रविवार, 7 सितंबर 2025

ग्रहण: खगोलीय या वैज्ञानिक घटना?

ग्रहण: आस्था, विज्ञान और भूगोल के रहस्य

आइए जाने ग्रहण के पीछे की आस्था, विज्ञान और भूगोल के रहस्य

ग्रहण: आस्था, विज्ञान और भूगोल का रहस्य

ग्रहण मानव सभ्यताCivilization - मानव समाज का विकसित रूप के लिए हमेशा से रहस्य और आकर्षण का विषय रहा है। यह तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक विशेष स्थिति में आकर एक-दूसरे की छाया डालते हैं। सूर्य ग्रहण अमावस्या को और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा को घटता है। सूर्य ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आकर सूर्य की रोशनी को रोक देता है, जबकि चंद्र ग्रहण में पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर चंद्रमा को अपनी छाया से ढक लेती है। यह घटना केवल खगोलीयAstronomical - खगोल विज्ञान से संबंधित गणना भर नहीं, बल्कि प्रकृति का अद्भुत प्रदर्शन है, जिसने हजारों वर्षों से मनुष्य की कल्पना को प्रभावित किया है।¹

इतिहास में देखें तो चीन में 2134 ईसा पूर्व ग्रहण का पहला लिखित उल्लेख मिलता है। वहाँ इसे "ड्रैगन द्वारा सूर्य को निगलना" कहा जाता था।² बेबीलोनBabylon - प्राचीन मेसोपोटामिया की सभ्यता और मय सभ्यताMaya Civilization - मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता ने भी ग्रहण को अनिष्ट और देवताओं की नाराज़गी का संकेत माना। भारत में राहु और केतु की कथा के माध्यम से ग्रहण को समझाया गया, जहाँ राहु सूर्य और चंद्र को ग्रसते हैं। यही कारण है कि भारतीय समाज में ग्रहण काल को अशुभ मानकर मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और स्नान, दान तथा मंत्र-जप की परंपरा निभाई जाती है।³ यह रोचक है कि अलग-अलग सभ्यताओं ने इस एक ही खगोलीय घटना को अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं के रंग में ढाल लिया।

विज्ञान ने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और ग्रहण को खगोलीय अध्ययन का साधन बना दिया। सूर्य ग्रहण के समय वैज्ञानिक सूर्य के बाहरी वायुमंडलAtmosphere - किसी ग्रह के चारों ओर गैसों का आवरण यानी कोरोनाCorona - सूर्य का बाहरी वायुमंडल का अध्ययन करते हैं। इसी से हमें सूर्य की संरचना और उसकी ऊर्जा विकिरणRadiation - ऊर्जा का प्रसार को समझने का अवसर मिलता है। ग्रीक खगोलशास्त्रीAstronomer - खगोल विज्ञान का अध्ययन करने वाला हिप्पार्कस ने चंद्र ग्रहण के आधार पर पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी का अनुमान लगाया था। आधुनिक युग में नासा जैसी संस्थाएँ ग्रहण का अध्ययन करके ब्रह्मांडीयCosmic - ब्रह्मांड से संबंधित गणनाओं को और सटीक बना रही हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ग्रहण मानवता की वैज्ञानिक प्रगति के लिए एक "प्राकृतिक प्रयोगशाला" है।

भूगोल की दृष्टि से भी ग्रहण उतना ही रोचक है। सूर्य ग्रहण केवल पृथ्वी के छोटे हिस्सों में ही दिखाई देता है क्योंकि चंद्रमा की छाया बहुत संकीर्णNarrow - संकरा, छोटा क्षेत्र क्षेत्र को ढकती है, जबकि चंद्र ग्रहण लगभग आधी पृथ्वी से देखा जा सकता है। पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षाओंOrbits - ग्रहों के चारों ओर का पथ का लगभग पाँच डिग्री का झुकाव ही यह सुनिश्चित करता है कि हर अमावस्या या पूर्णिमा को ग्रहण न हो। इस प्रकार, ग्रहण मानव सभ्यता के लिए आश्चर्य और भय का विषय रहा है। आज विज्ञान ने इसके रहस्य को सुलझा दिया है, फिर भी इसकी सांस्कृतिक छाया अब भी समाज में विद्यमान है। ग्रहण हमें यह भी सिखाता है कि प्रकृति के अद्भुत रहस्य केवल आस्था से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही समझे जा सकते हैं। इसलिए ग्रहण को केवल अंधविश्वास और भय से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि और जिज्ञासा से देखना चाहिए।

