वाराणसी, जो भारतीय संस्कृति और साहित्य का गढ़ माना जाता है, आज 28 दिसंबर 2024 को अपने एक मूर्धन्य साहित्यकार श्रीनाथ खंडेलवाल को खो बैठा। वे 2023 में पद्मश्री से विभूषित और अस्सी करोड़ की मिल्कियत के मालिक लगभग 500 पुस्तकों के रचनाकार व अनुवादक थे। उन्होंने महाभारत, गीता, वेद, पुराण, तंत्र आदि की कई दुर्लभ किताबों का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद भी किया। सामाजिक विडंबना देखिए हिंदी के ये आध्यात्मिक साहित्यकार मृत्यु पश्चात अपनों के चार कंधे के लिए भी तरस गए। उनकी मृत्यु वाराणसी के 'काशी कुष्ठ वृद्धा आश्रम' में हुई, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए। यह घटना न केवल साहित्यिक जगत के लिए, बल्कि हमारे समाज के लिए भी एक बड़ा प्रश्न खड़ा करनी है: क्या हम अपनी जड़ों और अपने बुजुर्गों के प्रति इतने उदासीन हो गए हैं कि उनके अंतिम समय में भी उन्हें परिवार का सहारा भी नहीं दे सकते? उनकी मृत्यु ने हमें हमारी जिम्मेदारियों और संवेदनाओं पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है।
जीवन और साहित्यिक योगदान
1935 में वाराणसी के एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में जन्मे श्रीनाथ खंडेलवाल का जीवन साहित्य और समाजसेवा के प्रति समर्पित रहा।
उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर किया और अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत कविताओं और निबंधों से की।
खंडेलवाल जी ने संस्कृत साहित्य को हिंदी में अनुवाद कर इसे आम जनता तक पहुँचाने का अनमोल कार्य किया।
उनकी अनूदित कृतियों में "श्रीरघुवंशम" (कालिदास का महाकाव्य), "मेघदूत" और "अभिज्ञान शाकुंतलम" विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
इन अनुवादों में उनकी गहन विद्वता और भाषा पर अद्भुत पकड़ झलकती है। उन्होंने कहा था -
"संस्कृत हमारे अतीत का अमृत है, और हिंदी उसका आधुनिक कलश।"
उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ, जैसे "जीवन के परे", "अंधेरों का सूर्य", और "शब्दों की छाया", समाज के हर पहलू को गहराई से उजागर करती हैं।
खंडेलवाल जी को याद करते हुए उनके समकालीन साहित्यकार, डॉ. महेश त्रिपाठी, ने कहा था कि -
"खंडेलवाल जी का साहित्य मानवता का दर्पण है। उनके शब्द जीवन को परिभाषित करने की शक्ति रखते हैं।"
खंडेलवाल जी ने स्वयं अपनी एक कृति में लिखा था कि -
"मृत्यु से बड़ा सत्य कुछ नहीं, और सत्य से बड़ा साहित्य कुछ नहीं।"
उनके अनन्य मित्र और सहयोगी प्रो. शरद मिश्रा ने उनके निधन पर कहा -
"वे केवल साहित्यकार नहीं, समाज के मार्गदर्शक थे। उनकी अनुपस्थिति से साहित्य की आत्मा शून्य हो गई है।"
परिवार का विमुख होना: समाज का आईना
श्रीनाथ खंडेलवाल ने अपना पूरा जीवन साहित्य और समाज को समर्पित किया, लेकिन व्यक्तिगत जीवन में वे उपेक्षा का शिकार रहे।
उनकी पत्नी का निधन 2009 में हो गया था। उनके दो बेटे और एक बेटी, जो विदेश में रहते हैं, ने उनसे वर्षों तक संपर्क नहीं किया।
वृद्धाश्रम में उन्होंने अकेलेपन में अपने दिन बिताए। उनकी मृत्यु के बाद जब वृद्धाश्रम के कर्मचारियों ने परिवार को सूचित किया,
तो कोई भी अंतिम संस्कार के लिए नहीं आया। अंततः वृद्धाश्रम के कर्मचारियों, कुछ समाजसेवी एवं साहित्यकारों ने उनका अंतिम संस्कार किया।
संस्कारों की चेतावनी और समाज का दायित्व
यह घटना आज की पीढ़ी के लिए एक कड़वी सच्चाई उजागर करती है। खंडेलवाल जी ने एक बार लिखा था -
"अगर बुजुर्ग हमारे जीवन का आशीर्वाद हैं, तो उनकी उपेक्षा हमारा सबसे बड़ा पाप है।"
यह विचार हमें यह समझने पर मजबूर करता है कि परिवार केवल भौतिक संबंध नहीं, बल्कि भावनाओं और जिम्मेदारियों का बंधन है।
श्रद्धांजलि और प्रेरणाा
खंडेलवाल जी के निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनके सम्मान में वाराणसी के साहित्य मंडल ने विशेष सभा आयोजित की।
सभा में उनके प्रिय शिष्य अमितेश वर्मा ने कहा -
"वे साहित्य की वह अमिट ज्योति हैं, जो पीढ़ियों तक हमें रोशनी देती रहेगी।"
आज की पीढ़ी को यह समझना होगा कि बुजुर्गों का सम्मान और देखभाल हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
श्रीनाथ खंडेलवाल जैसे महान साहित्यकार का जीवन और उनकी दुखद मृत्यु हमें यह सिखाती है कि मानवीय संवेदनशीलता और परिवार का महत्व किसी भी भौतिक उपलब्धि से बड़ा है।
🙏 श्रीनाथ खंडेलवाल को शत-शत नमन। 💐
इस आलेख को सुनने के लिए इस ऑडियो बॉक्स को क्लिक करें -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके बहुमूल्य कॉमेंट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।