कृत्रिम बुद्धिमता से खो रहे है हम अपनी स्मरण शक्ति?
8 सेकंड
औसत ध्यान अवधि
91%
डिजिटल मेमोरी उपयोग
10 अंक
IQ में संभावित कमी
आज के डिजिटल युग में कृत्रिम बुद्धिमता ने हमारे जीवन में क्रांति ला दी है। स्मार्टफोन से लेकर स्मार्ट होम तक, AI हर जगह मौजूद है। लेकिन क्या यह तकनीकी प्रगति हमारी मानसिक क्षमताओं को प्रभावित कर रही है? विशेषज्ञों का मानना है कि AI के बढ़ते उपयोग से मानव मस्तिष्क की सोचने की क्षमता में गिरावट आ सकती है। न्यूरोसाइंस के अनुसार, मानव मस्तिष्क की विशेषता "न्यूरोप्लास्टिसिटी" है - यानी वह अपने वातावरण के अनुसार ढलता रहता है। जब हम लगातार AI उपकरणों पर निर्भर रहते हैं, तो हमारा मस्तिष्क उन कार्यों को करना बंद कर देता है जो AI कर रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के अनुसंधानकर्ता डॉ. माइकल मर्जेनिच के अनुसार, "जो उपयोग नहीं होता, वह खत्म हो जाता है" - यह सिद्धांत मस्तिष्क पर भी लागू होता है।
गूगल इफेक्ट या डिजिटल एम्नेशिया एक वास्तविक समस्या बन गई है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक डॉ. बेट्सी स्पैरो के 2011 के अध्ययन से पता चला कि लोग उन जानकारियों को याद रखने में कम सक्षम हो गए हैं जो उन्हें लगता है कि डिजिटल रूप में उपलब्ध है। 2019 में कैसपर्स्की लैब के सर्वेक्षण में पाया गया कि 91% लोग अपने फोन या डिवाइس को "डिजिटल मेमोरी क्रच" के रूप में उपयोग करते हैं। Microsoft के 2021 के अध्ययन के अनुसार, औसत व्यक्ति की ध्यान अवधि मात्र 8 सेकंड रह गई है, जबकि 2000 में यह 12 सेकंड थी।
🧠 मानसिक क्षमता में गिरावट का स्तर
चिंताजनक आंकड़े: विभिन्न अध्ययनों के अनुसार संज्ञानात्मक क्षमताओं में औसत गिरावट
कैलकुलेटर और AI टूल्स की उपलब्धता के कारण लोगों की मानसिक गणना की क्षमता घट रही है। ब्रिटेन की नेशनल न्यूमेरेसी चैरिटी के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, 49% वयस्क बुनियादी गणित में कमजोर हैं। MIT के शोधकर्ताओं ने पाया कि GPS के अधिक उपयोग से लोगों की दिशा-ज्ञान की क्षमता में 15-20% तक की कमी आई है। इसी तरह, पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के अनुसार, स्मार्टफोन का अधिक उपयोग IQ में 10 अंकों तक की कमी का कारण बन सकता है।
AI द्वारा तुरंत समाधान मिल जाने से लोग समस्या-समाधान में गहराई से नहीं सोचते। हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल की प्रोफेसर टेरेसा अमाबाइल के अनुसार, सृजनात्मकता के लिए समय, धैर्य और गहरी चिंतन की आवश्यकता होती है। जब AI तुरंत जवाब देता है, तो यह प्रक्रिया बाधित होती है। एआई चैटबॉट्स और वर्चुअल असिस्टेंट्स के बढ़ते उपयोग से लोगों की आमने-सामने बातचीत की क्षमता भी घट रही है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, लॉस एंजिल्स (UCLA) के अध्ययन के अनुसार, बच्चों में चेहरे के भावों को पहचानने की क्षमता में 15% की गिरावट आई है।
🧘♂️
डिजिटल डिटॉक्स
नियमित रूप से तकनीक से दूरी बनाना
🧩
मानसिक व्यायाम
पहेलियाँ और मानसिक गणना का अभ्यास
📚
गहरी पढ़ाई
किताबों को समझकर पढ़ना
💬
व्यक्तिगत बातचीत
आमने-सामने की बातचीत को प्राथमिकता
Common Sense Media के अनुसार, किशोर दिन में औसतन 7-9 घंटे स्क्रीन का उपयोग करते हैं, जो उनकी संज्ञानात्मक क्षमताओं को प्रभावित कर रहा है। हालांकि स्थिति चिंताजनक है, लेकिन AI का सही उपयोग फायदेमंद हो सकता है। विशेषज्ञ सुझाते हैं कि नियमित रूप से तकनीक से दूरी बनाना, पहेलियां और मानसिक गणना का अभ्यास करना, किताबों को धीरे-धीरे और समझकर पढ़ना, तथा आमने-सामने की बातचीत को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
🎯 निष्कर्ष
AI निस्संदेह एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग हमारी संज्ञानात्मक क्षमताओं के लिए हानिकारक हो सकता है। आवश्यकता है संतुलन की - जहां हम AI का लाभ उठाएं लेकिन अपनी मानसिक क्षमताओं को भी बनाए रखें। जैसा कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था, "तकनीक को मानवता को पीछे नहीं छोड़ना चाहिए।" समय की मांग है कि हम AI के साथ सह-अस्तित्व का तरीका सीखें, न कि उस पर पूर्ण निर्भर हो जाएं।
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