सोमवार, 4 अगस्त 2025

बस अड्डों पर उगती सब्ज़ियाँ: शहरी खेती की अनोखी पहल

बस अड्डों पर उगती सब्ज़ियाँ: शहरी खेती की अनोखी पहल
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बस अड्डों पर उगती सब्ज़ियाँ: शहरी खेती की अनोखी पहल

21वीं सदी की एक क्रांतिकारी और पर्यावरणीय सोच

जब हम किसी बस अड्डे की कल्पना करते हैं, तो धूल, शोर और भीड़भाड़ की छवि उभरती है; लेकिन क्या आपने कभी ऐसा बस अड्डा देखा है जहाँ फूलों की जगह ताज़ी ककड़ी, तोरई, कद्दू, घीया, पालक, मेथी आदि की क्यारियाँ लहलहाते हों? जी हाँ यह कोई सपना नहीं, बल्कि कुछ देशों में शुरू हुई एक पर्यावरण‑मैत्री और पोषण‑संवर्धन की अनोखी पहल है। जो शहरी जीवन के तमाम प्रदूषणों और औद्योगिक धूल-धक्कड़ के बजाय हरियाली की एक मोहक साँस देती है। महसूस कीजिए कि आसपास बहती हवा में पौधों के हरियाली और मिट्टी की सौंधी खुशबू और उनके ऊपर से छनकर पड़ते नैसर्गिक सूर्य प्रकाश में वे और भी हरी-भरी दिखें। यह दृश्य सिर्फ आंखों को नहीं, आत्मा को भी सुकून दे सकता है।

आइए जानें कि यह पहल कहाँ शुरू हुई, कैसे काम करती है, और क्या यह वास्तव में कारगर भी है?

बस स्टॉप पर हाइड्रोपोनिक खेती
7 बस स्टॉप्स रूपांतरित
100 किलो सब्जियाँ उत्पादित
2021 प्रयोग का वर्ष

सिंगापुर, जिसने इस विचार को सबसे पहले सार्वजनिक मंच पर प्रयोगात्मक रूप में उतारा, वहाँ साल 2021 में सात बस स्टॉपों को 'हाइड्रोपोनिक अर्बन फार्म्स' में बदल दिया गया। बिना मिट्टी के, केवल पोषक जल के माध्यम से पौधों की जड़ों को ऊर्जा दी गई। नतीजा यह रहा कि महज कुछ हफ्तों में इन छोटी-छोटी छतों पर करीब 100 किलो सब्जियाँ उग आईं—जिन्हें एक समाजसेवी रसोईघर 'Willing Hearts' को दान कर दिया गया[1]

यह महज 'ग्रीन वॉल' लगाने जैसा सौंदर्यशास्त्र नहीं था, बल्कि एक समर्पित समाधान था—भविष्य की खाद्य सुरक्षा के लिए। 21वीं सदी के इस प्रयोग ने यह साबित कर दिया कि शहर की भीड़ में भी एक शांत, समर्पित और उत्पादक कोना तैयार किया जा सकता है। जब दुनिया भर में लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग और मेटावर्स पर चर्चा कर रहे हैं, तब ऐसे छोटे-छोटे प्रयोग हमें असल धरती की ओर लौटने का रास्ता दिखाते हैं।

इंग्लैंड के टोडमॉर्डन नामक छोटे से शहर में तो इस विचार को और भी ज़मीनी रूप में अपनाया गया। यहाँ Incredible Edible नामक आंदोलन के तहत स्कूलों, पार्कों, पुलिस स्टेशनों और यहाँ तक कि बस स्टॉप्स के आसपास भी नागरिकों ने अपने हाथों से सब्जियाँ उगाई। नियम बहुत सरल था—जो चाहे, जब चाहे, तोड़कर ले जाए, बिना पूछे[2]

वहीं नीदरलैंड्स और ब्रिटेन में "Bee Bus Stops" का ट्रेंड चला। इन देशों में हजारों बस स्टॉपों की छतों पर ऐसे पौधे लगाए गए जो मधुमक्खियों और तितलियों को आकर्षित करते हैं[3]। ये बस अड्डे सब्जियाँ नहीं उगाते, लेकिन जैव विविधता को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हरित बस स्टॉप की पहल

यह विचार अपने आप में एक क्रांति है—जहाँ शहरी योजनाओं में बेंच और एड बोर्ड्स के साथ-साथ बायो फार्मिंग भी जुड़ रही है। सोचिए, यदि भारत जैसे विशाल और विविध देश में हर शहर, कस्बे या ग्राम पंचायत इस मॉडल को अपनाने लगे, तो न केवल पोषण सुरक्षा, बल्कि युवाओं की सोच भी बदल सकती है।

तो अगली बार जब आप किसी बस स्टॉप पर इंतज़ार कर रहे हों, ज़रा कल्पना कीजिए कि अगर वहाँ एक चाइनीज़ कैबेज, धनिया या टमाटर की बेल लहरा रही हो, और कोई बच्चा उसे देखकर मुस्कुरा रहा हो—तो वो सिर्फ पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने वाली सबसे खूबसूरत मुस्कान हो सकती है।

जब स्थानीय स्कूलों के छात्र या स्वयंसेवक अपनी कक्षाओं से बाहर निकलकर इन बस अड्डों की हरियाली में हाथ बंटाते हैं, तो वे न सिर्फ मिट्टी से जुड़ते हैं, बल्कि समाज और प्रकृति से भी गहरा रिश्ता बना लेते हैं।

यह एक नई सोच है—जो प्रकृति को केवल देखने या पढ़ने का नहीं, बल्कि उसे जीने का अनुभव बना रही है। और यही अनुभव वो Wow है, जिसे आज का युवा ढूंढ रहा है—रियल, रूटेड, और रिफ्रेशिंग!

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