एक बंदर, शहर के अंदर ! क्यों और कैसे ?
सुबह की पहली किरण के साथ ही काले मुंह वाला लंगूर राजू अपने झुंड के साथ घने जंगल की ऊंची शाखाओं पर उछल-कूद कर रहा था। पेड़ों की हरी-भरी छतरी उसका घर थी, जहाँ वह अपनी माँ, भाई-बहनों और झुंड के अन्य साथियों के साथ सुरक्षित और खुश रहता था। लेकिन आज उसकी किस्मत ने अचानक पलटा खा लिया।
जंगल के किनारे खड़े एक ट्रक पर केलों से भरी टोकरियाँ देखकर राजू का मन ललचा गया। भूख से व्याकुल होकर वह चुपके से ट्रक पर चढ़ गया और केले खाने में इतना मग्न हो गया कि उसे पता ही नहीं चला कब ट्रक चल पड़ा। जब उसकी नींद खुली, तो चारों ओर ऊंची इमारतें, शोर-शराबा, गाड़ियों का धुआँ और भीड़-भाड़ थी। उसका हरा-भरा जंगल कहीं दूर छूट गया था। राजू घबरा गया। वह इधर-उधर भागने लगा, पर हर जगह सीमेंट के जंगल थे। पेड़ नाममात्र के थे और वे भी इतने छोटे कि उन पर चढ़कर भी उसे अपना घर नहीं दिख सकता था। शहर की अजनबी दुनिया में वह बिल्कुल अकेला और असहाय था।
राजू जब भूख से व्याकुल होकर किसी दुकान के पास जाता, तो लोग उस पर पत्थर फेंकते। बच्चे उसे छड़ियों से भगाते। कुछ लोग उसे देखकर चिल्लाते, "भगाओ इस बंदर को! दुकान का सामान खराब कर देगा।" कोई उसे पकड़ने के लिए जाल लेकर आता, तो कोई उसे डराने के लिए शोर मचाता। राजू को समझ नहीं आ रहा था कि उसने क्या गलती की है। जंगल में तो वह स्वतंत्र था, पेड़ों पर उछलता-कूदता, फल खाता और अपने साथियों के साथ खेलता था। यहाँ हर जगह खतरा था, हर कदम पर डर था। रात में जब वह किसी पेड़ पर छिपकर सोने की कोशिश करता, तो सड़क की रोशनी और वाहनों का शोर उसे परेशान करता। उसे अपनी माँ की याद आती, अपने झुंड की याद आती।
राजू की कहानी केवल एक लंगूर की कहानी नहीं है, बल्कि हजारों वन्य जीवों की व्यथा है। आज मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताओं ने जंगलों को निगल लिया है। शहरीकरण के नाम पर घने वन काटे जा रहे हैं। जहाँ कभी पेड़ों की घनी छाया होती थी, वहाँ अब कंक्रीट के जंगल खड़े हैं। वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। सड़कें और रेलवे लाइनें जंगलों को टुकड़ों में बाँट रही हैं, जिससे जानवर अपने झुंड से बिछड़ जाते हैं। भोजन और पानी की तलाश में वे मानव बस्तियों में आने को मजबूर होते हैं, जहाँ उनका स्वागत पत्थरों और लाठियों से होता है।
राजू जैसे अनगिनत जीवों को बचाने के लिए हमें सोचना होगा। विकास आवश्यक है, परंतु प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर। हमें वन्य गलियारे बनाने होंगे, जिससे जानवर सुरक्षित रूप से एक जंगल से दूसरे जंगल जा सकें। जंगलों के आसपास मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित करना होगा। शिक्षा भी महत्वपूर्ण है। लोगों को समझाना होगा कि वन्य जीव हमारे दुश्मन नहीं, बल्कि प्रकृति के महत्वपूर्ण अंग हैं। वे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखते हैं। यदि हम उन्हें नष्ट करेंगे, तो अंततः हम स्वयं को ही नष्ट करेंगे।
राजू आज भी शहर की सड़कों पर भटक रहा है, अपने घर की तलाश में। उसकी आँखों में सवाल है - क्या विकास के लिए प्रकृति का विनाश आवश्यक है? क्या मनुष्य और वन्य जीव साथ नहीं रह सकते? यह प्रश्न हम सभी से है। विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना हमारी ज़िम्मेदारी है। आने वाली पीढ़ियों के लिए हरे-भरे जंगल और वन्य जीवों की विविधता सहेजना हमारा कर्तव्य है। राजू की व्यथा हमें याद दिलाती है कि धरती केवल मनुष्यों की नहीं, बल्कि सभी जीवों का घर है।
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