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सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

पारिजात (हरसिंगार) : एक औषधीय पौधा

पारिजात का फूल 
        विश्व के नामी फूलों की भारतीय धरोहर में, हरसिंगार का विशेष स्थान है। यह एक अद्वितीय फूल है जो अपनी सुंदरता, आरोग्यदायी गुणों और रहस्यमयता के लिए प्रसिद्ध है। हरसिंगार को विभिन्न नामों से जाना जाता है - पारिजात, प्राजक्ता, शेफाली, शिउली, पार्दक, पगडमल्लै, मज्जपु, पविझमल्लि, गुलजाफरी, नाइट जेस्मिन और सिंघार इत्यादि। शास्त्रों में इसे 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है, इसीलिए इस पौधे का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है।यह एक सुंदर और मनमोहक सुगंध वाले फूल के साथ-साथ कई आयुर्वेदिक औषधीय गुणों से भरपूर है।

हरसिंगार के फूल सफ़ेद रंग के होते हैं और इनमें नारंगी रंग का तना होता है। इन फूलों में पांच से सात पंखुड़ियां होती हैं। यह फूल रात के समय खिलने के लिए प्रसिद्ध है, जिसके कारण इसे 'निशागंधा' भी कहा जाता है। हरसिंगार के पौधों का उनकी पत्तियों के साथ विशेष संबंध है, जो रात्रि के समय फूलों के साथ खुलती हैं और सूर्योदय के साथ ही मुरझाने लगती है। इस प्रक्रिया के कारण इसे लोग अधिक पसंद करते हैं। चलिए, हम इसके रहस्यों से उजागर करने के लिए इस फूल को जानने निकलते हैं और उसके विस्तार से अध्ययन करते हैं।

इसका वानस्पतिक नाम 'निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस' है। है, और यह भारत के उत्तरी भागों, जैसे कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, एवं पूर्वी भारत में पाया जाता है। इसके अलावा, बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया, फिलीपींस आदि देशों में भी हरसिंगार की खेती की जाती है। जनश्रुति के अनुसार इसकी उत्पत्ति समुद्र-मंथन से हुई थी। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक हरसिंगार का पौधा भी है। यह पौधा देवताओं को मिला था। जिसे इंद्र ने अपनी वाटिका में लगाया था। मान्यता के अनुसार नरकासुर के वध के पश्चात इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण को हरसिंगार के पुष्प भेंट किये थे, जिसे उन्होंने देवी रुक्मिणी को भेंट किया था।

समुद्र मंथन

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पौधे की चाह में सत्यभामा ने हठ किया, जिसके फल स्वरूप भगवान श्री कृष्ण जब हरसिंगार का पेड़ इंद्र देव से युद्ध में जीत कर स्वर्ग से धरती पर लेकर आ रहे थे तब देवराज इंद्र ने क्रोध में आकर पेड़ को श्राप दे दिया। माना जाता है कि इसी श्राप की वजह से हरसिंगार के फूल सिर्फ रात में ही खिलते हैं और इस पर फल भी कभी नही आते। हरसिंगार के पौधे में फूल आने का समय बारिश के बाद अगस्त माह से सर्दियों में दिसंबर माह तक होता है। केवल हरसिंगार ही एक ऐसा पौधा है जिसके पुष्प जमीन पर गिरे हुए होने के बाद ही भगवान को स्वीकार होते है। हरसिंगार के पुष्प गोधूलि बेला के बाद खिलते हैं जो प्रातः स्वयं ही पौधे से झड़ जाते हैं।

हरसिंगारअपने फूलों की मनमोहक खुशबू और आकर्षक रंग के कारण लोकप्रिय है। पूजा में उपयोग के साथ कई शारीरिक व्याधियों को दूर करने में उपयोगी है। इसके पत्ते, फूल और छाल का सभी का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसकी छाल बहुत कठोर होती है जो परतदार और भूरे रंग की दिखती है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है। लेकिन इसे 12 से 14 इंच के गमले में भी आसानी से लगाया जा सकता है। हरसिंगार का पौधा छोटे या बड़े दोनों रूपों में विकसित हो सकता है। वसंत ऋतु हरसिंगार के पौधे को लगाने का सबसे बेहतर समय है। पौधे को घर, मंदिर या पार्क में लगाया जा सकता हैं। छत या बालकनी में जहाँ पर्याप्त धूप पौधे को मिल सके वहाँ इसे गमले में भी लगा सकते है। हरसिंगार के पौधे को सर्दियों के मौसम में लगाने से बचे।

