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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

पवित्र तुलसी: जीवन अमृत स्वरूपा, वनौषधियों की रानी

तुलसी का बिरवा हिंदूओं की आस्था और धर्म का प्रतीक माना जाता है। लोग इसे अपने घर के सामने, आँगन,  दरवाजे पर या बगीचे में लगाते हैं। भारतीय संस्कृति के चिर्-पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद के अतिरिक्त होमियोपैथी, ऐलोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है। तुलसी, जिसे जीवन के लिए अमृत और 'वनौषधियों की रानी' भी कहा जाता है। वास्तव में यह भारतीय मूल का एक झाड़ीनुमा पौधा होती है जो पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में महाद्वीप में पाई जाती है। 
भारतीय हिन्दू इसे "पवित्र तुलसी" कहते है क्योंकि यह तमाम मान्यताओं और मिथकों से घिरी हुई है। तुलसी के पौधे के अलावा इसकी पत्ती, फूल, बीज और जड़ आदि का अलग-अलग तरह से प्रयोग किया जाता है। इसका पौधा हिंदुओं द्वारा सर्वत्र पूजनीय है, और इसे स्वयं देवी का रूप माना जाता है। वास्तव में, यह घरों के अर्थत् में यह आंगन (केंद्र) में उगाई जाती है। इसके लिए विशेष चबूतरेनुमा गमला इस्तेमाल किया जाता है। जहाँ प्रतिदिन जल देकर और धूप, दीप, कपूर और पुष्प आदि अर्पण कर व्यवस्थित पूजा करने का विधान है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इसे घर में उचित स्थान पर लगाने से यह किसी भी तरह के हानिकारक प्रभाव से घर का बचाव और सुरक्षा करती है। इसकी जीवाणुरोधी शक्तियों के कारण, घर के आस-पास के क्षेत्र में तुलसी की उपस्थिति कीटाणुओं के प्रसार को रोकती है और वातावरण को साफ़ रखने में मदद करती है।


इस पौधे का प्रत्येक भाग की किसी न किसी तरह के आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है - इसकी जड़ें धार्मिक तीर्थों का प्रतीक हैं, इसकी टहनियाँ देवत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं, और इसका सबसे ऊपरी हिस्सा शास्त्रों की समझ को दर्शाता है। इसके पत्ते निश्चित रूप से सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों में से एक हैं - सर्दी, खाँसी, ठंडक अथवा गले की ख़राश व छाती में कफ़ की जकड़न आदि के लिए एक कारगर उपाय। हिंदू धर्म में, तुलसी को धूपबत्ती दिखाने और सिंदूर लगाकर एक देवी के रूप में भी पूजा जाता है। घरों में महिलाएँ सुबह-शाम इसकी पूजा करती हैं।

बीमारियों में रामबाण है तुलसी - 
तुलसी का औषधीय गुण जगजाहिर है। सबसे साधारण और लोकप्रिय प्रयोग चाय बनाकर पीना है। मुट्ठी भर साफ तुलसी की पत्तियों को पहले उबालना चाहिए और लगभग 10 मिनट तक धीमी आँच पर खदकाना चाहिए। यह प्रक्रिया पत्तियों से इसके सारे गुण निकाल लेती है। इसके स्वाद को बढ़ाने के लिए, इसमें शहद या नींबू मिला  देने से यह अधिक असरदार और स्वादिष्ट बन जाती है। यह मिश्रण केवल एक प्रतिरक्षा वर्धक की तरह काम नहीं करता बल्कि ये खांसी, जुकाम, त्वचा संबंधी विकार जैसे मुँहासे, मुँह के छाले और यहाँ तक कि रक्त-शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। तुलसी को रक्त शोधक माना जाता है। तुलसी के पत्तों के बारे में एक उल्टा पक्ष यह है कि उन्हें चबाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि उसमें पारा और लोहे की एक बड़ी मात्रा होती है, जो चबाने से निकलती है। पौधे का धार्मिक महत्व एक और कारक है जो लोगों को इसे चबाने से रोकता है। यह एक अमृत है जो दीर्घायु देता है, और इसकी अजेय औषधीय शक्तियाँ इसे चमत्कारी जड़ी-बूटी बनाती हैं जो अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण प्रदान करती है। हालांकि, भोजन की दुनिया में इसके उपयोग को केवल सजावट तक ही समेट दिया गया जिसे ज़्यादातर खाना खाने के बाद थाली में छोड़ा दिया जाता है। लेकिन यह एक निर्विवाद तथ्य है कि प्रकृति के सभी परोपकारों और आशीर्वादों के बीच, तुलसी के पौधे को पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली आरोग्यसाधकों में से एक माना जा सकता है!
साभार -  संस्कृति विभाग-भारत सरकार, अधिकृत वेबपेज


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