नानी के घर की मीठी यादें 🪔
स्वास्थ्य और संस्कारों की एक प्रेरणादायक कहानी
बरसात का मौसम था। चारों ओर हरियाली नहाई हुई-सी लगती थी। गाँव का रास्ता कीचड़ से लथपथ था, पर नानी के आँगन में अलग ही दृश्य था। आँगन गोबर से लिपा तो गया था, पर बरसात में वह बार-बार गीला होकर अपनी चमक खो बैठता। तुलसी के चौरे पर जलता दीपक हवा से डगमगाता, लेकिन बुझता नहीं—मानो बरसात को भी यह संदेश दे रहा हो कि "सच्चा दीपक आँधियों से नहीं डरता।"
सिया ने उत्साह से जोड़ा, "और मोमो! अरे नानी, मोमो खाते ही मज़ा आ जाता है। उसमें जो लाल तीखी चटनी होती है न, बस… उँगलियाँ चाटते रह जाओ।"
नानी ने दोनों की ओर देखा और मुस्कराईं। उनकी झुर्रियों में अनुभव की रेखाएँ झलक रही थीं। पास ही चूल्हे पर रोटी फूल रही थी और सब्ज़ी की महक हवा में तैर रही थी। नानी ने हौले से कहा, "अच्छा, तो तुम दोनों को स्वाद चाहिए? तो ज़रा आओ, आज तुमको असली स्वाद चखाती हूँ।"
थाली में गरम-गरम बाजरे की रोटी, मूँग की दाल, सब्ज़ी और साथ में घर का बना सफ़ेद मक्खन रखा गया। साथ में गुड़ का एक छोटा-सा टुकड़ा भी। बच्चों ने पहले तो नाक-भौं सिकोड़ी, पर जब पहला कौर मुँह में गया तो आँखें फैल गईं। "वाह नानी! यह तो… यह तो सच में बहुत अलग है। स्वादिष्ट भी और हल्का भी," सिया ने चौंकते हुए कहा।
सिया ने धीरे-धीरे अपनी थाली का सारा खाना खत्म किया और गर्व से बोली, "नानी, देखो मैंने एक दाना भी नहीं छोड़ा।" नानी की आँखों में चमक आ गई। "शाबाश बिटिया! यही तो असली संस्कार हैं।"
अगली सुबह बच्चों ने देखा कि नाना जी सूर्योदय से पहले उठकर आँगन में व्यायाम कर रहे थे। कभी आसन लगाते, कभी गहरी साँसें भरते। फिर वे धीरे-धीरे गाँव की पगडंडी पर टहलने चले गए। लौटकर तुलसी के चौरे के सामने दीपक जलाया और ईश्वर को प्रणाम किया। बच्चे आश्चर्य से देखते रहे।
दिन बीतते गए। नाना–नानी बच्चों को कभी कबीर के दोहे सुनाते, कभी मीरा की भक्ति-गाथा, तो कभी तुलसीदास की चौपाइयाँ। कभी नानी उन्हें लोकगीत गाकर सुनातीं, तो कभी नाना कहानियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा देते। धीरे-धीरे बच्चों को लगा कि नानी–नाना के घर का हर पल एक नया पाठ है—साहित्य, संगीत और कला का, जीवन के अनुशासन का, और स्वास्थ्य की असली परिभाषा का।
गाड़ी धीरे-धीरे गाँव से दूर निकल गई, पर नानी–नाना के दिए संस्कार बच्चों के दिल में गहराई से उतर चुके थे। बरसात का वह गीला आँगन, तुलसी का चौरा, दीपक की लौ और थाली का हर कौर उनके जीवन की सबसे मीठी याद बन चुकी थी।
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