शनिवार, 19 अप्रैल 2025

💃बिहू लोकनृत्य: असम की सांस्कृतिक आत्मा

भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत में लोकनृत्य एक विशेष स्थान रखते हैं। हर क्षेत्र की अपनी सांस्कृतिक छवि होती है, जो वहां के लोकनृत्यों, गीतों और त्योहारों में झलकती है। पूर्वोत्तर भारत का असम राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। बिहू नृत्य यहाँ की संस्कृति का प्रतीक है, जो न केवल एक कला रूप है, बल्कि असमिया जनजीवन की सरलता, प्रकृति से जुड़ाव और सामूहिक उल्लास की सजीव झलक प्रस्तुत करता है।

पारंपरिक वेश भूषा में बिहू नृत्य करते लोग 
बिहू केवल एक नृत्य नहीं, यह असम की आत्मा है। इसे वर्ष में तीन बार मनाया जाता है — बोहाग बिहू (बैसाख), काटी बिहू (कार्तिक), और माघ बिहू (माघ)। हर बिहू पर्व की अपनी विशेषता होती है, परंतु जब 'बिहू नृत्य' की बात होती है, तो आमतौर पर बोहाग बिहू को ही केंद्र में रखा जाता है। यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन और नववर्ष की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है, जब खेतों में नई फसलें बोई जाती हैं और वातावरण उल्लास से भर उठता है।
इस समय बिहू नृत्य अपनी पूरी रंगत में होता है। बैसाख (अप्रैल-मई) में नई फसल बोई जाती है और असमिया नववर्ष की शुरुआत होती है। यही वह अवसर होता है जब गाँव-गाँव में इस नृत्य की धूम होती है। युवक-युवतियाँ पारंपरिक परिधान पहनते हैं और ढोल, पेपा (एक प्रकार का सींग), ताल (झांझ), और गोगोना (एक बांस का वाद्य यंत्र) आदि पारंपरिक वाद्य यंत्रों की लय पर थिरकते हैं। नर्तकों की तेज गति, हाथों और कूल्हों का लयबद्ध संचालन, और पैरों की थिरकन दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।"

बिहू का सांस्कृतिक सौन्दर्य  

बिहू नृत्य प्रेम, प्रकृति और सामाजिक एकता का प्रतीक है। युवतियाँ पारंपरिक असमिया पोशाक मेखेला-चादर पहनती हैं, जो स्थानीय बुनकरों की कलात्मकता का प्रमाण होती है। वे कांस्य और चांदी के आभूषणों से सुसज्जित होती हैं। पुरुष पारंपरिक धोती-कुर्ता पहनते हैं और सिर पर गामोछा बाँधते हैं। इन रंग-बिरंगे परिधानों से वसंत ऋतु की छटा जीवंत हो उठती है। 

पारंपरिक वाद्य-यन्त्र के साथ बिहू नृत्य 
नृत्य के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मधुर संगत होती है, ढोल की थाप, पेपा की तान, ताल और गगना की झंकार और बांसुरी की मधुरता इस नृत्य को संगीतमय बना देती है। नर्तकों के भावपूर्ण चेहरे, लचीले अंग संचालन और चपल मुद्राएं दर्शकों को भीतर तक प्रभावित करती हैं। यह केवल शारीरिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति है। बिहू नृत्य की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सामूहिकता है। यह नृत्य किसी एक मंच पर नहीं, बल्कि खुले मैदानों, गाँव की गलियों और घरों के प्रांगणों में होता है। यहाँ कोई बड़ा-छोटा नहीं होता, सभी एक ही लय में झूमते हैं। यह नृत्य व्यक्ति को समाज से जोड़ता है और समुदाय में एकता, प्रेम और सौहार्द का संदेश देता है।

लोककला से जुड़ाव की प्रेरणा
  
बिहू नृत्य का महत्व केवल असम तक सीमित नहीं है। आज यह भारत के विभिन्न राज्यों में सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का हिस्सा बन चुका है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी असम की सांस्कृतिक पहचान को प्रकट कर रहा है। स्कूलों, कॉलेजों और कला महोत्सवों में इसकी सुंदर प्रस्तुति देखी जा सकती है, जो भारत की लोकसंस्कृति को वैश्विक पहचान देती है।

इस नृत्य के माध्यम से हम न केवल असम की लोककला से परिचित होते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता की भावना को भी समझते हैं। यह नृत्य हमें सिखाता है कि भाषा, संगीत, नृत्य और परंपरा मिलकर कैसे मानव समाज को रंगों से भर सकते हैं। विशेषकर छात्रों के लिए ऐसे विषयों का अध्ययन न केवल भाषा ज्ञान बढ़ाता है, बल्कि सोचने, समझने और सांस्कृतिक विविधताओं को अपनाने की दृष्टि भी विकसित करता है।

बिहू नृत्य एक उदाहरण है कि कैसे लोककलाएँ न केवल परंपरा को जीवित रखती हैं, बल्कि नई पीढ़ी को उसकी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी करती हैं। यह नृत्य प्रकृति और मनुष्य के रिश्ते को जीवंत करता है, प्रेम को अभिव्यक्त करता है और जीवन को उत्सव में बदल देता है।

छात्रों के लिए संदेश

प्रिय छात्रों, अब जब आप बिहू नृत्य की महत्ता से परिचित हो चुके हैं, तो क्यों न इसे अपने विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुत करने का प्रयास करें? आप अपनी नृत्य शिक्षिका एवं संगीत विभाग से संपर्क करें और अभ्यास आरंभ करें। आइए, हम असम की इस गौरवशाली परंपरा से जुड़ें और उसकी जीवंतता को आगे बढ़ाएं।

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