बुधवार, 30 जुलाई 2025

भोजन में सफेद चीजे घोल रहीं हैं मीठा जहर...

सफेदी पहनने में ही अच्छी है, खाने में रखे दूर
"माँ की अलमारी में करीने से रखी हुई धुली-धुली सफेद साड़ी की गंध अब भी याद है। सफेदी का मतलब तब था — सादगी, पवित्रता, और शांति। पर अब, उसी सफेदी ने हमारी थाली में घुसकर बीमारी, थकान और मौत के बीज बो दिए हैं।"

आपने गौर किया होगा — हमारे कपड़े जितने उजले हो रहे हैं, हमारी प्लेट उतनी ही फीकी और कृत्रिम हो चली है। मैदा की चकाचौंध में पोषण बुझ गया, चीनी की मिठास में रोग पलने लगे, और नमक की चुटकी ने धीरे-धीरे पूरे शरीर को जकड़ लिया। यह सिर्फ संयोग नहीं है — यह आदतों की साजिश है, जो हमें सभ्य दिखाते हुए अंदर से तोड़ रही है।

सोचिए, क्या यह वही भोजन है जो किसी दादी माँ ने अपने पोते के लिए बनाया होता? क्या यह वही स्वाद है जिसमें मिट्टी, धूप, हल्दी और ममता की मिलावट होती थी? नहीं... अब तो हर निवाला फैक्ट्री से आता है — परिष्कृत, रासायनिक, और धोखेबाज़। यह लेख कोई साधारण पोषण सलाह नहीं है। यह एक आह्वान है — उस सफेदी से दूर जाने का जो खाने की थाली में नज़र आती है, लेकिन ज़िंदगी से रंग छीन लेती है।

नमक, जो भोजन का स्वाद बढ़ाता है, आवश्यकता से अधिक होने पर रक्तचाप बढ़ाने, हृदय रोगों को जन्म देने और गुर्दों की कार्यप्रणाली को बिगाड़ने का कारण बन सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट कहती है कि एक व्यक्ति को दिनभर में 5 ग्राम से अधिक नमक नहीं लेना चाहिए¹, जबकि हम औसतन इससे दुगुना या तिगुना सेवन करते हैं।

यही हाल चीनी का है, जो मीठे स्वाद के साथ हमारे शरीर में अनेक गंभीर बीमारियाँ लाती है। यह न केवल टाइप 2 डायबिटीज़, मोटापा और डिप्रेशन जैसी समस्याओं को जन्म देती है, बल्कि यह एक लत की तरह व्यवहार करती है – जितना खाओ, उतनी और चाह लगती है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय² और American Heart Association³ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के शोध बताते हैं कि चीनी शरीर में सूजन को बढ़ाती है और मस्तिष्क की संरचना को भी प्रभावित कर सकती है।

मैदा, जो सफेद ब्रेड, पेस्ट्री, पिज़्ज़ा और नूडल्स जैसी चीज़ों में पाया जाता है, मूल रूप से गेहूं से सभी पोषक तत्व निकालकर बनाया गया एक रिफाइंड प्रोडक्ट है। इसमें न तो फाइबर होता है, न ही कोई आवश्यक मिनरल। यह न केवल पाचन को प्रभावित करता है, बल्कि शरीर में चर्बी को बढ़ाता है और ऊर्जा को कम करता है।

भारत के कई स्कूलों में किए गए अध्ययनों में देखा गया कि जिन बच्चों को मैदे, चीनी और अधिक नमक से दूर रखा गया, उनकी एकाग्रता, ऊर्जा स्तर और रोग प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ। WHO के South Asia Nutrition Program की रिपोर्ट⁴ इसकी पुष्टि करती है। यह भी पाया गया कि बच्चे अधिक सक्रिय और खुशमिजाज हो गए।

डॉ. कैल्डवेल एस्सेल्सटिन⁵ जैसे चिकित्सक मानते हैं कि प्रोसेस्ड फूड्स, विशेष रूप से ये तीन सफेद तत्व, आज की जीवनशैली की गंभीर बीमारियों की जड़ हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)⁶ भी मानती है कि हमारे खानपान में प्रोसेस्ड और रिफाइंड वस्तुओं का बढ़ता हस्तक्षेप, भारत में बीमारियों की दर बढ़ाने वाला प्रमुख कारण बन रहा है।

यदि हम अपने भोजन को प्राकृतिक स्वरूप में स्वीकार करें – जैसे साबुत अनाज, ताजे फल-सब्जियाँ, गुड़, शहद, रागी, ज्वार, बाजरा आदि – तो हम बीमारियों को काफी हद तक दूर रख सकते हैं। नमक और चीनी की मात्रा पर नियंत्रण और मैदे के स्थान पर पारंपरिक विकल्पों का उपयोग हमारे स्वास्थ्य के लिए वरदान हो सकता है।

यह न सिर्फ शरीर को स्वस्थ बनाता है, बल्कि एक जिम्मेदार उपभोक्ता बनने की दिशा में भी प्रेरित करता है। यह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है — जहाँ हम फिर से माँ के हाथों के खाने की तरफ लौटते हैं, न कि माइक्रोवेव के टाइमर की बीप की तरफ।

इसलिए अब समय आ गया है कि हम "सफेदी" के पीछे भागने की बजाय अपने भोजन में संतुलन और समझदारी लाएं। कपड़ों में भले ही सफेदी हमारी सुंदरता को बढ़ाए, पर थाली में यह हमें भीतर से खोखला कर सकती है। यही कारण है कि आज की चेतावनी यह है — सफेदी पहनने में ही अच्छी है, खाने में रखे दूर।
🔍 संदर्भ / References
1. WHO Guidelines on Sodium Intake (2012)
https://www.who.int/publications/i/item/9789241504836
2. Harvard T.H. Chan School of Public Health – Sugar and Health
https://www.hsph.harvard.edu/nutritionsource/carbohydrates/added-sugar-in-the-diet/
4. WHO South Asia School Nutrition Pilot Study (2021)
Regional report on dietary habits and behavioral change in school children.
5. Caldwell Esselstyn, M.D. – "Prevent and Reverse Heart Disease" (2007)
6. ICMR–NIN Report on Processed Food and Disease Trends in India (2020)
National Institute of Nutrition, Hyderabad.

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