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सामूहिक भोज की भट्ठी |
दीपावली से पहले, पर्व के व्यंजनों को मिल-जुलकर बनाने की अनूठी परम्परा का ज़िक्र इस आलेख में है, जहाँ पूरा मोहल्ला मिलकर व्यंजन बनाता था। हँसी-ठिठोली, गीतों की गूंज और व्यंजनों की महक, पर्व का माहौल तो ऐसा ही होना चाहिए। दशहरे का समापन होते ही घरों में दीपावली की तैयारियाँ शुरू हो जाती थीं। बच्चों के कपड़े, जूते और घरेलू ज़रूरत की चीज़ें जो छूट गई होती थीं, वो लाई जाती थीं। नए कपड़े देखकर तो हम फूले नहीं समाते थे क्योंकि दीपावली या जन्मदिन में ही नए कपड़े ख़रीदने का चलन था। हालांकि, उस ज़माने में कपड़ों की इतनी अहमियत नहीं थी। बन गए तो ठीक वर्ना माँ शादी-ब्याह में मिले कपड़ों की थैली में से कपड़े निकालकर फ्राॅक या साड़ी का लहंगा-ब्लाउज़ सिल देतीं और हम ख़ुश हो जाते। मज़ा तो तब आता जब हमारे घर में भट्ठी पूजन होता।
सब व्यवस्थित होने के बाद भट्ठी में स्वस्तिक बनाते, कलावा बाँधकर माँ चार आने का सिक्का रखतीं और सब महिलाएं अग्नि प्रज्वलित करते हुए गणेश जी के गीत गातीं -
‘हमारे घर आवत हैं गणपति।जब दूंद दुंदाड़ो बाबो गणपति नाचै,और नाचै रिद्धि-सिद्धि,हमारे घर आवत हैं गणपति।’
हम बच्चे तालियाँ बजाकर संगत करते। अब बड़ी-सी कड़ाही चूल्हे पर रखी जाती और उसकी भी पूजा की जाती और सबसे पहले देसी घी डाला जाता और सबके द्वारा लाया गया बेसन डालकर धीमी-धीमी आँच पर सिंकाई होती तो ख़ुशबू सूँघकर चाचा, मामा भी आ जाते। गीत देवी जी, हनुमान जी सबके गाए जाते। फिर आदमियों की राय ली जाती कि बेसन की सिंकाई हुई या नहीं। दो महिलाओं द्वारा गर्म कड़ाही को कपड़े से पकड़कर नीचे रखा जाता। चाशनी बनती, मेवे डलते और सारी सामग्री तीन बड़ी परातों में बराबर-बराबर डाल दी जाती। चाँदी का वर्क लगाकर घंटे भर बाद मामी उसकी बराबर चक्कियाँ काटकर साफ़ कपड़े से ढककर अंदर रख आतीं।
दूसरे दिन भी यही सिलसिला चलता और सबके नमकीन भुजिये एक साथ छह किलो बेसन के बनाए जाते। तीन महिलाएँ कड़ाही पर रखी टिकटी (सेव बनाने का लोहे की जाली वाला सांचा) रखकर हाथ से सेव बनातीं। ऐसे ही आस-पास के घरों से पंद्रह दिन पहले से ही मोहल्ला व्यंजनों की महक से भरा रहता। मिल-जुलकर सारे काम होते। कोई कमी रह भी जाती तो आस-पड़ोस में कटोरी लेकर मांगने में भी संकोच नहीं होता था क्योंकि वहां लोग नहीं रिश्ते रहते थे।
घर में माँ, बाऊजी, बाबा, दादी और वहाँ के लगभग हज़ार घरों में चाचा जी, ताऊजी, मासी, चाची, भैया, भाभी और भी कई रिश्ते रहते थे जो परिवार के ना होकर भी ख़ास लगते थे। साठ साल बाद आज भी उनमें से कुछ लोग अचानक मिलते हैं तो हम उनके बेटी-दामाद ही होते हैं और शगुन भी मिलता है। जब भी बड़े त्योहार आते हैं यादें स्वत: ही ताज़ा होने लगती हैं।
सहभोज और आधुनिक युग
भारत के ग्रामीण समाज में सामूहिक भोज और भट्ठी परंपरा एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो न केवल सामाजिक एकता और सामुदायिक भावना को प्रकट करती है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को मजबूत करने का माध्यम भी है। आधुनिक युग में, इन परंपराओं की महत्ता और उनका स्वरूप दोनों बदल गए हैं। यह आलेख पारंपरिक सामूहिक भोज और भट्ठी परंपरा की तुलना आधुनिक परिवेश से करेगा।
पारंपरिक सामूहिक भोज और भट्ठी परंपरा
पारंपरिक सामूहिक भोज भारतीय ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। सामूहिक भोज में लोग पंक्तिबद्ध होकर जमीन पर बैठते थे और केले के पत्तों पर भोजन परोसा जाता था। भोजन की तैयारी सामूहिक रूप से की जाती थी, जिसमें हर परिवार का योगदान होता था।
भट्ठी परंपरा विशेष रूप से त्योहारों, जैसे दीपावली, के दौरान देखने को मिलती थी। इस परंपरा में परिवार और आस-पड़ोस की महिलाएं मिलकर बेसन का चूरमा, मोहनथाल, मठरी, और सेव जैसे व्यंजन बनाती थीं। "भट्ठी पूजन" के दौरान महिलाएं केसरिया साड़ी पहनकर पूजा करतीं और मिलकर गीत गातीं। यह परंपरा न केवल भोजन तैयार करने का तरीका थी, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी था, जहां हंसी-ठिठोली, गीतों की गूंज, और रिश्तों की मिठास स्पष्ट रूप से झलकती थी।
