इस विटामिन की भी हमारे देश के लोगों में कमी है। टाटा 1mg के एक सर्वे में देखा गया कि 76% भारतीय विटामिन-डी की कमी से ग्रस्त हैं। दिन के आधे घंटे में बन जाने वाला ये विटामिन भी आज हम लोगों में कम है। शायद इसी लिए हमारे पूर्वज सूर्य को इतनी अहमियत देते थे। सूर्य की पूजा के पीछे चाहे जो कारण रहे हों। लेकिन आज विज्ञान भी ये मानता है कि सूरज कि रोशनी हमारे लिए कितनी जरूरी है।
कैल्शियम हमारी हड्डियों के लिए कितना जरूरी है। कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और कमजोर हड्डियों में फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। हल्की सी चोट और हड्डी चटकी, लेकिन इससे बचने में धूप हमारी मदद कर सकती है। दरअसल, धूप से बनने वाला विटामिन-डी कैल्शियम को सोखने में अहम भूमिका निभाता है। और उन्हें मजबूत बनाता है। कितना भी कैल्शियम खा लें, बिना विटामिन-डी के उसे अब्सॉर्ब करना मुश्किल हो जाता है।

बैक्टीरिया हमारे चारों तरफ हैं। इनमें से ज्यादातर तो हमें कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन कुछ हमें बहुत बीमार बना सकते हैं। फिक्र मत कीजिए अपने घर की खिड़की खोल के जरा धूप अंदर आने दीजिए और इन बीमार करने वाले बैक्टीरिया को मार भगाइए। धूप बैक्टीरिया भी खत्म करती है। यूनिवर्सिटी ऑफ ओरेगॉन में इस बारे एक रिसर्च हुई, जिसमें देखा गया कि एक अंधेरे कमरे में बैक्टीरिया 12% थे। लेकिन जब उस कमरे में धूप आने दी गई तो बैक्टीरिया की आबादी घटकर 6% हो गई।

धूप हड्डियों और विटामिन-डी को तो दुरुस्त रखती ही है। ये ब्लड प्रेशर भी घटाती है। ये जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ हैम्पटन में हुई एक रिसर्च में सामने आई। रिसर्च में पता चला कि धूप में रहने से नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) गैस हमारी स्किन के जरिए ब्लड वेसेल्स में पहुंच जाती है। ब्लड वेसेल्स को सिकुड़ने से रोक कर ब्लड प्रेशर कम करने में मदद करती है। हाई ब्लड प्रेशर से हार्ट डिजीज और किडनी डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में धूप ब्लड प्रेशर काबू में रख कर, इन बीमारियों का खतरा भी कम कर सकती है।

आपने कभी ध्यान दिया है कि कुछ लोग बिना घड़ी देखे सही समय पर जग जाते हैं। इसके पीछे भी एक विज्ञान है। वह है हमारे शरीर की जैविक-घड़ी। दरअसल, हम आँखों से देखकर तो दिन-रात का अंदाजा लगाते हैं। हमारे शरीर में कोशिकाएं भी दिन और रात के बारे में जानकारी रखती हैं और उसी हिसाब से काम करती हैं।लेकिन आजकल रात में फोन की स्क्रीन और तेज लाइटों से हम अपने दिमाग को कंफ्यूज कर देते हैं। और हमारा स्लीप साइकिल बिगड़ जाता है। फिक्र मत कीजिए धूप इसे सही करने में भी हमारी मदद कर सकती है।नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपी एक रिसर्च में देखा गया कि सुबह की रोशनी में रहने से दिमाग में मेलाटोनिन नाम का एक केमिकल निकलता है, जो हमारी नींद सुधारने में मदद करता है।

हमारे ग्रंथों में भी सुबह सूर्य की आराधना को खास अहमियत दी गई है और बताया गया है कि सुबह में सूर्य नमस्कार कई बीमारियों को दूर रखता है।अमेरिकन नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन मैगजीन में छपी एक स्टडी के मुताबिक विटामिन-डी की कमी का एंग्जायटी और मूड से सीधा कनेक्शन है। ‘काम योर माइन्ड विथ फूड‘ की लेखिका, न्यूट्रिशनिस्ट और साइकिएट्रिस्ट डॉ. उमा नायडू बताती हैं कि इस दिशा में हुए कई शोध ये इशारा करते हैं कि विटामिन-डी डिप्रेशन और एंग्जायटी के खिलाफ भी असरदार है। विटामिन-डी दिमाग में न्यूरो-स्टेरॉइड नाम के केमिकल की तरह काम करता है और एंग्जायटी से लड़ने में मदद करता है।कुछ लोगों को मौसम बदलने के साथ भी डिप्रेशन होता है। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे ‘सीजनल इफेक्टिव डिसॉर्डर’ कहते हैं। लोग इसके शिकार सर्दियों में ज्यादा होते हैं, इसलिए इसे विंटर डिप्रेशन भी कहा जाता है।

अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपी एक रिसर्च में ये भी देखा गया कि दिन में पर्याप्त रौशनी और धूप वाली जगह में रहकर इस तरह के डिप्रेशन से बचा जा सकता है। मतलब धूप सिर्फ ‘कोई मिल गया’ फिल्म के जादू के लिए नहीं जरूरी, ये हमारे लिए भी बड़ी फायदेमंद है। तो देर किस बात की खिड़की खोलिए और थोड़ा जगमगाती धूप अंदर आने दीजिए।

साभार - दैनिक भाष्कर

रविवार, 12 नवंबर 2023

यह राह नहीं है आसाँ : भविष्य चुनने में अभिभावक की भूमिका

करियर चुनना एक चुनौती 
अभिभावक अपने बच्चों के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होते हैं। वे बच्चों के जीवन के शुरुआती वर्षों से ही उनके विकास और सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चों का लालन-पालन, शिक्षा, स्वास्थ्य, और शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अभिभावकों का योगदान अद्वितीय होता है। मानव का जीवन पथ किसी मनमोहक बगीचे में घूमने जैसा आसान नहीं होता, बल्कि वह पथरीली राह की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर तपती धूप में पैदल चलने के संघर्ष जैसा भी हो सकता है। चूकि अभिभावकों ने उन संघर्षो के अनुभव किया है अतः वे कभी नहीं चाहते कि उनकी संतानों को उन समस्याओं का सामान करना पड़े। अतः वे अपने अनुभवों से अपनी संतानों को उनका भविष्य चुनने में मदद करना चाहते हैं, लेकिन यह मदद अभिभावकों की इच्छाओं को थोपने के रूप में नहीं होनी चाहिए। अभिभावक अपने अनुभवों से अपनी संतानों को विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी दे सकते हैं, उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान विकसित करने में मदद कर सकते हैं, और उन्हें अपने निर्णयों के संभावित परिणामों के बारे में सोचने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, अंततः यह निर्णय बच्चे को लेना चाहिए कि वह अपना भविष्य कैसे चुनना चाहता है।

अभिभावकों के अनुभव उनके बच्चों के लिए एक अमूल्य संसाधन हो सकते हैं। अभिभावक अपने बच्चों को अपने स्वयं के जीवन में किए गए विकल्पों के बारे में बता सकते हैं, और उन्हें यह समझने में मदद कर सकते हैं कि इन विकल्पों के क्या परिणाम हुए। वे अपने बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान विकसित करने में भी मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक अभिभावक जो एक डॉक्टर है, वह अपने बच्चे को चिकित्सा क्षेत्र में कैरियर बनाने के बारे में जानकारी दे सकता है। वह अपने बच्चे को विज्ञान और गणित में मजबूत होने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, जो चिकित्सा क्षेत्र में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल हैं।

अभिभावक अपने बच्चों को अपने निर्णयों के संभावित परिणामों के बारे में सोचने में भी मदद कर सकते हैं। वे अपने बच्चों को यह समझने में मदद कर सकते हैं कि विभिन्न विकल्पों के क्या फायदे और नुकसान हैं। उदाहरण के लिए, एक अभिभावक अपने बच्चे को यह समझने में मदद कर सकता है कि एक डॉक्टर बनने के लिए बहुत अधिक अध्ययन और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। वह अपने बच्चे को यह भी समझने में मदद कर सकता है कि एक डॉक्टर के रूप में काम करने के लिए लंबे घंटे और तनावपूर्ण स्थिति हो सकती है।


हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि अभिभावक अपने बच्चों पर अपनी इच्छाओं को थोपने से बचें। अभिभावकों को यह याद रखना चाहिए कि उनके बच्चे अलग-अलग व्यक्ति हैं, जिनके अपने अलग-अलग सपने और लक्ष्य हैं। अभिभावकों को अपने बच्चों को यह महसूस करने की अनुमति देनी चाहिए कि वे अपने भविष्य के बारे में अपने स्वयं के निर्णय ले सकते हैं।

आजकल की संताने इतनी काबिल हैं कि वे अपना भविष्य चुनने में स्वतंत्रता से विचार करने के काबिल हैं। वे विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी तक पहुंच सकते हैं और अपने लिए सबसे अच्छा विकल्प चुन सकते हैं। हालांकि, अभिभावकों का मार्गदर्शन और समर्थन अभी भी महत्वपूर्ण है। अभिभावक अपने बच्चों को अपने निर्णयों के बारे में सोचने और उन्हें लेने में मदद कर सकते हैं।

