बुधवार, 27 अगस्त 2025

व्यक्तिगत स्वच्छता v/s सामाजिक स्वच्छता

व्यक्तिगत बनाम सार्वजनिक स्वच्छता

अपनी सफाई के साथ-साथ अपने आस पास के सार्वजनिक परिसरों की स्वच्छता बनाए रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।

व्यक्ति के जीवन में स्वच्छता का महत्व केवल बाहरी सौंदर्य या सामाजिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उसके स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और सामाजिक व्यवहार को भी गहराई से प्रभावित करती है1। जब हम व्यक्तिगत स्वच्छता की बात करते हैं, तो उसका आशय स्नान, दाँतों की सफाई, नाखून काटना, साफ कपड़े पहनना और शरीर को धूल-मिट्टी तथा रोगाणुओं से मुक्त रखना होता है2। दूसरी ओर, सार्वजनिक स्वच्छता एक व्यापक सामाजिक जिम्मेदारी है, जिसमें सड़क, पार्क, शौचालय, नालियाँ, बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन, नदी-तालाब आदि स्थानों को साफ-सुथरा रखना शामिल है3


आज हम देखते हैं कि आधुनिक जीवनशैली में लोग व्यक्तिगत स्वच्छता पर तो ध्यान देने लगे हैं... परंतु जब बात सार्वजनिक स्थानों की होती है तो वही लोग सड़क पर कचरा फेंकने, थूकने या प्लास्टिक बैग छोड़ने से परहेज नहीं करते4। यह द्वंद्व इस बात को स्पष्ट करता है कि हमारे समाज में व्यक्तिगत स्वच्छता को तो व्यक्तिगत गरिमा से जोड़ा गया है लेकिन सार्वजनिक स्वच्छता को अभी भी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं माना जाता।


भारत में 'स्वच्छ भारत अभियान' जैसे प्रयास इस सोच को बदलने के लिए किए जा रहे हैं5। इस अभियान ने लोगों को यह संदेश दिया कि साफ-सफाई केवल सरकारी दायित्व नहीं बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक दायित्व भी है। नागरिकों को प्रेरित किया गया कि वे न केवल अपने घर बल्कि आसपास के सार्वजनिक स्थलों की स्वच्छता की जिम्मेदारी लें।


अंततः कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है बल्कि यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं6। यदि व्यक्ति सचमुच स्वस्थ और सुरक्षित रहना चाहता है तो उसे स्वयं के साथ-साथ समाज की स्वच्छता में भी योगदान देना होगा।


संदर्भ

  1. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता अध्ययन, 2021
  2. व्यक्तिगत स्वच्छता गाइड, WHO रिपोर्ट
  3. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन, भारत सरकार
  4. शहरी जीवन और गंदगी पर अध्ययन, 2020
  5. स्वच्छ भारत अभियान, भारत सरकार, 2014
  6. सामाजिक स्वच्छता और नागरिक जिम्मेदारी, 2022

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