आधुनिक युग का परिवेश
आज के आधुनिक समाज में सामूहिक भोज और भट्ठी परंपरा का स्वरूप बदल गया है। सामूहिक भोज अब केवल औपचारिक आयोजनों तक सीमित रह गया है, जैसे विवाह, कॉर्पोरेट इवेंट्स, या धार्मिक कार्यक्रम। भोजन पंक्तिबद्ध बैठकर करने की परंपरा अब प्रायः समाप्त हो चुकी है। लोग अब बुफे स्टाइल में भोजन करना पसंद करते हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है।
भट्ठी परंपरा भी आधुनिकता की चपेट में आ गई है। अब त्योहारों के दौरान व्यंजन घर में बनाने के बजाय बाजार से तैयार खाद्य पदार्थ खरीदने का चलन बढ़ गया है। पारंपरिक व्यंजनों की जगह पिज्जा, बर्गर, और अन्य फास्ट फूड ने ले ली है। महिलाएं जो पहले एक साथ मिलकर व्यंजन बनाती थीं, अब व्यस्त जीवनशैली और कार्यस्थल की प्रतिबद्धताओं के कारण इस परंपरा को निभाने में असमर्थ हैं।
तुलनात्मक अध्ययन
पारंपरिक परंपरा | आधुनिक परिवेश |
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सामूहिक भोज में सभी ग्रामीण योगदान देते थे। | आयोजन प्रायः कैटरिंग सेवाओं द्वारा होता है। |
भोजन जमीन पर बैठकर पंक्तिबद्ध खाया जाता था। | बुफे स्टाइल में खड़े होकर भोजन किया जाता है। |
भट्ठी परंपरा में महिलाएं सामूहिक रूप से व्यंजन बनाती थीं। | व्यंजन प्रायः बाजार से खरीदे जाते हैं। |
सामूहिकता और आपसी सहयोग का भाव प्रमुख था। | व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और सुविधा पर जोर है। |
त्योहारों में परंपरागत गीतों और हँसी-ठिठोली का माहौल रहता था। | आधुनिक त्योहार अधिकतर डिजिटल और औपचारिक हो गए हैं। |
परंपराओं का संरक्षण और पुनरुद्धार
आधुनिक युग में, जहां जीवनशैली तेज और सुविधाजनक हो गई है, इन परंपराओं को संरक्षित करना आवश्यक है। सामूहिक भोज और भट्ठी परंपरा न केवल हमारी सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि ये सामाजिक बंधनों को भी मजबूत करती हैं। इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए समुदायों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- सामूहिक भोज और भट्ठी परंपरा को स्कूलों और सामाजिक संगठनों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा सकता है।
- त्योहारों के दौरान पारंपरिक व्यंजन बनाने की कार्यशालाएं आयोजित की जा सकती हैं।
- डिजिटल माध्यमों का उपयोग करके पारंपरिक गीतों और रीति-रिवाजों का प्रचार किया जा सकता है।
पारंपरिक सामूहिक भोज और भट्ठी परंपरा केवल एक रीति-रिवाज नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और मूल्यों का प्रतीक हैं। हालांकि आधुनिक जीवनशैली ने इन परंपराओं को प्रभावित किया है, लेकिन सामुदायिक प्रयासों और सांस्कृतिक जागरूकता के माध्यम से इन्हें संरक्षित और पुनर्जीवित किया जा सकता है। यह हमारी आने वाली पीढ़ियों को न केवल अपनी जड़ों से जोड़ेगा, बल्कि सामूहिकता, सहयोग, और सामाजिक समरसता का संदेश भी देगा।
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सह-भोजन Communal meal , सामूहिक भोज Collective feast , सामुदायिक भावना Community spirit , पंक्तिबद्ध Arranged in rows , परंपरा Tradition , सांस्कृतिक समृद्धि Cultural richness , ठिठोली Playful teasing , गूंज Resonance , स्वागत Welcome , शुद्धता Purity , प्रज्वलित Ignited , संगत Accompaniment , सिंकाई Roasting , चाशनी Sugar syrup , मेवे Dry fruits , चक्कियाँ Sweets cut into pieces , भुजिये Savory snacks , सांचा Mold / stencil , महक Aroma , संकोच Hesitation , आस-पड़ोस Neighborhood , शगुन Auspicious gift , स्वत: Automatically , ताज़ा Fresh , मूल लेखिका Original author ।
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