बुधवार, 20 अगस्त 2025

IBDP लेखन विधा चयन

IBDP Hindi परीक्षा लेखन गाइड

IBDP Hindi परीक्षा लेखन गाइड

लेख, प्रस्ताव और पत्र – सही चुनाव और प्रभावी लेखन की संपूर्ण जानकारी

लेख (विज्ञान और पर्यावरण)

👉 प्रश्न:
"आज का युवा विज्ञान की सुविधाओं का लाभ उठा रहा है, परंतु इसके कारण पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव भी दिखाई दे रहे हैं। युवाओं को जागरूक करते हुए लिखिए कि इन समस्याओं का समाधान कैसे किया जा सकता है।"

विज्ञान और पर्यावरण – संतुलन की आवश्यकता

भूमिका

विज्ञान ने मानव जीवन को अत्यंत सहज, सरल और आधुनिक बना दिया है। मोबाइल, इंटरनेट, चिकित्सा और यातायात ने हमारे जीवन को नई दिशा दी है। परंतु विज्ञान की अंधाधुंध प्रगति ने प्रकृति के संतुलन को भी डगमगा दिया है।

मुख्य भाग

आज प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत का क्षरण, प्लास्टिक संकट और इलेक्ट्रॉनिक कचरा जैसी समस्याएँ युवाओं को घेर रही हैं। उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, वाहनों की बढ़ती संख्या और रसायनों का अत्यधिक प्रयोग वातावरण को विषैला बना रहे हैं।

युवाओं की भूमिका इस संकट में महत्वपूर्ण है। वे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत अपनाकर बिजली की बचत कर सकते हैं। जल-संरक्षण, वृक्षारोपण, वर्षा जल संचयन, प्लास्टिक से परहेज़ और ई-वेस्ट का उचित प्रबंधन उनके छोटे-छोटे कदम हैं जो बड़े बदलाव ला सकते हैं।

इसके साथ ही, हमें विज्ञान को शत्रु नहीं, बल्कि मित्र बनाना होगा। यदि तकनीक को पर्यावरण के अनुकूल दिशा में प्रयोग किया जाए—जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी—तो विज्ञान पर्यावरण संकट का हल भी बन सकता है।

उपसंहार

अतः आवश्यक है कि युवा पीढ़ी विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग करे और पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी उठाए। तभी विज्ञान और प्रकृति में संतुलन बनाकर हम पृथ्वी को सुरक्षित रख पाएँगे।

प्रस्ताव (भोजन बर्बादी रोकने की योजना)

👉 प्रश्न:
"आप विद्यालय कल्याण समिति के अध्यक्ष हैं और विद्यालय में छात्रों द्वारा भोजन की बर्बादी देख रहे हैं। छात्रों को जागरूक करने के लिए एक योजना बनाकर उसे विद्यालय प्रशासन को प्रस्तुत करें।"

मध्याह्न भोजन की बर्बादी रोकने हेतु प्रस्ताव

प्रस्तुतकर्ता: विद्यालय कल्याण समिति अध्यक्ष

भूमिका

विद्यालय में प्रतिदिन दिया जाने वाला मध्याह्न भोजन छात्रों के स्वास्थ्य और पोषण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। किंतु भोजन की बर्बादी एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसका समाधान आवश्यक है।

मुख्य भाग (योजना)

  1. प्रत्येक कक्षा में एक "भोजन मॉनिटर" नियुक्त किया जाए।
  2. छात्र अपनी क्षमता के अनुसार ही भोजन लें और बार-बार भोजन लेने की आदत को हतोत्साहित किया जाए।
  3. बचा हुआ भोजन विद्यालय में बने कम्पोस्ट पिट में डालकर खाद तैयार की जाए।
  4. "भोजन है अमूल्य" नामक अभियान चलाया जाए, जिसमें पोस्टर, नारे और भाषण शामिल हों।
  5. शिक्षक व छात्र मिलकर मासिक समीक्षा बैठक करें और योजना की प्रगति का मूल्यांकन करें।

महत्त्व

यह योजना भोजन-संरक्षण का व्यवहारिक समाधान है। इससे न केवल विद्यालय की व्यवस्था सुधरेगी, बल्कि छात्र जीवनभर भोजन के महत्व को समझेंगे और समाज में भी सकारात्मक संदेश जाएगा।

उपसंहार

अतः विद्यालय प्रशासन से निवेदन है कि इस योजना को शीघ्र लागू किया जाए ताकि भोजन की बर्बादी पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सके।

पत्र (पार्क और खेल मैदान की समस्या)

