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विद्या की आधिष्ठात्री देवी सरस्वती |
भारतीय संस्कृति में ऋतुओं का विशेष स्थान है, और वसंत पंचमी इसका एक उज्ज्वल उदाहरण है। यह पर्व ऋतु परिवर्तन का संदेश लेकर आता है, जब ठिठुरन भरी सर्दी विदा लेती है और नवजीवन का संचार होता है। वसंत पंचमी केवल मौसम का बदलाव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक चेतना का प्रतीक भी है।
वसंत पंचमी भारतीय परंपरा में विशेष स्थान रखती है। इसे विद्या, संगीत, कला और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की आराधना के रूप में मनाया जाता है। यह दिन ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करने का अवसर प्रदान करता है, जब विद्यार्थी और शिक्षक माँ सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु उनकी पूजा करते हैं।
वसंत पंचमी केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और सामाजिक समरसता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने की परंपरा है, क्योंकि पीला रंग समृद्धि, ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक माना जाता है। खेतों में लहलहाती सरसों की फसलें, आम की बौर और कोयल की मधुर कूक इस ऋतु की सुंदरता को और बढ़ा देती हैं।
वसंत पंचमी के महत्व को पौराणिक कथाओं से भी जोड़ा जाता है। एक मान्यता के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के दौरान जब पृथ्वी पर नीरसता और मौन देखा, तो उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़ककर माँ सरस्वती को प्रकट किया। उनके वीणा का प्रथम नाद पृथ्वी पर गूँजा, जिससे संसार में शब्द, संगीत और ज्ञान का संचार हुआ। तभी से यह दिन माँ सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इतिहास के पन्नों में भी वसंत पंचमी का उल्लेख मिलता है। राजा भोज, जिन्होंने विद्या और कला को बहुत प्रोत्साहित किया, इस दिन माँ सरस्वती की विशेष आराधना करते थे।
"विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।"
शिक्षा मानव जीवन की आधारशिला है, और वसंत पंचमी शिक्षा के प्रति जागरूकता और समर्पण का पर्व है। भारत के कई विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में इस दिन विशेष प्रार्थना सभाएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बच्चे अपनी पढ़ाई प्रारंभ करने के लिए इस दिन को शुभ मानते हैं।
वसंत पंचमी का उत्सव भारत के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है। उत्तर भारत में पतंगबाजी का विशेष महत्व है। पतंगों की उड़ान न केवल आकाश में रंगों का उत्सव रचती है, बल्कि यह हमारी आकांक्षाओं और सपनों को भी ऊँचाइयों तक पहुँचाने का प्रतीक है। बंगाल और ओडिशा में इस दिन माँ सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है। राजस्थान में इसे 'गुलाबी वसंत' कहा जाता है, जहाँ विशेष लोकगीत और नृत्य होते हैं।
आज के दौर में, जब तकनीक और व्यस्तता के कारण लोग अपनी सांस्कृतिक जड़ों से दूर हो रहे हैं, वसंत पंचमी हमें अपनी परंपराओं से जोड़ने का कार्य करती है। यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि ज्ञान, कला और प्रकृति के प्रति हमारा समर्पण अटूट रहना चाहिए।
वसंत पंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उत्सव है जीवन के उल्लास का, शिक्षा के महत्व का और प्रकृति के सौंदर्य का। इस दिन माँ सरस्वती का आह्वान हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। हमें चाहिए कि हम इस पावन दिन को न केवल धार्मिक भावना से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के साथ भी मनाएँ, ताकि हमारे जीवन में शिक्षा, प्रेम और उल्लास का वसंत सदा बना रहे।
"सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।"
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