बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

“खिलौनेवाला: बचपन की हँसी के साथ जाता हुआ एक रिश्ता”

खिलौनेवाला - बचपन की खोई हुई आवाज़ | भारतीय संस्कृति

🌈 खिलौनेवाला 🎈

शायद बचपन की हँसी लौट आए…

कभी मोहल्लोंगली-मुहल्ले, पड़ोस की गलियों में गूंजने वाली वह प्यारी सी आवाज़ — "खिलौने ले लो… गुड़िया, बंदर, पंखा, सीटी!" — जैसे बच्चों के दिल की घंटी होती थी। जिस दिन वह आवाज़ सुनाई देती, बच्चे किताबें छोड़कर दौड़ पड़ते। वह कोई साधारण दुकानदार नहीं था, वह तो बचपन की खुशी का वाहकलाने वाला, संदेशवाहक था — खिलौनेवाला

गांवों और कस्बों में खिलौनेवाले का आना किसी मेले से कम नहीं होता था। उसके टोकरे में लकड़ी के घोड़े, मिट्टी की गाड़ियां, रुई के भालू, रंग-बिरंगी सीटियाँ और कभी-कभी हाथ से बने छोटे ढोलक होते। बच्चे अपने छोटे हाथों से उन्हें टटोलतेछूकर देखना, जांचना और आंखों में चमक लिए माँ की ओर देखते — "माँ, ये वाला ले दो ना!"। माँ मुस्कुराकर मोलभावदाम में कमी के लिए बातचीत करती और खिलौनेवाला स्नेह से कहता — "ले लीजिए बहनजी, बच्चे के लिए है, दो रुपये कम कर दिए।"

यह लेन-देन केवल पैसे का नहीं था, अपनत्वअपनापन, करीबी रिश्ता का था। खिलौनेवाला बच्चों के नाम पहचानता था, कभी किसी के जन्मदिन पर खास गुड़िया लाता, कभी त्योहार पर रंगीन चकरी। वह केवल खिलौने नहीं बेचता था, वह बच्चों के सपनों को आकार देता था।

🎪 ✨ 🎠

लेकिन अब यह आवाज़ धीरे-धीरे हमारे शहरों से, फिर कस्बों से, और अब गांवों से भी गायब होती जा रही है। अपार्टमेंट संस्कृति, ऑनलाइन शॉपिंग और ब्रांडेड खिलौनों की चमक ने उस साधारण लेकिन आत्मीय खिलौनेवाले को दरकिनारकिनारे रखना, नज़रअंदाज़ करना कर दिया है। अब बच्चे खिलौने स्क्रीन पर देखते हैं, ऑर्डर करते हैं और कुरियर से पैकेट आते हैं — पर उसमें न खिलौनेवाले की मुस्कान है, न कहानी।

आज का बच्चा "मेड इन चाइना" के रंगीन खिलौनों से खेलता है, पर उनके पीछे न कोई किस्सा है, न आत्मा। पहले हर खिलौने में उस व्यक्ति का श्रममेहनत, परिश्रम और सादगीसरलता, सीधापन होती थी जिसने उसे अपने हाथों से बनाया था। लकड़ी की महक, रंग की खुशबू और उस बेचने वाले की विनम्र आवाज़ — यह सब मिलकर खिलौनों को जीवंत बना देती थी।

सवाल यह नहीं कि दुनिया आगे बढ़ रही है; सवाल यह है कि इस प्रगति की दौड़ में हम क्या पीछे छोड़ रहे हैं? जब खिलौनेवाले का जाना हमें सामान्य लगने लगे, तो समझिए – हमने बचपन की आत्मीयता को तकनीक के बदले गिरवीबंधक, रेहन रख दिया है।

शायद किसी दिन फिर किसी गली में कोई पुकार उठे — "खिलौने ले लो…"। बच्चे खिड़की से झांकें और माँ से पूछें — "माँ, ये कौन है?"
माँ हल्की मुस्कान के साथ कहे — "बेटा, ये वही है जो हमारे बचपन को हंसी देता था।"


📖 शब्दसंख्या: लगभग 580
⏱️ वाचन समय: 5 से 6 मिनट
🎧 पॉडकास्ट:

📝 अभ्यास - प्रश्नावली

1. खिलौनेवाले की आवाज़ बच्चों के लिए क्या थी?
  • एक सामान्य आवाज़
  • दिल की घंटी
  • परेशान करने वाली आवाज़
  • इनमें से कोई नहीं
2. खिलौनेवाले के टोकरे में क्या-क्या होता था?
  • केवल प्लास्टिक के खिलौने
  • लकड़ी के घोड़े, मिट्टी की गाड़ियाँ, रुई के भालू
  • केवल महंगे खिलौने
  • इलेक्ट्रॉनिक खिलौने
3. खिलौनेवाला केवल खिलौने ही नहीं बेचता था, वह क्या करता था?
  • केवल पैसे कमाता था
  • बच्चों के सपनों को आकार देता था
  • सिर्फ़ सामान बेचता था
  • व्यापार करता था
4. आजकल खिलौनेवाला क्यों गायब हो रहा है?
  • अपार्टमेंट संस्कृति और ऑनलाइन शॉपिंग के कारण
  • खिलौनों की कमी के कारण
  • बच्चों की रुचि न होने के कारण
  • मौसम खराब होने के कारण
5. लेखक के अनुसार, प्रगति की दौड़ में हमने क्या खो दिया है?
  • केवल पुराने खिलौने
  • बचपन की आत्मीयता और अपनापन
  • पैसे
  • समय
6. "टटोलना" शब्द का अर्थ क्या है?
  • तोड़ना
  • छूकर देखना, जांचना
  • फेंकना
  • खरीदना
7. माँ खिलौनेवाले से क्या करती थी?
  • उसे भगा देती थी
  • मोलभाव करती थी
  • उससे लड़ती थी
  • उसे अनदेखा करती थी
8. पुराने खिलौनों में क्या खास बात थी?
  • वे बहुत महंगे थे
  • वे इलेक्ट्रॉनिक थे
  • उनमें व्यक्ति का श्रम और सादगी थी
  • वे विदेश से आते थे
9. "दरकिनार" शब्द का क्या अर्थ है?
  • किनारे रखना, नज़रअंदाज़ करना
  • दरवाजे के पास
  • किनारे पर खड़ा होना
  • दूर भागना
10. लेख का मुख्य संदेश क्या है?
  • खिलौने खरीदना बंद कर देना चाहिए
  • आधुनिकता में हमें अपनी आत्मीयता और संस्कृति नहीं भूलनी चाहिए
  • पुराने समय बेहतर थे
  • ऑनलाइन शॉपिंग बुरी है

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