गुरुवार, 24 जुलाई 2025

मौसमी बदलाव बन रहा है - स्वास्थ्य की चुनौती

मौसमी बदलाव बन रहा है स्वास्थ्य की चुनौती | IndiCoach

# जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव

आज का युग प्रकृति के असंतुलन का युग है। जहाँ कभी हमारे पूर्वजों को मौसम के चक्र का सटीक अनुमान था, वहीं आज हम अप्रत्याशित मौसमी बदलावों से जूझ रहे हैं। पिछले दशक में मौसम के स्वरूप में आश्चर्यजनक बदलाव देखने को मिले हैं। ग्रीष्म ऋतु में तापमान का चरम सीमा तक पहुँचना1 तापमान में असामान्य वृद्धि , शीत ऋतु में असामान्य शीतलहर का आना, और सबसे गंभीर बात - असमय वर्षा का होना आम बात हो गई है। मानसून का देर से आना या जल्दी चले जाना किसानों के लिए विशेष चिंता का विषय बन गया है। यह मौसमी अव्यवस्था केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विश्व भर में समान स्थितियाँ देखी जा रही हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि यह एक वैश्विक समस्या है।

मौसम की अनियमितता का सबसे गंभीर प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। असमय वर्षा और उमस भरे मौसम से मच्छरों का प्रजनन तेज़ी से बढ़ता है, जिससे मलेरिया2 मच्छर जनित रोग , डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। अचानक तापमान में परिवर्तन से सामान्य बुखार, खाँसी और श्वसन संबंधी समस्याएँ भी आम हो गई हैं। बुजुर्गों और बच्चों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली मौसम के अचानक बदलाव को झेलने में असमर्थ होती है, जिससे वे आसानी से बीमार पड़ जाते हैं। गर्मी की लहरों से लू लगने की घटनाएँ भी बढ़ी हैं, जो कभी-कभी जानलेवा भी साबित होती हैं।

कृषि क्षेत्र पर इन मौसमी बदलावों का विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है। किसान भाइयों की स्थिति सबसे दयनीय है क्योंकि मौसम की अनिश्चितता ने उनकी फसल चक्र को पूरी तरह बिगाड़ दिया है। असमय बारिश से खड़ी फसल नष्ट हो जाती है, तो कभी सूखे की मार से बुआई ही नहीं हो पाती। मौसमी असंतुलन का एक और गंभीर परिणाम कीट-पतंगों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि3 कीटों का फसल नुकसान है। नमी और तापमान के बदलते स्तर से इन कीटों के प्रजनन चक्र में तेज़ी आती है। टिड्डियों का हमला, फसल खाने वाले कीड़ों की संख्या में वृद्धि, और नई प्रजातियों का आक्रमण किसानों के लिए नई समस्याएँ बन गई हैं। ये कीट न केवल फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि कई बार रोग वाहक का काम भी करते हैं, जिससे पशुओं में भी बीमारियाँ फैलती हैं।

इस समस्या से निपटने के लिए व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। वृक्षारोपण को बढ़ावा देना, कार्बन उत्सर्जन को कम करना, और पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाना आवश्यक है। जल संरक्षण, सौर ऊर्जा का उपयोग, और प्लास्टिक के विकल्पों का प्रयोग भी महत्वपूर्ण कदम हैं। व्यक्तिगत स्तर पर हम सभी को अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। कम ऊर्जा का उपयोग, सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग, और पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना हमारी ज़िम्मेदारी है।

मौसम का बदलता स्वरूप आज की सबसे गंभीर चुनौती है। यह न केवल हमारे स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी खतरा बन रहा है। समय रहते यदि हमने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो परिस्थितियाँ और भी गंभीर हो सकती हैं। प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर ही हम इस समस्या का समुचित समाधान खोज सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि मौसमी बदलाव केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व से जुड़ा हुआ एक जीवंत मुद्दा है जिसका समाधान तत्काल आवश्यक है।


अंदर्भ:

  1. भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, पिछले दशक में गर्मी की लहरों की आवृत्ति 50% तक बढ़ी है।
  2. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, मौसम परिवर्तन से मलेरिया के मामलों में 20% की वृद्धि हुई है।
  3. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अध्ययन के अनुसार, कीट-पतंगों के कारण फसल हानि में 15% की वृद्धि दर्ज की गई है।

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