👉 प्रश्न:
"आपके क्षेत्र के पार्क और खेल मैदान की घास लंबे समय से नहीं कटी है, जिससे बच्चों और बुजुर्गों को कठिनाई हो रही है। स्थानीय निकाय को समस्या बताकर समाधान का अनुरोध कीजिए।"

प्रेषक: (आवासीय क्षेत्र का निवासी)

प्राप्तकर्ता:

सेवा में,
माननीय अध्यक्ष जी,
स्थानीय नगर परिषद,
जलना, महाराष्ट्र

विषय: पार्क एवं खेल मैदानों की उपेक्षा संबंधी शिकायत

मान्यवर,

सविनय निवेदन है कि हमारे क्षेत्र के पार्क और खेल के मैदान में लंबे समय से घास नहीं कटी है। परिणामस्वरूप बच्चों का खेलना और बुजुर्गों का टहलना कठिन हो गया है। साथ ही, मच्छरों और सांपों का खतरा भी बढ़ गया है।

पार्क और मैदान किसी भी आवासीय क्षेत्र की शान होते हैं। यह न केवल मनोरंजन का केंद्र हैं बल्कि स्वास्थ्य संवर्धन और सामाजिक मेलजोल का माध्यम भी हैं। वर्तमान स्थिति से नागरिक परेशान हैं और इस समस्या का तत्काल समाधान आवश्यक है।

अतः आपसे निवेदन है कि शीघ्र ही घास कटवाने और नियमित रखरखाव की व्यवस्था करने की कृपा करें। इससे क्षेत्र के सभी निवासी लाभान्वित होंगे और स्वस्थ वातावरण प्राप्त करेंगे।

सधन्यवाद

(सिद्धांत बारी)

यह सामग्री केवल शैक्षिक उद्देश्य से तैयार की गई है और आधिकारिक IBDP प्रश्नपत्र से सीधे उद्धृत नहीं की गई है।

भारतीय संस्कृति: अतिथियों का सत्कार – रिश्तों में बनाए मिठास !

"अतिथि: देवोभव्" संस्कृत में एक प्रसिद्ध कहावत है जिसका अर्थ होता है, "मेहमान भगवान स्वरूप है"। इस कहावत भारतीय संस्कृति में आतिथ्य का महत्व दर्शाती है और लोगों को अपने आगंतुकों का सम्मान करने के महत्व को समझाती है। इसका मतलब है कि हमें आने वाले व्यक्ति का स्वागत करना,  उनकी देखभाल करना चाहिए और उनकी रुचि-अरुचि का ध्यान रखना। जैसे हम देवताओं का स्वागत करते हैं।

अतिथि सत्कार (आतिथ्य धर्म) क्या है?

आथित्य सत्कार, भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण मूल्यों में से एक है, इसका अर्थ होता है 'निःस्वार्थ भाव से परोपकारी सेवा'। हमें अपने घर में आने वाले अतिथि को आत्मभाव से और समर्पण के साथ सत्कार करना चाहिए। यह एक प्रकार का हमारा सामाजिक दायित्व होता है जिसका पालन करने से हमारे संबंधों को मजबूती मिलती है और जीवन में खुशियाँ आती है।

आथित्य धर्म के संदर्भ में कई कथाएँ प्रचलित हैं, यह कहावत भारतीय संस्कृति में आदर, आतिथ्य और सम्मान के महत्व को उजागर करता है। इसका मतलब है कि आगंतुकों को सिर माथे ऊपर रखना चाहिए और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए।

भारतीय संस्कृति की मूलभूत मूल्यों में 'अतिथि: देवो भव' का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन वर्तमान में यह परंपरा कठिनाइयों का सामना कर रही है। आधुनिक जीवनशैली के कारण अतिथियों के साथ यह मानव-संबंध बिगड़ रहे हैं। वित्तीय और समय की कमी में लोग अतिथियों को बोझ मानने लगे हैं।

हमें यह समझना होगा कि आतिथ्य केवल व्यक्तिगत फायदे की बजाय सामाजिक समृद्धि का भी हिस्सा है। हमें आतिथियों के साथ आदर और समर्पण से बर्ताव करने की आवश्यकता है। सरलता और सहयोग के साथ हम आतिथियों को स्वागत करने में सक्षम हो सकते हैं।

शिक्षा के माध्यम से समाज को आतिथ्य के महत्व को समझाना आवश्यक है। सरकार और सामाजिक संगठनों को भी अतिथियों के प्रति जागरूकता फैलाने में सहायता करनी चाहिए। 'अतिथि देवो भव' को वास्तविकता में अपनाकर हम समृद्धि और समाज में सद्भावना की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

