पिछले सप्ताह मैंने राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक, चित्तौड़गढ़ का विजय स्तंभ देखने का निश्चय किया। इस यात्रा की योजना बनाते समय मेरे मन में एक अनोखा उत्साह था, मानो मैं भारतीय इतिहास की जड़ों से जुड़ने जा रहा हूँ। मैंने हमेशा से चित्तौड़गढ़ की कई रोचक कहानियाँ सुनी थीं, लेकिन इस बार मैं खुद इस ऐतिहासिक स्थल पर जाकर उसकी भव्यता का अनुभव करना चाहता था।
जैसे ही मैंने चित्तौड़गढ़ किले में प्रवेश किया, मेरे मन में एक विशेष प्रकार की गर्व की भावना जाग उठी। यह किला भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है, और इसके विशाल द्वार से प्रवेश करते ही इतिहास जीवंत हो उठा। यहाँ के हर पत्थर, हर दीवार में शौर्य और बलिदान की कहानियाँ छिपी हुई हैं। लेकिन मेरा मन विजय स्तंभ को देखने के लिए व्यग्र था, जिसे महाराणा कुम्भा ने 1440 ईस्वी में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था।
जब मैंने पहली बार विजय स्तंभ को देखा, तो मैं उसकी ऊँचाई और स्थापत्य सौंदर्य से स्तब्ध रह गया। यह 37 मीटर ऊँचा स्तंभ दूर से ही अपनी भव्यता और उत्कृष्टता से मन मोह लेता है। 9 मंजिला इस स्तंभ की जटिल नक्काशियां और सुंदर मूर्तियां भारतीय शिल्पकारों की अद्वितीय कला का प्रतीक हैं। जैसे-जैसे मैं इसके पास पहुंचा, मेरे भीतर एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी, मानो मैं इतिहास के किसी स्वर्णिम अध्याय का हिस्सा बन गया हूँ।
विजय स्तंभ के अंदर प्रवेश करते ही मैंने उसके भीतर की सीढ़ियों की ओर देखा। मैं जैसे-जैसे ऊपर की ओर चढ़ता गया, हर मंजिल पर देवी-देवताओं की मूर्तियों और पौराणिक कथाओं के दृश्य उकेरे हुए थे। इन नक्काशियों को देखते ही मन में यह सवाल उठने लगा कि कैसे हमारे पूर्वजों ने बिना किसी आधुनिक तकनीक के इतनी बारीकी और सटीकता से इस कृति का निर्माण किया होगा। हर मंजिल पर ठहरकर मैंने इन कलाकृतियों को निहारने का प्रयास किया, और हर बार उनमें कुछ नया, कुछ अनोखा दिखा।
जब मैं विजय स्तंभ की सबसे ऊपरी मंजिल पर पहुँचा, तो वहाँ से पूरे चित्तौड़गढ़ किले का विहंगम दृश्य देखने को मिला। हवा में हल्की ठंडक थी, और दूर-दूर तक फैला किला मेरे सामने था। उस पल, मुझे महसूस हुआ कि मैं सिर्फ एक पर्यटक नहीं हूँ, बल्कि इस किले के इतिहास का साक्षी भी हूँ। यह दृश्य मेरे मन में गहराई से बस गया, और मैं गर्व महसूस कर रहा था कि हमारे पूर्वजों ने अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए किस तरह से संघर्ष किया था।
यह यात्रा मेरे लिए सिर्फ एक पर्यटक स्थल की खोज नहीं थी, बल्कि यह मेरे इतिहास से जुड़ने का एक मौका था। मैंने विजय स्तंभ की भव्यता में भारतीय कला, संस्कृति और वीरता का अनूठा मिश्रण देखा। वहाँ खड़े होकर मुझे महसूस हुआ कि यह स्तंभ केवल पत्थरों से बनी संरचना नहीं है, बल्कि यह हमारे गौरवशाली अतीत का एक जीवंत प्रमाण है।
विजय स्तंभ से उतरते समय मेरे मन में संतोष था, और मैं सोच रहा था कि इस तरह की धरोहरें हमें न केवल अपने अतीत को समझने का अवसर देती हैं, बल्कि हमें भविष्य के लिए प्रेरित भी करती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके बहुमूल्य कॉमेंट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।