अभिभावक अपने बच्चों को निम्नलिखित तरीके अपना भविष्य चुनने में मदद करने के लिए सकते हैं:-

  • बच्चों को विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी देकर।
  • बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान विकसित करने में मदद करें।
  • अपने बच्चों को अपने निर्णयों के संभावित परिणामों के बारे में सोचने में मदद करें।
  • अपने बच्चों को यह महसूस करने दें कि वे अपने भविष्य के बारे में अपने स्वयं के निर्णय ले सकते हैं।

अभिभावकों और संतानों के बीच एक खुली और ईमानदार बातचीत भविष्य के चुनाव के लिए महत्वपूर्ण है। अभिभावकों को अपने बच्चों से उनके सपनों और लक्ष्यों के बारे में पूछना चाहिए। उन्हें अपने बच्चों को यह महसूस कराना चाहिए कि वे उनके समर्थन और मार्गदर्शन पर भरोसा कर सकते हैं।

रविवार, 5 नवंबर 2023

आम नहीं ख़ास कहें हुज़ूर!

आम
आम एक ऐसा फल है जो अपने आप में ही खास है। इसे किसी अन्य फल से तुलना करने की आवश्यकता नहीं है। जो अपने विशेष रंग, सुगंध और अप्रतिम स्वाद के लिए जाना जाता है। यह भारत में सबसे लोकप्रिय फलों में से एक है। एक ऐसा फल है जो आम लोगों को भी खुशी और आनंद देता है। आम भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। जिसका उल्लेख हमारे धार्मिक ग्रंथों, इतिहास और साहित्य में कई बार उल्लिखित हुआ है। अपने मूल रूप से यह भारत में ही उत्पन्न हुआ था। इतिहास की माने तो इसे सिकंदर महान के सैनिकों ने इसे पहली बार सिंधु नदी के आस-पास देखा था। आम के पेड़ों का उल्लेख संस्कृत के महाकवि कालिदास और अरबी-फ़ारसी के मशहूर शायर 'अमीर खुसरो' जैसे प्राचीन भारतीय लेखकों के कार्यों में भी मिलता है। आम के बारे में चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा-वृत्तांत और मध्य युगीन कई अन्य विदेशी यात्रियों के संस्मरणों में भी मिलता है। मुगल सम्राट बाबर ने अपने आत्मवृत्त 'बाबरनामा' में आम के बारे में कहा है कि 'यह भारत का सबसे स्वादिष्ट फल है।' इसी प्रकार शाहजहां से लेकर अकबर तक लगभग सभी मुगल सम्राट आम के मुरीद थे। आम भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। कई कवियों और लेखकों ने आम के बारे में कविताएँ और कहानियाँ लिखी हैं। आम का उल्लेख हिंदी, उर्दू, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में साहित्य में किया गया है। रामायण और महाभारत में भी आम का उल्लेख मिलता है। 

आम का निर्यात 
आम एक मौसमी फल है और आम का मौसम गर्मियों में होता है। भारत समेत दुनिया भर में आम की कई किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें दशहरी, सफेदा, लंगड़ा, केसर, कलमी, देशी और हापुस (अल्फ़ान्सो) आदि शामिल हैं। भारत दुनिया का सर्वाधिक आम उत्पादक देश है। उसके बाद चीन और थाईलैंड हैं। भारत में आम की 1500 से ज़्यादा किस्में पाई जाती हैं। हर किस्म का स्वाद, आकार, और रंग अलग-अलग होता है। आम को कई तरह से खाया जा सकता है। इसे कच्चा या पका दोनों तरीके से खाया जा सकता है। इससे मिठाइयाँ, चटनी, अचार और मुरब्बा आदि व्यंजनों को बनाया जा सकता है। उत्तर भारत में जहाँ आम के पना बनाया जाता है, वहीं आम का उपयोग भारत भर में कई तरह के पारंपरिक व्यंजनों में किया जाता है। आम एक पौष्टिक फल भी है। यह विटामिन-सी, पोटेशियम और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत है। दुनिया भर में भारत आम का सबसे बड़ा निर्यातक है। लगभग 50 हजार करोड़ रुपयों का निर्यात भारत हर वर्ष करता है।

आम एक तो वैसे ही सबसे खास होता है, उस पर से अगर अवध प्रांत का हो तो फिर बात ही क्या कहने? ब्रिटिश काल के अंतिम दौर के अवधी कवि पुष्पेन्दु जैन लिखते हैं कि - 

