🕊️शांति पर एक वैश्विक संकट🕊️
आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तेज़ रफ्तार के साथ आगे बढ़ रहा है, लेकिन दूसरी ओर, मानवता के समक्ष एक ऐसा विकराल संकट खड़ा है, जिसने न केवल देशों की आंतरिक शांति को छिन्न-भिन्न किया है, बल्कि वैश्विक स्थिरता को भी खतरे में डाल दिया है — यह संकट है आतंकवाद।
❗आतंकवाद का अर्थ और उसकी उत्पत्ति
'आतंकवाद' शब्द का अर्थ है — भय और हिंसा के माध्यम से किसी उद्देश्य को प्राप्त करना। आतंकवादी संगठन आमतौर पर राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक कारणों से निर्दोष लोगों को लक्ष्य बनाते हैं। आतंकवाद की जड़ें अत्यंत गहरी हैं। इसका उद्भव 20वीं सदी के मध्य में हुआ, जब अलगाववादी और उग्रवादी विचारधाराओं ने संगठित रूप धारण करना शुरू किया। परन्तु 21वीं सदी में यह एक वैश्विक महामारी के रूप में उभरा है।
आतंकवाद वास्तव में एक ऐसी मानसिकता है जो समाज में भय और नफ़रत का जहर घोलती है। यह केवल हथियारों या हिंसा का माध्यम नहीं है, बल्कि एक कुत्सित विचारधारा है जो मानवता को विभाजित करती है।
आतंकवाद की वैश्विक व्याप्ति
आज आतंकवाद किसी एक देश या क्षेत्र की समस्या नहीं रह गया है। अमेरिका, अफगानिस्तान, सीरिया, पाकिस्तान, भारत, फ्रांस, ब्रिटेन — लगभग हर प्रमुख देश को किसी न किसी रूप में इसकी विभीषिका का सामना करना पड़ा है। विश्व व्यापार केंद्र पर 11 सितम्बर 2001 को हुआ हमला इसका सबसे वीभत्स उदाहरण है। भारत में मुंबई हमले (2008), पुलवामा हमला (2019), पहलगाम (2025) आदि ने यह स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद की कोई सीमा नहीं होती।
🌍 भारत, फ्रांस, अमेरिका, अफगानिस्तान — दुनिया के हर कोने में आतंक ने अपने निशान छोड़े हैं।
लेकिन याद रखिए — हिंसा वहीं पनपती है, जहाँ संवाद और शिक्षा की बारिश नहीं होती।
आतंकवाद के दुष्परिणाम
आतंकवाद केवल जान-माल की हानि नहीं करता, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी छिन्न-भिन्न कर देता है। यह धार्मिक और जातीय सौहार्द को नष्ट करता है, देश की आंतरिक सुरक्षा को कमजोर करता है और भय का वातावरण उत्पन्न करता है। इसके कारण लाखों लोग शरणार्थी बनकर अपना घर छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। आर्थिक विकास रुक जाता है और विदेशी निवेश पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
रोकथाम के उपाय
आतंकवाद की रोकथाम के लिए बहु-स्तरीय प्रयासों की आवश्यकता है। सबसे पहले, सरकारों को गुप्तचर तंत्र को मजबूत करना चाहिए ताकि हमलों को समय रहते रोका जा सके। दूसरा, युवाओं में शिक्षा और जागरूकता फैलाना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि आतंकवादी संगठनों का सबसे आसान लक्ष्य असंतुष्ट और बेरोजगार युवा होते हैं। तीसरा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग बेहद आवश्यक है। जब तक सभी देश मिलकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट नहीं होंगे, तब तक इसे जड़ से समाप्त करना असंभव है।
हमारा कर्त्तव्य
एक नागरिक के रूप में हमारा यह नैतिक दायित्व है कि हम किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि की जानकारी संबंधित अधिकारियों को दें। इसके साथ ही, हमें सामाजिक एकता को बनाए रखने के लिए जागरूक रहना होगा और समाज में नफ़रत फैलाने वाली किसी भी विचारधारा का विरोध करना होगा। किसी विशेष धर्म, जाति या समुदाय को आतंकवाद से जोड़ना स्वयं आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसा है।
आज ज़रूरत है जानने की कि:
- 🔹 कोई आतंकवादी बनता क्यों है?
- 🔹 क्या हम चुप रहकर हिंसा को अनजाने में बढ़ावा दे रहे हैं?
- 🔹 क्या केवल सरकार ज़िम्मेदार है — या हम भी?
हमारी असली जीत तब होगी जब हम इस विचारधारा के खिलाफ आवाज उठाएँगे और शांति, प्रेम और सहिष्णुता के मूल्यों को अपनाएँगे। हमें एकजुट होकर इस चुनौती का सामना करना होगा, ताकि हम एक सुरक्षित और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकें।
आतंकवाद आज के समय की सबसे भयावह सच्चाई है, जिसने मानवता की जड़ों को हिला कर रख दिया है। इसे केवल हथियारों से नहीं, बल्कि शिक्षा, एकता और जागरूकता से हराया जा सकता है। जब तक हम एकजुट होकर इसका विरोध नहीं करेंगे, तब तक कोई भी प्रयास अधूरा रहेगा। अब समय आ गया है कि हम केवल शोक न करें, बल्कि संकल्प लें — आतंक के विरुद्ध एक संगठित और सशक्त भारत और विश्व की रचना करें।
📢 आइए, चुप्पी तोड़ें।
✍️ आइए, कलम उठाएँ।
🤝 आइए, मानवता को जगाएँ।

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