रविवार, 21 दिसंबर 2025

अभ्यास 1 : अमृतादेवी विश्नोई का बलिदान

अमृतादेवी विश्नोई और खेजड़ली का वन-बलिदान | IGCSE हिंदी अभ्यास एक (8 अंक) - IndiCoach

📚 IGCSE हिंदी — अभ्यास एक (8 अंक)

🌳 अमृतादेवी विश्नोई और खेजड़ली का वन-बलिदान

Passage + 6 प्रश्न | Phrase-based answers | TTS सहित

📖 आलेख

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में प्रकृति को केवल भोग की वस्तु नहीं, बल्कि जीवन की सहचरी और संरक्षण की पात्र माना गया है। इसी चेतना का मूर्त रूप थीं अमृतादेवी विश्नोई, जिनका जीवन यह प्रमाणित करता है कि सच्ची आस्था कर्म में प्रकट होती है, शब्दों में नहीं। अठारहवीं शताब्दी के राजस्थान के खेजड़ली गाँव में घटित उनका बलिदान भारतीय इतिहास में पर्यावरणीय चेतना का ऐसा उदाहरण है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था।

सन् 1730 ईस्वी में जब तत्कालीन शासकीय आदेश के अंतर्गत हरे-भरे खेजड़ी वृक्षों की कटाई आरंभ हुई, तब खेजड़ली गाँव की एक साधारण-सी महिला ने असाधारण साहस का परिचय दिया। अमृतादेवी विश्नोई ने न तो शस्त्र उठाया और न ही विद्रोह का नारा लगाया, बल्कि शांत किंतु अडिग स्वर में अन्याय का विरोध किया।

उन्होंने कहा — “सिर साटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण” । यह कथन केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि जीवन-मूल्य और प्रकृति-रक्षा पर आधारित एक नैतिक निर्णय था। वृक्षों की रक्षा करते हुए अमृतादेवी, उनकी बेटियाँ तथा विश्नोई समाज के 363 स्त्री-पुरुषों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

यह बलिदान केवल एक ऐतिहासिक प्रसंग नहीं, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के संबंध की गहरी व्याख्या है। वन मानव जीवन की आधारशिला हैं। वे जलवायु को संतुलित रखते हैं, भूमि की उर्वरता बनाए रखते हैं और असंख्य जीव-जंतुओं का आश्रय होते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है कि वनों के बिना पृथ्वी पर जीवन का संतुलन संभव नहीं।

इसके बावजूद, भौतिक विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य उन्हीं वनों का विनाश कर रहा है जिन पर उसका अस्तित्व निर्भर है। सूखा, बाढ़, जल-संकट और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ इसी असंतुलन का परिणाम हैं।

अमृतादेवी विश्नोई का जीवन यह स्पष्ट संदेश देता है कि सच्ची प्रगति वही है जिसमें मनुष्य और प्रकृति दोनों का भविष्य सुरक्षित हो । पेड़ों की बलि देकर विकास का स्वप्न देखना आत्मवंचना के अतिरिक्त कुछ नहीं।

🌱 हर बच्चा, करे पेड़ की रक्षा।

❓ अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1: अमृतादेवी विश्नोई कौन थीं? [1]
  • विश्नोई समाज की वन-रक्षक महिला
प्रश्न 2: खेजड़ली की घटना किस वर्ष घटी? [1]
  • 1730 ईस्वी
प्रश्न 3: यह घटना कहाँ घटी? [1]
  • खेजड़ली गाँव
प्रश्न 4: अमृतादेवी का प्रसिद्ध कथन क्या था? [1]
  • “सिर साटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण”
प्रश्न 5: इस घटना में कितने लोगों ने बलिदान दिया? [2]
  • 363 लोग
प्रश्न 6: लेखक के अनुसार सच्ची प्रगति क्या है? [2]
  • मनुष्य और प्रकृति दोनों का सुरक्षित भविष्य

📝 शिक्षक हेतु सुझाव

विद्यार्थी संक्षिप्त, स्पष्ट और बिंदुवार उत्तर दें। आंशिक सही उत्तरों हेतु आंशिक अंक नहीं दिए जाएँ। शिक्षक अपने विवेक से पूर्णांक अथवा शून्य अंक ही दें।

⚠️ छात्र के लिए सावधानियाँ

  • पहले आलेख को पूरी तरह पढ़ें, फिर प्रश्न हल करें।
  • प्रश्न पढ़कर, उसके प्रश्न-सूचक शव्द (क्या, कब, क्यों, कैसे, कहाँ आदि का संबंध समझकर उत्तर दें।
  • उत्तर जांचने पर हाइलाइटेड भागों की सहायता से अपनी त्रुटि पहचानें।
  • TTS सुविधा का उपयोग कर पढ़ने और सुनने दोनों कौशल विकसित करें।

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