अतिथि को भोजन कराते समय रखें इन 4 बातों का ध्यान: धार्मिक ग्रंथों में अतिथि के महत्व के बारे में कई बातें बताई गई हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार अतिथि का स्थान भगवान के समान माना जाता है। हिंदू धर्म में भगवान के हवन के लिए या कई त्योहारों पर घर आने वाले मेहमानों को खाना खिलाना जरूरी होता है। अतिथि सत्कार के संबंध में शिव पुराण में 4 ऐसी बातें बताई गई हैं, जिनका पालन करने पर अतिथि को भोजन कराने का फल अवश्य ही प्राप्त होता है।

साभार - रामायण (धारावाहिक) 

  • आवभगत (स्वागत) 

  • सुरुचिपूर्ण भोजन  

अतिथि को भोजन कराते समय ध्यान रखने योग्य बातें –

1. शुद्ध (प्रसन्न) मन से अतिथि को भोजन कराना 

ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का मन शुद्ध नहीं होता, उसे उसके अच्छे कर्मों का फल कभी नहीं मिलता। घर आए अतिथि का स्वागत करते समय या उन्हें भोजन कराते समय किसी भी प्रकार की गलत भावना मन में नहीं आने देनी चाहिए। सत्कार के समय जिस व्यक्ति के मन में ईर्ष्या, क्रोध, हिंसा जैसी बातें चलती रहती हैं, उसे अपने कर्मों का फल कभी नहीं मिलता। इसलिए इस मामले में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।

साभार - हिन्दुस्ताननामा डॉट कॉम

2. अपनी वाणी में रखें मधुरता

घर आने वाले अतिथि का अपमान कभी नहीं करना चाहिए। कई बार गुस्से में या किसी और वजह से घर आने वाले मेहमान की बेइज्जती कर देते हैं। ऐसा करने से मनुष्य पाप का भागीदार बन जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर आने वाले अतिथि का स्वागत अच्छे भोजन के साथ-साथ शुद्ध और मधुर वाणी से करना चाहिए।

3. शारीरिक रूप से रहें शुद्ध 

अतिथि के साथ भगवान की तरह व्यवहार किया जाता है। अशुद्ध शरीर से न तो भगवान की सेवा की जाती है और न ही अतिथि की। किसी को भी भोजन कराने से पहले शुद्ध जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अस्वच्छ शरीर से की गई सेवा कभी फल नहीं देती।

4. दक्षिणा / उपहार 

प्राचीनकाल में लोगों के घरों में सीमित संसाधन हुआ करते थे। सभ्य समाज में लोगों द्वारा अपने सामर्थ्य के अनुसार घर आए अतिथि को सुरुचिपूर्ण भोजन कराकर कुछ न कुछ दक्षिणा अथवा उपहार में देकर विदाई देने का भी विधान माना जाता था। आपकी श्रद्धा के अनुसार अतिथि को उपहार के रूप में कुछ न कुछ अवश्य देते थे । ऐसी मान्यता रही है कि शुभ भाव से दिया गया उपहार सदैव शुभ फल का द्योतक होता है।

5. विदाई



अभ्यास कार्य - 

भारतीय संस्कृति में 'अतिथि: देवो भव्' की परंपरा रही है, किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में यह परंपरा निभाना कठिन हो रहा है। अब अतिथि शिरोधार्य देवता न होकर बोझ लगने लगे हैं। आप अपने विचार एक लेख के माध्यम से व्यक्त कीजिए। आपका लेखन 200 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए। आकर्षक शब्दों, शुद्ध वाक्यों और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग अपेक्षित है। 

उत्तर - भारतीय संस्कृति में 'अतिथि: देवो भव' एक परम विचार और अद्वितीय संवाद का प्रतीक है, लेकिन आधुनिक जीवन में यह मूल्यों की परीक्षा में यक्षप्रश्न बनकर सामने खड़ा है। व्यस्त जीवनशैली और समय के अभाव ने इस परंपरा को अत्यधिक प्रभावित किया है, जिससे अतिथियों के साथ अभिन्नता खो गई है। अब हमें अतिथियों के साथ सहयोग और सम्मान के प्रति संकेत की आवश्यकता है।

आतिथियों के साथ विशेष आदर और समर्पण बनाए रखने के लिए हमें विचारशीलता और सजीव संवाद की आवश्यकता है। समय की चुनौतियों में भी हमें उनकी आवश्यकताओं का समय समय पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वे बोझ नहीं बल्कि समृद्धि और सौहर्द्र के प्रतीक बन सकें। आदिकाल से चली आ रही आदर्श अतिथि सेवा को पुनर्स्थापित करने के लिए, हमें समाज के सभी वर्गों के सहयोग की आवश्यकता है।

