बुधवार, 23 अप्रैल 2025

✨ साक्षात्कार: शून्य से स्वर्ण तक...

राजेश मेहता की प्रेरणादायक यात्रा, उन्हीं की ज़ुबानी

राजेश मेहता, संस्थापक व कार्यकारी अध्यक्ष 

राजेश मेहता, राजेश एक्सपोर्ट्स के संस्थापक एवं प्रमुख, भारतीय व्यापार जगत का एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उन्होंने अपने अथक परिश्रम, दूरदर्शिता और नवाचार के बल पर इस कंपनी को शून्य से स्वर्ण तक तक पहुँचाया। ‘गुणवत्ता ही पहचान’ के सिद्धांत पर चलते हुए उन्होंने भारत के साथ-साथ वैश्विक बाजार में भी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। कभी-कभी कोई साधारण सी बातचीत, जीवनभर की प्रेरणा बन जाती है। ऐसे ही एक प्रेरणादायक संवाद में, हम आज मिल रहे हैं उस व्यक्तित्व से, जिनकी सोच ने भारत के पारंपरिक आभूषण उद्योग को वैश्विक स्तर पर पहुँचा दिया। 

राजेश मेहता उद्यमशीलता के प्रतीक और आज युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

स्थान: इंडीकोच स्टूडियो
सादे से कक्ष में, एक गर्मजोशी से भरी चाय की प्याली और उनके चेहरे पर अनुभव की गहराइयों से भरी मुस्कान के साथ शुरू हुआ।


🧑‍💼 पत्रकार (मुस्कराते हुए): 

राजेश जी, जब हम आज आपको इस ऊँचाई पर देखते हैं, तो मन में सबसे पहला प्रश्न यही आता है — यह सब शुरू कहाँ से हुआ?

👔 राजेश मेहता (थोड़ा पीछे झुकते हुए, अतीत में डूबकर):

शुरुआत... (हल्की मुस्कान) वह तो बहुत विनम्र थी। मैं बंगलुरु की गलियों में पला-बढ़ा, एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। पिता एक छोटे व्यवसाय में थे, और घर में अक्सर पैसों की तंगी होती थी। कॉलेज के दिनों में ही मन में आया कि कुछ अलग करना है, कुछ अपना।

मात्र ₹1200 उधार लिए थे — किसी के लिए नगण्य, पर मेरे लिए वह मेरी पहली ‘पूंजी' जो निवेश के लिए थी, और उससे बुनना था मुझे सबसे बड़ा सपना।


🧑‍💼 पत्रकार:

₹1200 से आपने व्यापार शुरू किया... पर पहली बार आभूषणों में रुचि कैसे जगी?

👔 राजेश मेहता (आँखें चमकती हैं):

मुझे हमेशा लगता था कि सोना केवल धातु नहीं, वह भारत की संस्कृति है। माँ जब पूजा में अपने गहने पहनती थीं, तो मैं उनकी आँखों की चमक को देखता था — वो भाव, वो अपनापन।

मुझे समझ आया कि अगर हम इस परंपरा को गुणवत्ता के साथ विश्व के समक्ष प्रस्तुत करें, तो यह सिर्फ व्यापार नहीं, एक सांस्कृतिक दूतावास बन सकता है।


🧑‍💼 पत्रकार (जिज्ञासु भाव से):

इतनी कम उम्र में आपने जोखिम लिया — क्या डर नहीं लगा?

👔 राजेश मेहता (थोड़ा गंभीर होकर):

डर तो था... लेकिन उससे बड़ा था मेरा विश्वास। हर सुबह जब मैं साइकिल पर अपने सामान लेकर निकलता था, तो मन में बस एक ही विचार रहता — "मैं हार नहीं मान सकता, क्योंकि मैंने खुद से वादा किया है।"

"कभी-कभी, आपका सबसे बड़ा साहस उस दिन आता है जब आप सबसे टूटा महसूस करते हैं।"


🧑‍💼 पत्रकार:

फिर कब लगा कि आप अब केवल व्यापारी नहीं, एक निर्माता बन गए हैं?

👔 राजेश मेहता (गर्वित स्वर में):

जब मैंने देखा कि मेरे साथ काम करने वाले कारीगर, जो कभी दिनभर में ₹50 कमाते थे, अब अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल भेज पा रहे हैं — तब समझ आया कि यह व्यवसाय नहीं, यह परिवर्तन है।

‘राजेश एक्सपोर्ट्स’ सिर्फ एक कंपनी नहीं बनी, यह एक आंदोलन बन गया — भारतीय हस्तकला को वैश्विक पहचान दिलाने का।


🧑‍💼 पत्रकार:

आपके अनुसार सफलता का मापदंड क्या है?

👔 राजेश मेहता (थोड़ा सोचते हुए):

सफलता कोई आँकड़ा नहीं होती। वो तो तब महसूस होती है जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं और पाते हैं कि आपने सिर्फ अपने लिए नहीं, दूसरों के जीवन में भी रोशनी भरी है।

"अगर आपकी सफलता से किसी और की ज़िंदगी बदलती है, तो वही सच्ची उपलब्धि है।"


🧑‍💼 पत्रकार (मुस्कराते हुए):

अब यदि कोई छात्र आपसे यह पूछे कि ‘मैं कहाँ से शुरू करूँ?’ — तो आप क्या कहेंगे?

👔 राजेश मेहता (आँखों में आत्मीयता के साथ):

मैं यही कहूँगा — वहीं से जहाँ आप खड़े हैं। शुरुआत के लिए संसाधन नहीं, सिर्फ एक ईमानदार इरादा चाहिए। किताबों की जगह दिल में लिखा हुआ सपना हो, तो हर कठिनाई उसका पाठ्यक्रम बन जाती है।

“छात्र जीवन अवसरों की खदान है — जो उसे खोदने का साहस करता है, वही रत्न पाता है।”


उपसंहार:

राजेश मेहता का जीवन एक कथा नहीं, एक क्रांति है — यह विश्वास दिलाने वाली कि सफलता जन्मजात नहीं होती, वह संकल्प और श्रम से गढ़ी जाती है।

यह साक्षात्कार एक संदेश है हर छात्र के लिए —

“अपने सपनों को छोटा मत समझो। हर बड़ा पेड़ कभी एक बीज था, जिसने मिट्टी से लड़ना सीखा।”

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