अभ्यास 1: सुमिता बंद्योपाध्याय का साहस

सुमिता बंद्योपाध्याय का साहस और संघर्ष
सुमिता बंद्योपाध्याय का नाम झील और उसके पर्यावरण के संरक्षण में साहस और दृढ़ता का प्रतीक बन चुका है। उन्हें कई बार धमकियाँ मिलीं; कुछ यात्रियों ने एक बार उनके सिर पर रिवॉल्वर तान दी, और सफ़ारी पार्क के गेट पर हॉकर्स ने पेट्रोल डालकर उन्हें जलाने की कोशिश की। बावजूद इसके, सुमिता देवी न कभी डरीं और न ही पीछे हटीं।
हर रोज़ सुबह पाँच बजे से दस बजे तक 50 वर्षीय सुमिता बंद्योपाध्याय हाथ में लाठी लेकर रवींद्र सरोवर झील की पहरेदारी करती हैं। उनकी निगरानी में झील में कपड़े धोना, नहाना, कचरा फेंकना पूरी तरह मना है। उन्होंने कोर्ट में जाकर झील में छठ पूजा तक पर रोक लगवाई, जिससे उनके कई दुश्मन बन गए।
सुमिता देवी न केवल नियमों का पालन कराती हैं, बल्कि झील के जीव-जंतुओं, पक्षियों और पेड़ों की सुरक्षा में भी अपना योगदान देती हैं। उनके लिए यह सरोवर केवल एक जलाशय नहीं है, बल्कि उनके जीवन का साथी बन चुका है।
सुमिता देवी कहती हैं:
"लाठी मेरे हाथ में रहती है, लेकिन मैंने कभी इसे किसी पर इस्तेमाल नहीं किया। अब यही मेरी पहचान बन गई है। मैं चाहती हूँ कि हर जगह अनुशासन बना रहे। अगर अनुशासन नहीं होगा, तो किसी भी स्थान का विकास संभव नहीं। मैं अपने साहस और मेहनत से झील को सुरक्षित रख रही हूँ।"
सुमिता देवी का यह संघर्ष हमें सिखाता है कि अपने कर्तव्य और नैतिक जिम्मेदारी के प्रति ईमानदारी और साहस के साथ खड़ा होना कितना महत्वपूर्ण है। उनके प्रयासों से रवींद्र सरोवर झील एक सुरक्षित और स्वच्छ स्थल बन गया है।
सुमिता, आपके साहस और हिम्मत को हम सलाम करते हैं।
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