राधिका की जिद और सफलता की कहानी
राधिका की जिद और सफलता की कहानी
जब दुनिया ने राधिका से कहा — "तुम नहीं कर सकती", उसने चुपचाप साबित कर दिया कि कोई भी कमी बड़े सपनों को रोक नहीं सकती।
तमिलनाडु के कोयम्बटूर की रहने वाली 25 वर्षीय राधिका जे.ए. पाँच साल की उम्र से ही गंभीर हड्डियों की बीमारी से जूझ रही हैं। इस बीमारी ने उनके लिए स्कूल जाना और बाहर खेलना लगभग असंभव बना दिया। एक समय तो ऐसा भी था कि उन्हें घर से बाहर निकलना तक मुश्किल हो जाता था। लेकिन राधिका ने जीवन की इन कठिनाइयों को अपनी कला और सपनों के आड़े नहीं आने दिया।
घर पर रहते हुए उन्होंने पुराने अखबारों और साधारण कागज़ी सामग्री से गुड़िया बनाना शुरू किया। यह शौक धीरे-धीरे उनका जुनून बन गया। जब उनके बनाए पेपर डॉल्स को आस-पड़ोस के लोग पसंद करने लगे, तो उन्होंने इसे एक छोटे कारोबार का रूप दिया। आज राधिका घर बैठे हर महीने लगभग बीस हज़ार रुपये तक कमा लेती हैं। उनके ऑर्डर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी आते हैं।
विडंबना देखिए, जिस स्कूल ने कभी उन्हें प्रवेश देने से इंकार कर दिया था, वही आज राधिका को अपने छात्रों को डॉल बनाने का प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त, वे विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन और कार्यशालाएँ भी आयोजित करती हैं।
राधिका का मानना है कि सच्चा हुनर किसी भी बाधा से बड़ा होता है। उनकी ज़िंदगी इस बात का प्रमाण है कि कठिनाइयाँ इंसान की दिशा बदल सकती हैं, लेकिन मंज़िल पाने के जुनून को कभी रोक नहीं सकतीं। उन्होंने आत्मनिर्भरता हासिल कर यह साबित किया कि लगन और मेहनत से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।
आज राधिका न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हैं, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं। वे दिखाती हैं कि यदि इंसान ठान ले तो कमी नहीं, बल्कि वही कमी उसकी सबसे बड़ी ताक़त बन सकती है।
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