नानी का आँगन और असली स्वाद
बरसात का मौसम था। चारों ओर हरियाली नहाई हुई-सी लगती थी। गाँव का रास्ता कीचड़ से लथपथ था, पर नानी के आँगन में अलग ही दृश्य था। आँगन गोबर से लिपा तो गया था, पर बरसात में वह बार-बार गीला होकर अपनी चमक खो बैठता। तुलसी के चौरे पर जलता दीपक हवा से डगमगाता, लेकिन बुझता नहीं—मानो बरसात को भी यह संदेश दे रहा हो कि “सच्चा दीपक आँधियों से नहीं डरता।”
शहर से छुट्टियाँ मनाने आए दो बच्चे—आरव और सिया—नानी के आँगन में दौड़ते-भागते घूम रहे थे। उनके हाथों में अब भी पिज़्ज़ा और बर्गर के नाम का शोर बाकी था। आरव बोला, “नानी, क्या आपको पता है? शहर में नया फास्ट फूड वाला खुला है। वहाँ का चीज़ बर्गर तो मुँह में जाते ही घुल जाता है।”
सिया ने उत्साह से जोड़ा, “और मोमो! अरे नानी, मोमो खाते ही मज़ा आ जाता है। उसमें जो लाल तीखी चटनी होती है न, बस… उँगलियाँ चाटते रह जाओ।”
नानी ने दोनों की ओर देखा और मुस्कराईं। उनकी झुर्रियों में अनुभव की रेखाएँ झलक रही थीं। पास ही चूल्हे पर रोटी फूल रही थी और सब्ज़ी की महक हवा में तैर रही थी। नानी ने हौले से कहा, “अच्छा, तो तुम दोनों को स्वाद चाहिए? तो ज़रा आओ, आज तुमको असली स्वाद चखाती हूँ।”
थाली में गरम-गरम बाजरे की रोटी, मूँग की दाल, सब्ज़ी और साथ में घर का बना सफ़ेद मक्खन रखा गया। साथ में गुड़ का एक छोटा-सा टुकड़ा भी। बच्चों ने पहले तो नाक-भौं सिकोड़ी, पर जब पहला कौर मुँह में गया तो आँखें फैल गईं। “वाह नानी! यह तो… यह तो सच में बहुत अलग है। स्वादिष्ट भी और हल्का भी।”
नानी हँस पड़ीं, “बेटा, यही तो फर्क है। शहर का खाना पेट भर देता है, पर ताक़त नहीं देता। और गाँव का खाना ताक़त भी देता है और मन भी तृप्त करता है। खाने का असली उद्देश्य सिर्फ़ स्वाद नहीं, स्वास्थ्य है। स्वाद तो एक पल की खुशी है, लेकिन स्वास्थ्य जीवनभर का साथी है।”
तभी माँ भी आँगन में आ गईं। उन्होंने बच्चों को समझाते हुए कहा, “बच्चो, याद रखो—‘स्वास्थ्य के लिए खाओ, स्वाद के लिए नहीं।’ गरिष्ठ भोजन ज़ुबान को भाता है, पर पेट को बीमार कर देता है। वहीं सादा और पौष्टिक भोजन शरीर को मजबूती और आत्मा को शांति देता है।”
आरव सोच में पड़ गया। वह बोला, “लेकिन माँ, फास्ट फूड तो मज़ेदार होता है। उसमें मज़ा ज़्यादा आता है।”
नाना जी, जो पास ही तुलसी के चौरे के पास संध्या वंदन कर रहे थे, मुस्कराते हुए बोले, “मज़ा तो पंखे के नीचे बैठने में भी आता है, पर असली ताज़गी तो सुबह की ठंडी हवा में टहलने से मिलती है। स्वास्थ्य का सुख स्थायी होता है, स्वाद का सुख क्षणिक।”
नानी ने बच्चों को थाली दिखाते हुए कहा, “और हाँ, बेटा, थाली का खाना पूरा करना चाहिए। जितना भूख हो उतना ही लेना चाहिए। खाना बर्बाद करना पाप है। अन्न देवता का सम्मान करना सीखो। हर दाना किसी किसान की मेहनत से आता है।”
सिया ने धीरे-धीरे अपनी थाली का सारा खाना खत्म किया और गर्व से बोली, “नानी, देखो मैंने एक दाना भी नहीं छोड़ा।”
नानी की आँखों में चमक आ गई। “शाबाश बिटिया! यही तो असली संस्कार हैं।”
अगली सुबह बच्चों ने देखा कि नाना जी सूर्योदय से पहले उठकर आँगन में व्यायाम कर रहे थे। कभी आसन लगाते, कभी गहरी साँसें भरते। फिर वे धीरे-धीरे गाँव की पगडंडी पर टहलने चले गए। लौटकर तुलसी के चौरे के सामने दीपक जलाया और ईश्वर को प्रणाम किया। बच्चे आश्चर्य से देखते रहे।
आरव ने धीरे से पूछा, “नानी, नाना जी रोज़ ऐसा क्यों करते हैं?”
नानी ने स्नेह से समझाया, “बेटा, सुबह उठना जीवन में अनुशासन लाता है। व्यायाम शरीर को चुस्त रखता है। और ईश्वर का स्मरण मन को स्थिर रखता है। यही जीवन के असली सुख हैं। याद रखना—‘पहले स्वास्थ्य, फिर सम्पत्ति और फिर बाकी सब।’”
दिन बीतते गए। नाना–नानी बच्चों को कभी कबीर के दोहे सुनाते, कभी मीरा की भक्ति-गाथा, तो कभी तुलसीदास की चौपाइयाँ। कभी नानी उन्हें लोकगीत गाकर सुनातीं, तो कभी नाना कहानियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा देते। धीरे-धीरे बच्चों को लगा कि नानी–नाना के घर का हर पल एक नया पाठ है—साहित्य, संगीत और कला का, जीवन के अनुशासन का, और स्वास्थ्य की असली परिभाषा का।
छुट्टियाँ जब पूरी हुईं और बच्चे शहर लौटने लगे, तो दोनों की आँखें भर आईं। आरव ने नानी से कहा, “नानी, अब बर्गर-पिज़्ज़ा उतने अच्छे नहीं लगेंगे। आपकी रोटी-दाल में जो स्वाद है, वो कहीं और नहीं।”
सिया ने धीरे से कहा, “हाँ नानी, और हम खाना कभी बर्बाद नहीं करेंगे। जितना चाहिए, उतना ही लेंगे।”
नानी ने दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहा, “यही सीख है, बेटा। स्वाद की नहीं, स्वास्थ्य की आदत डालो। और परंपरा का मान रखना। यही संस्कार तुम्हें जीवनभर सही राह दिखाएँगे।”
गाड़ी धीरे-धीरे गाँव से दूर निकल गई, पर नानी–नाना के दिए संस्कार बच्चों के दिल में गहराई से उतर चुके थे। बरसात का वह गीला आँगन, तुलसी का चौरा, दीपक की लौ और थाली का हर कौर उनके जीवन की सबसे मीठी याद बन चुका था।
आशा है कि इस कहानी से आपको आपका बचपन और नानी का घर जरूर याद आया होगा। अगर कहानी पसंद आई तो साझा करना न भूलें।
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