शनिवार, 12 जुलाई 2025

🌸 परंपरा की मिट्टी में रचे-बसे रंगों की बात! 🌸

भारतीय परंपरा की ज़मीन: चौक, ऐपन, रंगोली और कोलम का सांस्कृतिक महत्व

परंपरा की रंग-बिरंगी ज़मीन: चौक, ऐपन, रंगोली और कोलम का सांस्कृतिक महत्व

भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति में रंगों और प्रतीकों की अनोखी भूमिका रही है। उत्तर भारत का चौक, उत्तराखंड का ऐपन, पश्चिम भारत की रंगोली और दक्षिण का कोलम — ये सभी लोककलाएं केवल अलंकरण नहीं, बल्कि परंपरा, शुद्धता और शुभता के प्रतीक हैं। यह विश्वास सदियों पुराना है कि पवित्र भूमि पर देवी-देवता वास करते हैं, और इन कलाओं के माध्यम से हम उन्हें आमंत्रित करते हैं[1]

चौक पुरना भारत की स्त्रियों की परंपरागत दिनचर्या का भाग रहा है। गोबर, गेरू और चावल के आटे से भूमि को लीपकर चित्रित करना न केवल स्वच्छता का प्रतीक है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया भी मानी जाती है। उत्तराखंड का ऐपन, जो लाल मिट्टी की भूमि पर सफेद घोल से बनता है, देवपूजन, विवाह, नामकरण और अन्य मांगलिक अवसरों पर घर की गरिमा को बढ़ाता है[2]। यह न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि उसमें स्वस्तिक, अष्टदल, पदचिह्न जैसे चिह्न भारतीय संस्कृति के गूढ़ अर्थों को भी प्रकट करते हैं।

दक्षिण भारत में कोलम, विज्ञान, गणित और अध्यात्म का अद्भुत समन्वय है। इसमें प्रयुक्त आकृतियाँ त्रिकोण, वृत्त और मण्डल की ऐसी रचनाएँ हैं जो गणितीय संरचना पर आधारित होती हैं। कोलम को चावल के आटे से बनाया जाता है ताकि छोटे कीटों और जीवों को भोजन मिल सके — यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि पारिस्थितिक सह-अस्तित्व की साक्षात अभिव्यक्ति है[3]। वहीं, रंगोली में प्रयुक्त रंग और चित्रात्मक भाषा हमारी भावनाओं और सामाजिक मूल्यों को जीवंत करती है। यह सृजनात्मकता, अध्यात्म और सामुदायिक सहभागिता का माध्यम रही है।

इन कलाओं में छिपी हुई लोकस्मृति और पीढ़ियों से चला आ रहा सांस्कृतिक बोध आज भी प्रासंगिक है। मनुस्मृति और वास्तुशास्त्र में बताया गया है कि शुद्ध और सुशोभित आंगन में ही दिव्यता निवास करती है[4]। यही कारण है कि प्रत्येक शुभ अवसर पर इन चित्रकलाओं का प्रचलन देखा जाता है। इन परंपराओं को सहेजना केवल अतीत को स्मरण करना नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोए रखना भी है। आज जब शहरों में यह परंपराएं लुप्त हो रही हैं, तब इन्हें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है — जैसे उत्तराखंड के ऐपन को GI टैग दिया जाना एक सकारात्मक प्रयास है[5]

इन रंगों की रेखाएं केवल चित्र नहीं, एक जीवंत परंपरा की पहचान हैं, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ती हैं। ये केवल आंगन की सुंदरता नहीं बढ़ातीं, बल्कि मन और आत्मा को पवित्र करने वाली सृजन-धारा हैं — और यही है भारत की आत्मा की असली सजावट।

📌 संदर्भ (Footnotes):

1. वास्तुशास्त्र के अनुसार, भूमि की शुद्धता और सजावट शुभता की ओर संकेत करती है।

2. ऐपन आर्ट उत्तराखंड की पारंपरिक लोककला है, जो मांगलिक अवसरों पर बनाई जाती है।

3. कोलम में प्रयुक्त चावल का आटा इको-फ्रेंडली और जीवों के लिए उपयोगी माना गया है।

4. मनुस्मृति व अन्य धर्मशास्त्रों में स्त्रियों के गृह कार्यों को धार्मिक महत्व प्रदान किया गया है।

5. उत्तराखंड के ऐपन को 2021 में GI टैग से सम्मानित किया गया।

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