पर्यावरणविद: नमस्ते! कैसे हैं आप?
विद्यार्थी : नमस्ते! मैं ठीक हूँ, धन्यवाद। आपसे मुलाकात करके खुशी हुई। जैसा कि आप जानते ही हैं कि हमारे देश मे लगातार विकास हो रहा है। लेकिन इसके साथ ही साथ भारत में लगातार प्राकृतिक आपदाओं दौर भी बढ़ रहा हैं। क्या आप इस बारे में आप हमें और अधिक मार्गदर्शन कर सकते हैं?
पर्यावरणविद: जरूर, इस विषय पर मेरे पास कुछ संदर्भ हैं। पहले ही से स्पष्ट कर दें कि प्राकृतिक आपदाएँ हमारे विकास की एक मात्र बाधा नहीं हैं, बल्कि यह कई कारकों के संयोजन का परिणाम (result of many factors) हैं। विकास योजनाओं का मानवीय प्रभाव एकमात्र उदाहरण है जिसमें हम सब देख पा रहे हैं।
विद्यार्थी: हाँ, इसलिए यह कहा जाता है कि मानव विकास योजनाएँ ही प्राकृतिक आपदाओं की प्रमुख कारण हैं। तो इनके अतिरिक्त क्या कुछ और भी कारण हैं? कृपया सविस्तार समझाएँ।
पर्यावरणविद: सही कहा आपने। विकास योजनाएँ जिसमें मानवीय गतिविधियों का विस्तार होता है, उनके लिए जमीन, जल, और ऊर्जा जैसे संसाधनों की आवश्यकता होती है। इसके लिए अक्सर जंगलों का काटना, नदियों का बाँधना, खनन और औद्योगिकीकरण की व्यवस्थाएँ करनी पड़ती हैं। जिससे प्राकृतिक परस्थितिक तंत्र में बड़ा बदलाव हो जाता है जिससे ये बाढ़, भूस्खलन, बादल फटना, सूखा, अतिवृष्टि आदि आपदाएं पैदा हो सकती हैं। दिल्ली, मुंबई, असम, बिहार और उत्तराञ्चल आदि इसके सक्षात् उदाहरण हैं।
विद्यार्थी : कृपया प्राकृतिक आपदाओं पर थोड़ा विस्तार से बताएं कि यह अन्य कारक क्या हो सकते हैं?
पर्यावरणविद: विकास योजनाएं जैसे कि नगरीकरण, औद्योगिकीकरण, और अर्थव्यवस्था की प्रगति के साथ, मानव भूमि के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बढ़ता है। इसके परिणामस्वरूप, जंगलों का कटाव, जलस्रोतों का प्रदूषण, मिट्टी की उपजाऊता की कमी और बाढ़, भूकंप, और जलवायु परिवर्तन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका बढ़ती है। इसके अलावा, अवैध वनस्पति विकास, जलमार्ग निर्माण, और बांधों का निर्माण भी प्राकृतिक संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं। इन सभी कारकों के मिलने से प्राकृतिक आपदाएं और मानव के विकास के बीच एक संबंध स्थापित होता है।
पर्यावरणविद: जी हाँ, क्या नहीं? उदाहरण के रूप में लेते हैं देश के राजमार्गों (highways) का निर्माण कार्य ही देख लीजिए। इसके लिए रास्ते में आने वाले पहाड़ों और जंगलों का कटाव, जिससे जलवायु परिवर्तन और बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाएँ इन क्षेत्रों में आम बात है। जंगलों के कटने से मुख्य वनस्पति और जन-वनस्पतियों की विविधता के कमीं से जैव-विविधता और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का संतुलन भंग होती है और आपदाएं घटने के बजाय बढ़ती हैं।
विद्यार्थी: जी बिलकुल, मैं यह समझ पा रहा है। क्या मानव जनसंख्या का भी आपदाओं से कोई रिश्ता है?
पर्यावरणविद: बेशक! हमारी जनसंख्या वृद्धि तो विकासी योजनाओं के साथ-साथ आपदाओं की महत्वपूर्ण कारक है। बढ़ती जनसंख्या के साथ आवास, पोषण, ऊर्जा और संसाधनों की मांग (demand) भी बढ़ती है, जिसके लिए विकास की योजनाएँ और व्यवस्थाएँ बदलनी पड़ती हैं। इसके परिणामस्वरूप, अतिरिक्त दबाव पड़ता है जो प्राकृतिक संसाधनों का आवश्यकता से अधिक दोहन होने से और अधिक संकटों का कारण बनने के लिए मानवों को मजबूर करता है।
विद्यार्थी : यह बहुत रोचक है। धन्यवाद इतनी स्पष्ट जानकारी देने के लिए। यह समझने में मेरे लिए बहुत मददगार था।
पर्यावरणविद: आपका स्वागत है। मुझे खुशी हुई कि मैं आपके सवालों का समाधान कर सका। क्या मैं आपकी किसी और प्रश्न में मदद कर सकता हूँ?
विद्यार्थी : नहीं, धन्यवाद। यह बहुत सहायक रहा है।
पर्यावरणविद: मुझे खुशी हो रही है। यदि आपको और कोई प्रश्न हो तो कृपया मुझसे पूछें।
विद्यार्थी : जरूर, धन्यवाद। अलविदा!
पर्यावरणविद: अलविदा! ध्यान रखें और पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान देते रहें।
(नोट: यह काल्पनिक साक्षात्कार है, जिसका उद्देश्य विद्यार्थी व शिक्षकों हेतु सहायक सामग्री तक सीमित है। इसका किसी घटना, व्यक्ति अथवा स्थान से संबंध केवल संयोग मात्र है। )
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