आइए जाने ग्रहण के पीछे की आस्था, विज्ञान और भूगोल के रहस्य
ग्रहण मानव सभ्यताCivilization - मानव समाज का विकसित रूप के लिए हमेशा से रहस्य और आकर्षण का विषय रहा है। यह तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक विशेष स्थिति में आकर एक-दूसरे की छाया डालते हैं। सूर्य ग्रहण अमावस्या को और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा को घटता है। सूर्य ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आकर सूर्य की रोशनी को रोक देता है, जबकि चंद्र ग्रहण में पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर चंद्रमा को अपनी छाया से ढक लेती है। यह घटना केवल खगोलीयAstronomical - खगोल विज्ञान से संबंधित गणना भर नहीं, बल्कि प्रकृति का अद्भुत प्रदर्शन है, जिसने हजारों वर्षों से मनुष्य की कल्पना को प्रभावित किया है।¹
इतिहास में देखें तो चीन में 2134 ईसा पूर्व ग्रहण का पहला लिखित उल्लेख मिलता है। वहाँ इसे "ड्रैगन द्वारा सूर्य को निगलना" कहा जाता था।² बेबीलोनBabylon - प्राचीन मेसोपोटामिया की सभ्यता और मय सभ्यताMaya Civilization - मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता ने भी ग्रहण को अनिष्ट और देवताओं की नाराज़गी का संकेत माना। भारत में राहु और केतु की कथा के माध्यम से ग्रहण को समझाया गया, जहाँ राहु सूर्य और चंद्र को ग्रसते हैं। यही कारण है कि भारतीय समाज में ग्रहण काल को अशुभ मानकर मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और स्नान, दान तथा मंत्र-जप की परंपरा निभाई जाती है।³ यह रोचक है कि अलग-अलग सभ्यताओं ने इस एक ही खगोलीय घटना को अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं के रंग में ढाल लिया।
विज्ञान ने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और ग्रहण को खगोलीय अध्ययन का साधन बना दिया। सूर्य ग्रहण के समय वैज्ञानिक सूर्य के बाहरी वायुमंडलAtmosphere - किसी ग्रह के चारों ओर गैसों का आवरण यानी कोरोनाCorona - सूर्य का बाहरी वायुमंडल का अध्ययन करते हैं। इसी से हमें सूर्य की संरचना और उसकी ऊर्जा विकिरणRadiation - ऊर्जा का प्रसार को समझने का अवसर मिलता है। ग्रीक खगोलशास्त्रीAstronomer - खगोल विज्ञान का अध्ययन करने वाला हिप्पार्कस ने चंद्र ग्रहण के आधार पर पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी का अनुमान लगाया था।⁴ आधुनिक युग में नासा जैसी संस्थाएँ ग्रहण का अध्ययन करके ब्रह्मांडीयCosmic - ब्रह्मांड से संबंधित गणनाओं को और सटीक बना रही हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ग्रहण मानवता की वैज्ञानिक प्रगति के लिए एक "प्राकृतिक प्रयोगशाला" है।
भूगोल की दृष्टि से भी ग्रहण उतना ही रोचक है। सूर्य ग्रहण केवल पृथ्वी के छोटे हिस्सों में ही दिखाई देता है क्योंकि चंद्रमा की छाया बहुत संकीर्णNarrow - संकरा, छोटा क्षेत्र क्षेत्र को ढकती है, जबकि चंद्र ग्रहण लगभग आधी पृथ्वी से देखा जा सकता है। पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षाओंOrbits - ग्रहों के चारों ओर का पथ का लगभग पाँच डिग्री का झुकाव ही यह सुनिश्चित करता है कि हर अमावस्या या पूर्णिमा को ग्रहण न हो।⁵ इस प्रकार, ग्रहण मानव सभ्यता के लिए आश्चर्य और भय का विषय रहा है। आज विज्ञान ने इसके रहस्य को सुलझा दिया है, फिर भी इसकी सांस्कृतिक छाया अब भी समाज में विद्यमान है। ग्रहण हमें यह भी सिखाता है कि प्रकृति के अद्भुत रहस्य केवल आस्था से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही समझे जा सकते हैं। इसलिए ग्रहण को केवल अंधविश्वास और भय से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि और जिज्ञासा से देखना चाहिए।
👉 निष्कर्ष: ग्रहण अंधविश्वास या डर की बात नहीं, बल्कि एक अद्भुत प्राकृतिक और वैज्ञानिक घटना है।
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