प्राकृतिक आहार: स्वास्थ्य की कुंजी
—आयुर्वेद और गांधीजी के दृष्टिकोण से
प्रकृति हमारे जीवन की आधारशिला है। उसने हमें केवल जीवन ही नहीं दिया, बल्कि उसे स्वस्थ, संतुलित और दीर्घायु बनाने के लिए विविध प्रकार के प्राकृतिक खाद्य पदार्थ भी प्रदान किए हैं। मनुष्य के लिए यह सौभाग्य की बात है कि उसे अपने आस-पास ही ऐसे तत्व मिलते हैं, जो उसके तन, मन और आत्मा के संतुलन में सहायक होते हैं।
भारतीय चिकित्सा पद्धति, विशेषतः आयुर्वेद, इन तत्वों के महत्व को सहस्राब्दियों से समझती आई है। आयुर्वेद के अनुसार, मनुष्य के शरीर में दोष (वात, पित्त, कफ) का संतुलन, अग्नि (पाचनशक्ति) की तीव्रता, और सात्विक वृत्ति का विकास ही स्वास्थ्य के मूल हैं।
🌱 आयुर्वेदिक त्रिदोष सिद्धांत
गति, श्वसन और तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित करता है
पाचन, चयापचय और शरीर के तापमान को संतुलित करता है
संरचना, स्थिरता और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है
गांधीजी ने अपने जीवन में भोजन को केवल शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं, बल्कि आत्मिक साधना का भी माध्यम माना। वे इस बात पर ज़ोर देते थे कि:
उन्होंने अपने एक पत्र में बीजों के सेवन से परहेज़ की बात कही थी। उनके अनुसार:
🍎 प्राकृतिक आहार के लाभ
सात्विक भोजन मन को शांत और स्पष्ट रखता है
प्राकृतिक पोषक तत्व शरीर को ऊर्जावान बनाते हैं
शुद्ध आहार आत्मिक उन्नति में सहायक होता है
प्राकृतिक भोजन पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है
गांधीजी के अनुसार, ताजे फल और सीमित मात्रा में भिगोए हुए सूखे मेवे शरीर को हल्कापन और ऊर्जा प्रदान करते हैं। वे मन को शांत रखते हैं और पाचन को सरल बनाते हैं। यह बात आज के पोषण विज्ञानी भी स्वीकार करते हैं।
बीज, यद्यपि पोषण से भरपूर होते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने पर वे वात और पित्त बढ़ा सकते हैं। दूसरी ओर, भिगोए हुए मेवे जैसे बादाम, अंजीर, किशमिश आदि पाचन में आसान हैं और आवश्यक विटामिन, खनिज व रेशे प्रदान करते हैं।
आज के संदर्भ में, जब भोजन का स्वरूप बाजार, विज्ञापन और स्वाद आधारित हो चला है, आयुर्वेद और गांधीजी दोनों की संस्तुतियाँ अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होती हैं। वे मानते थे:
यदि हम अपनी जीवनचर्या में फिर से उन मूल तत्वों की वापसी करें जिन्हें हमारी परंपरा और ऋषि-मुनियों ने श्रेष्ठ बताया — जैसे मौसमी फल, शुद्ध अनाज, हरी सब्ज़ियाँ, भिगोए हुए मेवे और सात्विक आहार — तो न केवल हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी, बल्कि हम मानसिक रूप से भी अधिक स्थिर, संयमी और सृजनशील बनेंगे।
गांधीजी और आयुर्वेद का यह साझा संदेश यही है कि स्वास्थ्य कोई बाहरी उपाय नहीं, बल्कि एक आंतरिक साधना है। भोजन वही करें, जो न केवल शरीर को पोषण दे, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध रखे।
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