भारतीय संस्कृति का महत्व और संरक्षण

आज का युग तीव्र गति से बदलते मूल्यों और वैश्वीकरण की आँधी का युग है। विज्ञान और तकनीक ने जहाँ मानव को अद्भुत सुविधाएँ प्रदान की हैं, वहीं जीवनशैली पर भी गहरा प्रभाव डाला है। इसके परिणामस्वरूप भारतीय जनमानस में विदेशी संस्कृति का आकर्षण बढ़ता जा रहा है और अपनी समृद्ध परंपराएँ धीरे-धीरे उपेक्षित होती प्रतीत हो रही हैं। यह प्रवृत्ति हमारे अस्तित्व और पहचान के लिए चिंता का विषय है।
भारतीय संस्कृति की विशिष्टताएँ
- प्रकृति से तादात्म्य – नदियाँ जीवनदायिनी, वृक्ष और पशु-पक्षी पूज्य।
- पर्यावरण दृष्टि – "माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:" (अथर्ववेद 12.1.12)¹।
- आध्यात्मिकता – विवेकानंद: “हमारी संस्कृति आत्मा की स्वतंत्रता और सार्वभौमिक भाईचारे की संस्कृति है।”²
- सामाजिक बंधन – “वसुधैव कुटुम्बकम्”³।
विदेशी संस्कृति अपनाने के कारण
- मीडिया व मनोरंजन का प्रभाव
- रोज़गार और करियर की माँग
- सुविधा व उपभोक्तावाद
- आधुनिकीकरण की भ्रांति – गांधी: “एक सभ्यता की महानता उसकी सादगी और नैतिकता में है।”⁴
अपनी संस्कृति को भूलने के दुष्परिणाम
- अस्मिता का संकट
- परिवार व्यवस्था का विघटन
- प्रकृति से दूरी
- मानसिक संतुलन का अभाव – राधाकृष्णन: “भारतीय संस्कृति ने सदैव बाह्य और आंतरिक जीवन के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है।”⁵
संस्कृति संरक्षण के उपाय
- शिक्षा में संस्कार-समावेश
- परिवार की सक्रिय भूमिका
- प्रौद्योगिकी का सदुपयोग
- स्वयं अनुकरण
- समन्वयवादी दृष्टिकोण
उपसंहार
भारतीय संस्कृति केवल उत्सवों और रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन का पूर्ण दर्शन है। यह हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य, समाज के साथ सहयोग और आत्मा के साथ शांति का संदेश देती है। यदि हम इसे भुला देंगे, तो हम अपनी पहचान ही खो देंगे।
संदर्भ
- स्वामी विवेकानंद, "भारतीय संस्कृति और अध्यात्म।"
- महात्मा गांधी, "हिंद स्वराज।"
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, "भारतीय संस्कृति का दर्शन।"
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