आओ, हम एक सशक्त आत्मगढ़ में "आतिथ्य: देवो भव" को फिर से जीवंत करें, ताकि हमारी संस्कृति के मूल मूल्यों का सजीव रूप समर्पित रहे।

संदर्भ सामग्री

  1. अतिथि को भोजन
  2. भारतीय भोजन के शिष्टाचार
  3. "जैसा खाए अन्न वैसा बने मन"
  4. विडियो - हिमालय की कुमसुम आंटी और जापानी यात्री मेयोको
  5. वीडियो - गजेंद्र और ज्यूरिक (स्विट्जर्लंड) की कहानी 
  6. वीडियो - 

मंगलवार, 19 अगस्त 2025

बाजारीकरण और विज्ञापन में छिपा है, मिलावट का जहर!

मिलावट की समस्या और समाज पर उसका प्रभाव | Indicoach

मिलावट की समस्या और समाज पर उसका प्रभाव

बाज़ारीकरण की आंधी में उपभोक्ता चमचमाते विज्ञापनों और बड़े-बड़े ब्रांडों के मोहपाश में जकड़ा हुआ है। हर पैकेट, हर बोतल, हर विज्ञापन में "100% शुद्ध", "प्राकृतिक", "ताजा", "ऑर्गेनिक" "स्वास्थ्यवर्धक" जैसे शब्द गूँजते हैं, परंतु जब प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट सामने आती है तो सच चौंकाने वाला होता है। मसाला उत्पादों में एथिलीन ऑक्साइड1 पाए गए हैं, जिन्हें 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' की अंतर्राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी ने *मानव के लिए कैंसरकारी* माना है। ब्रिटेन और हांगकांग में इन मसालों की जाँच और प्रतिबंध उपभोक्ताओं के लिए आँखें खोलने वाला संकेत है।

डब्बाबंद और परिष्कृत खाद्य के माध्यम पहुंचता जहर
परिवारों में डब्बाबंद और परिष्कृत खाद्य के माध्यम से पहुंचता जहर

फल-सब्ज़ियों की स्थिति भी अलग नहीं। बाज़ार में चमकीले, आकर्षक दिखने वाले आम, केले और सेब अकसर कैल्शियम कार्बाइड2 या एथिफ़ोन से पकाए जाते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह साबित हो चुका है कि इससे आर्सेनिक और फॉस्फ़ोरस जैसी अशुद्धियाँ निकलती हैं, जो पाचन और श्वसन तंत्र को भारी नुकसान पहुँचाती हैं। बच्चों के स्नैक्स (नमकीन, चिप्स, बिस्कुट और मिठाइयों में Rhodamine-B3 जैसे ख़तरनाक रंग पाए जाने की घटनाएँ बताती हैं कि आकर्षक रंगों की आड़ में हम पर गंभीर स्वास्थ्य संकट मंडरा रहा है।

"शुद्ध शहद" और "पवित्र दूध" जैसे दावों का हाल और भी गंभीर है। 2020 की एक व्यापक जाँच में अनेक बड़े ब्रांडों के शहद में उच्च तकनीकी शर्करा-सिरप (चीनी का सीरा) की मिलावट सामने आई4, जिसे सामान्य घरेलू परीक्षण से पकड़ना संभव ही नहीं था। इसी प्रकार दूध और तेलों के नमूनों में शैंपू, डिटर्जेंट, यूरिया और हाइड्रोजन पेरॉक्साइड तक पाए गए5, जबकि यह हृदय रोगों के प्रमुख कारक ट्रांस-फ़ैट6 को नियंत्रित करने के लिए भारत ने 2% की सीमा निर्धारित की है। इन तथ्यों से साफ़ है कि उपभोक्ता जिस पर सबसे अधिक भरोसा करता है, वही कभी-कभी उसके स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा प्रहार करता है।

वास्तविकता यही है कि मिलावट केवल जेब पर भार नहीं डालती बल्कि जीवन की साँसों पर भी चोट करती है। विज्ञापनों में दिखने वाले मुस्कुराते परिवार और चमकते उत्पाद असल में अस्पताल के बिस्तरों तक की यात्रा का कारण बन रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि उपभोक्ता भ्रामक विज्ञापन की चमक पर नहीं, बल्कि वैज्ञानिक जाँच और प्रमाणिक आंकड़ों पर विश्वास करना सीखे। अब प्रश्न यही उठता है, क्या हम स्वाद और ब्रांडिंग के बहकावे में अपने स्वास्थ्य को दाँव पर लगाते रहेंगे, या एक जागरूक उपभोक्ता बनकर हर ख़रीद से पहले यह पूछेंगे: "दावा नहीं, तथ्य (डेटा) कहाँ है?"

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