पारिजात का पौधा 
     हरसिंगार का पौधा नर्सरी से लाकर या बीज से या कलम विधि से तैयार करके लगा सकते है। गमले में पौधा लगाने के लिए पौधे के आकार के अनुसार गमले का चुनाव करें। साथ ही यह भी सुनिश्चित करे की गमले से अतिरिक्त पानी निकलने की उचित व्यवस्था भी हो। गमले में पौधा लगाने के लिए 25% गॉर्डन की सूखी मिट्टी, 25% बलुई मिट्टी, 25% जैविक खाद, 15% छोटे आकार वाले ईट-मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े और 10% सरसों व नीम की खली को मिला कर मुलायम और भुरभुरी मिट्टी तैयार करके पौधा लगाना चाहिए। इसकी पौध के लिए चिकनी और कठोर मिट्टी का उपयोग न करें इससे पौधे मर जाते हैं। इसके बीज अंकुरित करने के लिए सीडलिंग ट्रे में 50-50% की मात्रा में मिट्टी और खाद अच्छी तरह से मिलाकर ट्रे भर दें। बीज को 2 सेमी गहराई बनाकर रखें। हल्की नमी बनाएं रखें। आंशिक धूप-छाया में रखें।

उगाने के बाद हरसिंगार के पौधे को दिन की  5 से 6 घंटे की धूप में रखें। समय-समय पर गोबर की खाद, मिट्टी की गुड़ाई करके, गमले में डाले, उसे ऊपर मिट्टी से ढक दें। मिट्टी सुखने से पहले गुड़ाई करें फिर पानी अवश्य दें। पौधे को घना करने के लिए समय समय पर 15 से 20 दिनों के अंतर में बसंत से जुलाई तक हल्की छंटाई करते रहिए। गर्मियो के दिन में 2 से 3 बार गमले में पानी डालें। सर्दियों में इस पौधे को नियमित रूप से पानी देने से बचें। पौधे को धूप में रखें और ठंडी हवा से बचाये।

पारिजात की पत्तियाँ
हरसिंगार का पौधा जलन-रोधी, सूजन-रोधी, एंटीऑक्सीडेंट तथा जीवाणु-रोधी गुणों से भरपूर होता है। इसके पत्तियों का रस कड़वा होता है और टॉनिक के रूप में काम करता है। इनका उपयोग बुखार, सर्दी-खांसी, कृमि-संक्रमण, अस्थमा आदि के इलाज के लिए किया जाता है। पत्तियो का काढ़ा पीने से कब्ज, कृमि-संक्रमण, गठिया के दर्द से आराम मिलता है। आप इसके फूल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। हरसिंगार के पत्ते का पानी सूजन-दर्द, घावों, पेट के कीड़ों से राहत दिलाता है। इसका प्रयोग समस्या से राहत मिलने तक लगातार करते रहना चाहिए

मंगलवार के दिन हरसिंगार के पौधे को हनुमान जी के मंदिर के पास, किसी नदी के पास या सामाजिक स्थल पर लगाने से स्वर्ण दान के समान पुण्य प्राप्त होता है। हरसिंगार के पौधे को किसी शुभ मुहूर्त पर अपने घर के उत्तर दिशा या पूर्व दिशा में लगाएं, नियमित रूप से उसकी देखभाल करें। ऐसा करने से घर के सभी वास्तु दोष दूर होते है। देवी लक्ष्मी और श्री हरि को इसके फूल अति प्रिय है। जहाँ भी यह पौधा लगा होता है वहां माँ लक्ष्मी का वास माना जाता है।



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