गोडावण: Great Indian Bustard
जब प्रकृति मौन होकर भी भविष्य को आगाह करती है
धरती का इतिहास केवल मानव सभ्यता की कहानी नहीं है; यह उन जीवों की भी गाथा है जो समय की धूल में विलीन हो गए—डायनासोर, डोडो, तस्मानियन टाइगर¹। ये सभी हमें मौन चेतावनी देते हैं कि प्रकृति की अनदेखी का मूल्य बहुत भारी होता है। आज उसी चेतावनी की कड़ी में भारत का एक दुर्लभ पक्षी खड़ा है — गोडावण। यदि समय रहते हमने इसकी पुकार नहीं सुनी, तो यह भी इतिहास की सूची में दर्ज हो जाएगा।
गोडावण, जिसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड कहा जाता है, भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क घासभूमि क्षेत्रों का गौरव रहा है²। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है और अपनी भव्य काया व गरिमामय उड़ान के कारण विशिष्ट पहचान रखता है। लंबे पैरों वाला यह पक्षी कभी उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक फैले खुले घास के मैदानों में पाया जाता था³। आज इसकी दुनिया सिमटकर कुछ गिने-चुने क्षेत्रों तक सीमित रह गई है—मानो आकाश भी इसके लिए छोटा पड़ने लगा हो।
इसका प्राकृतिक बसेरा खुले घास के मैदान, विरल झाड़ियाँ और कम वर्षा वाले क्षेत्र रहे हैं⁴। जहाँ दृष्टि दूर तक जाती हो और भूमि पर घास की प्राकृतिक चादर बिछी हो, वही इसका घर है। डेज़र्ट नेशनल पार्क जैसे क्षेत्र इसके अंतिम सुरक्षित आश्रयों में गिने जाते । यह पक्षी पर्यावरण पर अत्यधिक निर्भर है; ज़रा-सी गड़बड़ी और उसका जीवन चक्र डगमगा जाता है — “एक तिनका हटे, तो घोंसला उजड़ जाए।”।
गोडावण का महत्व केवल जैव विविधता तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिक इसे घासभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का संकेतक प्राणी मानते हैं⁵। जहाँ गोडावण सुरक्षित है, वहाँ पर्यावरण संतुलित है। यह कीटों, छोटे जीवों और बीजों को खाकर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखता है। दूसरे शब्दों में, इसका अस्तित्व उस धरती की सेहत का आईना है जिस पर मानव अपने विकास के सपने खड़े कर रहा है। पर समस्या यहीं से जन्म लेती है। विकास की अंधी दौड़ में घास के मैदान खेतों, सड़कों, सोलर पार्कों और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में बदलते चले गए⁶। ऊँची बिजली की लाइनें गोडावण के लिए अदृश्य मृत्यु-जाल बन गईं। भारी शरीर और सीमित दृष्टि के कारण यह उनसे टकराकर प्राण गँवा देता है⁷। आवास का विनाश, धीमी प्रजनन दर और मानवीय हस्तक्षेप—इन सबने मिलकर गोडावण को विलुप्ति के कगार पर पहुँचा दिया।
हाल के वर्षों में गोडावण को बचाने की मुहिम ने नया मोड़ लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए राजस्थान और गुजरात के बड़े क्षेत्रों में सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं पर प्रतिबंध लगाए हैं⁸। बिजली लाइनों को भूमिगत करने, प्रजनन केंद्र स्थापित करने और सुरक्षित आवास विकसित करने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। यह संघर्ष कठिन है, पर असंभव नहीं—क्योंकि जहाँ सामूहिक चेतना जागती है, वहाँ परिवर्तन संभव होता है।
गोडावण हमें यह सिखाता है कि विकास और संरक्षण को आमने-सामने खड़ा करना समाधान नहीं है। संतुलन ही एकमात्र मार्ग है। यदि आज हमने प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व नहीं सीखा, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें क्षमा नहीं करेंगी।
संदर्भ
- IUCN Red List – Extinct Species Overview
- BirdLife International – Great Indian Bustard Factsheet
- Wildlife Institute of India – Grassland Ecology
- Sanctuary Nature Foundation – GIB Conservation
- WII Powerline Collision Studies
- Supreme Court of India – GIB Protection Orders
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