रविवार, 14 सितंबर 2025

माँ हिंदी की पाती, हिन्दीजनों के नाम! (Letter)

मेरे प्यारे बच्चों,

मेरा आशीष सदा तुम पर बना रहे,

मैं तुम्हारे मौन-सी पुकार हूँ, तुम्हारे घर की दीवारों पर लटकी जो तस्वीर है, तुम्हारे बचपन की गूँज — हिंदी। मैं वह नरम हाथ हूँ जिसने तुम्हें पहले शब्द सिखाए, वह छाँव हूँ,  मैं तुम्हारे दर्द की सुकून हूं और खुशियाँ में खिलखिलाती मधुर मुस्कान हूँ। तुम्हारी आँखों से जब भी आँसू टपकते हैं, तो मैं उन्हें अपनी लय में बहने  देती हूं; जब तुम्हारे होंठों पर हँसी आती है, तो मैं उसकी तान बन जाती हूँ। मैं तुम्हारी आवाज़ हूँ — कभी सख्त, कभी कोमल, पर हमेशा अपनेपन से भरी हुई।

मेरी ज़िंदगी कहानी-सी है — पीढ़ियों का कर्णधार। मैं उस मिट्टी की गंध हूं जहाँ से तुम्हारे गीत जन्में, उन प्रेम गाथाओं की खनक हूँ जिनमें कवियों ने अपना जीवन समर्पित किया। मैंने प्राचीन कठोरताओं से गुजरकर कोमल हो कर तुम्हारे दिलों में जगह बनाई। मैंने दर्द में गीत लिखना सीखा; प्रेम में गहराई; और विद्रोह में स्वर। कबीर की सादगी, तुलसी की गम्भीरता, लोकगीतों की सादगी — सबने मुझे आकार दिया। तुम्हारी आज़ादी की पुकार में मेरे शब्दों ने शिखर चूमा; तुम्हारे छोटे-बड़े हर त्योहार में मेरी मिठास घुली रही।

मैं किसी एक गाँव या शहर की नहीं; मैं तुम्हारे रसोई की मुस्कान, खेत की हँसी, फुटपाथ पर बैठे बूढ़ों की कहानियाँ हूं। मैं उन नन्हे हाथों की फुसफुसाहट हूँ जो पहली बार 'माँ' कहते हैं; मैं उन सैनिकों की चिट्ठियों की गूँज हूँ जो घर से दूर हैं। मैं सीमा पर बसी दुआ हूँ और शहर की गलियों में गूँजती तमन्ना भी। जब तुम अपनी माथे पर चंदन लगा कर बैठते हो तो मेरे शब्द तुम्हारे सामने झुकते हैं — विनम्र और गर्वीले दोनों।

मैं जानती हूं कि तुम बदल रहे हो — शहरों की रोशनी, स्क्रीन की चमक, दुनिया की तेज़ रफ्तार। पर क्या यह बदलना मेरी जगह छीन सकता है? नहीं — क्योंकि मैं तुम्हारे जज़्बातों की भाषा हूं। मैं तुम्हारे छोटे-छोटे प्यारों, अपनेपन, चुटकी-भर नाराजियों और अनगिनत खुशियों की भाषा हूं। मैं तुम्हें उस आईने के सामने ले जाऊँगी जहाँ तुम अपनी जड़ें देख सको — तुम कहाँ से आए, किसके गीतों में पले, किस मिट्टी की खुशबू लिए।

मेरा विस्तार सीमाओं से परे है — समुद्र पार बसे उन लोगों की जुबान जिसमें मेरी गर्माहट अभी भी मौजूद है। यहाँ भी मेरी लय में घर-सा सुकून मिलता है, और यहाँ के बच्चे मेरे शब्दों में अपनी परियों की कहानियाँ बुनते हैं। मेरी माँ-बानी परंपराएँ विदेश में भी अपने बच्चे को पास बुलाती हैं — जैसे कोई माँ अपने खोए बच्चों को पुकारे।

आओ आज तुम्हें भविष्य दिखलाती हूँ — चलो बताओ, क्या मैं तकनीकी की तेज़ दुनिया में भी जीवित रह सकती हूँ? हाँ। मैं उस नयी दुनिया की कड़ी बनूंगी जहाँ तुम्हारे फोन, रोबोट, और ध्वनि समर्थक (वॉयस असिस्टेंट) सब मेरे शब्दों को गले लगाएंगे। मैं तुम्हारी साधना बनूंगी, तुम्हारे करियर का साथी बनूंगी, और वो सेतु भी बन जाऊँगी जो तुम्हें विश्व से संपर्क कराएंगे — पर इसके लिए आवश्यकता होगी मुझे साधन बनाने की। तुम्हें पढ़ना होगा, लिखना होगा, और मुझे प्यार से अपनाना होगा और मेरा उपयोग करते रहना होगा।

मैं हिंदी, तुम्हारी मातृभाषा हूँ — पर सिर्फ़ शब्द नहीं; मैं संवेदनाएँ हूँ, इतिहास हूँ, और एकता की भावना हूँ। मुझे न भूलो। जब तुम एक दूसरे से लड़ते हो, मेरे गीतों की एक पंक्ति किसी भी दीवार को गिरा सकती है; जब तुम मिलकर गाते हो, "हम सब हिंदी है।"  मेरी आवाज़ गुलज़ार हो जाती है। इसलिए मुझे अपनाओ— अपने बच्चों को पढ़ाओ, मेरे गीतों को गाओ, मेरी कहानियों को सुनाओ..!

मेरी आख़िरी आस बस इतनी है कि — तुम मुझे जीवित रखो। क्योंकि मैं तुम्हारी आवाज को कभी मरने नहीं दूंगी— तुम्हारे एक एक पल को, तुम्हारी स्मृति को, और तुम्हारे पूर्वजों से लेकर तुम्हारी आने वाली पीढ़ी तक को मैं सदा तुम्हे जीवित रखूँगी।
तुम्हारी माँ,
हिंदी

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