‘लखनऊ का सफेदा और लंगड़ा बनारस का यही दो आम जग में उत्तम कहायो है। 
लखनऊ के बादशाह दूध से सिचायो वाको, वाही के वंशज सफेदा नाम पायो है। 
या से लड़न को बनारस से धायो एक, बीच में ही टूटी टांग, लंगड़ा कहायो है। 
कहै पुष्पेन्दु वाने जतन अनेक कीने, तबहूं सफेदे की नजाकत न पायो है।’

मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी आम के ऐसे दीवाने थे कि आम के मौसम में आम के सिवा कुछ और बात करना उन्हें कतई पसन्द नहीं था। 

‘नाम न कोई यार को पैगाम भेजिए। 
इस फस्ल में जो भेजिए, बस आम भेजिए।’

आज के दौर के लोकप्रिय शायर 'मुनव्वर राणा' भी आम की दीवानगी में कहते हैं, 

‘इंसान के हाथों की बनाई नहीं खाते, 
हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते।’ 

आम जैसे रसीले फल के लिए लेखकों और कवियों की भाषा के शब्द कम पड़ जाते हैं। लखनऊ के आस-पास तो आम के किस्से आम हैं। लखनऊ से महज 30 किलोमीटर 'मलीहाबाद' को आम की राजधानी के रूप में जाना जात है। यहाँ के लगभग दो हज़ार से ज़्यादा बाशिंदे कई पीढ़ियों से पिछले सैकड़ों सालों से आम की 700 से अधिक क़िस्मों की पैदावार सैकड़ों बगीचों में उगाते आ रहे हैं। 'पद्मश्री हाजी कलीमुल्लाह खान' ने यहाँ के आम की मिठास को दुनिया भर में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। वे बताते हैं कि 'हमारे गांवों में आज भी ये रिवाज है कि पड़ोसी के यहाँ से आए बरतन खाली नहीं वापस किए जाते। उनमें कुछ न कुछ रखकर ही भिजवाया जाता है।' इसी बहाने पड़ोसियों के एक दूसरे के अलग-अलग रसीले आमों का स्वाद चखने का मौका जो मिलता है, क्योंकि लोग एक दूसरे को आम भेजते हैं। मलीहाबाद के आम खाने के उस्ताद अब्दुल कदीर खां से किसी ने पूछा कि आप एक बार में कितने आम खाते हैं? तो खां साहब ने जवाब दिया-एक दाढ़ी । मतलब ये है कि वे उकड़ूं बैठ जाते थे और आम अपने सामने रख लेते थे। फिर जब तक आम की गुठलियों और छिलकों का ढेर बड़ा होते होते उनकी दाढ़ी को छू नहीं लेता, वे आम खाते रहते थे।

यह बात हुई आम खाने की। मगर मलीहाबाद में ही एक ऐसे भी शख़्स हुए हैं जो आम खाने के लिए नहीं बल्कि आम छीलने के लिए दूर दूर तक मशहूर थे। उनका नाम था मुशीर खां। आम छीलने में उन्हें ऐसी महारथ हासिल थी कि कुएं की जगत पर बैठकर जब मलीहाबादी दशहरी छीलते थे तो मजाल क्या कि छिलका बीच से टूट जाए। इतना महीन छिलका छीलते थे कि छिलका गोल-गोल घूमता हुआ कुएं के पानी में छू जाता था। मगर ये तब की बात थी जब हमारे यहां कुएं बहुत हुआ करते थे और उनमें पानी भी खूब होता था। अब तो कुएं छोड़िए आंख का पानी भी मरता जा रहा है।’

आम पर इन तमाम रसों के जरिए जो कुछ भी कहा गया है उससे कहने वालों की ही शान बढ़ी है। आम तो उनके कहने से पहले भी राजा था, कहने के दौर में भी राजा रहा और हमेशा राजा ही बना रहेगा। मंडियों, बाजारों और बड़े बड़े माॅल से लेकर फुटपाथों के ठेलों तक हर गरीब-अमीर के लिए सुलभ आमों को खाने का मजा ही कुछ और है लेकिन आम के बागों में बैठ कर आम की दावतों का लुत्फ लेना तो वाकई परम आनंद पाना है। इसीलिए अवध में आम की दावतें अब भी होती हैं और खाने वाले तथा खिलाने वाले दोनों को ही तृप्त करती हैं।

(ध्यानार्थ - यह आलेख छात्रों के स्तर और उपयोगिता के आधार पर परिवर्धित करके पुनः साझा किया गया है।)

मूल लेखक - गोविंद पंत राजू

साभार - सत्याग्रह डॉट कॉम

अन्य सहायक सामग्री :-

  1. औरंगजेब और आम - जनसत्ता
  2. दुनिया को भारत का नायाब तोहफ़ा ‘आम

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