0:00 / 0:00
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
ग्रहण कितने प्रकार के होते हैं?
ग्रहण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं — सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण। सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है, जबकि चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी अपनी छाया चंद्रमा पर डालती है।
भारत में ग्रहण को धार्मिक रूप से कैसे देखा जाता है?
भारत में ग्रहण को धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। लोग स्नान, उपवास और मंत्रोच्चारण करते हैं। राहु-केतु की पौराणिक कथा के अनुसार ग्रहण को अशुभ समय माना जाता है और इस दौरान मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रहण क्यों महत्वपूर्ण हैं?
वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रहण सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की गति और संरचना को समझने में मदद करते हैं। सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य के कोरोना का अध्ययन किया जा सकता है, जो सामान्यतः संभव नहीं होता।
ग्रहण देखने के लाभ और हानि क्या हैं?
लाभ यह है कि इससे वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा मिलता है और खगोल विज्ञान की जानकारी मिलती है। हानि यह है कि आमजन में कई अंधविश्वास और डर फैले रहते हैं, जो वैज्ञानिक सोच में बाधक होते हैं।
मिथ: राहु-केतु सूर्य या चंद्रमा को निगल जाते हैं।
विज्ञान: ग्रहण केवल खगोलीय घटना है। सूर्यग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है, और चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है।
मिथ: ग्रहण के दौरान भोजन करना अशुभ या विषाक्त होता है।
विज्ञान: भोजन पर ग्रहण का कोई असर नहीं। यह मान्यता प्राचीन समय की स्वच्छता और प्रकाश की कमी के कारण बनी।
मिथ: गर्भवती महिला बाहर निकले तो शिशु को दोष लगता है।
विज्ञान: कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। केवल सूर्यग्रहण को बिना सुरक्षा देखना आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है।
मिथ: ग्रहण अशुभ और आपदा लाता है।
विज्ञान: ग्रहण का आपदाओं से कोई संबंध नहीं। यह खगोलीय घटना है जो वैज्ञानिकों को शोध का अवसर देती है।
मिथ: ग्रहण के समय स्नान और दान अनिवार्य है।
विज्ञान: यह धार्मिक आस्था है, वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रहण का शरीर पर कोई असर नहीं होता।
मिथ: ग्रहण के दौरान बाहर नहीं जाना चाहिए।
विज्ञान: बाहर जाना सुरक्षित है। केवल सीधे सूर्य की ओर बिना सुरक्षा देखना आंखों को नुकसान पहुँचा सकता है।
मिथ: ग्रहण नहीं देखना चाहिए।
विज्ञान: ग्रहण देखना पूरी तरह सुरक्षित है, बशर्ते वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित सुरक्षित चश्मों या प्रोजेक्शन विधियों का उपयोग किया जाए।
मिथ: गर्भवती महिलाओं को स्थिर नहीं रहना चाहिए।
विज्ञान: इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। गर्भवती महिलाएँ सामान्य दिनचर्या की तरह व्यवहार कर सकती हैं।
मिथ: मंदिरों के कपाट बंद कर देने चाहिए।
विज्ञान: यह धार्मिक परंपरा है। विज्ञान की दृष्टि से ग्रहण का धार्मिक स्थलों या मूर्तियों पर कोई असर नहीं है।

👉 निष्कर्ष: ग्रहण अंधविश्वास या डर की बात नहीं, बल्कि एक अद्भुत प्राकृतिक और वैज्ञानिक घटना है।

संदर्भ (References)
  1. Stephenson, F. R. Historical Eclipses and Earth's Rotation (Cambridge University Press, 1997). ↑ वापस जाएं
  2. Needham, Joseph. Science and Civilisation in China (Cambridge University Press, 1959). ↑ वापस जाएं
  3. वेदांग ज्योतिष एवं पुराण – राहु-केतु कथा संदर्भ। ↑ वापस जाएं
  4. Pingree, David. Astronomy and Astrology in India and Iran (Isis, 1963). ↑ वापस जाएं
  5. NASA Eclipse Websitehttps://eclipse.gsfc.nasa.gov ↑ वापस जाएं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपके बहुमूल्य कॉमेंट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

प्रचलित पोस्ट

विशिष्ट पोस्ट

🌱माटी महोत्सव: माटी कहे कुम्हार से... (डायरी के पन्ने तक)✨

🌱माटी महोत्सव: माटी कहे कुम्हार से... (डायरी के पन्ने तक)✨ा प्रिय दैनंदिनी, सोमवार, 8 अप्रैल, 2025 ...

हमारी प्रसिद्धि

Google Analytics Data

Active Users