“मैं देर करता नहीं… मेरा अलार्म ही देर से बजता है!”
मोनोलॉग · पूरी प्रस्तुति
दोस्तों, आज मैं एक सच स्वीकार करने आया हूँ - मैं देर नहीं करता… मेरा अलार्म ही देर से बजता है! और यह कोई बहाना नहीं है; यह वैज्ञानिक, तकनीकी और मानसिक-तीनों स्तरों पर सत्यापित समस्या है।
अब देखिए, दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो सुबह 5 बजे उठकर योग, ध्यान, वॉक, नाश्ता-सब कर लेते हैं। और दूसरे… हम!
हम सुबह 5 का अलार्म लगाते हैं, पर उठते तब हैं जब कोई कहता है - “अरे, स्कूल/ऑफिस नहीं जाना क्या?”
हमारा अलार्म भी बड़ा समझदार है - वो हमारे उठने के मन से कनेक्ट होकर बजता है… और हमारा मन? वो तो अभी सो रहा होता है!
मुझे लगता है, अलार्म भी इंसानों जैसा हो गया है - थोड़ा lazy, थोड़ा confused। शायद वो भी सोचता है - “यार, इसे आज रहने देते हैं… बहुत थका लगता है।”
और इसकी सबसे बड़ी खासियत - जब अलार्म बजता ही नहीं, तब भी मैं snooze दबा देता हूँ! यह talent वर्षों की practice से आता है। मैं आंख बंद करके भी snooze बटन खोज सकता हूँ।
एक बार लगा कि अलार्म खराब है… फिर याद आया - 4 बार गिर चुका है 2 बार उस पर पानी गिर चुका है और एक बार गुस्से में मैं बोल भी पड़ा - “अबे चुप!”
अब घर वाले कहते हैं - ‘सुधारो खुद को!’ और मैं कहता हूँ - ‘मैंने कल improvement किया है!’ अलार्म 5 का था, उठा 7:30 पर… लेकिन उठा तो!
दोस्तों, मानिए… सुबह उठना एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है। UN को resolution पास करना चाहिए - “दुनिया के नागरिक अपनी सुविधा से उठें।”
अंत में बस इतना - मैं देर करता नहीं… मेरा अलार्म ही देर से बजता है! और जिस दिन ये समय पर बज गया… उस दिन दुनिया बदल जाएगी!
📘 IBDP कौशल फोकस
• भाषा प्रस्तुति में हास्य का उपयोग • बिंबात्मक अभिव्यक्ति • श्रोता-अनुकूल delivery • Creative Spoken-Text शैली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके बहुमूल्य कॉमेंट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।